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शनिवार, 21 सितंबर 2019

अब स्वामी चिन्मयानंद के आश्रमों की गहन जांच की ज़रूरत


हरिगोविंद विश्वकर्मा
मैं अपने किए पर बहुत ही शर्मिंदा हूं। मुझसे इससे आगे और कुछ मत पूछिए प्लीज़!” सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर बनाई गई एसआईटी के सामने पूछताछ के दौरान ज्ञानवान-प्रज्ञावान और वैदिक धर्म के प्रकांड पंडित भगवाधारी महापुरुष स्वामी चिन्मयानंद ने यही कहा था। स्वामी के इस भावुक स्वीकारोक्ति के बाद एसआईटी ने उनसे कुछ और पूछना उचित नहीं समझा। एसआईटी का यह क़दम समझ से परे है। वस्तुतः एसआईटी का कहना है कि इस मामले में उपलब्ध सबूत ख़ुद कहते हैं कि प्राइमा फेसाई स्वामी दोषी हैं। पीड़ित छात्रा ने जो भी आरोप लगाए हैं, वे सब सही हैं। इसके बाद तथाकथित संत चिन्मयानंद को गिरफ़्तार कर लिया गया। इस तरह आसाराम बापू और गुरमीत सिंह राम-रहीम के बाद स्वामी चिन्मयानंद तीसरे साधु हैं, जो आश्रम में रहकर अपनी ऐय्याशी कर रहे थे और धर्म के पवित्र चादर को चर्र-चर्र फाड़ रहे थे।

बहरहाल, 20 सितंबर, 2019 को चिन्मयानंद गिरफ़्तार कर लिए गए। उनके ख़िलाफ़ भारतीय दंड संहिता की धारा 376 सी, 354 डी, 342, और 506 के तहत केस दर्ज़ किया गया है। यानी जांच एजेंसी ने उन पर सीधे रेप का केस दर्ज़ नहीं किया है। कई लोग जांच एजेंसी के फ़ैसले को चिन्मयानंद को दी गई रियायत के रूप में देख रहे हैं। जो भी हो, शाहजहांपुर की स्थानीय अदालत ने स्वामी को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया है। वैसे स्वामी को बचाने की हर संभव कोशिश की गई। पीड़िता का धारा 164 के तहत बयान दर्ज़ होने के बाद, उसी दिन देर शाम स्वामी के बीमार होने की बात फैलाई गई। अगले दिन उन्हें बरेली मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती कराया गया। बाद में किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी लखनऊ रेफ़र कर दिया गया। लखनऊ में इलाज के दौरान पोलपट्टी खुल जाने के डर से उन्होंने वहां जाना रद कर दिया और कहा कि वह आयुर्वेदिक इलाज करवाना चाहते हैं। उन्हें मुमुक्षु आश्रम वापस ले जाया गया। वही से उनकी गिरफ्तारी हुई। इस तरह एक और साधु जेल चला गया।

चिन्मयानंद पर पहली बार बलात्कार का आरोप नही लगा है। आठ साल में यह दूसरा मौका है, जब उन पर बलात्कार का बेहद गंभीर आरोप लगा। 2001 में चिन्मयानंद जौनपुर के सांसद थे। एक दिन दक्षिणी दिल्ली की एक युवती अपने माता-पिता के साथ उनसे मिलने आई। कहते हैं, चिन्मयानंद उसी समय उस पर लट्टू हो गए और उन्होंने युवती को आधात्यामिक ज्ञान लेने की सलाह दी। उसके माता-पिता को भी बताया कि आध्यातमिक ज्ञान लेने के बाद यह लड़की दुनिया में नाम रौशन करेगी।  वह युवती स्वामी से बहुत इंप्रेस्ड हुई और दीक्षा लेना स्वीकार कर लिया। अगले साल 2002 में वह दीक्षा लेने वाली थी लेकिन मामला अटक गया। 2010 में दोबारा वह साध्वी नहीं बन सकी। बहरहाल, उसे साध्वी कहा जाने लगा। उस युवती ने नवंबर 2011 को चिन्मयानंद के ख़िलाफ़ शहर कोतवाली में बलात्कार का मामला दर्ज़ कराया।

