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बुधवार, 20 मई 2020

कोरोना संक्रमणकाल में सूना है राज्य का सबसे शक्तिशाली ‘वर्षा’ बंगला

हरिगोविंद विश्वकर्मा

क्या अमेरिकी राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप ह्वाइट हाउस में रहने की बजाय अपने निजी बंगले से अमेरिकी प्रशासन चला सकते हैंक्या भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 7 रेसकोर्स रोड के प्रधानमंत्री आवास की बजाय अहमदाबाद में अपने निजी घर से प्रधानमंत्री के दायित्व का निर्वहन कर सकते हैं? क्या देश के किसी राज्य का मुख्यमंत्री अपने सरकारी सीएम आवास की बजाय अपने निजी आवास से राज्य की बाग़डोर संभाल सकता है? तीनों सवालों का एकलौता जवाब है नहीं। लेकिन महाराष्ट्र भारत का संभवतः इकलौता राज्य है, जहां यह सवाल आजकल हां में तब्दील हो गया है।

 

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जी हां, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री का तकरीबन छह दशक (57 साल) से आधिकारिक आवास रहा वर्षा बंगला मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के नाम बेशक आवंटित है, लेकिन वह उस बंगले में नहीं, बल्कि अपने निजी आवास मातोश्री में ही रहते हैं और महाराष्ट्र पर टूटे 60 साल से सबसे भीषणतम कहर कोरोना वाइरस संक्रमण के दौरान भी वह वर्षा से नहीं, बल्कि मातोश्री से हालात की निगरानी कर रहे हैं और नई वैश्विक महामारी को संभालने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन कोरोना है कि उनसे संभलने का नाम ही नहीं ले रहा है।


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इसका परिणाम यह हुआ है कि महाराष्ट्र कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या और कोरोना मौत के मामले में पूरे देश में शीर्ष पर ही नहीं है, बल्कि पांच मई 2020 तक देश में 1,07,000 (1.7 लाख) कोरोना संक्रमित मरीज़ थे। इसमें महाराष्ट्र का योगदान 37136 (37 हजार से अधिक) था, जो कि 35 फीसदी है। इसी तरह देश में अब तक कोरोना से 3303 मौतें हुई हैं, जबकि महाराष्ट्र में 1249 लोगों की कोरोना से जान जा चुकी है। यह क़रीब 37 फ़ीसदी होता है। कहने का मतलब महाराष्ट्र में कोरोना संक्रमण बेक़ाबू हो चुका है। राज्य कोरोना को संभालने के लिए कारगर नेतृत्व का अभाव साफ दिख रहा है।

 

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राज्य में अब तक 1328 से अधिक पुलिस वाले भी कोरोना की चपेट में आए हैं। इनमें से 52 पुलिसकर्मियों की कोरोना संक्रमण के चलते अकाल मौत हो चुकी है। मुंबई तो लगता है हालात धीरे-धीरे अमेरिका के न्यूयार्क जैसे होते जा रहे हैं। यहां 22563 लोग कोरोना से संक्रमित हैं, जिनमें 813 लोगों की मौत हो चुकी है। कहने का मतलब देश की आर्थिक राजधानी में कोरोना का नंगा नाच हो रहा है। लॉकडाउन का पालन करने के लिए राज्य में बुलाई गई सीआरपीएफ की 10 कंपनियों में से पांच को मुंबई में ही तैनात किया गया है।

 

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मुंबई में संक्रमित मरीज़ों के संपर्क में आए लोगों की तादाद इतनी अधिक है कि सबको अलगअलग क्वारंटीन सेंटर में रखना संभव नहीं है। इसीलिए बीएमसी ने 19 मई को दिशा निर्देश जारी किया कि जिम इमारत में कोरोना पॉज़िटव मरीज़ मिलेगा, वहां अब पूरी बिल्डिंग को नहीं बल्कि उस मंज़िल विशेष को ही सील किया जाएगा। मुंबई में संक्रमित मरीज़ों की बढ़ती संख्या से अस्पतालों में बेड कम पड़ रहे हैं। ऐसे में बीएमसी ने मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम को टेकओवर करने के लिए मुंबई क्रिकेट असोसिएशन को पत्र लिखा है।

 

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जहां कोरोना वाइरस से संक्रमण के समय संपूर्ण राज्य का कोरोना नियंत्रण कक्ष मुख्यमंत्री की देखरेख में उनके आधिकारिक आवास वर्षा बंगले में होना चाहिए था, वहीं राज्य का सबसे शक्तिशाली बंगला वर्षा इन दिनों खाली और सूनसान पड़ा है। यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि कभी राज्य का सबसे शक्तिशाली और महत्वपूर्ण आवास रहा वर्षा उद्धव बाल ठाकरे के मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही पूरी तरह अप्रासंगिक हो गया है और इन दिनों तो एकदम से मपरघट की तरह गहरे सन्नाटे में पड़ा हुआ है। और राज्य में कोरोना का संक्रमण का विस्तार रोके नहीं रुक रहा है।


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सत्ता परिवर्तन के बाद जब राज्य में शिवसेनाराष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और राष्ट्रीय कांग्रेस के महाविकास अघाड़ी की सरकार बनी तो लगभग 60 साल के उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और वर्षा बंगला दो दिसंबर 2019 को उनके नाम आवंटित भी हो गयालेकिन उद्धव ठाकरे अपने मंत्री बेटे आदित्य ठाकरेपत्नी रश्मि ठाकरे और दूसरे बेटे तेजस ठाकरे के साथ बांद्रा पूर्व उपनगर के स्थित अपने पिता के निजी आवास मातोश्री में ही रहते हैं। कोरोना संक्रमण से पहले उद्धव ठाकरे महीने में एकाध बार किसी बैठक में भाग लेने के लिए वर्षा चले जाते थेलेकिन कोरोना के चलते जब से लॉकडाउन की घोषणा की गई हैतब से वह अपने निजी बंगले मातोश्री से ही कम निकलते हैंलिहाज़ावर्षा में उनका आना-जाना क़रीब-क़रीब बंद सा ही हो गया है।

 

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दरअसल, 1960 में राज्य के गठन के बाद सबसे शक्तिशाली और महत्वपूर्ण सरकारी आवास सह्याद्रि हुआ करता थालेकिन पांच दिसंबर 1963 को जब तत्कालीन मारोतराव कन्नमवार के आकस्मिक निधन के बाद वसंतराव नाइक ने राज्य के सत्ता की बाग़डोर संभाली तब से 12000 वर्गफीट में फैला वर्षा राज्य का सबसे शक्तिशाली और महत्वपूर्ण आवास का दर्जा पा गया। तब से देवेंद्र फड़णवीस के कार्यकाल तक वर्षा राज्य में सत्ता का केंद्र हुआ करता थालेकिन फड़णवीस की विदाई के साथ वर्षा बंगले की शान और शक्ति की भी विदाई हो गई। यह बंगला अचानक से अप्रासंगिक हो गया।

