हरिगोविंद विश्वकर्मा
आज पड़ोसी देश पाकिस्तान में स्वतंत्रता दिवस मनाया जा रहा है। मतलब पाकिस्तान अपने जन्मदाता भारत के आज़ाद होने से एक दिन पहले ही अस्तित्व में आ गया था। ऐसे में भारत के लोगों लिए यह जानना बेहद ज़रूरी है कि पाकिस्तान बनने की पृष्टिभूमि क्या थी? दरअसल, गहराई से रिसर्च करने पर पता चलता है कि पाकिस्तान के जन्म का संबंध अयोध्या की बाबरी मस्जिद से है। सन् 1857 के विद्रोह के बाद अंग्रेज़ों ने अयोध्या में श्री राम मंदिर को लेकर एक रणनीति के तहत एक बहुत भयानक और दीर्घकालीन साज़िश रची, जिसका नतीजा पाकिस्तान है।
दरअसल, सन् 1857 के विद्रोह के पहले सन् 1856 में लॉर्ड पॉमर्स्टन सरकार ने लॉर्ड कैनिंग यानी चार्ल्स जॉन कैनिंग को भारत का गवर्नर-जनरल नियुक्त किया था। सन् 1857 के गदर के बाद कैनिंग ने ब्रिटिश प्रधानमंत्री लॉर्ड विस्काउंट पॉमर्स्टन को भेजी रिपोर्ट में कहा था कि अगर इंडिया में लंबे समय तक शासन करना है तो यहां की जनता के बीच धर्म के आधार पर मतभेद पैदा करना ही पड़ेगा और इसके लिए हिंदुओं के प्रमुख देवता राम की जन्मस्थली को विवाद में ला दिया जाए।
इतिहास की कई चर्चित किताबों के मुताबिक 1857 के विद्रोह के बाद अयोध्या विवाद की साज़िश रची गई। इसके लिए इंतिहास से छेड़छाड़ भी की गई और इब्राहिम लोदी की बनाई गई मस्जिद को बाबरी मस्जिद का नाम दे दिया गया। कालजयी लेखक कमलेश्वर के भारतीय और विश्व इतिहास पर आधारित चर्चित उपन्यास ‘कितने पाकिस्तान’ में बाबरी मस्जिद पर इतिहास के हवाले से बहुत महत्वपूर्ण तथ्य दिए गए हैं। लेखक ने कई अध्याय अयोध्या मुद्दे को समर्पित किया है। सन 2000 में प्रकाशित ‘कितने पाकिस्तान’ को अटलबिहारी सरकार ने बेहतरीन रचना करार देते हुए 2003 में साहित्य अकादमी का पुरस्कार दिया था। किताब को नामवर सिंह, विष्णु प्रभाकर, अमृता प्रीतम, राजेंद्र यादव, कृष्णा सोबती, हिमांशु जोशी और अभिमन्यु अनंत जैसे मूर्धन्य साहित्यकारों ने विश्व-उपन्यास की संज्ञा देते हुए इसकी दिल खोलकर प्रशंसा की है।
‘कितने पाकिस्तान’ के मुताबिक, दरअसल, अयोध्या की मस्जिद (बाबरी मस्जिद नहीं) में एक शिलालेख भी लगा था, जिसका जिक्र एक ईमानदार अंग्रेज़ अफ़सर ए फ़्यूहरर ने कई जगह अपनी रिपोर्ट्स में किया है। फ़्यूहरर ने 1889 में आख़िरी बार उस शिलालेख को पढ़ा, जिसे बाद में एक साज़िश के तहत अंग्रेज़ों ने नष्ट करवा दिया। शिलालेख के मुताबिक अयोध्या में मस्जिद का निर्माण इब्राहिम लोदी के आदेश पर सन् 1523 में शुरू हुआ और सन् 1524 में मस्जिद बनकर तैयार हो गई। इतना ही नहीं, शिलालेख के मुताबिक, अयोध्या की मस्जिद का नाम बाबरी मस्जिद था ही नहीं।
