हरिगोविंद विश्वकर्मा
क्या अमेरिकी राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप ह्वाइट हाउस में रहने की बजाय अपने निजी बंगले से अमेरिकी प्रशासन चला सकते हैं? क्या भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 7 रेसकोर्स रोड के प्रधानमंत्री आवास की बजाय अहमदाबाद में अपने निजी घर से प्रधानमंत्री के दायित्व का निर्वहन कर सकते हैं? क्या देश के किसी राज्य का मुख्यमंत्री अपने सरकारी सीएम आवास की बजाय अपने निजी आवास से राज्य की बाग़डोर संभाल सकता है? तीनों सवालों का एकलौता जवाब है ‘नहीं’। लेकिन महाराष्ट्र भारत का संभवतः इकलौता राज्य है, जहां यह सवाल आजकल ‘हां’ में तब्दील हो गया है।
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जी हां, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री का तकरीबन छह दशक (57 साल) से आधिकारिक आवास रहा वर्षा बंगला मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के नाम बेशक आवंटित है, लेकिन वह उस बंगले में नहीं, बल्कि अपने निजी आवास मातोश्री में ही रहते हैं और महाराष्ट्र पर टूटे 60 साल से सबसे भीषणतम कहर कोरोना वाइरस संक्रमण के दौरान भी वह वर्षा से नहीं, बल्कि मातोश्री से हालात की निगरानी कर रहे हैं और नई वैश्विक महामारी को संभालने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन कोरोना है कि उनसे संभलने का नाम ही नहीं ले रहा है।
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इसका परिणाम यह हुआ है कि महाराष्ट्र कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या और कोरोना मौत के मामले में पूरे देश में शीर्ष पर ही नहीं है, बल्कि पांच मई 2020 तक देश में 1,07,000 (1.7 लाख) कोरोना संक्रमित मरीज़ थे। इसमें महाराष्ट्र का योगदान 37136 (37 हजार से अधिक) था, जो कि 35 फीसदी है। इसी तरह देश में अब तक कोरोना से 3303 मौतें हुई हैं, जबकि महाराष्ट्र में 1249 लोगों की कोरोना से जान जा चुकी है। यह क़रीब 37 फ़ीसदी होता है। कहने का मतलब महाराष्ट्र में कोरोना संक्रमण बेक़ाबू हो चुका है। राज्य कोरोना को संभालने के लिए कारगर नेतृत्व का अभाव साफ दिख रहा है।
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राज्य में अब तक 1328 से अधिक पुलिस वाले भी कोरोना की चपेट में आए हैं। इनमें से 52 पुलिसकर्मियों की कोरोना संक्रमण के चलते अकाल मौत हो चुकी है। मुंबई तो लगता है हालात धीरे-धीरे अमेरिका के न्यूयार्क जैसे होते जा रहे हैं। यहां 22563 लोग कोरोना से संक्रमित हैं, जिनमें 813 लोगों की मौत हो चुकी है। कहने का मतलब देश की आर्थिक राजधानी में कोरोना का नंगा नाच हो रहा है। लॉकडाउन का पालन करने के लिए राज्य में बुलाई गई सीआरपीएफ की 10 कंपनियों में से पांच को मुंबई में ही तैनात किया गया है।
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मुंबई में संक्रमित मरीज़ों के संपर्क में आए लोगों की तादाद इतनी अधिक है कि सबको अलगअलग क्वारंटीन सेंटर में रखना संभव नहीं है। इसीलिए बीएमसी ने 19 मई को दिशा निर्देश जारी किया कि जिम इमारत में कोरोना पॉज़िटव मरीज़ मिलेगा, वहां अब पूरी बिल्डिंग को नहीं बल्कि उस मंज़िल विशेष को ही सील किया जाएगा। मुंबई में संक्रमित मरीज़ों की बढ़ती संख्या से अस्पतालों में बेड कम पड़ रहे हैं। ऐसे में बीएमसी ने मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम को टेकओवर करने के लिए मुंबई क्रिकेट असोसिएशन को पत्र लिखा है।
