हरिगोविंद
विश्वकर्मा
क्या आपने कभी
किसी घोटाले में नाम आने पर जांच एजेंसी के बुलाने से पहले ही किसी को एजेंसी के
पास जाने की ख़बर सुनी है? शर्तिया आपने ज़ेहन
में ऐसी कोई मिसाल नहीं होगी, जब बिना तलब किए ही कोई किसी जांच ऐजेंसी के पास गया
हो। लेकिन देश के रक्षा एवं कृषि मंत्री और तीन बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रह
चुके शरदचंद्र गोविंदराव पवार इसी तरह की मिसाल पेश कर रहे हैं। वह आगामी 27 सितंबर
को प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी के कार्यालय जाएंगे। दरअसल, ईडी ने पवार के ख़िलाफ़
राज्य की एक सहकारी बैंक में हुए कथित घोटाले में मनी लॉन्डरिंग के तहत एफ़आईआर
दर्ज़ किया है।
देश के बेहद सीज़न्ड
पॉलिटिशियन माने जाने वाले शरद पवार आईएनएक्स घोटाले में पिछले महीने कांग्रेस के
धाकड़ नेता और पूर्व वित्त एवं रक्षा मंत्री पी चिंदबरम की नाटकीय गिरफ़्तारी से
बेहद सतर्क हैं। जब केंद्रीय जांच ब्यूरो ने पहले चिदंबरम के घर नोटिस चस्पा किया
और बाद में सीबीआई अफ़सर उनके घर में दीवार फांद कर घुस गए थ्। संभवतः पवार को भी
लग रहा है कि बैंक घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय ने भले ही अभी एफ़आईआर ही दर्ज
किया है। कल को जांच एजेंसी उनके घर नोटिस चस्पा कर सकती है या पूछताछ के लिए बुला
सकती है और अगर वह उस समय चुनाव प्रचार के सिलसिले में मुंबई से बाहर रहे, तो संभव
है प्रवर्तन निदेशालय उन्हें भगोड़ा घोषित कर दे।
पिछले महीने कम
से कम सीबीआई ने चिदंबरम को गिरफ़्तार करने से पहले ऐसी ही हरकत की थी। इसीलिए
मराठा क्षत्रप अपनी तरफ से कोई कोर कसर छोड़ना नहीं चाहते हैं। लिहाज़ा उन्होंने आनन-फ़ानन
में बुधवार को संवाददाता सम्मेलन बुलाया और एहतियात के तौर पर घोषणा कर दी है, “27 सितंबर को मैं खुद प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों के पास जाऊंगा और जांच
में एजेंसी को पूरा सहयोग दूंगा, क्योंकि ईडी ने एमएससी बैंक मामले में मेरा नाम
दर्ज़ किया गया है। चूंकि मैं चुनाव प्रचार में मुंबई के बाहर रहूंगा। इसीलिए
एजेंसी अपनी तरफ़ से यह न मान ले कि मैं जांच में सहयोग नहीं कर रहा हूं।”
ऐसे समय जब
महाराष्ट्र में विधान सभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है। इसके चलते प्रमुख दलों के शीर्ष
नेता विधान सभा में उम्मीदवारों के नाम को अंतिम रूप देने में जुटे हैं। ठीक ऐसे बहुत
व्यस्त समय में शरद पवार महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक घोटाले में अपना नाम आने से
सकते में आ गए हैं। वैसे प्रवर्तन निदेशालय की ओर से बैंक घोटाले में पवार, भतीजे अजित पवार और प्रदेश एनसीपी प्रमुख जयंत पाटिल समेत 70 लोगों के ख़िलाफ़ मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज करने से महाराष्ट्र की राजनीति
में तूफ़ान आ गया है।
सबसे अहम बात
प्रवर्तन निदेशालय ने बैंक घोटाले में अभी पवार के ख़िलाफ़ केवल एफ़आईआर ही दर्ज़