दरअसल, ‘कितने पाकिस्तान’ के मुताबिक मस्जिद में इब्राहिम लोदी के शिलालेख को नष्ट करने में ख़ास तौर पर फैजाबाद भेजे गए अंग्रेज़ अफ़सर एचआर नेविल ने अहम भूमिका निभाई। सारी ख़ुराफ़ात और साज़िश का सूत्रधार नेविल ही था। नेविल ने ही आधिकारिक तौर पर फ़ैज़ाबाद का गजेटियर तैयार किया था। नेविल की साज़िश में दूसरा फ़िरंगी अफ़सर कनिंघम भी शामिल था, जिसे अंग्रेज़ी हुक़ूमत ने हिंदुस्तान की तवारिख़ और पुरानी इमारतों की हिफ़ाज़त की ज़िम्मेदारी सौंपी थी। दरअसल, इंडियन सबकॉन्टिनेंट पर एक मुस्लिम देश बनाने की आधारशिला नेविल और कनिंघम ने रख दी थी। यह मुस्लिम देश 14 अगस्त 1947 को अस्तित्व में भी आ गया।
किताब के मुताबिक दोनों अफ़सरों ने बड़ी साज़िश के तहत गजेटियर में दर्ज किया कि 1528 में अप्रैल से सितंबर के बीच एक हफ़्ते के लिए बाबर अयोध्या आया और राम मंदिर को तोड़कर वहां बाबरी मस्जिद की नींव रखी थी। यह भी लिखा कि अयोध्या पर हमला करके बाबर की सेना ने एक लाख चौहत्तर हज़ार हिंदुओं की हत्या कर दी, जबकि फ़ैज़ाबाद के गजेटियर में आज भी लिखा है कि1869 में, उस लड़ाई के क़रीब साढ़े तीन सौ साल बाद,अयोध्या-फ़ैज़ाबाद की कुल आबादी महज़ दस हज़ार थी जो 1881 में बढ़कर साढ़े ग्यारह हज़ार हो गई। सवाल उठता है कि जिस शहर की आबादी इतनी कम थी वहां बाबर या उसकी सेना ने इतने लोगों को हलाक़ कैसे किया या फिर इतने मरने वाले कहां से आ गए? यहीं, बाबरी मस्जिद के बारे में देश में बनी मौजूदा धारणा पर गंभीर सवाल उठता है।
बहरहाल, हैरान करने वाली बात यह है कि दोनों अफ़सरों नेविल और कनिंघम ने सोची-समझी नीति के तहत बाबर की डायरी बाबरनामा, जिसमें वह रोज़ाना अपनी गतिविधियां दर्ज करता था, के 3 अप्रैल 1528 से 17 सितंबर 1528 के बीच लिखे गए 20 से ज़्यादा पन्ने ग़ायब कर दिए और बाबरनामा में लिखे ‘अवध’ यानी ‘औध’ को‘अयोध्या’ कर दिया। मज़ेदार बात यह है कि मस्जिद के शिलालेख का फ़्यूहरर द्वारा किए गए अनुवाद को ग़ायब करना अंग्रेज़ अफ़सर भूल गए। वह अनुवाद आज भी आर्कियोल़जिकल इंडिया की फ़ाइल में महफ़ूज़ है और ब्रिटिश अफ़सरों की साज़िश से परदा हटाता है।
दरअसल, बाबर की गतिविधियों की जानकारी बाबरनामा की तरह हुमायूंनामा में भी दर्ज है। लिहाज़ा, बाबरनामा के ग़ायब पन्ने से नष्ट सूचना हुमायूंनामा से ली जा सकती है। हुमायूंनामा के मुताबिक 1528 में बाबर अफ़गान हमलावरों का पीछा करता हुआ घाघरा (सरयू) नदी तक अवश्य गया था, लेकिन उसी समय उसे अपनी बीवी बेग़म मेहम और अन्य रानियों व बेटी बेग़म ग़ुलबदन समेत पूरे परिवार के काबुल से अलीगढ़ आने की इत्तिला मिली। बाबर लंबे समय से युद्ध में उलझने की वजह से परिवार से मिल नहीं पाया था इसलिए वह तुरंत अलीगढ़ रवाना हो गया। पत्नी-बेटी और परिवार के बाक़ी सदस्यों को लेकर वह अपनी राजधानी आगरा आया और 10 जुलाई तक उनके साथ आगरा में ही रहा। उसके बाद बाबर परिवार के साथ पिकनिक मनाने धौलपुर चला गया। वहां से सिकरी पहुंचा, जहां सितंबर के दूसरे हफ़्ते तक रहा।
