कुलभूषण जाधव भारत वापस आएंगे या सरबजीत जैसा होगा हाल?
हरिगोविंद विश्वकर्मा
जम्मू कश्मीर के पुलवामा आतंकी हमले में शहीद जवानों को श्रद्धांजलि देने और पाकिस्तान को कड़ा सबक़ सिखाने के अलावा एक और बात आजकल हर भारतीय के मन में कौंध रही है कि क्या भारत पूर्व इंडियन नेवी ऑफ़िसर कुलभूषण जाधव को सकुशल स्वदेश लाने में सफल हो सकेगा या इस भारतीय सपूत का हश्र सरबजीत सिंह की तरह ही होगा?
दुनिया देख चुकी है कि पाकिस्तान के लाहौर की सेंट्रल जेल में कैसे सरबजीत को पीट पीटकर मार डाला गया था। सरबजीत के बारे में पाकिस्तान की बताई कहानी के अनुसार, 26 अप्रैल 2013 को तक़रीबन दोपहर के 4.30 बजे सेंट्रल जेल, लाहौर में कुछ कैदियों ने ईंट, लोहे की सलाखों और रॉड से सरबजीत पर हमला कर दिया था। नाजुक हालत में सरबजीत को लाहौर के जिन्ना अस्पताल में भर्ती करवाया गया। इलाज के दौरान वह कोमा में चले गए और 1 मई 2013 को जिन्ना हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने सरबजीत को ब्रेनडेड घोषित कर दिया। लिहाज़ा उनका शव भारत वापस आया था।
इसे भी पढ़ें - क्या मोदी का अंधविरोध ही मुसलमानों का एकमात्र एजेंडा है?
कुलभूषण जाधव को पाकिस्तान की सैनिक अदालत ने फांसी की सज़ा सुनाई है और वह फिलहाल जेल में बंद है। भारत की ओर से पाकिस्तान के इस एकतरफा फ़ैसले को इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस को चुनौती दी है। इस केस की अगली सुनवाई 19 फरवरी से हेग में शुरू हो रही है। इस मुक़दमे में इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस में भारत का पक्ष बेहद मज़बूत है। अगर भारत की ओर से इस केस में किसी तरह की बड़ी भूल या ब्लंडर नहीं किया गया तो इस बात की पूरी संभावना है कि अंतरराष्ट्रीय अदालत भारत के पक्ष में फ़ैसला दे सकता है। अगर यह मुमकिन हुआ तो भारतीय विदेश नीति के लिए यह इतिहास की सबसे बड़ी जीत होगी। हेग में इस केस की अगली सुनवाई के दौरान पाकिस्तान अपना पक्ष रखेगा। इस तरह कह सकते हैं कि जाधव का मामला आने वाले दिनों में एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्ख़ियों में आने वाला है।
अंतरराष्ट्रीय अदालत में पिछले साल 31 दिसंबर, 2018 को पाकिस्तान ने जाने या अनजाने एक ऐसा क़दम उठाया जिससे भारत और कुलभूषण जाधव का पक्ष और भी ज़्यादा मज़बूत हो गया। पाकिस्तानी प्रतिनिधि ने अंतरराष्ट्रीय अदालत के उस फ़ैसले के पक्ष में वोट दिया, जिसका संदर्भ भारत ने कुलभूषण जाधव के केस में दिया है। पाकिस्तान के इस क़दम को कुलभूषण केस में किया गया सेल्फ़-गोल माना गया था। दरअसल, पहले सुनवाई के दौरान भारत ने कुलभूषण को कांसुलर ऐक्सेस न देने के मामले में 2004 के अवीना केस और दूसरे मेक्सिकन नागरिकों के संदर्भ में इंटरनेशनल कोर्ट के फ़ैसले से जोड़ दिया था। इस केस में अमेरिका पर वियना कन्वेंशन का उल्लंघन करने का आरोप साबित हुआ था। अमेरिका ने मेक्सिको को मौत की सजा पाए मेक्सिकन नागरिकों को कांसुलर ऐक्सेस नहीं दी थी।
