हरिगोविंद विश्वकर्मा
यूं तो माहे रमज़ान हर मुसलमान के लिए खास होता है और ज़्यादातर मुलमान पूरे
महीने भर रोजा रखते हैं। रोजे के इस महीने में दक्षिण मुंबई की मशहूर मस्जिद
मीनारा मस्जिद में नमाज पढ़ने और सजदा करने का मौका मिल जाए तो इबादत में चांर
चांद लग जाता है। इसीलिए रमजान महीने में मीनारा मस्जिद में चहल-पहल बहुत ज्यादा
बढ़ जाती है। सबसे बड़ी बात महीने भर यहां रोजाना ढाई हजार लोग एक साथ पांचों वक्त
की नमाज अता करने हैं।
मीनारा मस्जिद मुंबई की सबसे पुरानी मस्जिदों में से एक रही है। इसका निर्माण
सन् 1835-1840 के बीच हुआ। मीनारा मस्जिद के मुख्य ट्रस्टी जनाब अब्दुल वहाब बताते
हैं कि मीनारा मस्जिद के निर्माण के बाद से ही यहां नमाज अता करने का सिलसिला शुरू
हो गया था, लेकिन मीनारा मस्जिद की ओनर मीनारा मस्जिद ट्रस्ट का पंजीकरण बॉम्बे की
ब्रिटिश हुकूमत में चैरिटी विभाग में 30-35 साल बाद 1879 में हो पाया। दो मंजिली
(ग्राउंड फ्लस वन प्लस टैरेस) यह पाक मस्जिद 1850 वर्ग मीटर क्षेत्रफल में फैली
है। इसके पहले मुख्य ट्रस्टी जनाब अली मोहम्मद मर्चेंट थे।
मीनारा मस्जिद का निर्माण हलाई मेमन जमात के कारोबारी परिवार ने करवाया। इस्लाम
में बहुत ज्यादा आस्था रखने वाले हलाई मेमन जमात का परिवार अपनी आमदमी का एक बड़ा
हिस्सा धर्म-कर्म, इबादत और दान पर खर्च कर देता था। मीनारा मस्जिद और दूसरे
धर्मस्थलों का निर्माण उसके परोपकार का हिस्सा था। यह मस्जिद रंग बिरंगी सजावट के
चलते रात में जगमग करती रहती है।
दरअसल, बॉम्बे के सात टापुओं में से दो बॉम्बे और मजगांव द्वापों को रिक्लेम
करने के बाद बनी जगह पर मेमन समुदाय के कारोबारी आकर बसे। उस समय आसपास कोई मस्जिद
नहीं थी। इससे जमात के लोगों को नमाज अता करने में असुविधा होती थी। उसी असुविधा
को दूर करने के लिए मीनारा मस्जिद का निर्माण कराने का फैसला लिया। जनाब अब्दुल
वहाब बताते हैं कि पूरा मोहम्मद अली रोड और आसपास के इलाके को मेमन समुदाय ने ही
बसाया और गुलजार किया है। मेमन समुदाय के कारोबारियों ने ही उस दौर में मीनारा
मस्जिद के अलावा जकारिया मस्जिद समेत कई मस्जिदों और गरगाहों का निर्माण करवाया।
मीनारा मस्जिद की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इस मस्जिद परिसर में एक दरगाह भी है
और यहां अजमेर शरीफ की तरह कई सूफी संतों की मजारें भी है। इस कारण नमाज के लिए
इसकी अहमियत बहुत बढ़ जाती है। मीनारा मस्जिद एक तरह से मोहम्मद अली रोड ही नहीं
पूरी दक्षिण मुंबई की ताज की तरह है। पिछले साल इस मस्जिद में सोलर सिस्टम लगा
दिया गया। यहां की बिजली की खपत का 35 हिस्सा सोलर ऊर्जा से आता है। उसके लिए
टैरेस पर सोलर पैनल लगाए गए है। मीनारा मज्सिद मुंबई की पहली मस्जिद है जहां
गैरपरंपरागत ऊर्जा का इस्तेमाल हो रहा है। कुल मिलाकर यह मस्जिद विश्व बंधुत्व एवं
भाईचारे का संदेश देती है।
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