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जहां कोरोना वाइरस से संक्रमण के समय संपूर्ण राज्य का कोरोना नियंत्रण कक्ष मुख्यमंत्री की देखरेख में उनके आधिकारिक आवास वर्षा बंगले में होना चाहिए था, वहीं राज्य का सबसे शक्तिशाली बंगला वर्षा इन दिनों खाली और सूनसान पड़ा है। यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि कभी राज्य का सबसे शक्तिशाली और महत्वपूर्ण आवास रहा वर्षा उद्धव बाल ठाकरे के मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही पूरी तरह अप्रासंगिक हो गया है और इन दिनों तो एकदम से मपरघट की तरह गहरे सन्नाटे में पड़ा हुआ है। और राज्य में कोरोना का संक्रमण का विस्तार रोके नहीं रुक रहा है।
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सत्ता परिवर्तन के बाद जब राज्य में शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और राष्ट्रीय कांग्रेस के महाविकास अघाड़ी की सरकार बनी तो लगभग 60 साल के उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और वर्षा बंगला दो दिसंबर 2019 को उनके नाम आवंटित भी हो गया, लेकिन उद्धव ठाकरे अपने मंत्री बेटे आदित्य ठाकरे, पत्नी रश्मि ठाकरे और दूसरे बेटे तेजस ठाकरे के साथ बांद्रा पूर्व उपनगर के स्थित अपने पिता के निजी आवास मातोश्री में ही रहते हैं। कोरोना संक्रमण से पहले उद्धव ठाकरे महीने में एकाध बार किसी बैठक में भाग लेने के लिए वर्षा चले जाते थे, लेकिन कोरोना के चलते जब से लॉकडाउन की घोषणा की गई है, तब से वह अपने निजी बंगले मातोश्री से ही कम निकलते हैं, लिहाज़ा, वर्षा में उनका आना-जाना क़रीब-क़रीब बंद सा ही हो गया है।
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दरअसल, 1960 में राज्य के गठन के बाद सबसे शक्तिशाली और महत्वपूर्ण सरकारी आवास सह्याद्रि हुआ करता था, लेकिन पांच दिसंबर 1963 को जब तत्कालीन मारोतराव कन्नमवार के आकस्मिक निधन के बाद वसंतराव नाइक ने राज्य के सत्ता की बाग़डोर संभाली तब से 12000 वर्गफीट में फैला वर्षा राज्य का सबसे शक्तिशाली और महत्वपूर्ण आवास का दर्जा पा गया। तब से देवेंद्र फड़णवीस के कार्यकाल तक वर्षा राज्य में सत्ता का केंद्र हुआ करता था, लेकिन फड़णवीस की विदाई के साथ वर्षा बंगले की शान और शक्ति की भी विदाई हो गई। यह बंगला अचानक से अप्रासंगिक हो गया।
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वस्तुतः इस बंगले को बॉम्बे प्रेसिडेंसी बनने के साथ अंग्रेज़ों ने बनवाया था। तब इसका नाम डग बीगन बंगला हुआ करता था। 1936 तक यह बंगला ब्रिटिश इंडिया के अग्रेज़ अफसरों का सरकारी आवास हुआ करता था। स्वतंत्रता मिलने के बाद यह द्विभाषी बॉम्बे के अधीन आ गया। 1956 में यह बंगला द्वभाषी राज्य के राजस्व और सहकारिता मंत्री वसंतराव नाइक को आवंटित किया गया। नाइक अपने बेटे अविनाश के जन्मदिन पर 7 नवंबर, 1956 को रहने के लिए डग बीगन बंगले में आ गए।
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राज्यों के पुनर्गठन के बाद जब महाराष्ट्र राज्य अस्तित्व में आया तो वसंतराव नाइक राज्य के पहले कृषि मंत्री बनाए गए। बहरहाल, उनकी पत्नी वत्सलाबाई नाइक जब अपने बंगले की तुलना सह्याद्रि बंगले से करती तो उन्हें उका बंगला बहुत मामूली लगता था। वह पति से शिकायत करती थी कि कैसा साधारण सा रौनक विहीन बंगला उन्हें आवंटित किया गया है। इसके बाद वसंतराव नाइक ने न्यूनतम खर्च में बंगले का पूरी तरह से जीर्णोद्धार करवा दिया और इसमें आम, नींबू, सुपारी वगैरह के अनेक पेड़ लगवा दिए। वह बंगले का नामकरण करना चाहते थे और अपने आवास का नाम ‘वी’ से रखना चाहते थे। वसंतराव का बारिश बहुत ही अंतरंग विषय था। कवि पांडुरंग श्रवण गोरेका पसंदीदा गीत ‘शेतकार्यंचे गने’ उन्हें बेहद पसंद था। उन्होंने वसंत-वत्सला-वर्षा को मिलाते हुए 1962 में डग बीगन बंगले का नाम ‘वर्षा’ रख दिया।