उपन्यास के मुताबिक अयोध्या की मस्जिद बाबर के आक्रमण और उसके भारत आने से पहले ही मौजूद थी। बाबर आगरा की सल्तनत पर 20 अप्रैल 1526 को क़ाबिज़ हुआ जब उसकी सेना ने इब्राहिम लोदी को हराकर उसका सिर क़लम कर दिया। एक हफ़्ते बाद 27 अप्रैल 1526 को आगरा में बाबर के नाम का ख़ुतबा पढ़ा गया। मज़ेदार बात यह है कि ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी माना है कि अयोध्या में राम मंदिर को बाबर और उसके सूबेदार मीरबाक़ी ने 1528 में मिसमार करके वहां बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाया। मीरबाक़ी का पूरा नाम मीरबाक़ी ताशकंदी था और वह अयोध्या से चार मील दूर सनेहुआ से सटे ताशकंद गांव का निवासी था।
बहरहाल, अयोध्या के राम मंदिर को बाबरी मस्जिद बनाकर अंग्रज़ों ने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच नफरत का जो बीज बोया वह दिनों-दिन बढ़ता ही गया। इसके बाद मंदिर मस्जिद या दूसरे धार्मिक मुद्दों पर हिंदू-मुसलमान के बीच संघर्ष होने लगे। इस बीच एक साज़िश के तहत भारी विरोध के बावजूद 20 जुलाई 1905 को बंग भंग के प्रस्ताव पर इंडिया सेक्रेटरी का ठप्पा लग गया। राजशाही, ढाका तथा चटगांव कमिश्नरीज़ को आसाम के साथ मिलाकर एक प्रांत नया बनाया गया, जिसका नाम पूर्ववंग और आसाम रखा गया। अंग्रेज़ यहीं नहीं रुके, उन्होंने कांग्रेस को हिंदुओं की पार्टी करार देकर मुसलमानों के लिए अलग राजनीतिक पार्टी बनवाई इसके लिए अंग्रज़ों ने ढाका के चौथे नवाब सर ख्वाजा सलीमुल्लाह बहादुर और अलीगढ़ के नवाब मुहसिनुल मुल्क का इस्तेमाल किया। अंग्रज़ों की शह पर 30 दिसंबर 1906 को औपचारिक रूप से ब्रिटिश इंडिया के बंगाल स्टेट के ढाका शहर (अब बांग्लादेश) में अखिल भारतीय मुस्लिम लीग की स्थापना की गई।
1909 के बाद से कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच मतभेद गंभीर होने लगे। ख़ुद मोहम्मद अली जिन्ना पहले मुस्लिम लीग के नेतओं से नफरत करते थे। जिन्ना को न तो उर्दू आती थी और न ही वह नमाज पढ़ते थे। वह सूअर का मांस खाने से परहेज नहीं करते थे। कुछ साल पहले लालकृष्ण आडवाणी ने सही कहा था कि जिन्ना वाक़ई सेक्यूलर मुसलमान थे। उन्होंने 1913 में मुस्लिम लीग की सदस्यता स्वीकार की। महात्मा गांधी के ख़िलाफ़त आंदोलन का जिन्ना ने पुरजोर विरोध किया था। जिन्ना उदारवादी नेता थे। वह अली बंधुओं (जिनमें से एक लियाकत अली पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री बने) से भी नफरत करते थे। 1913 से 1920 तक जिन्ना कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों से जुड़े रहे, लेकिन खिलाफत आंदोलन के बाद उनका गांधी से मतभेद बढ़ गया और वह पूरी तरह लीगी हो गए। बहरहाल, गांधी ने मुस्लिम नेताओं के जितना अपनाने की कोशिश की वे उतने ही दूर होते गए। गांधी के ख़िलाफ़त आंदोलन का ज़रूरत से ज़्यादा समर्थन करने के बाद भी हिंदू मुसलमान नेताओं के बीच दूरी बढ़ती रही। सन् 1930 में सबसे पहले शायर मुहम्मद इक़बाल ने सिंध, बलूचिस्तान, पंजाब तथा अफ़गान (सूबा-ए-सरहद) जैसे भारत के उत्तर-पश्चिमी चार प्रांतों को मिलाकर एक अलग राष्ट्र की मांग की थी।
