हरिगोविंद विश्वकर्मा
पाकिस्तान के संस्थापक और क़ायद-ए-आज़म मोहम्मद अली जिन्ना भले ही वहां हीरो
हों, लेकिन भारत में आज भी इतिहास
के सबसे बड़े खलनायक माने जाते हैं। आम भारतीय उनसे बहुत ज़्यादा नफ़रत करता है और
देश के विभाजन के लिए केवल और केवल उन्हीं को ज़िम्मेदार मानता है। इसीलिए जब भी
कोई जिन्ना के बारे में सकारात्मक बातें करता है तो सबकी भृकुटी तन जाती है। पूर्व
उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने जब 2005 में जिन्ना को सेक्यूलर कह दिया तो पूरे देश में उनकी आलोचना हुई। उनको केवल
अपना बयान ही वापस नहीं लेना पड़ा था, बल्कि बीजेपी अध्यक्ष का पद भी छोड़ना पड़ा था।
यह जिन्ना के प्रति लोगों के नफ़रत का ही परिणाम है कि आजकल जिन्ना के मुंबई
आवास जिसे 'जिन्ना हाउस' और 'साउथ कोर्ट' कहा जाता है, को तोड़ने की बातें हो रही हैं। भारत और पाकिस्तान
के बीच कड़वे रिश्तों के मौजूदा दौर में लोगों को यह जानकर हैरानी होगी कि जिन्ना
मुंबई से बेइंतहां प्यार करते थे और मुंबई में ही रहना चाहते थे। पाकिस्तान के
निर्माण के बाद कराची जाते समय वह सामान यहीं छोड़ गए। वह देश के बंटवारे के कुछ
अरसा बाद तक यही सोच रहे थे कि दोनों देशों के बीच रिश्ते बेहतर होंगे और उनका मुंबई
आना-जाना लगा रहेगा और वह अपने शानदार बंगले में आकर सुकून से रहा करेंगे। कई
इतिहासकार कहते हैं कि इसीलिए वह कराची जाते समय मुंबई का अपना मकान पूरी तरह खाली
करके नहीं गये थे। यह भी विडंबना ही है कि जिन्ना की एकमात्र संतान दीना ने
पाकिस्तान बनने के बाद पिता के साथ पाकिस्तान जाने से इनकार कर दिया था। जिन्ना की
प्रिय पत्नी रुतिन की मज़ार मुंबई में ही है। पाकिस्तान जाने से पूर्व जिन्ना ने मुंबई
में उस कब्र पर अपना अंतिम गुलदस्ता रखा और हमेशा के लिए भारत छोड़कर चले गये।
प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और मोहम्मद अली जिन्ना के क़रीबी रहे
पाकिस्तान में भारत के पहले हाई कमिश्नर श्री श्रीप्रकाश ने, ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में ‘अर्ली मेमरीज़ ऑफ पाकिस्तान’ से एक लेखमाला लिखी थी जिसमें ‘गवर्नर जनरल के रूप में
जिन्ना’ लेख (23 अप्रैल 1963
अंक) में उन्होंने बंबई के ‘जिन्ना हाउस’ प्रकरण का जिक्र किया था। उस प्रसंग का यहां जिक्र करना समीचीन होगा। एक बार नेहरू ने पाकिस्तान में भारतीय हाई कमिश्नर श्रीप्रकाश
को फोन करके उनसे कहा कि ‘जिन्ना हाउस’ भारत सरकार के लिए परेशानी का सबब बन रहा है। जिन्ना से मिलकर पूछिए कि उनकी
क्या इच्छा है और वह कितना किराया चाहते हैं। नेहरू का संदेश सुनकर जिन्ना ने करीब-करीब
चिरौरी करते हुए कहा – “श्रीप्रकाश, मेरा दिल न तोड़ो, जवाहरलाल को कहो मेरा दिल न तोड़ें। मैंने इस मकान को एक-एक ईंट जोड़कर बनवाया
है। इसके बरामदे कितने शानदार हैं। यह एक छोटा-सा मकान है जो किसी यूरोपियन परिवार
या सुरुचिसंपन्न हिंदुस्तानी प्रिंस के रहने लायक है। आप नहीं जानते मैं मुंबई को
कितना चाहता हूं। मैं अभी भी वहां वापस जाने की बाट जोह रहा हूं।” श्रीप्रकाश ने कहा –
“सच, मिस्टर जिन्ना, आप मुंबई जाना चाहते हैं। मैं जानता
हूं कि मुंबई आपकी कितनी देनदार है और आपने इस शहर की कितनी सेवा की है। क्या मैं