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1963 में जब वह राज्य के मुख्यमंत्री बने तो मंत्रिमंडल की पहली बैठक खत्म करने के बाद वर्षा पहुंचे और वर्षा में अपना आवासीय दफ्तर बनवाया। इस तरह 1963 से वर्षा बंगले को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री का आधिकारिक आवास का दर्जा मिल गया। अगले साल यानी 1964 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू महाराष्ट्र के दौरे पर आए थे. वह राजभवन में ही ठहरे, लेकिन नाइक के आमंत्रण पर रात का भोजन करने के लिए तत्कालीन राज्यपाल और अपनी बहन विजयलक्ष्मी पंडित के साथ वर्षा के लॉन में आए और यही भोजन किया।
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वसंतराव नाइक ने 20 फरवरी, 1975 को बंगला खाली कर दिया। इसके बाद जो भी राज्य का मुख्यमंत्री बना उसका सरकारी आवास वर्षा बंगला ही रहा। शंकरराव चव्हाण, शरद पवार, अब्दुल रहमान अंतुले, बाबासाहेब भोसले, वसंतदादा पाटिल, शिवाजीराव पाचिल निलंगेकर, सुधाकरराव नाईक, मनोहर जोशी, नारायण राणे, विलासराव देशमुख, सुशील कुमार शिंदे, अशोक चव्हाण, पथ्वीराज चव्हाण और देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री का कामकाज इसी बंगले में रहकर किया। लेकिन उद्धव ठाकरे के शासनकाल में यह ऐतिहासिक बंगला सूना पड़ा है।
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लोगों का कहना है कि ऐसे समय जब राज्य अपने साठ साल के इतिहास में सबसे कठिन दौर से गुजर रहा है। कोरोना संक्रमण महाराष्ट्र में तेज़ी से है, तब मुख्यमंत्री आवास होने के नाते वर्षा के रूप में राज्य के पास एक औपचारिक नियंत्रण केंद्र होना चाहिए था। जहां से राज्य के सभी 36 ज़िलों, 27 महानगर पालिकाओं, 3 महानगर परिषदों और 34 जिला परिषदों के साथ साथ पूरे राज्य के प्रशासन का संचालन और निगरानी होनी चाहिए थी, लेकिन राजनीतिक अदूरदर्शिता और अपरिपक्वता के कारण वर्षा बंगला भूतखाना बना हुआ है और कोरोना राज्य में शिव तांडव कर रहा है।
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राजनीतिक टीकाकारों का मानना है कि कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए वर्षा को हर प्रशासनिक गतिविधि का केंद्र होना चाहिए था। दक्षिण मुंबई में राजभवन ही नहीं राज्य का मंत्रालय भवन और बीएमसी मुख्यालय, मुंबई पुलिस मुख्यालय, महाराष्ट्र पुलिस मुख्यालय और भारतीय नौसेना मुख्यालय और दूसरे अन्य प्रमुख संस्थान वर्षा के आसपास चार से पांच किलोमीटर के ही दायरे में हैं। वहां से प्रशासनिक संचालन और दिशा-निर्देश जारी करने में आसानी होती लेकिन प्रशासनिक कार्य के लिए अनुभवहीन उद्धव ठाकरे यही ग़लती कर बैठे।
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जब से उद्धव ठाकरे के बंगले में पहले चायवाला कोरोना संक्रमित पाया गया और उसके बाद मुख्यमंत्री की सुरक्षा में तैनात कई पुलिस वाले कोरोना से संक्रमित हुए तब से उद्धव बहुत मुश्किल से अपने घर से बाहर निकलते हैं। वह कोरोना संक्रमण से इतने आशंकित है कि अपनी को कार सरकारी ड्राइवर से ड्राइव करवाने की बजाय ख़ुद ही ड्राइव करते हैं। कहने का मतलब राज्य में जिस तरह की अफरा-तफरी का माहौल है, उसमें कोरोना जासी महामारी से निपटने राज्य को भारी मुश्किलात का सामना करना पड़ रहा है।