साध्वी पीड़िता को एक विद्यालय में प्राचार्य की नौकरी मिल गई है। कुछ समय पहले उसने इंटरव्‍यू में अपनी दास्तां बताते हुए साध्वी ने कहा,मैं स्वामी चिन्मयानंद के पास संन्यास ग्रहण करने गई थी। लेकिन मुझे साध्वी नहीं बनाया। तो मैं वापस आ गई, लेकिन 2004 में स्वामी के गुंडों ने बंदूक के बल पर मुझे किडनैप कर लिया। दिल्ली से मुझे शाहजहांपुर ले जाया गया। वहां एक दिन स्वामी ने नशे में धुत होकर स्वामी के मेरे साथ रेप किया। रेप का वीडियो भी बनाया गया था। उसने ज़ुबान बंद रखने को कहा। मैं चुप हो गई और आश्रम में रहने लगी। वह सात साल तक मेरा यौन-शोषण करता रहा। इस दौरान मैं कई बार गर्भवती हुई। दो बार तो मेरा गर्भपात करवाया गया। उसके गुंडे हमेशा मेरे पीछे लगे रहते थे इस तथाकथित भगवाधारी ने मेरे साथ-साथ दर्ज़नों दूसरी लड़कियों का जीवन बर्बाद कर दिया। बूढ़ा होने के बावजूद लड़कियों के बिना यह नहीं रह सकता। बहुत बड़ा मक्कार और जालिम है।

पीड़ित साध्वी ने बताया था, 2010 में हरिद्वार आश्रम में रुद्र यज्ञ हो रहा था। स्वामी ने दिखावे के लिए स्वामी ने मुझे रुद्र यज्ञ में बैठने के लिए कहा, जबकि दूसरे आचार्य ने हमें वहां बैठने नहीं दिया। उसने कारण यह बताई कि सरस्वती परंपरा में महिलाएं संन्यास नहीं ले सकतीं। वहां मौजूद स्वामी चिन्मयानंद मंद-मंद मुस्करा रहे थे। मै समझ गई कि सारा खेल उसी का रचा हुआ है। जब मालूम हो गया कि संन्यास नहीं मिलने वाला, तो इस तरह का जीवन जीने का कौई अर्थ नहीं था। लिहाज़ा, मैंने वैदिक रीति से विवाह किया।

साध्वी ने यह भी दावा किया कि चिन्मयानंद ने तरुणाई में अपने गांव से संन्यास लेने के लिए नहीं, बल्कि गांव की ही एक लड़की से रेप करके भागा था। हैरान करने वाली बात है कि वह लड़की स्वामी की चचेरी बहन लगती थी। स्‍वामी ने आज तक किसी को साध्वी नहीं बनाया। वह केवल इस्तेमाल करता है। उसके सभी आश्रमों में ढेर सारी लड़कियां हैं। लड़कियों को गर्भवती करके उनकी शादी किसी ग़रीब ब्राह्मण या किसी नौकर से करवा देता है। स्‍वामी का आश्रम देश का पहला संस्‍थान है, जहां महिलाएं रहती हैं, लेकिन महिला वार्डेन नहीं रखी जाती। जब वह मेरे प्रमाणपत्रों को जला रहा था, तो मैंने उसके पैर पकड़े थे, लेकिन उस राक्षस ने नहीं माना और मेरे सारे प्रमाणपत्र जला दिए।

य़ह संयोग है कि चिन्मयानंद के लॉ कॉलेज की छात्रा ने आरोप लगाया है कि यह दुराचारी ढेर सारी लड़कियों की ज़िंदगी ख़राब कर चुका है। शिष्या के दुष्कर्म का आरोप लगाने के बावजूद चिन्मयानंद का बाल बांका नहीं हुआ। योगी सरकार ने मार्च 2018 में सीआरपीसी की धारा 321 के तहत शाहजहांपुर की अदालत से मुकदमा वापस लेने का फैसला किया। इसका पीड़ित साध्वी ने विरोध किया। एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में उसने कहा बेटियों के सम्मान में, भाजपा मैदान में नारा देने वाली भाजपा अब मेरा मुक़दमा ख़त्म कर रही है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है। मैं भी किसी बेटी हूं, मुझे भी इंसाफ चाहिए। केस वापस लेना लोकतंत्र की हत्या करने जैसा है। किसी अपराधी का इस हद तक पक्ष लिया जा रहा है कि सरकार उसे ट्रायल तक फेस नहीं करने देना चाहती। सरकार को न्यायालय के फ़ैसले की प्रतीक्षा करनी चाहिए थी। मैंने अदालत में इस आशय का प्रार्थनापत्र दिया है कि आरोपी के ख़िलाफ़ वारंट जारी करके उसे जल्द से जल्द जेल भेजा जाए।