सेक्यूलर जिन्ना धीरे धीरे कट्टर मुसलमान होते गए। 1940 में उन्होंने कह दिया कि हिंदू और मुस्लिम दो अलग अलग धर्म के अनुयायी हैं, दोनों का धर्म ही अलग नहीं है बल्कि दोनों का दर्शन, सामाजिक परंपराएं और साहित्य भी अलग-अलग है। लिहाज़ा, मुसलमानों के लिए पृथक देश बनाया जाए। 1946 में यह तय हो गया कि अंग्रेज़ भारतीय उपमहाद्वीप को अगले तीन-चार साल में छोड़ देंगे। मुसलमानों के लिए पृथक पाकिस्तान की मांग को लेकर जिन्ना ने 16 अगस्त 1946 को डायरेक्ट ऐक्शन डे की घोषणा कर दी, जिसके बाद हिंदू मुसलमानों में भीषण दंगे शुरू हो गए।
कांग्रेस और मुस्लिम लीग के नेताओं के बढ़ते झगड़े ने भारत को बांटने के अंग्रेज़ों के मिशन को आसान बना दिया। 30 जून को उन्होंने भारत का विभाजन करने के लिए लॉर्ड माउंटबेटन को वायसराय बनाकर भारत भेजा। मुहिम नेविल ने शुरू की थी, उसे अमली जामा पहनाते हुए माउंटबेटन ने 3 जून 1947 को भारत भूमि पर भारत और पाकिस्तान नाम के दो राष्ट्र बनाने की घोषणा कर दी और 14 अगस्त यानी आज के दिन पाकिस्तान विश्व के मानचित्र पर अवतरित हुआ।
आज पड़ोसी देश पाकिस्तान में स्वतंत्रता दिवस मनाया जा रहा है। मतलब पाकिस्तान अपने जन्मदाता भारत के आज़ाद होने से एक दिन पहले ही अस्तित्व में आ गया था। ऐसे में भारत के लोगों लिए यह जानना बेहद ज़रूरी है कि पाकिस्तान बनने की पृष्टिभूमि क्या थी? दरअसल, गहराई से रिसर्च करने पर पता चलता है कि पाकिस्तान के जन्म का संबंध अयोध्या की बाबरी मस्जिद से है। सन् 1857 के विद्रोह के बाद अंग्रेज़ों ने अयोध्या में श्री राम मंदिर को लेकर एक रणनीति के तहत एक बहुत भयानक और दीर्घकालीन साज़िश रची, जिसका नतीजा पाकिस्तान है।
दरअसल, सन् 1857 के विद्रोह के पहले सन् 1856 में लॉर्ड पॉमर्स्टन सरकार ने लॉर्ड कैनिंग यानी चार्ल्स जॉन कैनिंग को भारत का गवर्नर-जनरल नियुक्त किया था। सन् 1857 के गदर के बाद कैनिंग ने ब्रिटिश प्रधानमंत्री लॉर्ड विस्काउंट पॉमर्स्टन को भेजी रिपोर्ट में कहा था कि अगर इंडिया में लंबे समय तक शासन करना है तो यहां की जनता के बीच धर्म के आधार पर मतभेद पैदा करना ही पड़ेगा और इसके लिए हिंदुओं के प्रमुख देवता राम की जन्मस्थली को विवाद में ला दिया जाए।
