हरिगोविंद विश्वकर्मा
दही-हांडी का रोचक पर्व भारत ख़ासकर महाराष्ट्र के शहरों में दशकों नहीं,
सदियों से धूमधाम से मनाया जाता रहा है. कृष्ण जन्माष्टमी के दिन होने वाले इस
उत्सव में युवाओं के साथ-साथ किशोर और बच्चे भी उत्साह से शिरकत करते रहे हैं.
किशोरों और बच्चों को इस पर्व में इसलिए शामिल किया जाता रहा है क्योंकि, बच्चों
का वजन कम होता है और मटकी फोड़ते के लिए पिरामिड बनाते समय उन्हें आसानी से कंधे
पर बिठाकर मटकी तक पहुंचा जा सकता है. यह काम कोई वयस्क आदमी नहीं कर सकता. यह कहना न तो ग़लत होगा, न ही अतिरंजनापूर्ण कि दही-हांडी
का खेल मूलतः बच्चों, किशोकों और नवयुवकों का ही रहा है.
हालांकि, बाल मज़दूरी को समूल नष्ट करने का संकल्प ले चुके समाजसेवकों की
आपत्ति के बाद बॉम्बे हाईकोर्ट ने जो आदेश दिया है, कम से कम उससे तो दही-हांडी की
गौरवशाली परंपरा के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लग गया है. अब ख़तरा यह है कि कहीं
अदालती दख़ल के चलते भारतीय संस्कृति की यह रोचक और रोमांचकारी परंपरा सदा के लिए ख़त्म
न हो जाए. तभी तो कहा जा रहा है कि अदालत की ओर से दही-हांडी के जो तरीकों बताए गए
हैं, वे प्राइमा फ़ेसाई अव्यवहारिक हैं और उन पर अमल करने से बेहतर है होगा, यह
पर्व ही न मनाया जाए. इसी बिना पर कई लोगों ने हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट
में चुनौती देने का निर्णय लिया है.
दरअसल, सबसे पहले मुंबई पुलिस के प्रमुख राकेश मारिया ने बच्चों का सुरक्षा को
ध्यान में रखते हुए, 12 साल उम्र तक के बच्चों के दही-हांडी के पिरामिड में भाग
लेने पर रोक लगा दी. पुलिस प्रमुख ने मुंबई के पुलिस थानों को सख़्त निर्देश दे दिया
कि नई गाइडलाइंस पर कड़ाई से अमल किया जाए ताकि बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा
सके. मुंबई के पुलिस प्रमुख ने यह क़दम बाल मज़दूरी उन्मूलन के क्षेत्र में काम कर
रहे लोगों के दबाव में उठाया था.
बहरहाल, अब रही सही कसर ने बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश ने पूरी कर दी. हाईकोर्ट
ने कहा कि दही-हांडी की टांगने की ऊंचाई 20 फीट से ज़्यादा नहीं होनी चाहिए. इसके
अलावा नाबालिगों यानी 18 साल से कम उम्र के लड़कों को पिरामिड बनाने में शामिल
नहीं किया जाना चाहिए. दरअसल, अब कहा जा रहा है कि किसी वयस्क युवक, जिसका वजन कम
से कम 60 किलोग्राम तो होगा, को अगर पिरमिड में सबसे ऊपर चढ़ाया गया तो नीचे के
गोविंदाओं के दबने का ख़तरा रहेगा.
दरअसल, इस अति उत्साही और रोमांचकारी भारतीय परंपरा का आरंभ भगवान कृष्ण
द्वारा बाल्यकाल में गोपियों की मटकी से माखन चुराने की घटनाओं से माना जाता है.
लिहाज़ा, कहा जा सकता है कि यह त्यौहार ही बच्चों, किशोरों और नवयुवकों का है.
मटकी असल में बच्चे फोड़ते हैं, नवयुवक तो अपने कंधे पर बिठाकर उन्हें सहारा देते
हैं और मटकी तक पहुंचाते हैं. इसलिए यह कहने में कतई हर्ज़ नहीं कि इस त्यौहार का
अट्रैक्शन ही बच्चे हैं. बच्चों की भागीदारी के बिना यह अधूरा-अधूरा सा लगेगा.