चिन्मयानंद शाहजहांपुर के मूल निवासी नहीं बल्कि वह गोंडा जिले के गोगिया पचदेवरा गांव के निवासी हैं। उनके बचपन का नाम कृष्णपाल सिंह है। उनका परिवार काग्रेस विचारधारा का था। उनके चचेरे भाई उमेश्वर प्रताप सिंह कांग्रेस से विधायक भी रहे। तीन मार्च 1947 को पैदा हुए कृष्णपाल के घर का माहौल धार्मिक था। साधु-संतों का आना-जाना रहता था। लिहाज़ा, उनकी भी प्रवृत्ति धार्मिक हो गई। इंटर करने के बाद उन्होंने घर का त्याग कर दिया और पंजाब चला गया। कुछ समय तक वहां रहने के बाद बृंदावन पहुंच गए। इस दौरान उन्होंने इंस्टीट्यूट ऑफ ओरिजनल फिलास्फी से ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल कर ली। उन्होंने लखनऊ से भी पढ़ाई की। 1882 में बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से दर्शनशास्त्र में पीएचडी किया।

बृंदावन  से चिन्मयानंद 1971 में परमार्थ आश्रम ऋषिकेश पहुंचा और साधु-संतों के बीच रहने लगे। उनकी वैराग्य प्रवृत्ति को देकर उन्हें दीक्षा दी गई और उनका नाम चिन्मयानंद रखा गया। इस तरह कृष्णपाल से स्वामी चिन्मयानंद बन गए। स्वामी बनने के बाद वह परिवार की विचारधार के विपरीत जाकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए। हालांकि संघ के लोग चिन्मयानंद की संदिग्ध गतिविधियों से देखकर सतर्क हो गए और संघ में उसे कोई ज़िम्मेदारी नहीं दी गई। अपनी तरफ़ से चिन्मयानंद संघ की विचारधारा के समर्थक बन गए। उनहोंने संघ की एकात्मता यात्रा में भागीदारी की। वह जयप्रकाश नारायण के आदोलन से जुड़े रहे। फिर रामजन्मभूमि आदोलन से जुड़ गए। 1984 में सरयू तट पर राम जन्मभूमि का संकल्प लिया और दो साल बाद उसे रामजन्मभूमि आदोलन संघर्ष समिति का राष्ट्रीय संयोजक बना दिया गया। 1989 में स्वामी निश्चलानंद के अधिष्ठाता पद छोड़ने के बाद चिन्मयानंद अधिष्ठाता बनकर शाहजहां के मुमुक्षु आश्रम आ गया।

चिन्मयानंद इस दौरान अपना राजनीतिक क़द बढ़ाता रहा। वह तीन बार सांसद बनने में भी सफल रहा। 1991 में भाजपा के टिकट पर वह बदायूं से चुनाव मैदान में उतरा और जात गया। 1996 में शाहजहापुर भाजपा का टिकट लिया और हार गया। 1998 में मछलीशहर से जीत कर लोकसभा पहुंचा। मछलीशहर में उसने कोई काम नहीं किया, लिहाज़ा, 1999 में मछलीशहर की बजाय जौनपुर से चुनाव लड़ा और लोकसभा में पहुंचा। वर्ष 2003 में उसे अटलबिहारी वाजपेयी सरकार में गृह राज्यमंत्री बनाया गया।

स्वामी के करीबी कहते है कि संन्यासी ने उपनिषद सार, गीता बोध, भक्ति वैभव समेत करीब आठ धार्मिक किताबें लिखी हैं। स्वामी चिन्मयानंद पत्रकार भी हैं। वह दो धार्मिक पत्रिकाओं ‘धर्मार्थ' और ‘विवेक रश्मी' का संपादन करते हैं। संत के रूप में शाहजहांपुर और हरिद्वार में आश्रम भी चलाते हैं। ऋषिकेश के परमार्थ निकेतन से जुड़े हैं। वह मुमुक्षु आश्रम के अधिष्ठाता हैं और राम मंदिर आंदोलन से भी सक्रिय हैं। स्वामी चिन्मयानंद शाहजहांपुर में स्वामी शुकदेवानंद लॉ कॉलेज भी चलाते हैं। कॉलेज के लोग दबी ज़ुबान कहते हैं कि चिन्मयानंद ऐय्याशी करते हैं। यह बहुत गंभीर बात है। सरकार को चिन्मयानंद के सभी आश्रमों की गहन और बिना किसी पक्षपात के तह़क़ीक़ात करनी चाहिए और यह पता करना चाहिए कि आरोप लगाने वाली दोनों महिलाओं के आरोप में कितनी सचाई है। इंसाफ़ होना ही नहीं चाहिए, बल्कि जनता तक यह संदेश भी जाना चाहिए कि इंसाफ़ हो रहा है।


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