हरिगोविंद
विश्वकर्मा
महाराष्ट्र में
विधान सभा चुनाव की बहुप्रतीक्षित घोषणा निर्वाचन आयोग ने कर दी। राज्य में पहली
बार चुनाव ऐसे माहौल में हो रहा है, जब विपक्ष एकदम बिखरा हुआ है। कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में
हालांकि 125-125 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला हो चुका है, लेकिन दोनों दलों के नेता इस तरह दूसरे दल में जा रहे हैं
कि कांग्रेस और एनसीपी का नेतृत्व ख़ुद नहीं जानता कि कौन नेता कल पाला बदल लेगा।
अब तक कांग्रेस और एनसीपी के 16 विधायक भारतीय जनता पार्टी या शिवसेना का दामन थाम
चुके हैं।
विधानसभा में
विपक्ष के नेता राधाकृष्ण विखे-पाटिल भाजपा में शामिल हुए। फड़णवीस ने उन्हें आवास
मंत्री बना दिया। कई और बड़े नेता भाजपा में शामिल होने के लिए कतारबद्ध हैं। कतार
लंबी होने के कारण इनमें से कई लोगों को शिवसेना में शामिल होने की सलाह दी जा रही
है। एनसीपी मुंबई अध्यक्ष एवं पूर्व मंत्री सचिन अहिर और कांग्रेस के अब्दुल
सत्तार शिवसेना का दामन थाम चुके हैं। दोनों भाजपा में शामिल होना चाहते थे। पूर्व
उपमुख्यमंत्री अजित पवार के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले के बाद एफआईआर दर्ज
होने से भी पार्टी बैकफुट पर है। शरद पवार ने हाल ही में पाकिस्तान की तारीफ करके
एनसीपी कार्यकर्ताओं को भी असहज कर दिया है।
नरेंद्र मोदी के
दौबारा प्रधानमंत्री बनने के बाद जिस तरह ट्रिपल तलाक का कानून पास किया गया और
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35 ए को हटाया गया और जम्मू-कश्मीर में कोई
खून-खराबा नहीं हुआ उससे भाजपा के समर्थन में स्पष्ट जनादेश दिख रहा है। अनुच्छेद
370 ने आर्थिक मंदी, कंपनियों में छंटनी और बेरोजगारी जैसे बुनियादी मुद्दों को
दबा दिया है। कांग्रेस ने अनुच्छेद 370 और 35ए को हटाए का विरोध करके अपने पांव पर
कुल्हाड़ी दे मारी है। आम कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं को इस मुद्दे पर जनता
का सामना करने में असुविधा हो रही है। अगर राज ठाकरे की बात करें तो इस बार विधान सभा चुनाव में उन्हें कोई भी
सीरियसली नहीं ले रहा है।
भाजपा प्रचारकों
को राज्य में भेजा जा रहा है ताकि अनुच्छेद 370 और 35 ए को हटाए का अधिकतम चुनावी
लाभ लिया जा सके। इसी क्रम में सोमवार यानी 23 सितंबर को गोरेगांव के प्रदर्शनी
मैदान पर गृहमंत्री अमित शाह की सभा हो रही है। राजनीति के जानकार साफ साफ कह रहे
हैं कि इस चुनाव में सत्तारूढ़ गठबंधन को विपक्ष से इस बार वॉकओवर मिलता दिख रहा
है। यह इस बिना पर कहा जा रहा है क्योंकि लोकसभा चुनाव में भाजपा शिवसेना गठबंधन
को 230 विधान सभा सीटों पर बढ़त मिली थी।
हालांकि भारतीय
जनता पार्टी और उसकी सहयोगी शिवसेना में सीट बंटवारे का पेंच अभी तक फंसा हुआ है।
परंतु दोनों दलों का शीर्ष नेतृत्व कह रहा है कि सीट को लेकर समझौता हो जाएगा और
भगवा गठबंधन के दोनों दल एक साथ चुनाव लड़ेंगे। समझा जा रहा है कि भारतीय जनता
पार्टी इस बार कमांडिंग पोज़िशन में है। लिहाज़ा, शिवसेना लोकसभा चुनाव की तरह बारगेनिंग करने की स्थिति में