राज्य की सबसे बड़ी अदालत ने कई और ऐसे इंतज़ामात करने के भी निर्देश दिए हैं,
जिन पर अमल करना मुश्किल भरा ही नहीं क़रीब-क़रीब असंभव है. मसलन, हाईकोर्ट ने कहा
है कि मटकी-स्थल के आसपास ज़मीन पर गद्दे बिछाए जाएं. चूंकि गोविंदा का पर्व बारिश
के मौसम में पड़ता है, ऐसे में खुले आसमान के नीचे गद्दे नहीं बिछाए जा सकते. इससे
और गंभीर समस्या खड़ी हो सकती है. यह आयोजकों के लिए भी व्यवहारिक नहीं होगा.
हाईकोर्ट ने गोविंदाओं के लिए सुरक्षात्मक कवच और हेलमेट का इंतज़ाम करने और मटकी
सड़क या रास्ते पर न टांगने की भी निर्देश दिया है. इन आदेशों का पालन करना बहुत
मुश्किल भरा होगा.
वस्तुतः हाल के वर्षों ख़ासकर टीवी चैनलों पर लाइव टेलीकास्ट और इस त्यौहार को
प्रॉडक्ट बेचने का ज़रिए बना देने के कारण इस अति प्राचीन पर्व का बड़ा घाटा हुआ.
गोविंदा मंडलों का कॉमर्शलाइज़ेशन हो गया जिससे गलाकाट स्पर्धा शुरू हो गई. जिससे
मटकी की ऊंचाई और इनामी राशि भयानक रूप से बढ़ने लगी. बाज़ारीकरण के चलते यह
त्यौहार हंगामें वाला पर्व बन गया, इस कारण एक बहुत बड़ा तबक़ा इन आयोजनों से
चिढ़ने लगा. कहा जा सकता है कि आयोजकों और बाज़ार को संचालित करने वाली कंपनियों
की ओर से इसे मुनाफ़े का जरिया बना देने के चलते इस बेहद ख़ूबसूरत त्यौहार का
बंटाधार ही हो गया.
वस्तुतः दही-हांडी में मिट्टी (अब ताबां या पीतल) के बर्तन में दही, मक्खन, शहद, फल और कैश धनराशि रखे जाते हैं. इस बर्तन को धरती
से 30 फ़ीट ऊपर तक टांगा जाता है. बच्चे, किशोर और नवयुवक लड़के–लड़कियां पुरस्कार जीतने के
लिए समारोह में हिस्सा लेते हैं. ऐसा करने के लिए नवयुवक एक–दूसरे के कंधे पर चढ़कर पिरामिड बनाते हैं. जिससे सबसे
ऊपर पहुंचकर आसानी से मटकी को तोड़कर उसमें रखी सामग्री को प्राप्त कर लेता है. प्रायः
रुपए की लड़ी रस्से से बांधी जाती है. इसी रस्से से वह बर्तन भी बांधा जाता है. इस
धनराशि को उन सभी सहयोगियों में बांट दिया जाता है, जो उस मानव पिरामिड में भाग लेते हैं.
दरअसल, मुंबई में दही-हांडी के दौरान हादसे रोकने के लिए ही नई गाइडलाइंस तैयार
की गई है. हादसों को रोकने के लिए हाईकोर्ट में जनहित याचिकाएं दायर की गईं,
उन पर ही हाईकोर्ट ने फैसला
दिया. मटकी फोड़ने के अभ्यास के दौरान दो दिन पहले 14 साल के लड़के की मौत हो गई थी.
हाईकोर्ट के आदेश के बाद शहर के सभी थानों को आदेश दिया गया है कि अगर किसी गोविंदा
मंडल में दही-हांडी फोड़ने वाली टीम में नाबालिग शामिल किया तो उसके खिलाफ कार्रवाई
की जाए. बहरहाल, अगर इस मामले में थोड़ा परिवेश और परंपरा को ध्यान में रखकर
निर्णय किया गया होता तो ज़्यादा बेहतर होता. अब भी देर नहीं हुई है, इस अच्छी
परपंरा को जीवित रखने की कोशिश की जानी चाहिए थी, इससे मुनाफ़ा कमाने वालों को अलग
करने की ज़रूरत थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
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