प्रधानमंत्री को यह बताऊं कि आप वहां वापस जाना चाहते हैं।” जिन्ना ने जवाब दिया – “हां आप कह सकते हैं।”
अपने संदेश में श्रीप्रकाश ने जिन्ना के जवाब से नेहरू को अवगत कराया। इसके
बाद केंद्र सरकार ने ‘जिन्ना हाउस’ को शत्रु संपत्ति घोषित नहीं किया। कुछ माह बाद, श्रीप्रकाश को नेहरू का एक ज़रूरी टेलीफोन संदेश
आया जिसमें उन्होंने कहा कि मकान को अछूता छोड़ देने पर सरकार को लोगों की तीखी
आलोचना सहनी पड़ रही है। सरकार अब और अधिक समय तक इसे सह नहीं सकती। इस मकान का
अधिग्रहण करना ही होगा। नेहरू चाहते थे कि जिन्ना को इसकी सूचना दे दी जाए और उनसे
पूछ लिया जाये कि वह मकान का कितना किराया लेना चाहेंगे। उन दिनों जिन्ना की तबीयत
ठीक नहीं थी। वह बलूचिस्तान की राजधानी क्वेटा के पास हिल स्टेशन जियारत में स्वास्थ
लाभ कर रहे थे। श्रीप्रकाश ने उन्हें तत्काल चिट्ठी भेजी, जिसके जवाब में जिन्ना ने लिखा कि उन्हें 3000 रुपए
मासिक किराए की पेशकश की गयी है। उन्हें उम्मीद है कि किरायेदार के रूप में उनकी
भावनाओं का ख्याल रखा जाएगा। मकान ब्रिटिश डिप्टी हाई कमिश्नर को किराये पर दे
दिया गया। उनका छोटा सा परिवार था। इसके साथ यह भी तय हुआ कि जब कभी जिन्ना अपने
निजी उपयोग के लिए चाहेंगे किराएदार तुरंत मकान खाली कर देगा। श्रीप्रकाश के
अनुसार उन्हें यह जानकर बड़ा विचित्र लगा कि जिन्ना ने अपना मकान किसी यूरोपियन या
हिंदुस्तानी राजकुमार को देना पसंद किया, लेकिन मुंबई के मुसलमानों को देने का विचार भी नहीं किया।
दरअसल, जिन्ना हिंदुस्तानी मुसलमानों ख़ासकर कट्सेटरपंथियों और मौलवियों से बहुत चिढ़ते थे और उन पर तनिक भी खरोसा
नहीं करते थे।
98 साल की उम्र में शुक्रवार (3 नवंबर 2017) को न्यूयॉर्क में प्राण त्यागने
वाली दीना वाडिया दरअसल, जिन्ना अपनी दूसरी पत्नी रुतिन की बेटी थीं। रुतिन जिन्ना की दूसरी पत्नी थीं
और उनसे जिन्ना बेइंतहां मोहब्बत करते थे। जिन्ना का अपने पारसी व्यापारी मित्र दिनशॉ
पेटिट के यहां बहुत ज़्यादा आना जाना था। इसी दौरान उनकी मुलाकात और बातचीत दिनशा
की 16 साल की बेहद खूबसूरत बेटी
रुतिन से होती थी। नियमित मुलाकात और बातचीत के बाद रुतिन अपने पिता की उम्र के 40 वर्षीय जिन्ना की विद्वता से
इस कदर प्रभावित हुई कि उन्हें दिल दे बैठी। अजीत जावेद की किताब 'सेक्यूलर ऐंड नेशनलिस्ट जिन्ना' के मुताबिक एक दिन दिनशा से जिन्ना ने पूछा, "अंतर्धार्मिक विवाह को आप
कैसा मानते हैं?" तो दिनशा ने कहा कि इससे राष्ट्रीय एकता को मजबूती मिलती है। उसी समय जिन्ना
ने तपाक से कहा, "मैं आपकी बेटी रुतिन से शादी करना चाहता हूं।" लेकिन दिनशा तैयार नहीं
हुए। दो साल के अफेयर के बाद जिन्ना ने रुतिन के 18 साल का होते ही शादी कर ली। दिनशा ने जिन्ना पर बेटी के अपहरण का आरोप लगाते
हुए शिकायत दर्ज कराई, तो मुकदमे की सुनवाई
के दिन रुतिन ने अदालत में जाकर कहा, "जिन्ना ने मेरा अपहरण नहीं किया बल्कि मैंने जिन्ना का
अपहरण किया।" मुकदमा खारिज हो गया।
24 साल छोटी रुतिन से
जिन्ना की शादी परंपरापंथी जमाने में बहुत विवादित रही। मौलवी जिन्ना की शादी को
बर्दाश्त नहीं कर सके। लेकिन जिन्ना मौलवियों को भाव नहीं देते थे। रुतिन फैशनेबल
लड़की थीं। उन्होंने कभी बुर्का या हिजाब जैसी मुस्लिम पोशाक नहीं पहनी, बल्कि
यूरोपियन महिलाओं की तरह ‘लो कट’ लिबास में रहती थीं।