इतिहास की कई चर्चित किताबों के मुताबिक 1857 के विद्रोह के बाद अयोध्या विवाद की साज़िश रची गई। इसके लिए इंतिहास से छेड़छाड़ भी की गई और इब्राहिम लोदी की बनाई गई मस्जिद को बाबरी मस्जिद का नाम दे दिया गया। कालजयी लेखक कमलेश्वर के भारतीय और विश्व इतिहास पर आधारित चर्चित उपन्यास ‘कितने पाकिस्तान’ में बाबरी मस्जिद पर इतिहास के हवाले से बहुत महत्वपूर्ण तथ्य दिए गए हैं। लेखक ने कई अध्याय अयोध्या मुद्दे को समर्पित किया है। सन 2000 में प्रकाशित ‘कितने पाकिस्तान’ को अटलबिहारी सरकार ने बेहतरीन रचना करार देते हुए 2003 में साहित्य अकादमी का पुरस्कार दिया था। किताब को नामवर सिंह, विष्णु प्रभाकर, अमृता प्रीतम, राजेंद्र यादव, कृष्णा सोबती, हिमांशु जोशी और अभिमन्यु अनंत जैसे मूर्धन्य साहित्यकारों ने विश्व-उपन्यास की संज्ञा देते हुए इसकी दिल खोलकर प्रशंसा की है।
‘कितने पाकिस्तान’ के मुताबिक, दरअसल, अयोध्या की मस्जिद (बाबरी मस्जिद नहीं) में एक शिलालेख भी लगा था, जिसका जिक्र एक ईमानदार अंग्रेज़ अफ़सर ए फ़्यूहरर ने कई जगह अपनी रिपोर्ट्स में किया है। फ़्यूहरर ने 1889 में आख़िरी बार उस शिलालेख को पढ़ा, जिसे बाद में एक साज़िश के तहत अंग्रेज़ों ने नष्ट करवा दिया। शिलालेख के मुताबिक अयोध्या में मस्जिद का निर्माण इब्राहिम लोदी के आदेश पर सन् 1523 में शुरू हुआ और सन् 1524 में मस्जिद बनकर तैयार हो गई। इतना ही नहीं, शिलालेख के मुताबिक, अयोध्या की मस्जिद का नाम बाबरी मस्जिद था ही नहीं।
दरअसल, ‘कितने पाकिस्तान’ के मुताबिक मस्जिद में इब्राहिम लोदी के शिलालेख को नष्ट करने में ख़ास तौर पर फैजाबाद भेजे गए अंग्रेज़ अफ़सर एचआर नेविल ने अहम भूमिका निभाई। सारी ख़ुराफ़ात और साज़िश का सूत्रधार नेविल ही था। नेविल ने ही आधिकारिक तौर पर फ़ैज़ाबाद का गजेटियर तैयार किया था। नेविल की साज़िश में दूसरा फ़िरंगी अफ़सर कनिंघम भी शामिल था, जिसे अंग्रेज़ी हुक़ूमत ने हिंदुस्तान की तवारिख़ और पुरानी इमारतों की हिफ़ाज़त की ज़िम्मेदारी सौंपी थी। दरअसल, इंडियन सबकॉन्टिनेंट पर एक मुस्लिम देश बनाने की आधारशिला नेविल और कनिंघम ने रख दी थी। यह मुस्लिम देश 14 अगस्त 1947 को अस्तित्व में भी आ गया।
किताब के मुताबिक दोनों अफ़सरों ने बड़ी साज़िश के तहत गजेटियर में दर्ज किया कि 1528 में अप्रैल से सितंबर के बीच एक हफ़्ते के लिए बाबर अयोध्या आया और राम मंदिर को तोड़कर वहां बाबरी मस्जिद की नींव रखी थी। यह भी लिखा कि अयोध्या पर हमला करके बाबर की सेना ने एक लाख चौहत्तर हज़ार हिंदुओं की हत्या कर दी, जबकि फ़ैज़ाबाद के गजेटियर में आज भी लिखा है कि1869 में, उस लड़ाई के क़रीब साढ़े तीन सौ साल बाद,अयोध्या-फ़ैज़ाबाद की कुल आबादी महज़ दस हज़ार थी जो 1881 में बढ़कर साढ़े ग्यारह हज़ार हो गई। सवाल उठता है कि जिस शहर की आबादी इतनी कम थी वहां बाबर या उसकी सेना ने इतने लोगों को हलाक़ कैसे किया या फिर इतने मरने वाले कहां से आ गए? यहीं, बाबरी मस्जिद के बारे में देश में बनी मौजूदा धारणा पर गंभीर सवाल उठता है।