इसे भी पढ़ें - ट्रिपल तलाक़ - राजीव गांधी की ग़लती को सुधारने का समय
दरअसल, पाकिस्तान ने उस समय भारत समेत 68 दूसरे देशों के साथ संयुक्त राष्ट्र के उस प्रस्ताव के समर्थन में वोट किया था, जिसमें कहा गया है कि अमेरिका अंतरराष्ट्रीय अदालत के अवीना फ़ैसले को तत्काल जस का तस लागू करे। अमेरिका 14 साल से लागू करने से इनकार कर रहा है। चूंकि पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय अदालत के फ़ैसले के पक्ष में वोट दिया है, इसलिए यही फ़ैसला कुलभूषण के मामले में अब उसके गले की हड्डी बनने जा रहा है। भारत की ओर से निश्चित तौर पर कोर्ट के समक्ष अवीना जजमेंट के समर्थन में पाकिस्तान के वोट देने का मसला भी उठाया जाएगा।
अंतरराष्ट्रीय अदालत में जिरह के दौरान भारत की ओर से यही पूछा जाएगा कि अगर पाकिस्तान अवीना जजमेंट को लागू करने का पक्षधर है, जो वस्तुतः भारत के स्टैड का केंद्र बिंदु है तो वह कुलभूषण जाधव केस में उसी फ़ैसले को मानने से इनकार क्यों कर रहा है? अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में पाकिस्तान अपने स्टैड के ख़िलाफ़ जाकर वोट दे दिया था। इससे पहले वह कहता था कि कुलभूषण जाधव का मामला अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है। जाधव को जासूस बताकर पाकिस्तान की सैन्य अदालत मौत की सजा सुना चुकी है और इसके बाद भी भारत को जाधव तक पहुंचने की राजनयिक पहुंच की अनुमति नहीं दी। कुलभूषण के बारे में भारत की ओर से 16 बार राजनयिक के ज़रिए जानकारी मांगी गई, लेकिन पाकिस्तान लगातार इनकार करता रहा और कोई जानकारी नहीं दी।
वस्तुत: वियना संधि समझने के लिए अवीना केस ठीक से समझना बहुत ज़रूरी है। अवीना केस मेक्सिको के 54 नागरिकों का मामला है, जिन्हें अमेरिका के विभिन्न राज्यों में मौत की सज़ा सुनाई गई थी। मेक्सिको ने जनवरी 2003 में अमेरिका के ख़िलाफ़ अंतरराष्ट्रीय अदालत की शरण में पहुंचा। मेक्सिको ने कहा कि उसके नागरिकों को गिरफ़्तार कर मुक़दमा चलाया गया और दोषी ठहराकर मौत की सज़ा सुना दी गई, जो वियना कन्वेंशन के अनुच्छेद 36 का सीधा उल्लंघन है। दरअसल, दुनिया के सभी स्वतंत्र एवं संप्रभु देशों के बीच आपसी राजनयिक संबंध को लेकर राष्ट्र संघ की पहल पर सबसे पहले सन् 1961 में वियना सम्मेलन हुआ। इसमें राजनियकों को विशेष अधिकार देने के लिए अंतरराष्ट्रीय संधि का प्रावधान किया गया। 1963 में इस संधि को और विस्तृत रूप दिया गया। इसे ‘वियना कन्वेंशन ऑन कांसुलर रिलेशंस’ कहा गया। इसका मकसद विभिन्न देशों के बीच कांसुलर रिलेशंस का ख़ाका तैयार करना था। किसी देश का कांसुल दूसरे देश में दो तरह के काम करता है। पहला, मेजबान देश में अपने नागरिकों के हितों की रक्षा करना। दूसरा, उस देश के साथ आर्थिक और वाणिज्यिक संबंध स्थापित करना।
इसे भी पढ़ें - इजराइल से क्यों नफ़रत करते हैं मुस्लिम ?
