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बुधवार, 27 अगस्त 2014

व्यंग्य : अच्छे दिन’ आ जाओ प्लीज!

वहां बहुत बड़ी भीड़ थी. लोगों में जिज्ञासा थी. सब के सब एक बंकर में झांकने की कोशिश कर रहे थे. जानना चाहते थे, उस ओर कौन है? दरअसल, कहा जा रहा था, अच्छे दिन आया, मगर बंकर में छिप गया. वह निकल ही नहीं रहा था. अच्छे दिन के छिपने की बात जंगल के आग की तरह फैली. अच्छे दिन को देखने के लिए आसपास के लोग जुटने लगे. इतनी भीड़ जुट रही थी तो बाज़ारवादी पीछे क्यों रहते. कंपनियों के विज्ञापन की बड़ी बड़ी होर्डिंग लग गई. अच्छे दिन आ जाओ. वेलकम अच्छे दिन. विज्ञापनों की भरमार लग गई.

वहीं एक ग़रीब महिला चिल्ला रही थी. ज़ोर-ज़ोर से बोल रही थी, -अच्छे दिन आ जाओ. निकल आओ अच्छे दिन. देखो न, लोग तुम्हारा कितना इंतज़ार कर रहे हैं. तुम्हें गले लगाना चाहते हैं. तुम्हें प्यार करना चाहते हैं. तुम्हें देखने को व्याकुल हैं. तुम इतना इंतज़ार क्यों करवा रहे हो. देश तुम्हारा इंतज़ार तीन महीने से कर रहा है. अब तो निकल आओ. मेरे लाडले अच्छे दिन. मेरे प्यारे अच्छे दिन. मेरे बाबू अच्छे दिन. मुझे तुम पर लाड़ आ रहा है.

लेकिन अच्छे दिन था कि निकलने का नाम ही नहीं ले रहा था. ज़िद्दिया गया था. पता नहीं क्या मांग थी उसकी, बाहर आने के लिए. उसकी शर्त कोई नहीं जानता था. बस सभी लोग मन से चाह रहे थे, अच्छे दिन बाहर आ जाए. कई लोग उसे कोस भी रहे थे कि इतना भाव खा रहा है. आ ही नहीं रहा है. लगता है विपक्ष से मिल गया है.

वहां की भीड़ भी अच्छे दिन को देखना चाहती थी. लिहाज़ा, लोग मनुहार कर रहे थे, अच्छे दिन आ जाओ. लेकिन अच्छे दिन अपनी ज़िद पर अड़ा था. वह आना ही नहीं चाहता था. निकल ही नहीं रहा था. सो, पास में अच्छे दिन आने के लिए आरती शुरू हो गई. कई लोग दुआएं करने लगे. ढेर सारे लोगों ने प्रे करना शुरू कर दिया. कुछ लोग वाहे गुरु से गुहार करने लगे. कैसे नहीं मानेगा, अच्छे दिन को तो अब आना ही पड़ेगा.

अच्छे दिन के बस आने की ख़बर मीडिया में आ गई. टीवी न्यूज़वाले पहुंच गए. सभी चैनलों की ओबी वैन खड़ी है गई. रिपोर्टर राउंड द क्लॉक लाइव देने लगे. अख़बारों में एक्सक्लूसिव रिपोर्ट छपने लगी. चाय वाले भी आए. खान-पान वाले आ गए. छोटे से गांव में रौनक इतनी बढ़ी कि शहर बन गया. लोग यही कह रहे थे, बस अच्छे दिन अब आया कि तब. पूरा देश अच्छे दिन का इंतज़ार करने लगा. जो आया लेकिन बंकर में छिप गया था.

एक बार टीवी में आ गया तो पूरा देश जान गया. जो जहां था, वहीं खड़े होकर अच्छे दिन का इंतज़ार करने लगा. चंद दिनों में पूरा देश जान गया, देश में अच्छे दिन आ गया है. वह किसी सीमावर्ती जगह किसी बंकर में छिप गया है. अपनी सेना उसे बाहर निकलकर ज़मीन पर लाना चाहती है.