बहरहाल, हैरान करने वाली बात यह है कि दोनों अफ़सरों नेविल और कनिंघम ने सोची-समझी नीति के तहत बाबर की डायरी बाबरनामा, जिसमें वह रोज़ाना अपनी गतिविधियां दर्ज करता था, के 3 अप्रैल 1528 से 17 सितंबर 1528 के बीच लिखे गए 20 से ज़्यादा पन्ने ग़ायब कर दिए और बाबरनामा में लिखे ‘अवध’ यानी ‘औध’ को‘अयोध्या’ कर दिया। मज़ेदार बात यह है कि मस्जिद के शिलालेख का फ़्यूहरर द्वारा किए गए अनुवाद को ग़ायब करना अंग्रेज़ अफ़सर भूल गए। वह अनुवाद आज भी आर्कियोल़जिकल इंडिया की फ़ाइल में महफ़ूज़ है और ब्रिटिश अफ़सरों की साज़िश से परदा हटाता है।
दरअसल, बाबर की गतिविधियों की जानकारी बाबरनामा की तरह हुमायूंनामा में भी दर्ज है। लिहाज़ा, बाबरनामा के ग़ायब पन्ने से नष्ट सूचना हुमायूंनामा से ली जा सकती है। हुमायूंनामा के मुताबिक 1528 में बाबर अफ़गान हमलावरों का पीछा करता हुआ घाघरा (सरयू) नदी तक अवश्य गया था, लेकिन उसी समय उसे अपनी बीवी बेग़म मेहम और अन्य रानियों व बेटी बेग़म ग़ुलबदन समेत पूरे परिवार के काबुल से अलीगढ़ आने की इत्तिला मिली। बाबर लंबे समय से युद्ध में उलझने की वजह से परिवार से मिल नहीं पाया था इसलिए वह तुरंत अलीगढ़ रवाना हो गया। पत्नी-बेटी और परिवार के बाक़ी सदस्यों को लेकर वह अपनी राजधानी आगरा आया और 10 जुलाई तक उनके साथ आगरा में ही रहा। उसके बाद बाबर परिवार के साथ पिकनिक मनाने धौलपुर चला गया। वहां से सिकरी पहुंचा, जहां सितंबर के दूसरे हफ़्ते तक रहा।
उपन्यास के मुताबिक अयोध्या की मस्जिद बाबर के आक्रमण और उसके भारत आने से पहले ही मौजूद थी। बाबर आगरा की सल्तनत पर 20 अप्रैल 1526 को क़ाबिज़ हुआ जब उसकी सेना ने इब्राहिम लोदी को हराकर उसका सिर क़लम कर दिया। एक हफ़्ते बाद 27 अप्रैल 1526 को आगरा में बाबर के नाम का ख़ुतबा पढ़ा गया। मज़ेदार बात यह है कि ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी माना है कि अयोध्या में राम मंदिर को बाबर और उसके सूबेदार मीरबाक़ी ने 1528 में मिसमार करके वहां बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाया। मीरबाक़ी का पूरा नाम मीरबाक़ी ताशकंदी था और वह अयोध्या से चार मील दूर सनेहुआ से सटे ताशकंद गांव का निवासी था।
बहरहाल, अयोध्या के राम मंदिर को बाबरी मस्जिद बनाकर अंग्रज़ों ने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच नफरत का जो बीज बोया वह दिनों-दिन बढ़ता ही गया। इसके बाद मंदिर मस्जिद या दूसरे धार्मिक मुद्दों पर हिंदू-मुसलमान के बीच संघर्ष होने लगे। इस बीच एक साज़िश के तहत भारी विरोध के बावजूद 20 जुलाई 1905 को बंग भंग के प्रस्ताव पर इंडिया सेक्रेटरी का ठप्पा लग गया। राजशाही, ढाका तथा चटगांव कमिश्नरीज़ को आसाम के साथ मिलाकर एक प्रांत नया बनाया गया, जिसका नाम पूर्ववंग और आसाम रखा गया। अंग्रेज़ यहीं नहीं रुके, उन्होंने कांग्रेस को हिंदुओं की पार्टी करार देकर मुसलमानों के लिए अलग राजनीतिक पार्टी बनवाई इसके लिए अंग्रज़ों ने ढाका के चौथे नवाब सर ख्वाजा सलीमुल्लाह बहादुर और अलीगढ़ के नवाब मुहसिनुल मुल्क का इस्तेमाल किया। अंग्रज़ों की शह पर 30 दिसंबर 1906 को औपचारिक रूप से ब्रिटिश इंडिया के बंगाल स्टेट के ढाका शहर (अब बांग्लादेश) में अखिल भारतीय मुस्लिम लीग की स्थापना की गई।