 

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वस्तुतः इस बंगले को बॉम्बे प्रेसिडेंसी बनने के साथ अंग्रेज़ों ने बनवाया था। तब इसका नाम डग बीगन बंगला हुआ करता था। 1936 तक यह बंगला ब्रिटिश इंडिया के अग्रेज़ अफसरों का सरकारी आवास हुआ करता था। स्वतंत्रता मिलने के बाद यह द्विभाषी बॉम्बे के अधीन आ गया। 1956 में यह बंगला द्वभाषी राज्य के राजस्व और सहकारिता मंत्री वसंतराव नाइक को आवंटित किया गया। नाइक अपने बेटे अविनाश के जन्मदिन पर 7 नवंबर, 1956 को रहने के लिए डग बीगन बंगले में आ गए।


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राज्यों के पुनर्गठन के बाद जब महाराष्ट्र राज्य अस्तित्व में आया तो वसंतराव नाइक राज्य के पहले कृषि मंत्री बनाए गए। बहरहालउनकी पत्नी वत्सलाबाई नाइक जब अपने बंगले की तुलना सह्याद्रि बंगले से करती तो उन्हें उका बंगला बहुत मामूली लगता था। वह पति से शिकायत करती थी कि कैसा साधारण सा रौनक विहीन बंगला उन्हें आवंटित किया गया है। इसके बाद वसंतराव नाइक ने न्यूनतम खर्च में बंगले का पूरी तरह से जीर्णोद्धार करवा दिया और इसमें आमनींबूसुपारी वगैरह के अनेक पेड़ लगवा दिए। वह बंगले का नामकरण करना चाहते थे और अपने आवास का नाम ‘वी’ से रखना चाहते थे। वसंतराव का बारिश बहुत ही अंतरंग विषय था। कवि पांडुरंग श्रवण गोरेका पसंदीदा गीत ‘शेतकार्यंचे गने’ उन्हें बेहद पसंद था। उन्होंने वसंत-वत्सला-वर्षा को मिलाते हुए 1962 में डग बीगन बंगले का नाम वर्षा रख दिया।

 

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1963 में जब वह राज्य के मुख्यमंत्री बने तो मंत्रिमंडल की पहली बैठक खत्म करने के बाद वर्षा पहुंचे और वर्षा में अपना आवासीय दफ्तर बनवाया। इस तरह 1963 से वर्षा बंगले को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री का आधिकारिक आवास का दर्जा मिल गया। अगले साल यानी 1964 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू महाराष्ट्र के दौरे पर आए थे. वह राजभवन में ही ठहरेलेकिन नाइक के आमंत्रण पर रात का भोजन करने के लिए तत्कालीन राज्यपाल और अपनी बहन विजयलक्ष्मी पंडित के साथ वर्षा के लॉन में आए और यही भोजन किया।


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वसंतराव नाइक ने 20 फरवरी1975 को बंगला खाली कर दिया। इसके बाद जो भी राज्य का मुख्यमंत्री बना उसका सरकारी आवास वर्षा बंगला ही रहा। शंकरराव चव्हाण, शरद पवार, अब्दुल रहमान अंतुले, बाबासाहेब भोसले, वसंतदादा पाटिल, शिवाजीराव पाचिल निलंगेकर, सुधाकरराव नाईक, मनोहर जोशी, नारायण राणे, विलासराव देशमुख, सुशील कुमार शिंदे, अशोक चव्हाण, पथ्वीराज चव्हाण और देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री का कामकाज इसी बंगले में रहकर किया। लेकिन उद्धव ठाकरे के शासनकाल में यह ऐतिहासिक बंगला सूना पड़ा है।

 

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लोगों का कहना है कि ऐसे समय जब राज्य अपने साठ साल के इतिहास में सबसे कठिन दौर से गुजर रहा है। कोरोना संक्रमण महाराष्ट्र में तेज़ी से हैतब मुख्यमंत्री आवास होने के नाते वर्षा के रूप में राज्य के पास एक औपचारिक नियंत्रण केंद्र होना चाहिए था। जहां से राज्य के सभी 36 ज़िलों, 27 महानगर पालिकाओं, 3 महानगर परिषदों और 34 जिला परिषदों के साथ साथ पूरे राज्य के प्रशासन का संचालन और निगरानी होनी चाहिए थीलेकिन राजनीतिक अदूरदर्शिता और अपरिपक्वता के कारण वर्षा बंगला भूतखाना बना हुआ है और कोरोना राज्य में शिव तांडव कर रहा है।

 

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राजनीतिक टीकाकारों का मानना है कि कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए वर्षा को हर प्रशासनिक गतिविधि का केंद्र होना चाहिए था। दक्षिण मुंबई में राजभवन ही नहीं राज्य का मंत्रालय भवन और बीएमसी मुख्यालयमुंबई पुलिस मुख्यालयमहाराष्ट्र पुलिस मुख्यालय और भारतीय नौसेना मुख्यालय और दूसरे अन्य प्रमुख संस्थान वर्षा के आसपास चार से पांच किलोमीटर के ही दायरे में हैं। वहां से प्रशासनिक संचालन और दिशा-निर्देश जारी करने में आसानी होती लेकिन प्रशासनिक कार्य के लिए अनुभवहीन उद्धव ठाकरे यही ग़लती कर बैठे।

 

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जब से उद्धव ठाकरे के बंगले में पहले चायवाला कोरोना संक्रमित पाया गया और उसके बाद मुख्यमंत्री की सुरक्षा में तैनात कई पुलिस वाले कोरोना से संक्रमित हुए तब से उद्धव बहुत मुश्किल से अपने घर से बाहर निकलते हैं। वह कोरोना संक्रमण से इतने आशंकित है कि अपनी को कार सरकारी ड्राइवर से ड्राइव करवाने की बजाय ख़ुद ही ड्राइव करते हैं। कहने का मतलब राज्य में जिस तरह की अफरा-तफरी का माहौल है, उसमें कोरोना जासी महामारी से निपटने राज्य को भारी मुश्किलात का सामना करना पड़ रहा है।