हर ज़बान पर था, अच्छे दिन बस आने वाला ही है. लोग चुनाव के समय सुन रहे थे. सो अच्छे दिन के लिए जमकर वोट डाला था. सुना था, अच्छे दिन के आते ही भारत ग़रीबी-अमीरी का भेद मिट जाएगा. यहां ख़ूब कल-कारखाने लगेंगे. बेरोज़गारों को रोज़गार मिल जाएगा. कई लोगों को तो दो-दो तीन-तीन नौकरियां मिल जाएंगी. महंगाई दुम दबाकर भागेगी. सभी चीज़ों के दाम कम होंगे. हो सकता है हर चीज़ मुफ़्त मिलने लगे. अच्छे दिन के आने के बाद 24 घंटे बिजली मिलेगी.

भारत में अच्छे दिन के आने की रिपोर्ट सरहद पार गई. पाकिस्तान और चीन में ख़बर फैल गई, भारत में अच्छे दिन आ गया. पाकिस्तानी सेना से इसके बाद नहीं रहा गया. अच्छे दिन पर क़ब्ज़ा करने के लिए गोलीबारी करने लगी. भारत भी कम नहीं है. कसम ले लिया है, अहिंसा का पालन करते हुए अच्छे दिन की हिफ़ाज़त करेगा. उधर लद्दाख सीमा से चीनी सैनिक भी भारतीय सीमा में घुस रहे हैं. वे भी अच्छे दिन को देखना चाहते हैं. उन्हें डर हैं, अच्छे दिन के आ जाने से भारत उन्हें तरक़्क़ी में पीछे न छोड़ दे. दुनिया में सबसे ताक़तवर न हो जाए.

उधर, अच्छे दिन के आ जाने और बंकर में छिप जाने की ख़बर उड़ती हुई पीएमओ तक पहुंच गई. प्रधानमंत्री के सलाहकारों ने पीएम को मुबारक़वाद दी, अच्छे दिन आ गया है. बस उसके बंकर से बाहर निकालने की देर है. यह काम लाठीचार्ज और गोली चलाने में उस्ताद भारतीय पुलिस चुटकी में कर सकती है. यह काम उसे ही सौंप दिया जाना चाहिए. अच्छे दिन दुम दबाकर बाहर निकल आएगा.

प्रधानमंत्री ने सलाहकारों को लताड़ा, अच्छे दिन जी की मैं कितनी व्यकुलता से इंतज़ार कर रहा हूं. तुम लोगों को नहीं मालूम. इसीलिए तुम लोग उनके लिए असम्मान भरी बात कह रहे हो. जाओ अच्छे दिन जी के स्वागत की तैयारी करो. हम अच्छे दिन जी को सिर आंखों पर बिठाएंगे.

इसके बाद पूरा का पूरा पीएमओ बंकर के पास शिफ़्ट हो गया. गांव की बुढ़िया से कहा गया, प्रधानमंत्री के आने की ख़बर अच्छे दिन को दे. उससे कहे, अच्छे दिन बाहर आए. वह ज़रूर बाहर आ जाएगा. आख़िरकार गांव के लोगों ने पहली बार अपने आसमान में हेलिकॉप्टर उड़ते देखा.

प्रधानमंत्रीजी आ गए, प्रधानमंत्रीजी आ गए. अब तो अच्छे दिन को आना पड़ेगा. लोग चिल्लाने लगे.
बंकर के सामने कुर्सी लगाई गई. प्रधानमंत्री उस पर बैठ गए. बुढ़िया आदेश पाकर फिर बंकर के पास गई. धीरे से बोली –अच्छे दिन, आ जाओ. प्रधानमंत्रीजी तुम्हारा स्वागत करने के लिए ख़ुद आए हैं.

धीरे-धीरे हरकत हुई. बंकर से एक नंग-धड़ंग लड़का निकला. वह कांप रहा था. उसकी चड्ढी गीली हो गई थी. लोगों को लगा. अच्छे दिन उसके बाद निकलेगा.

तभी वहां के बच्चे चिल्लाने लगे, -यह तो अच्छे लाल है. यह तो अच्छे लाल है. यह अच्छे दिन नहीं है.

हां, माई बाप, मैं भी अच्छे दिन अच्छे दिन सुन रही थी. लिहाज़ा अपने बेटे अच्छे लाल का नाम अच्छे दिन कर दिया. उसे अच्छे दिन अच्छे दिन पुकारने लगी और वह शरमाकर बंकर में छिप गया था. बुढ़िया ने कांपते हुए बताया.

उसी समय होर्डिंग में एक व्यक्ति प्रकट हुआ. वह मुस्कराकर था. सिर हिलाते हुए गाने लगा, ऊल्लू बनाविंग-ऊल्लू बनाविंग!
 

  

2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

Mast hai

बेनामी ने कहा…

Mast hai