रुतिन से जिन्ना की इकलौती संतान दीना थी। उन्होंने भी मुसलमान से शादी न करके
अपनी मां के पारसी समाज के नेविल वाडिया (वाडिया इंडस्ट्रीज़, ‘बॉम्बे डाइंग’ के चेयरमैन नुस्ली वाडिया के
पिता) से शादी की थी। सबसे अहम् रुतिन परदे की जगह ‘लो कट’ लिबास में मुस्लिम लीग की बैठकों में शिरकत करती थीं, जो कट्टर मुसलमानों को बहुत ज़्यादा नागवार गुजरता
था। बहरहाल, 1929 में 29 साल की उम्र में रुतिन का निधन
हो गया। जिन्ना रुतिन की जुदाई सहन नहीं कर पाए, उन्हें गहरा सदमा लगा। उस समय देश में राजनीतिक अस्थिरता थी, लिहाजा, जिन्ना 1930 में लंदन चले गए और
वहां प्रीवी काउंसिल में प्रैक्टिस करने लगे।
वस्तुतः 1934 में चार साल के
राजनीतिक वनवास से लौटने के बाद जिन्ना ने मुंबई के सबसे भव्य और पॉश इलाके दक्षिण
मुंबई के मलाबार में समुद्र के किनारे तीन एकड़ जमीन पर अपने सपनों का घर बनाने का
फैसला किया। इस भवन का डिजाइन मशहूर ब्रिटिश वास्तुकार क्लाउड बेटली ने यूरोपीय
शैली में तैयार की। उनकी ही देखरेख में इसका निर्माण शुरू हुआ। निर्माण के समय खुद
जिन्ना नियमित यहां आते थे और पूरे निर्माण कार्य की व्यक्तिगत निगरानी करते थे।
सन् 1936 में जिन्ना हाउस बनकर तैयार
हो गया। दो मंजिले (ग्राउंड प्लस फर्स्ट फ्लोर) इमारत में तीन कांफ्रेंस हॉल और 14 कमरे हैं। इसके निर्माण पर
तब दो लाख रुपए का खर्च आया था। इसमें अखरोट की महंगी लकड़ियों की पैनलिंग की गई
है और इटैलियन संगमरमर के इस्तेमाल से शानदार बुर्ज व खूबसूरत खंभे हैं। कभी बेहद
खूबसूरत रहे इस बंगले की खिड़कियों से समुद्र का नज़ारा साफ दिखाई देता है। माउंट
प्लेज़ेंट रोड(अब भाउसाहब हीरे मार्ग) पर यूरोपियन स्टाइल में बना जिन्ना हाउस अब
खंडहर हो चुका है मगर जब ये बना था तब पहली नजर में ही देखने वालों को मोहित कर लेता था।
एसके धांकी की पुस्तक 'लाला लाजपत राय एंड इंडियन
नेशनलिज्म' के मुताबिक, सरोजनी नायडू गांधी के बाद जिन्ना की बहुत इज्जत करती थीं और उन्हें महान
धर्मनिरपेक्ष नेता और हिंदू मुस्लिम एकता का राजदूत कहती थी। जिन्ना से मिलने के लिए जिन्ना हाउस में महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और सुभाषचंद्र बोस जैसे बड़े नेता आते थे। पूर्व वित्तमंत्री
जसवंत सिंह की चर्चित किताब "जिन्नाः इंडिया-पार्टिशन इनडेपेंडेंस" के
मुताबिक जिन्ना पाकिस्तान जाकर कभी सुकून से नहीं रहे। उनसे जो ब्लंडर हुआ था, उसको लेकर पछताते थे। जिन्ना मुंबई आकर रुतिन की
मजार पर जाना चाहते थे। एमएच सईद की किताब 'द साउंड एंड फ्यूरी
- ए पोलिटिकल स्टडी ऑफ मोहम्मद अली जिन्ना' के मुताबिक कट्टर
मुसलमान रुतिन से शादी करने के लिए जिन्ना को जीवन भर माफ नहीं कर पाए और उन्हें
काफिर कहने लगे थे। जिन्ना के कायदे आजम बनने के बाद पाकिस्तान में यह शेर बड़ा
प्रचलित हुआ-
इक काफिरा के वास्ते इस्लाम को छोड़ा,
यह कायदे आजम है या काफिरे आजम।
अपने देहांत से कुछ पूर्व मृत्यु शय्या पर पड़े जिन्ना का पाकिस्तान निर्माण
के प्रति पूरी तरह मोह भंग हो गया था। उन्हें देश के बंटवारे की ‘महागलती’ का एहसास हो चुका था, लेकिन
तब तक बहुत देर हो चुकी थी और जिन्ना भारतीय इतिहास के सबसे बड़े खलनायक बन चुके
थे।
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