1909 के बाद से कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच मतभेद गंभीर होने लगे। ख़ुद मोहम्मद अली जिन्ना पहले मुस्लिम लीग के नेतओं से नफरत करते थे। जिन्ना को न तो उर्दू आती थी और न ही वह नमाज पढ़ते थे। वह सूअर का मांस खाने से परहेज नहीं करते थे। कुछ साल पहले लालकृष्ण आडवाणी ने सही कहा था कि जिन्ना वाक़ई सेक्यूलर मुसलमान थे। उन्होंने 1913 में मुस्लिम लीग की सदस्यता स्वीकार की। महात्मा गांधी के ख़िलाफ़त आंदोलन का जिन्ना ने पुरजोर विरोध किया था। जिन्ना उदारवादी नेता थे। वह अली बंधुओं (जिनमें से एक लियाकत अली पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री बने) से भी नफरत करते थे। 1913 से 1920 तक जिन्ना कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों से जुड़े रहे, लेकिन खिलाफत आंदोलन के बाद उनका गांधी से मतभेद बढ़ गया और वह पूरी तरह लीगी हो गए। बहरहाल, गांधी ने मुस्लिम नेताओं के जितना अपनाने की कोशिश की वे उतने ही दूर होते गए। गांधी के ख़िलाफ़त आंदोलन का ज़रूरत से ज़्यादा समर्थन करने के बाद भी हिंदू मुसलमान नेताओं के बीच दूरी बढ़ती रही। सन् 1930 में सबसे पहले शायर मुहम्मद इक़बाल ने सिंध, बलूचिस्तान, पंजाब तथा अफ़गान (सूबा-ए-सरहद) जैसे भारत के उत्तर-पश्चिमी चार प्रांतों को मिलाकर एक अलग राष्ट्र की मांग की थी।
सेक्यूलर जिन्ना धीरे धीरे कट्टर मुसलमान होते गए। 1940 में उन्होंने कह दिया कि हिंदू और मुस्लिम दो अलग अलग धर्म के अनुयायी हैं, दोनों का धर्म ही अलग नहीं है बल्कि दोनों का दर्शन, सामाजिक परंपराएं और साहित्य भी अलग-अलग है। लिहाज़ा, मुसलमानों के लिए पृथक देश बनाया जाए। 1946 में यह तय हो गया कि अंग्रेज़ भारतीय उपमहाद्वीप को अगले तीन-चार साल में छोड़ देंगे। मुसलमानों के लिए पृथक पाकिस्तान की मांग को लेकर जिन्ना ने 16 अगस्त 1946 को डायरेक्ट ऐक्शन डे की घोषणा कर दी, जिसके बाद हिंदू मुसलमानों में भीषण दंगे शुरू हो गए।
कांग्रेस और मुस्लिम लीग के नेताओं के बढ़ते झगड़े ने भारत को बांटने के अंग्रेज़ों के मिशन को आसान बना दिया। 30 जून को उन्होंने भारत का विभाजन करने के लिए लॉर्ड माउंटबेटन को वायसराय बनाकर भारत भेजा। मुहिम नेविल ने शुरू की थी, उसे अमली जामा पहनाते हुए माउंटबेटन ने 3 जून 1947 को भारत भूमि पर भारत और पाकिस्तान नाम के दो राष्ट्र बनाने की घोषणा कर दी और 14 अगस्त यानी आज के दिन पाकिस्तान विश्व के मानचित्र पर अवतरित हुआ।
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