हरिगोविंद विश्वकर्मा
अगर कहें कि कांग्रेस के लोकप्रिय नेता और उपाध्यक्ष राहुल गांधी जुमलेबाज़ी
करने में माहिर हो चुके हैं, तो तनिक भी अतिशयोक्ति नहीं होगा। राहुल उसी तरह की जुमलेबाज़ी
करने लगे हैं, जिस तरह की जुमलेबाज़ी से भारत की जनता मंत्रमुग्ध होती रही है।
इतिहास गवाह है कि इस देश में पिछले सात दशक से केवल जुमलेबाज़ी ही हो रही है।
यहां लोगों को जुमलेबाज़ी बहुत ज़्यादा पसंद है। तभी तो जुमलेबाज़ नेताओं के पीछे
लोग पागल हो जाते हैं। उन्हें सिर-आंखों पर ही नहीं बिठाते हैं, बल्कि उन्हें आंख मूंदकर वोट देते हैं। कहना न होगा, इसी
जुमलेबाज़ी के चलते पिछले आम चुनाव में नरेंद्र मोदी जनता के प्रिय नेता बनकर उभरे
और प्रधानमंत्री भी बन गए। नरेंद्र मोदी के ‘विदेश
से कालाधन लाने और हर भारतीय खाते में 15 लाख जमा कराने’ के बयान को बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने ख़ुद एक ‘चुनावी जुमलेबाज़ी’
माना।
बहरहाल, चर्चा हो रही है कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी की। अभी मॉनसून सत्र
में लोकसभा में महंगाई के मुद्दे पर चर्चा के दौरान राहुल का भाषण जुमले से भरपूर
रहा। उन्होंने सीज़न्ड पॉलिटिशियन्स की तरह नरेंद्र मोदी की ही स्टाइल में उनकी जमकर
ख़बर ली। बीजेपी सांसदों की टोकाटोकी के बीच राहुल ने दो साल कार्यकाल में संसद
में अपनी 11वीं स्पीच अपने चिरपरिचित अंदाज़ में पूरी की। उनकी जुमलेबाज़ी से
बीजेपी नेता एकदम तिलमिला उठे। सरकार की तरफ़ से ख़ुद वित्तमंत्री अरुण जेटली को
मोर्चा संभालना पड़ा और उन्होंने दावा किया, “पिछले
कुछ महीनों में थोक महंगाई दर कम हुई है। महंगाई पर क़ाबू के लिए सरकार ने क़दम
उठाए हैं।“ सोशल मीडिया पर मोदीभक्त और भी ज़्यादा
तिलमिला उठे और अनाप-शनाप कमेंट करने लगे। इसका मतलब यह हुआ कि राहुल का तीर एकदम सही
निशाने पर बैठा।
कांग्रेस उपाध्यक्ष ने नरेंद्र मोदी पर तंज करते हुए कहा, “मोदीजी का चुनावी नारा था, ‘हर हर मोदी, घर घर मोदी’ लेकिन आजकल हर जगह एक ही
नारा चल रहा है ‘हर हर मोदी, अरहर मोदी’।“ राहुल इतने पर नहीं रुके,
उन्होंने मोदी के
चौकीदार वाले बयान की चुटकी लेते हुए कह दिया, “मोदीजी ख़ुद को देश का चौकीदार
कहते रहे हैं, लेकिन चौकीदार की नाक के नीचे दाल चोरी हो रही है, लेकिन चौकीदार
कुछ नहीं कर रहा है।” कांग्रेस के युवराज ने दो क़दम और आगे बढ़ते हुए कहा, ”सरकार ने दो साल का जश्न धूमधाम
से मनाया। बहुत सारे सितारों को बुलाया, लेकिन इस पूरे फंक्शन में मोदीजी ने महंगाई पर एक भी
शब्द नहीं बोला।”
इससे पहले इसी साल गर्मियों में राहुल गांधी ने 'फेयर एंड लवली' वाला बहुचर्चित जुमला
देते हुए कहा था, “मौजूदा एनडीए सरकार ने
काले धन को सफ़ेद बनाने के लिए एक 'फेयर एंड लवली' योजना शुरू की है।“
राहुल की जुमलेबाज़ी से उस समय भी बीजेपी के नेतागण ख़ासे बैखलाए और तब भी अरुण
जेटली संकटमोटक बने और उन्हें ही आधिकारिक रूप से कहना पड़ा, “राहुल की टिप्पणी
पोलिटकली इनकरेक्ट है। यह नस्ली मानसिकता दिखाता है। यह ऐसा मुहावरा है जिससे पूरी
दुनिया के लोग क्रोध करते हैं लेकिन मैं इसे नज़रंदाज़ करूंगा, क्योंकि यह
अज्ञानता है।"