इस अहम अंतरराष्ट्रीय संधि में कुल 79 अनुच्छेद हैं, जिनमें अनुच्छेद 36 सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण हैं। इसके तहत अगर कोई विदेशी नागरिक गिरफ़्तार किया गया है या हिरासत में लिया गया है तो बिना किसी देरी के उसका (गिरफ्तार व्यक्ति का) उसके देश के दूतावास या कांसुलेट से तुरंत संपर्क कराया जाना चाहिए और गिरफ़्तारी या हिरासत में रखने की सूचना उन्हें दी जानी चाहिए। गिरफ़्तार विदेशी नागरिक के आग्रह पर पुलिस को संबंधित दूतावास या राजनयिक को फ़ैक्स करके इसकी सूचना भी देनी पड़ेगी। फ़ैक्स में गिरफ़्तार व्यक्ति का नाम, गिरफ़्तारी की जगह और वजह भी बतानी होगी। गिरफ़्तार विदेशी नागरिक को किसी भी सूरत में राजनयिक पहुंच देनी होगी। वियना संधि का ड्राफ्ट इंटरनेशनल लॉ कमीशन ने तैयार किया। 1964 में यह संधि लागू हुई। फरवरी 2017 तक इस संधि पर कुल 191 देशों ने दस्तख़त कर चुके थे। अंतरराष्ट्रीय अदालत ने अमेरिका को वियना कन्वेंशन का खुल्लम खुल्ला उल्लंघन करने का दोषी ठहराया और अपने फ़ैसले में कहा कि अमेरिका मेक्सिकन नागिरकों को सुनाई गई सजा पर फिर से विचार करे और मेक्सिको को कांसुलर ऐक्सेस दे।
अमेरिका को अंतरराष्ट्रीय अदालत ने वियना संधि का उल्लंघन करने का दोषी ठहराया और कहा कि अमेरिका सजा पर पुनर्विचार करे और मेक्सिको को कांसुलर ऐक्सेस दे। भारत ने इंटरनेशनल कोर्ट में कुलभूषण का केस इसी संधि के तहत उठाया है। अनुच्छेद 36 के प्रावधानों का हवाला देते हुए भारत ने कहा कि पाकिस्तान कुलभूषण के बारे में कोई जानकारी क्यों नहीं दे रहा है? जाधव को राजनयिक पहुंच दूर क्यों रखा जा रहा है? भारत कुलभूषण के ख़िलाफ़ दायर आरोपपत्र की कॉपी मांग रहा है, लेकिन पाकिस्तान साफ़ इनकार कर रहा है। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून के जानकारों का भी मानना है कि पाकिस्तान तथ्य जिस तरह छुपा रहा है या सूचना देने से आनाकानी कर रहा है, वह संदेह पैदा कर रहा है। कम से कम कोई देश किसी भी विदेशी जासूस के साथ ऐसा सलूक नहीं करता कि संबंधित देश को उसके बारे में कोई जानकारी ही न दी जाए। हेग में पिछली सुनवाई में भारत ने अपना पक्ष बड़ी मज़बूती से रखा था। कुलभूषण की गिरफ़्तारी को भारत ने वियना संधि का उल्लंघन साबित कर किया तो अदालत ने इस्लामाबाद को जमकर लताड़ लगाई थी। इसलिए इस बार इमरान ख़ान सरकार ज़्यादा सतर्क है। पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कहा है कि कथित भारतीय जासूस के खिलाफ पक्के सबूत पेश करेगा। पाकिस्तान की कानूनी टीम इस पर दिन रात काम कर रही है।
इसे भी पढ़ें - तो क्या बचाया जा सकता था गांधीजी को?