शुक्रवार, 1 मई 2020

व्यंग्य - 'वो' वाली दुकान


हरिगोविंद विश्वकर्मा
वह मुस्करा रहा था। मुस्करा ही नहीं रहा था, बल्कि हंस भी रहा था। बहुत ख़ुश लग रहा था। ऐसा लग रहा था, जैसे उसके मन में लड्डू फूट रहे हैं। वह अपनी ख़ुशी संभाल नहीं पा रहा था। फिर अचानक ठठा कर हंसने लगा। 
अचानक सबकी नज़र उसकी ओर गई। मैं उसे देखने से ख़ुद को नहीं रोक पाया। लिहाज़ा, उस पर मेरी नज़र चली गई। मैं उसकी ओर लपक लिया। पहुंचते ही जानने का प्रयास किया। उसकी ख़ुशी का कारण।
-अरे भाई आपकी इस ख़ुशी का राज़? मैंने कलाई हिलाकर इशारे से पूछा।
-मुझे वॉट्सअप पर मैसेज आया है।
-क्या मैसेज आया है। मुझे भी तो बताओ। ऐसा कौन सा मैसेज आ गया जो तुम ठठाकर हंस रहे हो?
-साहब, इस मैसेज का मैं लॉकडाउन शुरू होने से ही इंतज़ार कर रहा था। बड़ी बेसब्री से इस संदेश की राह देख रहा था।
-क्या मैसेज है, बताओगे या ऐसे ही पहेलियां बुझाते रहोगे।
-'वो' वाली दुकान भी खुल रही है साहब।
-कौन 'वो' वाली दुकान?
-सोमरस वाली दुकान! 
-दारू की दुकान? मैं उसकी ओर देखकर ज़ोर से बोला।
-दारू की दुकान कहकर उसका अपमान न करें! चाहे तो आप मदिरा की दुकान कह सकते हैं। आप मधु की दुकान कह सकते हैं। या फिर आप वाइन शॉप कह सकते हैं। वाइन शॉप खुल रही है। उसने बड़े आहिस्ता से जवाब दिया।
मैं उसकी ओर देखता रह गया। यह सोचने लगा कि शराब के कितने पर्यायवाची जानता है यह व्यक्ति।
-एक बात कहूं साहब? वह फिर धीरे से कहा।
-हां-हां, बोलो-बोलो। मैं पुलिसवाला नहीं हूं, इसलिए बिंदास बोलो। एक प्रशंसापात्र मैंने भी उसकी ओर बढ़ा दिया।
-पहली बार देश ही नहीं, देश की जनता ने महसूस किया है। उसने लंबी सांस छोड़ी।
-क्या महसूस किया है भाई, देश और देश की जनता ने? मैंने उत्सुकतावश पूछा। 
-हमारी कम्युनिटी की अहमियत को। उसे चेहरे पर रहस्यमयी मुस्कान तैर गई।
-हमारी कम्युनिटी की अहमियत का मतलब
-हां, हम सोमरस पान करने वालों की कम्युनिटी साहब। अचानक वह भावुक हो गया। आगे बोला -पूरी दुनिया में हमारी एक ही कम्युनिटी है। हमारे साथ न तो किसी देश का नाम जुड़ता है। न किसी धर्म का। हमें जाति के बंधन में नहीं बाधा जा सका। हम नस्लभेद से भी परे हैं। ऐसी है हमारी कम्युनिटी साहब। हम न तो देश के नाम पर लड़ते हैं, न धर्म के नाम पर। न तो जाति के नाम पर लड़ते हैं, न ही नस्ल के नाम पर। हमें अपनी कम्युनिटी पर गर्व है। आई एम प्रउड ऑफ माई कम्युनिटी।
-मतलब तुम शराबी हो? मैंने सीधा सवाल कर दिया। संगीत की भाषा में मेरा स्वर आरोहक्रम में था।
-शराबी मत कहो साहब। मदिराप्रेमी कहो। सोमरस पान करने वाला कहो। मैं सोमरस पान करने वालों की बात कर रहा हूं। सरकार को अब समझ में आई मदिराप्रेमियों की अहमियत साहब। उसने अवरोह क्रम में जवाब दिया। 
-इसमें अहमियत जैसी क्या बात है?
-अहमियत है साहब। देखो न, एक महीने से अधिक समय से देश में वाइन शॉप बंद हैं। इससे सरकार को हज़ारों करोड़ के राजस्व का नुकसान हुआ गया। देश की अर्थ-व्यवस्था पर भारी चपत लगी है। यह हमारे न पीने से हुआ है। अगर आगे भी हमें पीने से रोका गया तो यह घाटा लाखों में पहुंच सकता है। उसने किसी अध्यापक की तरह मुझे अर्थशास्त्र का गणित समझाया।
-बात तो सही कह रहे हो यार। सरकार को शराब से हर महीने हज़ारों करोड़ राजस्व मिलता है। यह बात तो सही है। मैंने उसकी बात से सहमति जताई।
-इस तरह हर साल लाखों करोड़ रुपए का राजस्व हुआ न।
-सही कहा आपने। चलो, अब तो शराब की दुकानें खुलनेवाली हैं। 
-वाइन शॉप कहिए न साहब। इसमें स्टेटस सिंबल भी है। हमारा मान भी बढ़ता है। हमारे कंधों पर देश की अर्थ व्यवस्था टिकी है।
-सही कहा आपने। आप लोगों की वजह से अर्थ व्यवस्था गुलज़ार रहती है। लाखों लोगों के घर में चूल्हा जलता है।
-लेकिन साहब मैंने भी एक संकल्प लिया है।
-कौन सा संकल्प?
-यही कि देश की अर्थ व्यवस्था में मंदी लाने का आरोप हमारी कम्युनिटी पर न पड़े।
-मैं समझा नहीं। 
-यही कि हम थोड़ा अधिक पीएंगे, ताकि कमबख़्त कोरोना के कारण 40 दिन में राजस्व का जो घाटा हुआ है, उसकी भरपाई कर दें। आख़िर हमारी भी तो कोई जिम्मेदारी है, उस देश के प्रति जिस देश के हम वासी हैं। मैं अपनी कम्युनिटी के लोगों से अपील करता हूं, उनके थोड़े प्रयास से देश की अर्थ व्यवस्था संभल जाएगी। लोगों की रोज़ी-रोटी छिनने से बच जाएगी। इसलिए देश के लिए पीएं। कोराना को हराने के लिए पीएं।
आप सच्चे देशभक्त हैं। आप महान हैं। यहां सड़क पर क्या कर रहे हैं? आपकी ज़रूरत तो वित्तमंत्रालय में है। कोरोना से लड़ाई जीतने के लिए देश को आपकी कम्युनिटी की ही ज़रूरत है।


गुरुवार, 9 अप्रैल 2020

चीन के वुहान से लॉकडाउन हटते ही हज़ारों लोगों का पलायन

हरिगोविंद विश्वकर्मा
दुनिया को वैश्विक महामारी सीसीपी वारयस (चीनी कम्युनिस्ट पार्टी वायरस) को नज़राना देने वाले और इस मौत के सौदागर का एपीसेंटर रहे चीन के हुबेई प्रांत के वुहान में सरकार ने जैसे ही 76 दिवसीय लॉकडाउन को उठाने की घोषणा की वैसे ही वुहान से पलायन करने वालों का तांता लग गया है। पहले दिन यानी 8 अप्रैल 2020 को ही 20 हज़ारों लोग शहर से पलायन कर गए।