पूरा देश जानता है और गवाह भी है कि जुमलेबाज़ी की यह स्टाइल नरेंद्र मोदी की
रही है। 2014 के लोकसभा चुनाव में अपनी रैलियों में वह बार-बार वह दिल्ली में ‘मां-बेटे की सरकार’
तो उत्तर प्रदेश और
जम्मू-कश्मीर में ‘बाप-बेटे की सरकार’ ‘उनको साठ साल दिया मुझे
साठ महीने दीजिए’और कभी ‘50 करोड़ की गर्लफ्रेंड’ जैसे जुमले पेश करके अपने
नेताओं-कार्यकर्ताओं से ताली और वाहवाही लूटते थे। प्रधानमंत्री बनने के बाद भी
नरेंद्र मोदी की जुमलेबाज़ी जारी रही। वह ‘मैं मैं प्रधानमंत्री नहीं प्रधानसेवक हूं’, ‘मैं तो चौकीदार हूं’,
‘मैं 65 साल का
कचरा साफ़ कर रहा हूं’ और ‘न खाऊंगा न खाने दूंगा’ के जुमले से अपने भक्तों का दिल
जीतते रहे हैं।
बहरहाल, अगर राहुल गांधी के संसद या संसद से बाहर दिए गए भाषणों पर गौर करें तो वह
लिखा हुआ नहीं पढ़ते। नरेंद्र मोदी का तरह वह भी बिना लिखित भाषण के ही बोलते हैं।
राहुल ने कुछ साल पहले कई न्यूज़ चैनलों को इंटरव्यू भी दिया था, जिसमें उन्होंने परिपक्व
नेता की तरह बड़ी बेबाकी से हर मुद्दे को तरह रखा था। इसका मतलब यह कि राहुल का होमवर्क भी ठीकठाक ही नहीं,
देश के कई प्रमुख नेताओं
के मुक़ाबले बहुत ही अच्छा है। कम से कम वह बोलते समय ब्लंडर नहीं करते और
जेंटलमैन की तरह अपनी बात रखते हैं। भले ही वह कभी-कभार ही बोलते हैं, लेकिन बोलते अच्छा हैं।
अच्छा और प्रभावशाली भाषण देते हैं। लोकसभा में कई बार उन्होंने यादगार भाषण दिया
भी है।
ऐसे में लोग, ख़ासकर राजनीतिक टीकाकार, अकसर हैरान होते हैं कि कांग्रेस अपने इस
अतिलोकप्रिय नेता के परफॉरमेंस को लेकर आख़िर आश्वस्त क्यों नहीं है? पार्टी अपने इस
फायरब्रांड नेता को लेकर शुरू से क्यों असमंजस में है और अनावश्य हिचकिचाहट दिखाती
रही है, ख़ासकर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुक़ाबले उन्हें फ्रंट पर खड़ा करने में। वैसे 19
जून 1970 को जन्मे राहुल गांधी अब बच्चे या युवा नहीं रहे, वह 46 साल के हो गए हैं।
इस उम्र में तो उनके पिता राजीव गांधी प्रधानमंत्री के रूप में अपना कार्यकाल भी
पूरा कर चुके थे। बहरहाल, राहुल 2004 से अपने माता-पिता और चाचा संजय गांधी के
संसदीय क्षेत्र उत्तर प्रदेश अमेठी से लगातार तीसरी बार लोकसभा के सदस्य हैं।
सबसे बड़ी बात राहुल गांधी वंशवाद के प्रतिनिधि हैं। वह 38 साल तक देश को
प्रधानमंत्री देने वाले नेहरू-गांधी खानदान के पुरुष वारिस हैं। भारत के लोग जुमलेबाज़ी
के अलावा वंशवाद पर भी लट्टू रहते हैं। मुलायम सिंह यादव, लालूप्रसाद यादव, रामविलास पासवान,
शरद पवार, बाल ठाकरे, सिंधिया परिवार, अब्दुल्ला और सोरेन
फैमिली, पटनायक
और करुणानिधि परिवार जनता की इसी मानसिकता के कारण फलते फूलते रहे हैं और अपने
परिवार के लोगों को संसद और विधानसभाओं में भेजते रहे हैं। दरअसल, सदियों से खानदानी हिंदू
सम्राटों और मुस्लिम सुल्तानों के शासन में सांस लेने के कारण भारत की जनता ग़ुलाम
मानसिकता की ओ गई है। इस मूढ़ जनता को वंशवाद शासन बहुत भाता है। लिहाज़ा, इस तरह की भावुक जनता के
लिए राहुल गांधी सबसे फिट नेता हैं।
दरअसल, सोनिया गांधी और राजीव गांधी का पुत्र होने के नाते भी राहुल को फ्रंट पर ही