नहीं है। रोचक बात यह है कि भाजपा के अंदर एक तबका ऐसा भी है, जो चाहता है भाजपा अकेले चुनाव लड़े, लेकिन भाजपा अकेले चुनाव नहीं लड़ेगी।
पिछली बार चुनाव
में सीट बंटवारे को लेकर गंभीर मतभेद के चलते गठबंधन नहीं हो सका था और दोनों दल
अकेले चुनाव मैदान में उतरे थे। भाजपा 122 सीट जीतने में कामयाब रही, जबकि शिवसेना केवल 63 सीट ही जीत सकी थी। अब
तीन दूसरे दलों के विधायक शिवसेना में आ चुके हैं। इस तरह इस पार्टी के पास 66
विधायक हैं। जबकि भाजपा शिवसेना के बहुत आगे है, 13 विधायक भाजपा में आ गए हैं। मौजूदा परिस्थितियों में अगर
सूत्रों की मानें तो भाजपा शिवसेना को अधिकतम 110 सीटें ही दे सकती है। हालांकि
शिवसेना आधे-आधे की बात कर रही हैं, जबकि उसके नेता 115 सीट तक मान सकते हैं।
केंद्रीय नेतृत्व
ने बहुत पहले देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में चुनाव लड़ने का मन बना लिया था।
राज्य की छह दशक की राजनीति में पहली बार मुख्यमंत्री का चेहरा सामने रखकर चुनाव
लड़ा जा रहा है। भाजपा के अंदर मुख्यमंत्री पद को लेकर कोई कन्फ्यूजन न रहे इसलिए
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह पब्लिक मंच से औपचारिक घोषणा कर चुके हैं
कि राज्य का चुनाव फडणवीस के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। देवेंद्र फड़णवीस के रूप में
महाराष्ट्र को 1975 के बाद अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाला पहला
मुख्यमंत्री मिला। इससे पहले लोग दो या तीन साल के लिए ही मुख्यमंत्री बन पाते थे।
देवेंद्र फड़णवीस
अपनी दूसरी पारी के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे हैं। तीन चरण वाली उनकी ‘महाजनादेश
यात्रा’ उम्मीद से अधिक सफल रही। महाजनादेश यात्रा के दौरान हर जगह फड़णवीस को
देखने सुनने बड़ी संख्या में लोग जुटे। फड़वणीस की यात्रा के समांतर युवा शिवसेना
नेता आदित्य ठाकरे विजय संकल्प मेलावा पर निकले थे। वह ‘नया महाराष्ट्र’ बनाने का
आह्वान कर रहे थे। यात्रा के मामले में विपक्ष भी पीछे नहीं था। राष्ट्रवादी
कांग्रेस पार्टी खान देश और पश्चिम महाराष्ट्र में शिव स्वराज्य यात्रा निकाल चुकी
है। कांग्रेस इस मामले में पिछड़ गई।
पहले कहा जा रहा
था कि भगवा गठबंधन में मुख्यमंत्री पद को लेकर खींचतान चल रही है और शिवसेना
आदित्य ठाकरे का नाम आगे कर रही है, लेकिन यह मात्र अटकल साबित हुई, शिवसेना जानती है कि भाजपा के साथ रहना उसके लिए फायदेमंद है। अगर भगवा गठबंधन
सत्ता में वापस लौटता है तो आदित्य नई सरकार में उपमुख्यमंत्री बनाए जा सकते हैं।
वैसे मुख्यमंत्री जनादेश यात्रा में ही कह चुके हैं कि आदित्य ठाकरे अगर चाहेंगे
तो उनको उपमुख्यमंत्री पद दिया जा सकता है। फडणवीस ने यह भी कहा था कि भाजपा
कार्यकर्ता चाहते हैं कि भाजपा अकेले चुनाव लड़े और पार्टी उस स्थिति में है भी,
लेकिन भाजपा गठबंधन का धर्म निभाएगी और लोकसभा
चुनाव से पहले हुआ गठबंधन जारी रहेगा। कुल मिलाकर राज्य में
कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन इतना कमज़ोर हो चुका है कि भाजपा और शिवसेना के लोग कह रहे
हैं, "अच्छे दिन आने वाले हैं।"
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