पाकिस्तान का आरोप है कि कुलभूषण जाधव भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के लिए काम करते थे। वह ईरान से इलियास हुसैन मुबारक़ पटेल के नकली नाम पर पाकिस्तान आया जाया करते थे। इस्लामाबाद का कहना है कि 29 मार्च 2016 को उन्हें बलूचिस्तान प्रांत के किसी जगह से गिरफ़्तार किया गया। पाकिस्तान का दावा है कि कुलभूषण बलूचिस्तान में विध्वंसक गतिविधियों में शामिल रहे हैं। इसी आरोप के लिए 11 अप्रैल 2017 को पाकिस्तान के मिलिट्री कोर्ट ने कुलभूषण को मौत की सजा सुनाई, जिसका भारत सरकार व भारतीय जनता ने भारी विरोध किया। भारत सारे आरोपों से इनकार करता आया है। उसका कहना है कि कुलभूषण को ईरान से किडनैप कर लिया गया। भारत हमेशा उन्हें इंडियन नेवी से रिटायर्ड ऑफ़िसर ही कहता रहा है जो ईरान में अपना बिज़नेस कर रहे थे। भारत ने साफ़ कर दिया है कि कुलभूषण जाधव का देश की सरकार से कोई लेना-देना नहीं है।भारत का दावा है कि कुलभूषण को ईरान से किडनैप किया गया। सन् 1970 में महाराष्ट्र के सांगली में जन्मे कुलभूषण के पिता सुधीर जाधव मुंबई पुलिस में वरिष्ठ अधिकारी रहे हैं। उनका बचपन दक्षिण मुंबई में गुजरा था। उम्र में बड़े उन्हें भूषण और छोटे उन्हें “भूषण दादा” कहते थे। फुटबॉल के शौक़ीन कुलभूषण ने 1987 में नेशनल डिफेन्स अकादमी में प्रवेश लिया। 1991 में नौसेना में शामिल हुए। सेवा-निवृति के बाद ईरान में व्यापार शुरू किया था। उसी सिलसिले में वह ईरान में थे, जहां से अपहृत करके उन्हें पाकिस्तान ले जाया गया था।
भारत में लोग कुलभूषण की गिरफ़्तारी की ख़बर आने के बाद से ही ख़ासे परेशान हैं। वॉट्सअप, फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल नेटवर्किंग पर कुलभूषण को बचाने के लिए कई साल से मुहिम चल रही है और उन्हें किसी भी क़ीमत पर सकुशल देश में लाने की अपील प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से की जा रही है। भारत में लोगों का मानना है कि सरकार को अपनी पूरी ताकत झोंक देनी चाहिए ताकि कुलभूषण को सही सलामत वापस स्वदेश वापस लाया जा सके।
हरिगोविंद विश्वकर्मा
जम्मू कश्मीर के पुलवामा आतंकी हमले में शहीद जवानों को श्रद्धांजलि देने और पाकिस्तान को कड़ा सबक़ सिखाने के अलावा एक और बात आजकल हर भारतीय के मन में कौंध रही है कि क्या भारत पूर्व इंडियन नेवी ऑफ़िसर कुलभूषण जाधव को सकुशल स्वदेश लाने में सफल हो सकेगा या इस भारतीय सपूत का हश्र सरबजीत सिंह की तरह ही होगा?
दुनिया देख चुकी है कि पाकिस्तान के लाहौर की सेंट्रल जेल में कैसे सरबजीत को पीट पीटकर मार डाला गया था। सरबजीत के बारे में पाकिस्तान की बताई कहानी के अनुसार, 26 अप्रैल 2013 को तक़रीबन दोपहर के 4.30 बजे सेंट्रल जेल, लाहौर में कुछ कैदियों ने ईंट, लोहे की सलाखों और रॉड से सरबजीत पर हमला कर दिया था। नाजुक हालत में सरबजीत को लाहौर के जिन्ना अस्पताल में भर्ती करवाया गया। इलाज के दौरान वह कोमा में चले गए और 1 मई 2013 को जिन्ना हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने सरबजीत को ब्रेनडेड घोषित कर दिया। लिहाज़ा उनका शव भारत वापस आया था।
इसे भी पढ़ें - क्या मोदी का अंधविरोध ही मुसलमानों का एकमात्र एजेंडा है?