रहना चाहिए था। लेकिन ऐसा लगता हैं, कांग्रेस में एक ऐसा खेमा है, जो नहीं चाहता कि राहुल बेबाक
बोलने वाला पार्टी में फ्रंट पर आए और उन लोगों की जमी जमाई दुकानदारी ही चौपट कर
दे। इसीलिए यह खेमा 10 जनपथ को सलाह देता रहता है कि राहुल गांधी अभी परिपक्व नहीं
हुए हैं, लिहाज़ा अभी उन्हें बड़ी ज़िम्मदारी देने का सही और उचित नहीं आया है।
इसी बिना पर राहुल को मई 2014 में 44 सांसदों के बावजूद लोकसभा में कांग्रेस का
नेता नहीं बनाया। उनकी जगह कांग्रेस ने मनमोहन सिंह सरकार में रेल मंत्री रहे और
क़ायदे से हिंदी न बोल पाने वाले कर्नाटक के मल्लिकार्जुन खरगे लोकसभा में नेता
बना दिया। यह कांग्रेस की बड़ी भूल यानी ब्लंडर था, उसे राहुल गांधी को नेता बनाना
चाहिए था, ताकि वह भविष्य में देश का नेतृत्व करने के लिए तैयार होते। लेकिन पार्टी ने
वह मौक़ा गंवा दिया।
दिल्ली के सेंट कोलंबस स्कूल और दून स्कूल, हावर्ड यूनिवर्सिटी के रोलिंस
कॉलेज फ्लोरिडा से स्नातक और कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के ट्रिनिटी कॉलेज से एमफिल राहुल
गांधी का नैसर्गिक टेस्ट सिस्टम विरोधी है। मनमोहन की सरकार थी, तब भी वह अकसर ऐसे-ऐसे
बयान दे देते थे, जिससे भ्रम होता था कि कहीं वह सरकार के विरोधी यानी विपक्ष में तो नहीं हैं। 2013
में एक बार तो राहुल ने दाग़ी नेताओं को बचाने के लिए लाए गए मनमोहन सरकार के अध्यादेश
को ही फाड़ कर फेंक दिया था। इस तरह का सिस्टम-विरोधी नेता किसी भी पार्टी का एसेट
होता है, लेकिन दिग्भ्रमित कांग्रेस के नेता राहुल को बोझ मानते हैं और प्रियंका
को सक्रिय राजनीति में लाने के लिए फरियाद करते रहे हैं, जबकि जानते हैं, प्रियंका
के राजनीति में आते ही कथिततौर पर भ्रष्टाचार करने वाले रॉबर्ट वाड्रा मुख्य
केंद्र में आ जाएंगे। बहरहाल, राहुल गांधी जैसा जो नेता किसी भी विपक्षी पार्टी की
पहली पसंद होता, वही नेता कांग्रेस में एकदम हाशिए पर है।
बीजेपी जानती है, कि राष्ट्रीय स्तर पर उसे मुलायम-लालू, नीतीश, पटनायक,
नायडू, मायावती, ममता, जयललिता से कोई ख़तरा नहीं है। इस भगवा पार्टी को ख़तरा
केवल राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल से है। अगर भविष्य में नरेंद्र मोदी को
चुनौती मिली तो इन्हीं दो नेताओं से मिलेगी। इसीलिए मोदीभक्तों के निशाने पर सबसे
ज़्यादा राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल ही रहते हैं। दोनों उपहास का पात्र बनाने का
कोई मौक़ा भक्त नहीं चूकते। फेसबुक, ट्विटर और व्हासअप जैसे सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट पर
इन दोनों नेताओं के बारे में तरह तरह के चुटकुल रचे जाते हैं और यह साबित करने की
कोशिश की जाती है कि ये दोनों वाक़ई नरेंद्र मोदी के मुक़ाबले कहीं नहीं ठहरते है,
जबकि हक़ीकत है कि अरविंद केजरीवाल भले सुप्रीमो कल्चर में भरोसा करते हों और आम
आदमी पार्टी में अकेले नेता बने रहना चाहते हों, लेकिन राहुल गांधी बहुत उदार और
जेंटलमैन नेता हैं। वह सबको लेकर चलने वाले नेता हैं। फिर भी कांग्रेस में फ्रंट
पर नहीं हैं। यह कांग्रेस का दुर्भाग्य है।
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