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सोमवार, 24 दिसंबर 2018

दादर कबूतरखाना - कबूतरों का आशियाना


हरिगोविंद विश्वकर्मा
सुपरस्टारद्वय रजनीकांत और अक्षय कुमार की फिल्म '2.0' ने बॉक्स ऑफिस पर धूम मचा दी है। इस फिल्म ने कमाई के मामले में पिछली कई फिल्मों को पीछे छोड़ दिया है। इस फिल्म में बताया गया है कि किस तरह पक्षियों की प्रजातियों के नष्ट होने से मानव गंभीर बीमारियों का शिकार हो रहा है। लिहाजा, फिल्म के जरिए पक्षियों की रक्षा का संदेश दिया गया है। पक्षियों की रक्षा का यह संदेश आज का नहीं, बल्कि तकरीबन नौ दशक पुराना है। पक्षियों को बचाने और उन्हें दाना-पानी देने के लिए ही मुंबई में जगह-जगह कबूतरखाना का निर्माण किया गया था। यह कार्य ब्रिटिश शासन के दौरान हुआ था। उसी क्रम में दादर रेलवे स्टेशन से वॉकिंग डिस्टेंस पर एक कबूतरखाना बनाया गया था। तब से यह कबूतरखाना पक्षियों खासकर कबूतरों का बसेरा रहा है। आज भी दादर का कबूतरखाना मुंबई के जाने पहचाने स्थलों में गिना जाता है।
एम.सी. जावले रोड के त्रिमुहानी पर स्थित कबूतरखाने की संरचना का निर्माण 1933 में किया गया था। तब यहां रोजाना करीब चार हजार कबूतर दाना चुगते थे और पानी पीते थे। यहां रोजाना करीब 15 सौ किलोग्राम चना, जवारी, बाजरा और मूंग कबूतर खाते थे और यहां रखा पानी पीते थे। कबूतरों को अन्न-जल देने का यह अभियान आज भी जारी है। शांतिनाथ जैन मंदिर, हनुमान मंदिर और एक मस्जिद से घिरा यह कबूतरखाना कभी बहुत शांतिप्रिय स्थल हुआ करता था। इसीलिए इसकी लिस्टिंग ग्रेड दो की विरासत के रूप में हुई है। इसका ग्रिल कॉस्ट आयरन का बनाया गया था। यह पुराना धान्यागार था। अब सूरत-ए-हाल एकदम बदल गया है। बड़ी संख्या में वाहनों के आवागमन और फेरीवालों के कारण यह स्थल बहुत भीड़-भाड़ वाला हो गया है। कभी यहां एक फव्वारा होता था, जो कई साल से बंद है। यह कबूतरखाना कभी शूटिंग के लिए फिल्मकारों की मनपसंद जगह होती थी। 
यह जाना पहचाना स्थान अपने जीवन के छठे-सातवें दशक में जी रहे नागरिकों के होठों पर मुस्कान लाता है। कई लोग आज भी कबूतरों को दाना देने नियमित आते हैं। पिछले सात दशक से इस विरासत का रखरखाव दादर कबूतरखाना ट्रस्ट दादर मार्केट की दुकानों से धन संग्रह करके करता है। बॉम्बे वेट्स कॉलेज और बीएसपीसीए के पशु चिकित्सक नियमित रूप से टीकाकरण के लिए इसका दौरा करते रहते हैं। कबूतरों को विटामिन की जरूरी खुराक देते हैं, जिससे आलसी कबूतर फिट और बीमारियों से दूर रहें और कबूतर खाने के आसपास के लोगों को इनके कारण कोई बीमारी न हो। इसके बावजूद कुछ समय पहले महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की ओर से दादर कबूतरखाना बंद कराने की मांग की गई थी। मनसे नगरसेवक संदीप देशपांडे का तर्क था, "कबूतरखाने के आसपास रहने वालों का कहना है कि कबूतरखाना की वजह से तरह-तरह की बीमारियां फैल रही हैं और लोग बीमार हो रहे हैं। जनता के हित में हम लोगों ने इस कबूतरखाने को बंद करने के लिए बीएमसी कमिशनर अजय मेहता को पत्र लिखा।" हालांकि भाजपा के नगरसेवकों ने विराध किया था और कहा था कि इसका सुंदरीकरण करके इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाए। दूसरी ओर वन्यजीव प्रेमी लता अंकलेकर कहती हैं, "कबूतर कोई बीमारी नहीं फैलाते हैं। जो अपनी सेहत का ध्यान नहीं देते हैं, वे खुद बीमार पड़ते हैं और आरोप कबूतरों पर लगाते हैं। मैं 25 कबूतरखाने के पास ही 25 बिल्लियों के साथ रहती हूं। उनकी गंदगी खुद साफ करती हूं, मुझे कोई बीमारी नहीं लगती।"


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