कुलभूषण जाधव को पाकिस्तान की सैनिक अदालत ने फांसी की सज़ा सुनाई है और वह फिलहाल जेल में बंद है। भारत की ओर से पाकिस्तान के इस एकतरफा फ़ैसले को इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस को चुनौती दी है। इस केस की अगली सुनवाई 19 फरवरी से हेग में शुरू हो रही है। इस मुक़दमे में इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस में भारत का पक्ष बेहद मज़बूत है। अगर भारत की ओर से इस केस में किसी तरह की बड़ी भूल या ब्लंडर नहीं किया गया तो इस बात की पूरी संभावना है कि अंतरराष्ट्रीय अदालत भारत के पक्ष में फ़ैसला दे सकता है। अगर यह मुमकिन हुआ तो भारतीय विदेश नीति के लिए यह इतिहास की सबसे बड़ी जीत होगी। हेग में इस केस की अगली सुनवाई के दौरान पाकिस्तान अपना पक्ष रखेगा। इस तरह कह सकते हैं कि जाधव का मामला आने वाले दिनों में एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्ख़ियों में आने वाला है।
अंतरराष्ट्रीय अदालत में पिछले साल 31 दिसंबर, 2018 को पाकिस्तान ने जाने या अनजाने एक ऐसा क़दम उठाया जिससे भारत और कुलभूषण जाधव का पक्ष और भी ज़्यादा मज़बूत हो गया। पाकिस्तानी प्रतिनिधि ने अंतरराष्ट्रीय अदालत के उस फ़ैसले के पक्ष में वोट दिया, जिसका संदर्भ भारत ने कुलभूषण जाधव के केस में दिया है। पाकिस्तान के इस क़दम को कुलभूषण केस में किया गया सेल्फ़-गोल माना गया था। दरअसल, पहले सुनवाई के दौरान भारत ने कुलभूषण को कांसुलर ऐक्सेस न देने के मामले में 2004 के अवीना केस और दूसरे मेक्सिकन नागरिकों के संदर्भ में इंटरनेशनल कोर्ट के फ़ैसले से जोड़ दिया था। इस केस में अमेरिका पर वियना कन्वेंशन का उल्लंघन करने का आरोप साबित हुआ था। अमेरिका ने मेक्सिको को मौत की सजा पाए मेक्सिकन नागरिकों को कांसुलर ऐक्सेस नहीं दी थी।
इसे भी पढ़ें - ट्रिपल तलाक़ - राजीव गांधी की ग़लती को सुधारने का समय
दरअसल, पाकिस्तान ने उस समय भारत समेत 68 दूसरे देशों के साथ संयुक्त राष्ट्र के उस प्रस्ताव के समर्थन में वोट किया था, जिसमें कहा गया है कि अमेरिका अंतरराष्ट्रीय अदालत के अवीना फ़ैसले को तत्काल जस का तस लागू करे। अमेरिका 14 साल से लागू करने से इनकार कर रहा है। चूंकि पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय अदालत के फ़ैसले के पक्ष में वोट दिया है, इसलिए यही फ़ैसला कुलभूषण के मामले में अब उसके गले की हड्डी बनने जा रहा है। भारत की ओर से निश्चित तौर पर कोर्ट के समक्ष अवीना जजमेंट के समर्थन में पाकिस्तान के वोट देने का मसला भी उठाया जाएगा।
अंतरराष्ट्रीय अदालत में जिरह के दौरान भारत की ओर से यही पूछा जाएगा कि अगर पाकिस्तान अवीना जजमेंट को लागू करने का पक्षधर है, जो वस्तुतः भारत के स्टैड का केंद्र बिंदु है तो वह कुलभूषण जाधव केस में उसी फ़ैसले को मानने से इनकार क्यों कर रहा है? अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में पाकिस्तान अपने स्टैड के ख़िलाफ़ जाकर वोट दे दिया था। इससे पहले वह कहता था कि कुलभूषण जाधव का मामला अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है। जाधव को जासूस बताकर पाकिस्तान की सैन्य अदालत मौत की सजा सुना चुकी है और इसके बाद भी भारत को जाधव तक पहुंचने की राजनयिक पहुंच की अनुमति नहीं दी। कुलभूषण के बारे में भारत की ओर से 16 बार राजनयिक के ज़रिए जानकारी मांगी गई, लेकिन पाकिस्तान लगातार इनकार करता रहा और कोई जानकारी नहीं दी।