अमेरिका के न्यूयॉर्क टाइम्स और वॉशिंगटन पोस्ट के बाद सबसे प्रतिष्ठित समाचार पत्र समूह The Epoch Times ने अपने प्रिंट एवं डिजिटल एडिशन में इस बारे में विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की है। रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले तीन महीने के दौरान बहुत बड़ी तादाद में लोगों की लाशें देखकर ये लोग विचलित हो गए हैं और अपने भविष्य को लेकर बहुत चिंतित हैं, इसलिए लोग किसी तरह ऐसी जगह जाना के लिए तत्पर थे जहां, उनकी जान बच सके। इसीलिए मौक़ा मिलते ही लोग परिवार समेत वुहान से पलायन कर रहे हैं। 

रिपोर्ट के मुताबिक 23 जनवरी, जब सरकार ने शहर के 1 करोड़ 10 लाख लोगों को उनके घरों में क़ैद करने की घोषणा की थी, के बाद से कोरोना का मार झेल चुके इस शहर ने इतनी अभूतपूर्व भीड़ कभी नहीं देखी थी। आलम यह था कि सरकार द्वारा लॉकडाउन ख़त्म करे के निर्धारित समय आधी रात होने से पहले ही एक्सप्रेसवे पर बहुत बड़ी तादाद में लोग हो गए थे। लोगों ने ट्रेन और विमान पकड़ने के लिए रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डों पर जाने के लिए पहले से ही अपने शरीर को सुरक्षात्मक लिहाफ लपेटकर शहर से बाहर निकलने के लिए अपनी बारी का इतज़ार करते देखे गए थे।


सीमावर्ती क्षेत्र से लिए गए विडियों के फुटेज यह कहानी ख़ुद बयां कर रहा है। स्थानीय लोगों को अपनी कार का हार्न बजाकर ढाई महीने बाद मिली आज़ादी का स्वागत किया। 8 अप्रैल, 2020 की अलसुबह ली गई हवाई तस्वीर वुहान में एक राजमार्ग के टोल प्लाज़ा पर कतार में खड़ी कारों को दर्शाती है। वुहान के 75 हाइवे टोल में से एक पर निकलने की प्रतीक्षा कर रहे चेन ने बताया, हम फिर मौत के मुहाने पर ढकेल दिए जाएं, इससे पहले यहां से निकल जाना चाहते हैं, क्योंकि कोई नहीं जानता कि कब चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार अपनी पॉलिसी बदलने की घोषणा कर दे। मुझे इस बात का दुख है कि मैंने अपने बॉस का आग्रह ठुकरा दिया जिसने उससे रुकने का आग्रह किया था।


हाइवे पर अपनी बारी का इतंज़ार कर रहे हेनयांग जिले के लीयू, जिनमें माता-पिता हेनयांग में ही रहते हैं, भी इसी तरह की चिंता जताते हैं। उन्होंने कहा, यहां किसी को कुछ नहीं पता कि कल क्या होने वाला है। इसलिए लोग अपनी और अपने परिजनों की जान बचाने के लिए सब कुछ वुहान में छोड़कर पलायन कर रहे हैं। लीयू ने कहा, "आप कभी नहीं जान सकते कि इस देश की नीतियां किस दिशा में जा रही हैं," लीयू हेनान प्रांत के ज़िनयांग शहर में पहुंच कर अपनी कार मंगोलिया की मोड़ते हुए बताया, “जितना जल्दी संभव हो पा रहा है, हम वुहान छोड़ रहे हैं। यहां हर दिन किसी न किसी परिवर्तन की घोषणा की जाती है।”


आवागमन पर लगे प्रतिबंध के हटने से एक घंटे पहले हज़ारों की संख्यां में कारें हाइवे के प्रवेश द्वार पर क़तारबद्ध हो गई थी। वुहान से बुधवार को लगभग 55,000 लोगों के रेलयात्रा का टिकट बुक करवाया था। अगले दिन यह संख्या दोगुनी हो गई। हवाई अड्डे के एक अधिकारी ने बताया कि शाम तक वुहान से 10,000 यात्री बाहर निकल गए।

मंगलवार, 7 अप्रैल 2020

कोरोना को रोकने के लिए लॉकडाउन बढ़ाना ही एकमात्र विकल्प


हरिगोविंद विश्वकर्मा
हालांकि देश में सीसीपी वारयस (चीनी कम्युनिस्ट पार्टी वायरस) से संक्रमित लोगों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है, इसके बावजूद अगर अमेरिका, इटली और स्पेन जैसे बेहतरीन हेल्थकेयर वाले विकसित देशों की तुलना करें तो यही लगता है कि भारत कोरोना वायरस को विस्फोटक रूप से बढ़ने से रोकने में अभी तक तो सफल रहा है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह रही कि देश और देशवासियों ने मिलकर कोरोना वारयस को तीसरे चरण में जाने से रोक दिया है। इसका सारा श्रेय देशव्यापी लॉकडाउन को जाता है। इसलिए चीनी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा फैलाई गई कोरोना नाम की इस वैश्विक महामारी को रोकने के लिए लॉकडाउन की अवधि 30 अप्रैल तक बढ़ाने की घोषणा तत्काल होनी चाहिए।

लॉकडाउन इसलिए भी ज़रूरी है, क्योंकि देश में कोरोना संक्रमण और इस वायरस से होने वाली मौतों का ग्राफ बढ़ ही रहा है। थोड़ी ढिलाई से जिस तरह लोग सब्ज़ी और अन्य खाद्य सामग्री खरीदने के लिए टूट पड़ते हैं, उस पर अंकुश लगाने के लिए लॉकडाउन एकमात्र विकल्प है। अन्यथा भारत भी अमेरिका, इटली, स्पेन, फ्रांस, ईरान और ब्रिटेन की तरह कम्युनिटी ट्रांसफर का शिकार हो सकता है।

वजह चाहे जो हो, लेकिन इतना तो सच है कि जाहिल तबलीग़ी जमात मरकज़ के सदर मौलाना मोहम्मद साद कांधलवी के पागलपन के बावजूद भारत ने कोरोना वायरस के विस्फोटक संक्रमण को रोकने में अब तक तो कामयाब ही रहा है। अगर पूरा देश इसी तरह भविष्य में भी एकजुट रहा और लोग अपने-अपने घरों में इसी तरह बंद रहे तो, भारत निश्चित रूप से सीसीपी वारयस को इसी महीने हराने में सफल हो जाएगा।