किया है। जांच एजेंसी ने पवार को किसी तरह के स्पष्टीकरण या पूछताछ के लिए अभी तक
बुलाया नहीं है। प्रशंसकों और कार्यकर्ताओं ने ‘साहेब’ के रूप में लोकप्रिय पवार
के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज करने के विरोध में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता
बुधवार को प्रवर्तन निदेशालय के मुंबई दफ़्तर के सामने प्रदर्शन किया। पवार के गृह
नगर बारामती में लोगों ने विरोध स्वरूप बंद रखा। एनसीपी के नेता इसे चुनावी हथकंडा
बता रहे हैं।
यशवंतराव चव्हाण के बाद सबसे प्रभावशाली मराठा नेता पवार मंगलवार को दिन भर महाराष्ट्र में विधान
सभा के चुनावी हलचल में व्यस्त थे। कांग्रेस के साथ 125-125 सीट पर चुनाव लड़ने का समझौता होने के बाद वह उम्मीदवारों
के नाम को अंतिम रूप देने में मशगूल हैं, लेकिन शाम को ईडी की ओर
से घोटाले में एफ़आईआर दर्ज करने की ख़बर फ़्लैश होने के बाद उनकी प्राथमिकताएं
अचानक बदल गईं। अब वह बेहद चौकन्ने होकर निर्णय ले रहे हैं। हर क़दम फूंक-फूंक कर
रख रहे हैं।
बहरहाल, पवार ने कहा,
“करीब 60 साल के मेरे राजनीतिक
जीवन में यह दूसरी बार है, जब मेरे ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज़ हुई है। इससे
पहले 1980 में मुझे एक आंदोलन के दौरान गिरफ़्तार किया गया था।”
प्रेस कॉन्फ्रेंस में पवार इमोशनल कार्ड भी खेल गए। छत्रपति शिवाजी महाराज से अपनी
तुलना करते हुए पवार ने कहा, “महाराष्ट्र के इतिहास ने हमें दिल्ली सल्तनत के
आगे कभी न झुकना सिखाया है। मैं छत्रपति शिवाजी महाराज के आदर्शों पर चलता रहा हूं।
शिवाजी महाराज ने हमें बचपन से ही सिखाया है कि दिल्ली की ताक़त के आगे कभी नहीं झुकना
है। प्रवर्तन निदेशालय ने मेरे ख़िलाफ़ मामला दर्ज़ किया है, तो मैं स्वागत करता हूं। हालांकि मैं राज्य भर में इसके ख़िलाफ़ ज़बरदस्त
प्रतिक्रिया देख रहा हूं। मुझे संविधान और न्याय पर विश्वास है।”
हालांकि प्रवर्तन
निदेशालय की कार्रवाई कोर्ट के आदेश पर हो रही है। बैंक घोटाले का मामला फ़िलहाल
सुप्रीम कोर्ट में है। 22 अगस्त को बॉम्बे हाईकोर्ट की जस्टिस एससी
धर्माधिकारी और जस्टिस एसके शिंदे की बेंच ने मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा को
घोटाले में अजित पवार समेत 70 लोगों के ख़िलाफ़ पांच दिन के अंदर केस दर्ज
करने का आदेश दिया था। पवार और जयंत पाटिल समेत बैंक के दूसरे निदेशकों के ख़िलाफ़
बैंकिंग एवं आरबीआई अधिनियमों के कथित उल्लंघन का आरोप है। घोटाले में बैंक की 34 शाखाओं के कई अधिकारी भी शामिल हैं। हाईकोर्ट ने माना था कि घोटाला सभी
आरोपियों के संज्ञान में था। अब उसी घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय ने मनी
लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज किया है।
आरोप है कि पवार
समेत बैंक के निदेशकों ने कथित तौर पर चीनी मिल को कम दरों पर कर्ज दिया था। चीनी
मिलों तथा कताई मिलों को ऋण देने और उनकी वसूली में अनियमितता के कारण बैंक को 2007 से 2011 के बीच करीब 1000 करोड़ रुपए का नुकसान
हुआ। यह भी आरोप है कि डिफॉल्टर्स की संपत्तियों को सस्ते दाम पर बेच दिया था।
अजित पवार उस समय एमएससीबी के निदेशक थे। महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव सोसायटी अधिनियम
के तहत इस मामले की नाबार्ड ने जांच की और अपनी रिपोर्ट में पवार, हसन मुश्रीफ, कांग्रेस नेता मधुकर चव्हाण और अन्य लोगों को
बैंक घोटाले का दोषी करार दिया था।
2012 में पूर्व
आईपीएस अधिकारी वाईपी सिंह ने बहुचर्चित लवासा मामले में बड़ा खुलासा करते हुए
एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार और अजीत पवार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था। वाईपी
सिंह का आरोप था कि अजीत पवार ने बहुत ही सस्ती दर पर लवासा को 348 एकड़ जमीन दी।
यह भी आरोप था कि नीलामी प्रक्रिया की भारी अनदेखी की गई। लवासा में पवार की बेटी
सुप्रिया सुले की भी हिस्सेदारी थी। लवासा कॉरपोरेशन बनने के बाद सुप्रिया ने
अपना 20.81 प्रतिशत शेयर बाद में बेच दिया था। वाईपी ने कहा था कि पूरे मामले में
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन किया गया।
शरद पवार के मुख्यमंत्रित्वकाल में जब डेमोलिशन मैन मनपा
उपायुक्त गोविंद राघो खैरनार दाऊद की इमारत तोड़ रहे थे। कहा जाता है कि तब नाराज
होकर पवार ने खैरनार का तबादला गोवंडी कसाईखाने में कर दिया। इसके बाद राज्य में
माहौल कांग्रेस के खिलाफ हो गया और पार्टी 1995 का विधान सभा चुनाव हार गई।
1940 में पुणे जिले में बारामती से 10 किलोमीटर दूर कातेवाड़ी
में किसान गोविंद राव पवार के घर में जन्में पवार का बचपन बहुत सामान्य था। अपना
राजनीति सफर 1962 में 22 साल की उम्र में शुरू करने वाले पवार के बारे में कुछ साल
पहले उनके एक करीबी मित्र ने एक लेख लिखा था। जिसमें बताया था कि युवावस्था में शरद
पवार टैंपो से मुंबई आया जाया करते थे। टैंपों में वह पीछे बैठते थे, कभी-कभार ड्राइवर
की बग़ल में सीट उपलब्ध होने पर आगे बैठने का अवसर पा जाते थे।
मात्र 24 साल की उम्र में वह महाराष्ट्र युवक कांग्रेस अध्यक्ष बन
गए। महज 27 साल की उम्र में वह 1967 में विधानसभा चुनाव जीते और 32 साल की उम्र में खेलमंत्री
बनाए गए। 1978 महज 38 साल की उम्र में पवार महाराष्ट्र जैसे राज्य के मुख्यमंत्री बन गए। 1991 में देश का
रक्षा मंत्री बनने से पहले शरद पवार एक बार और सीएम की कुर्सी पर आसीन हुए। 1992-93 के मुंबई
दंगों के बाद कांग्रेस हाई कमान ने कांग्रेस की इमैज ठीक करने के लिए पवार को सीएम
बनाकर मुंबई भेजा। इस तरह पवार तीसरी बार राज्य के सीएम बने।
कॉमर्स से स्नातक पवार छह बार लोकसभा के लिए भी चुने जा
चुके हैं। 1995 में उन्हें लोकसभा में विपक्ष का नेता बनाया गया। कथित तौर
पर चाटुकारिता नापसंद करने वाले पवार को कांग्रेस की चमचा-संस्कृति कभी पसंद न आई।
जिससे कांग्रेस के साथ उनके रिश्ते बनते-बिगड़ते रहे हैं। 1999 में उन्होंने
विदेशी मूल के मुद्दे पर कांग्रेस छोड़ दी और एनसीपी की स्थापना की।
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