वस्तुत: वियना संधि समझने के लिए अवीना केस ठीक से समझना बहुत ज़रूरी है। अवीना केस मेक्सिको के 54 नागरिकों का मामला है, जिन्हें अमेरिका के विभिन्न राज्यों में मौत की सज़ा सुनाई गई थी। मेक्सिको ने जनवरी 2003 में अमेरिका के ख़िलाफ़ अंतरराष्ट्रीय अदालत की शरण में पहुंचा। मेक्सिको ने कहा कि उसके नागरिकों को गिरफ़्तार कर मुक़दमा चलाया गया और दोषी ठहराकर मौत की सज़ा सुना दी गई, जो वियना कन्वेंशन के अनुच्छेद 36 का सीधा उल्लंघन है। दरअसल, दुनिया के सभी स्वतंत्र एवं संप्रभु देशों के बीच आपसी राजनयिक संबंध को लेकर राष्ट्र संघ की पहल पर सबसे पहले सन् 1961 में वियना सम्मेलन हुआ। इसमें राजनियकों को विशेष अधिकार देने के लिए अंतरराष्ट्रीय संधि का प्रावधान किया गया। 1963 में इस संधि को और विस्तृत रूप दिया गया। इसे ‘वियना कन्वेंशन ऑन कांसुलर रिलेशंस’ कहा गया। इसका मकसद विभिन्न देशों के बीच कांसुलर रिलेशंस का ख़ाका तैयार करना था। किसी देश का कांसुल दूसरे देश में दो तरह के काम करता है। पहला, मेजबान देश में अपने नागरिकों के हितों की रक्षा करना। दूसरा, उस देश के साथ आर्थिक और वाणिज्यिक संबंध स्थापित करना।
इसे भी पढ़ें - इजराइल से क्यों नफ़रत करते हैं मुस्लिम ?
इस अहम अंतरराष्ट्रीय संधि में कुल 79 अनुच्छेद हैं, जिनमें अनुच्छेद 36 सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण हैं। इसके तहत अगर कोई विदेशी नागरिक गिरफ़्तार किया गया है या हिरासत में लिया गया है तो बिना किसी देरी के उसका (गिरफ्तार व्यक्ति का) उसके देश के दूतावास या कांसुलेट से तुरंत संपर्क कराया जाना चाहिए और गिरफ़्तारी या हिरासत में रखने की सूचना उन्हें दी जानी चाहिए। गिरफ़्तार विदेशी नागरिक के आग्रह पर पुलिस को संबंधित दूतावास या राजनयिक को फ़ैक्स करके इसकी सूचना भी देनी पड़ेगी। फ़ैक्स में गिरफ़्तार व्यक्ति का नाम, गिरफ़्तारी की जगह और वजह भी बतानी होगी। गिरफ़्तार विदेशी नागरिक को किसी भी सूरत में राजनयिक पहुंच देनी होगी। वियना संधि का ड्राफ्ट इंटरनेशनल लॉ कमीशन ने तैयार किया। 1964 में यह संधि लागू हुई। फरवरी 2017 तक इस संधि पर कुल 191 देशों ने दस्तख़त कर चुके थे। अंतरराष्ट्रीय अदालत ने अमेरिका को वियना कन्वेंशन का खुल्लम खुल्ला उल्लंघन करने का दोषी ठहराया और अपने फ़ैसले में कहा कि अमेरिका मेक्सिकन नागिरकों को सुनाई गई सजा पर फिर से विचार करे और मेक्सिको को कांसुलर ऐक्सेस दे।