भारत में कोरोना वायरस का आगाज़ यूरोप के दो सबसे समृद्ध देशों इटली और स्पेन से एक दिन पहले हुआ था। लेकिन इन दोनों देशों में कोरोना संक्रमण जिस गति से बढ़ा उसकी तुलना में लॉकडाउन की घोषणा करने से देर हो गई। इसका नतीजा यह हुआ कि कोरोना वायरस कुछ दिन के अंदर पहले चरण से दूसरे और दूसरे चरण से तीसरे चरण में चला गया और अंततः कम्युनिटी स्प्रेड हो गया। आज इटली और स्पेन में लाशों का अंबार लगा है। लेकिन भारत ने सोशल डिस्टेंसिंग और लॉकडाउन की घोषणा इन दोनों देशों के बाद की, इसके बावजूद यूरोप अमेरिका की तुलना में यहां संक्रमण नियंत्रण में है।

दरअसल, चीन के बाद कोरोना वायरस का प्रकोप पूरी दुनिया में लगभग एक ही साथ यानी 19 जनवरी 2020 से 31 जनवरी 2020 के बीच शुरू हुआ। अमेरिका और यूरोप में यह भयानक रूप से बढ़ा और आज विकसित देशों में बड़ी संख्या में नागरिकों की जान ले रहा है। लेकिन भारत में कोरोना संक्रमण उस विस्फोटक गति को प्राप्त करने में सफल नहीं हो सका। भारत फिलहाल प्रभावित दोशों में 30 वें नंबर पर है।

चीन के बाहर सबसे पहले संक्रमण अमेरिका में फैला। दुनिया के सबसे तातकवर देश में कोरोना का पहला मरीज 19 जनवरी 2020 को पाया गया। जहां न्यूयॉर्क में एक चीनी नागरिक कोरोना पॉजिटिव घोषित किया गया। अमेरिका में कोरोना संक्रमण बहुत तेज़ी से पहले चरण से दूसरे चरण में पहुंचा और दूसरे चरण से बड़ी तेज़ी से तीसरे चरण यानी कम्युनिटी ट्रांसफर फेज में पहुंच गया। आज अमेरिका में कोरोना से मौतें 12 हज़ार से अधिक और कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या 4 लाख से ऊपर है।

इटली में कोरोना वायरस कोरोना के ओरिजिन पॉइंट वुहान से उसके कोरोबारी रिश्ते के चलते 31 जनवरी 2020 को पहुंचा। दरअसल, जब इटली में सरकार ने चीन से आने वालों पर रोक लगाने का सिलसिला शुरू किया तो वहां के वामपंथी नेताओं ने इसका विरोध किया। इसके बाद इटली में "चीनी भाइयों को गले लगाओ" अभियान शुरू किया। सभी उम्र के सामान्य स्वस्थ इटालियंस ने यादृच्छिक चीनी लोगों को गले लगाया और फिर स्थानीय समुदाय के भीतर इस बीमारी को ले जाने और फैलाने लगे। लिहाज़ा, इटली ने बिजली की गति से पहले चरण से दूसरे चरण और दूसरे चरण से तीसरे चरण में पहुंच गया। अब तक इटली में 17,127 मौतें हो चुकी है और 1,35,586 लोग संक्रमित हैं।

विकसित देशों की बात करें तो अमेरिका के बाद फ्रांस दूसरा देश है, जहां चीनी वायरस सबसे पहले पहुंचा। फ्रांस में कोरोना वायरस की दस्तक 24 जनवरी 2020 को हुई। फ्रांस में कोरोना वायरस का संक्रमण बहुत तेज़ी से पहले चरण से दूसरे चरण में पहुंचा और दूसरे चरण से उससे भी तेज़ी से तीसरे चरण में गया और देश कोरोना के कम्युनिटी ट्रांसफर का शिकार हो गया। आज फ्रांस में चीनी वायरस से 10,328 मौतें  हो चुकी हैं, जबकि देश में कोराना पॉज़िटिव के 78,167 केस हैं।

यूरोप के सबसे धनी देशों में से एक स्पेन का दरवाज़ा चीनी वायरस ने 31 जनवरी 2020 को ही खटखटा दिया था। इस देश में भी कोरोना वायरस का संक्रमण बहुत तेज़ी से फैला और पहले चरण से दूसरे चरण में पहुंच गया। कुछ दिनों के भीतर यह वायरस दूसरे चरण से बड़ी तेज़ी से तीसरे चरण यानी कम्युनिटी ट्रांसफर फेज में पहुंच गया। इसके चलते पूरा इटली शहर लॉकडाउन है। इस ख़ूबसूरत देश में लाशों का अंबार लगता जा रहा है। अगर स्पेन में लोगों के मरने का सिलसिला इसी तरह बदस्तूर जारी रहा तो जल्द ही दुनिया में कोरोना वायरस से मरने वाले सबसे ज़्यादा लोग स्पेन में ही होंगे। अभी तक वहां 14,045 मौत हो चुकी है और संक्रमित लोगों की संख्या 1,41,942 तक पहुंच गई है।

इसी तरह ईरान में कोरोना वायरस की दस्ताक 19 फरवरी 2020 को हुई, लेकिन कुछ कट्टरपंथियों की लापरवाही के चलते यहां कोरोना जल्दी ही कोहराम मचाने लगा। ईरान अमेरिका यूरोप की तरह विकसित मेडिकल सुविधा वाला देश नहीं है। इसका नतीजा यह हुआ कि वहां गली-गली में लोगों की मौत होने लगी। फिलहास ईरान में अबतक 3,872 लोगों की जान जा चुकी है, जबकि 62,589 कोरोना पॉजिटिव के संक्रमण के शिकार है।

इन देशों की तुलना में भारत कोरोना वायरस के प्रसार की रफ़्तार में ब्रेक लगाने में बहुत हद तक सफल रहा है। भारत में कोरोना का संक्रमण दुबई के रास्ते 30 जनवरी 2020 को आया जब केरल में एक आदमी कोरोना संक्रमित पाया गया। इतना ही नहीं भारत में कोरोना से पहली मौत 12 मार्च को हुई। सबसे बड़ी बात भारत में अभी तक कोरोना दूसरे चरण में रोक दिया गया है। फ़िलहाल देश में डेढ़ सौ मौतें हुई हैं और पांच हजार से अधिक संक्रमित हैं। इन संख्याओं के साथ केवल लगाया जा सकता है, क्योंकि भारत ने अपनी सूझबूझ से इन्हें बढ़ने की गुंजाइश नहीं दी।

शनिवार, 4 अप्रैल 2020

कट्टरपंथियों को डील करने में भाजपा कांग्रेस से भी अधिक फिसड्डी

हरिगोविंद विश्वकर्मा
देश में पिछले छह साल से सत्तारूढ़ राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी अक्सर कांग्रेस पर मुसलमानों के कथित तुष्टीकरण का आरोप लगाती रही है। कांग्रेस की नीतियों को भाजपा के नेता इम्पीज़मेंट पॉलिटिक्स की संज्ञा देते रहे हैं। लेकिन दिल्ली के निज़ामुद्दीन के तबलीग़-ए-जमात आलमी मरकज़ में देश-विदेश से आए जमातियों को वहां से निकलने के बारे जो भी खुलासे हो रहे हैं, उस पर ग़ौर करें, तो यही लगता है कि कट्टरपंथी मुसलमानों को डील करने में राष्ट्रवाद की पैरोकार भाजपा मुसलमानों के लिए सॉफ्ट कॉर्नर रखने वाली कांग्रेस से भी ज़्यादा फिसड्डी साबित हुई है।

निज़ामुद्दीन में छह मंज़िली इमारत में मौजूद हज़ारों की तादाद में जमातियों को निकालने के लिए तबलीग़ी मरकज़ के सदर मौलाना मोहम्मद साद को मनाने और राजी करने हेतु राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल का रात दो बजे मरकज़ में जाना, यही दर्शाता है कि कट्टरपंथी मुसलमानों को डील करते समय भाजपा भी कांग्रेस की तरह बहुत सॉफ़्ट अप्रोच अख़्तियार करती है और कट्टरपंथियों को नाराज़ नहीं करना चाहती है। अन्यथा 22 मार्च को जनता कर्फ़्यू से पहले ही कोरोना वायरस फैलाने वाले इन जमातियों को डंडे मार कर हकालकर क़्वारंटीन सेंटर में दिया जाता।

देश भर में कोरोना मरीज़ों की संख्या में सात सौ कोरोना पॉज़िटिव मरीज़ो का योगदान देने वाला तबलीग़ी आलमी मरकज़ तो चीनी वायरस फैलने के लिए तो सबसे अधिक ज़िम्मेदार है ही, लोकल पुलिस और स्थानीय नागरिक प्रशासन से लेकर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और दिल्ली सूबे के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तक भी उतने ही ज़िम्मेदार हैं, क्योंकि ये लोग 19, 20 और 21 मार्च की अवधि के दौरान कोई सख़्त कार्रवाई करने की बजाय बस हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे। अगर देश-विदेश से आए जमातियों के जमावड़े की बात इन तक पहुंचाई ही नहीं गई तो यह तो और भी गंभीर मसला है।

तबलीग़ी आलमी मरकज़ की बंगलेवाली मस्जिद की इमारत में मौजूद 2346 लोगों को बेशक निकाल लिया गया है, लेकिन यह सवाल अभी तक अनुत्तरित है कि इतनी बड़ी तादाद में लोगों को वहां रुकने और चीनी वायरस फैलाने की इजाज़त किन परिस्थियों में दी गई। जमातियों की जांच करके पहले ही सभी को क़्वारंटीन सेंटर में क्यों नहीं भेजा गया। केंद्रीय गृहमंत्री के आदेश पर काम करने वाली दिल्ली पुलिस ने 22 मार्च से पहले सख़्त क़दम क्यों नहीं उठाया। इसका जवाब मांगा जाना ही चाहिए।

ऐसे समय, जब देश के सभी धार्मिक और शिक्षण संस्थान 18 मार्च को ही बंद कर दिए गए। 18 मार्च को ही देश में सबसे अधिक भीड़ खींचने वाले तिरुपति बालाजी मंदिर और जम्मू-कश्मीर के वैष्णोदेवी मंदिर को बंद कर दिया गया। 20 मार्च को दुनिया में सबसे अधिक भीड़ खींचने वाली मक्का मस्जिद और मदीना मस्जिद भी बंद कर दी गई। तब तबलीग़ी आलमी मरकज़ की बंगलेवाली मस्जिद की इमारत में चार हज़ार तमातियों को निकालने के लिए स्थानीय पुलिस सक्रिय क्यों नहीं हुई?

दरअसल, चीनी वाइरस का ख़तरा देश में 30 जनवरी को पहला कोरोना पॉज़िटिव केस मिलने के बाद ही महसूस किया जाने लगा था। कई कंपनियां अपने कर्मचारियों को घर से काम करने की सलाह देने लगी थी। इस दौरान कभी केरल से तो कभी महाराष्ट्र से कोरोना पॉज़िटिव की इक्का-दुक्का ख़बरें आ रही थीं। 12 मार्च को कर्नाटक के कुलबर्गी में सऊदी अरब से हज़ करके लौटे 76 वर्षीय बुज़ुर्ग की कोरोना से मौत की ख़बर आते ही देश में हलचल मचने लगी। अगले दिन एक और कोरोना डेथ के बाद संस्थानों को बंद करने का सिलसिला शुरू हो गया, क्योंकि तब तक देश में कोरोना पॉज़िटिव के 80 से ज़्यादा मरीज़ों की पुष्टि हो चुकी थी।

दिल्ली सरकार ने 13 मार्च को डॉ. राममनोहर लोहिया अस्पताल में एक महिला की कोरोना से मौत के बाद इस चीनी वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए 200 से अधिक लोगों के एक जगह एकत्रित होने पर रोक लगा दी। 17 मार्च को 50 लोगों के एक जगह जमा होने प्रतिबंध लगा दिया गया। 19 मार्च को खतरा बढ़ता देख यह संख्या 20 कर दी गई। 20 मार्च को एक जगह पांच लोगों के इकट्ठा होने पर रोक लगा दी गई। ऐसे क्रिटिकल समय में निज़ामुद्दीन में तबलीग़ी आलमी मरकज़ की इमारत में क़रीब चार हज़ार लोगों को क्यों जमा होने दिया गया? इसका जवाब लोकल पुलिस के साथ साथ लोकल प्रशासनिक अधिकारियों से भी पूछा जाना चाहिए।

वस्तुतः तबलीग़ी आलमी मरकज़ इमारत की दीवार निज़ामुद्दी पुलिस स्टेशन की दीवार से एकदम सटी हुई है। सड़क से जाने पर मरकज़ से पुलिस स्टेशन की दूरी 40 मीटर से ज़्यादा नहीं होगी। ऐसे में हज़रत निज़ामुद्दीन पुलिस या स्थानीय ख़ुफ़िया इकाई (लोकल इंटेलिजेंस यूनिट) को इतनी बड़ी तादाद में लोगों को जुटने की पक्की ख़बर रही ही होगी और ज़ाहिर है इस सूचना को निश्चित रूप से थानाध्यक्ष और एलआईयू ने अपने आला अधिकारियों के साथ ज़रूर शेयर किया होगा।

ऐसे में लग यही रहा है, केंद्रीय गृहमंत्री और मुख्यमंत्री समेत आला अफ़सरों से कोई स्पष्ट निर्देश न मिलने की अवस्था में स्थानीय पुलिस स्टेशन के प्रभारी मुकेश वालिया नीरो की तरह बंसी बजाते रहे। 23 मार्च को जब कोरोना मरीज़ों की संख्य़ा 400 पार कर गई और चीनी वायरस से मरने वालों की संख्य 4 से अचानक 7 पहुंच गई, तब थाना प्रभारी को लगा कि मामला सीरियस होता जा रहा है। लिहाज़ा, तबलीग़ी आलमी मरकज़ छह सात लोगों बुलाकर उन्होंने कैमरे के सामने मरकज़ को खाली करने का निर्देश दिया। यह कार्य थानाध्यक्ष ने चार दिन पहले क्यों नहीं किया?

दरअसल, 28 मार्च को अंडमान-निकोबार से रिपोर्ट आई कि संक्रमित 10 से से 9 लोग तबलीग़ी आलमी मरकज़ के प्रोग्राम में शामिल हुए थे। चौथी संक्रमित मरीज़ मरकज़ में शामिल एक मौलाना की बीवी थी। इस रिपोर्ट से सभी के कान खड़े हो गए और लोकल पुलिसकर्मी और एसडीएम के साथ इमारत में गए और मौलाना साद से इमारत खाली करवाने और खांस रहे लोगों को अस्पताल और बाक़ी जमातियों को क्वारंटीन सेंटर भेजने का आग्रह किया, लेकिन कोरोना वायरस को ही इस्लाम के ख़िलाफ़ साज़िश मानने वाला मौलाना साद अड़ गया और कहा कि उसके लोग मस्जिद में मर जाएंगे, लेकिन अस्पताल या क्वारंटीन सेंटर में बिल्कुल नहीं जाएंगे।

यहीं झाम फंस गया। लात और डंडे खाने के पात्र मौलना साद को पुलिस वाले मनाने मे जुटे रहे। मान जाइए। खांस-छींक रहे लोगों को अस्पताल और बाक़ी लोगों को क्वारंटीन सेंटर भेजने दीजिए कहते हुए मनुहार करते रहे।
पूरे देश में प्रवासी मजदूरों को पुलिस डंडे मारती रही और मुर्गा बनने के लिए मजबूर करती रही, लेकिन मरकज़ में मिशन मान-मनौव्वल चलता रहा। जब रात 12 बजे मिशन मान-मनौव्वल फेल हो गया तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सूचित किया गया। तब प्रधानमंत्री ने भी मौलाना और गंदी मानसिकता वाले जमातियों डंडे मारने का आदेश देने की जगह मौलाना को मनाने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को भेजा।

अजित डोभाल के मनाने के बाद मौलाना साद तैयार हो गया और रात में ही खांस-छींक रहे जमातियों को बाहर निकलने का सिलसिला शुरू हुआ। वहां इतने अधिक जमाती थे कि इमारत को खाली कराने में तीन दिन लग गए। सबको निकलने के बाद बताया गया कि 2346 लोग थे। यह कहना ग़लत नहीं होगा भारत धरती का इकलौता ऐसा मुल्क है, जहां बुद्धिजीवी मुसलमान तो डर महसूस करते हैं, लेकिन पर्यटन वीज़ा लेकर विदेश इस्लाम का प्रचार करने यानी धर्म परिवर्तन को बढ़ावा देने के लिए इस भयस्थल के दौरे पर आते हैं और अपना काम ख़त्म करके चले भी जाते हैं। अब भारत सरकार होश में आई है और लगभग एक हज़ार विदेशी जमातियों को ब्लैकलिस्ट कर दिया गया है।

अब यह भी पता चल रहा है कि तबलीग़ी मरकज़ में बड़ा कुर्ता छोटा पायजामा पहनने और दाढ़ी रखने वाले इन जमातियों को क्या प्रशिक्षण दिया जाता है। ज़ाहिर है, इन लोगों को महिलाओं को भोग की वस्तु मानने की तालीम दी जाती है। तभी तो ये लोग जहां हैं, वहीं उपद्रव कर रहे हैं। अस्पताल में महिला नर्सों के सामने नंगे होकर अंडरवियर पहन रहे हैं, अश्लील वीडियों देख रहे हैं, अश्लील इशारे कर रहे हैं और कुछ ऐसे भी काम कर रहे हैं जिसे लिखा भी नहीं जा सकता। सबसे दुखद बात यह कि मोदी-विरोध में अंधे कई तथाकथित बुद्धिजीवी दूसरी मिसालें देकर इन जाहिलों और जानवरों की पैरवी कर रहे हैं।

स्कॉटलैंड यार्ड की तरह सक्षम और तेज़-तर्रार मानी जाने वाली दिल्ली पुलिस एक हफ़्ता गुज़र जाने के बावजूद मौलाना साद को नहीं खोज पाई है। ऐसी पुलिस से किसी आतंकवादी को खोज लेने की कैसे उम्मीद की जा सकती है। ज़ाहिर है, पुलिस जानती है कि मौलाना साद कहां छिपा हुआ है, लेकिन उसे तलाशने का बहाना कर रही है। यह कांग्रेस शासन में होता तो गले उतर जाता लेकिन भाजपा शासन में यह बात बिल्कुल हज़म नहीं हो रही है।  

सोमवार, 30 मार्च 2020

क्या है तबलीग़ी आलमी मरकज़?

यह जानने के लिए ज़रूर पढ़े... 

हरिगोविंद विश्वकर्मा
अपना दिल थाम लीजिए, क्योंकि भारत में चीनी कोरोना वायरस (चीनी कम्युनिस्ट पार्टी वाइरस यानी सीसीपी वायरस यानी कोविड-19) से संक्रमित कोरोना पॉजिटिव मरीज़ों की संख्या में विस्फोट होने वाला है। यह संख्या किसी भी समय बहुत ज़्यादा बढ़ सकती है। यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि राजधानी दिल्ली ही नहीं, बल्कि पूरे देश में सीसीपी वायरस का एपीसेंटर दिल्ली के निजामुद्दीन पश्चिम में स्थित तबलीग़ी जमात का आलमी मरकज़ यानी ग्लोबल सेंटर ही होगा।

ऐसे समय में जब विश्स स्वास्थ्य संगठन और अन्य विशेषज्ञ घातक कोरोनावायरस के प्रसार पर अंकुश लगाने के लिए 'सामाजिक दूरी' रखने की अपील कर रहे हैं और चीनी वायरस को और फैलने से रोकने के लिए पूरे देश में लॉकडाउन घोषित किया गया है। 17 से 19 मार्च 2020 के दौरान 300 से ज़्यादा विदेशियों समेत तक़रीबन 3500 तबलीग़ जमात के लोग इस मकरज़ की बंगलेवाली मस्जिद में एकत्रित हुए थे।

तबलीग़ी आलमी मरकज़ में हुए तीन दिवसीय सम्मेलन के बाद तक़रीबन हज़ार देसी-विदेशी इस्लामी प्रचारक 10 या 12 के समूह में देश के अलग-अलग हिस्सों में चले गए। यह कहना ग़लत नहीं होगा कि तबलीग़ी जमात के लोगों ने कोरोना वायरस को देश के हर इलाक़े में मुसलमानों में फैला दिया है। ऐसा ही एक समूह तेलंगाना की मस्जिद में बैठक में भाग लिया, जिनमें से सोमवार को पांच लोगों को कोविड-19 से मौत हो गई है। इसके अलावा प्रोग्राम में शिरकत करने वाले तमिलनाडु के व्यक्ति की मौत हो गई। अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में सभी 10 कोरोना पॉजिटिव यहीं से गए थे। कश्मीर में जिस व्यक्ति की जान गई है, वह भी यहां से इस्लाम के प्रचार-प्रसार का हुनर सीख कर गया था।

जब पूरा देश अपने घरों में क़ैद है, तब लीग़ी मरकज़म 1500 लोग सोशल डिस्टेंसिंग की अपील को धता-बता कर एक साथ रह रहे थे। इन लोगों ने एक साथ जुमे की नमाज़ भी पढ़ी। यहां आए लोगों को मौलानाओं ने आश्वस्त करते हुए कहा था, डरो मत अल्लाह-ताला हमें कोरोना वाइरस से दूर रखेगा। अब बड़ी संख्या में इस कार्यक्रम मं शामिल हुए लोग कोरोना पॉजिटिव निकल रहे हैं। यह देखकर सरकार के हाथ-पांव फूल गए हैं।

दरअसल, सोमवार को तेलंगाना में छह लोगों की कोरोना वायरस से मौत की खबर आई तो पूरे देश में हड़कंप मच गया। ये सभी लोग तबलीग़ी आलमी मरकज़ में इस्लाम के प्रचार-प्रसार के लिए आयोजित मजहबी प्रोग्राम में हिस्सा लेकर अपने घरों को लौटे थे। कार्यक्रम में शामिल क़रीब नौ सौ लोगों में कोरोना के संक्रमण की आशंका बताई जा है। पूरे देश में लॉकडाउन के बावजूद इतनी बड़ी संख्या में राजधानी में हुए इस धार्मिक आयोजन ने सुरक्षा-व्यवस्था की पोल खोल दी है।

अब केंद्र और राज्य सरकारें तबलीग़ी आलमी मरकज़ में हुए तीन दिवसीय सम्मेलन में शामिल सभी लोगों को ढूंढकर उनकी जांच करने में जुटी हैं। ऐसे में, ज़ाहिर है, आपकी जिज्ञासा तबलीगी जमात के बारे में जानने की हो रही होगी, कि आखिर क्या है यह जमात और दिल्ली में इतनी बड़ी संख्या में क्यों हो रहा था इसका आयोजन? दरअसल, तबलीगी जमात मरकज का हिंदी में अर्थ होता है, अल्लाह की कही बातों का प्रचार करने वाले तालिबों के समूह का केंद्र। तबलीगी जमात से जुड़े लोग पारंपरिक इस्लाम को मानते हैं और इसी का प्रचार-प्रसार करते हैं। एक दावे के मुताबिक इस जमात के दुनिया भर में 15 करोड़ सदस्य हैं। बताया जाता है कि तबलीगी जमात आंदोलन को 1927 में मुहम्मद इलियास अल-कांधलवी ने हरियाणा के नूंह जिले के गांव से शुरू किया था।

तबलीगी जमात के मुख्य उद्देश्य "छह उसूल" (कलिमा, सलात, इल्म, इक्राम-ए-मुस्लिम, इख़्लास-ए-निय्यत, दावत-ओ-तबलीग़) हैं। एशिया में इनकी अच्छी खासी आबादी है। राजधानी दिल्ली का निजामुद्दीन में इस जमात का मुख्यालय है। इस जमात को अपनी पहली बड़ी मीटिंग करने में करीब 14 साल का समय लगा। अविभाजित भारत में ही इस जमात ने अपना आधार मज़बूत कर चुका था। 1941 में 25,000 तबलीग़ियों की पहली मीटिंग आयोजित हुई।

बहुमंजिला बंगलेवाली मस्जिद भीड़ वाली सड़क पर स्थित है। सूफी संत हजरत निजामुद्दीन औलिया का मकबरे इससे सटा हुआ है। इस्लाम मजहब के प्रचार प्रसार के लिए यहां हर साल तबलीग़ ढोल और नगाड़े की थापों के बीच सूफी की मजार पर चादर चढ़ते हैं। लंबी दाढ़ी रखने और लंबा कुरता और छोटा पैजामा पहनने वाले मौलवी इस्लाम का प्रचार-प्रचार करते हैं। तब्लीगी जमात के मरकज़ और निज़ामुद्दीन औलिया की मजार के बीच, कालजयी शायर मिर्ज़ा ग़ालिब की मजार है। समुदाय के कई लोग कहते हैं कि तबलीग़ी जमात के लोग धर्म प्रचारकों को पलायनवादी और दुनिया से कटे हुए होते हैं, क्योंकि ये लोग ज़मीन के नीचे और आकाश के ऊपर की बातों का ज़िक्र करते हैं।

तबलीग़ी का दावा है कि किसी के पास इस मरकज़ में आने वाले सदस्यों की सूची या रजिस्टर नहीं है, लेकिन इसके सदस्य दुनिया भर में फैले हुए हैं। धीरे-धीरे यह आंदोलन पूरी दुनिया में फैल गया और दुनिया के अलग-अलग देशों में हर साल इसका सालाना कार्यक्रम होता है। तबलीग़ी इस जमात का सबसे बड़ा जलसा हर साल बांग्लादेश में आयोजित होता है। भारत और पाकिस्तान में भी इस जमात का सालाना जलसा होता है। इन जलसों में दुनिया के क़रीब 200 देशों से बड़ी संख्या में मुसलमान शिरकत करते हैं। इस तरह तबलीगी आलमी मरकज़ के कारण भारत में आंशिक सामुदायिक विस्तार शुरू हो गया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने यह बात स्वीकार किया है कि स्थिति ख़तरनाक है।