अमेरिका को अंतरराष्ट्रीय अदालत ने वियना संधि का उल्लंघन करने का दोषी ठहराया और कहा कि अमेरिका सजा पर पुनर्विचार करे और मेक्सिको को कांसुलर ऐक्सेस दे। भारत ने इंटरनेशनल कोर्ट में कुलभूषण का केस इसी संधि के तहत उठाया है। अनुच्छेद 36 के प्रावधानों का हवाला देते हुए भारत ने कहा कि पाकिस्तान कुलभूषण के बारे में कोई जानकारी क्यों नहीं दे रहा है? जाधव को राजनयिक पहुंच दूर क्यों रखा जा रहा है? भारत कुलभूषण के ख़िलाफ़ दायर आरोपपत्र की कॉपी मांग रहा है, लेकिन पाकिस्तान साफ़ इनकार कर रहा है। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून के जानकारों का भी मानना है कि पाकिस्तान तथ्य जिस तरह छुपा रहा है या सूचना देने से आनाकानी कर रहा है, वह संदेह पैदा कर रहा है। कम से कम कोई देश किसी भी विदेशी जासूस के साथ ऐसा सलूक नहीं करता कि संबंधित देश को उसके बारे में कोई जानकारी ही न दी जाए। हेग में पिछली सुनवाई में भारत ने अपना पक्ष बड़ी मज़बूती से रखा था। कुलभूषण की गिरफ़्तारी को भारत ने वियना संधि का उल्लंघन साबित कर किया तो अदालत ने इस्लामाबाद को जमकर लताड़ लगाई थी। इसलिए इस बार इमरान ख़ान सरकार ज़्यादा सतर्क है। पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कहा है कि कथित भारतीय जासूस के खिलाफ पक्के सबूत पेश करेगा। पाकिस्तान की कानूनी टीम इस पर दिन रात काम कर रही है।
इसे भी पढ़ें - तो क्या बचाया जा सकता था गांधीजी को?
पाकिस्तान का आरोप है कि कुलभूषण जाधव भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के लिए काम करते थे। वह ईरान से इलियास हुसैन मुबारक़ पटेल के नकली नाम पर पाकिस्तान आया जाया करते थे। इस्लामाबाद का कहना है कि 29 मार्च 2016 को उन्हें बलूचिस्तान प्रांत के किसी जगह से गिरफ़्तार किया गया। पाकिस्तान का दावा है कि कुलभूषण बलूचिस्तान में विध्वंसक गतिविधियों में शामिल रहे हैं। इसी आरोप के लिए 11 अप्रैल 2017 को पाकिस्तान के मिलिट्री कोर्ट ने कुलभूषण को मौत की सजा सुनाई, जिसका भारत सरकार व भारतीय जनता ने भारी विरोध किया। भारत सारे आरोपों से इनकार करता आया है। उसका कहना है कि कुलभूषण को ईरान से किडनैप कर लिया गया। भारत हमेशा उन्हें इंडियन नेवी से रिटायर्ड ऑफ़िसर ही कहता रहा है जो ईरान में अपना बिज़नेस कर रहे थे। भारत ने साफ़ कर दिया है कि कुलभूषण जाधव का देश की सरकार से कोई लेना-देना नहीं है।भारत का दावा है कि कुलभूषण को ईरान से किडनैप किया गया। सन् 1970 में महाराष्ट्र के सांगली में जन्मे कुलभूषण के पिता सुधीर जाधव मुंबई पुलिस में वरिष्ठ अधिकारी रहे हैं। उनका बचपन दक्षिण मुंबई में गुजरा था। उम्र में बड़े उन्हें भूषण और छोटे उन्हें “भूषण दादा” कहते थे। फुटबॉल के शौक़ीन कुलभूषण ने 1987 में नेशनल डिफेन्स अकादमी में प्रवेश लिया। 1991 में नौसेना में शामिल हुए। सेवा-निवृति के बाद ईरान में व्यापार शुरू किया था। उसी सिलसिले में वह ईरान में थे, जहां से अपहृत करके उन्हें पाकिस्तान ले जाया गया था।
भारत में लोग कुलभूषण की गिरफ़्तारी की ख़बर आने के बाद से ही ख़ासे परेशान हैं। वॉट्सअप, फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल नेटवर्किंग पर कुलभूषण को बचाने के लिए कई साल से मुहिम चल रही है और उन्हें किसी भी क़ीमत पर सकुशल देश में लाने की अपील प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से की जा रही है। भारत में लोगों का मानना है कि सरकार को अपनी पूरी ताकत झोंक देनी चाहिए ताकि कुलभूषण को सही सलामत वापस स्वदेश वापस लाया जा सके।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें