अलविदा ड्रिबलिंग के
बादशाह मोहम्मद शाहिद...
हरिगोविंद
विश्वकर्मा
दुनिया भर में अपनी ‘ड्रिबलिंग’ का लोहा मनवाने वाले दिग्गज खिलाड़ी मोहम्मद शाहिद जैसा खिलाड़ी भारतीय हॉकी में शायद ही देखने को मिले। शाहिद को लेफ़्ट इन
पोजिशन पर खेलने वाला भारत का सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी माना जाता है। हॉकी की दुनिया
में उन्हें ड्रिब्लिंग का बादशाह भी कहा जाता था। ज़फर इक़बाल के साथ भारत की
अग्रिम पंक्ति में उनकी जोड़ी से हर प्रतिद्वंद्वी टीम थर्राती थी। हॉकी में उनके
योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें 1981 में पद्मश्री से सम्मानित किया था।
उसी साल उन्हें अर्जुन पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।
इस पूर्व भारतीय
हॉकी कप्तान का लंबी बीमारी के बाद आज (20 जुलाई 2016) गुड़गांव के मेदांता
अस्पताल में निधन हो गया। मैं जब बनारस में यूएनआई का ब्यूरो चीफ़ था तब मेरे
सहकर्मी फोटोग्राफर विजय यादव मुझे शाहिद से मिलवाने उनके घर ले गए थे। इसके बाद
शाहिद अकसर दशाश्वमेध घाट पर आते और मेरी उनसे मुलाक़ात होती थी।
वाराणसी में 14
अप्रैल 1960 को जन्मे शाहिद किशोरावस्था से ज़बरदस्त क्रिकेट खेलते थे। इसीलिए
उन्हें 1979 में फ्रांस में महज़ 19 साल की उम्र में जूनियर हॉकी विश्वकप में बतौर
फॉरवर्ड खिलाड़ी देश का प्रतिनिधित्व करने का मौक़ा मिला। उनकी प्रतिभा को देखकर
फौरन उन्हें सीनियर टीम में ले लिया गया और भास्करन के नेतृत्व में उन्हों मास्को
ओलिंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उस बार भारत आख़िरी बार ओलंपिक खेल में
गोल्ड मेडल जीता था। भारत ने मॉस्को ओलंपिक के बाद ओलंपिक में पदक नहीं जीता। 1982
और 1986 एशियाड खेलों में सिल्वर और ब्रॉन्ज मेडल दिलाने में इस खिलाड़ी की अहम
भूमिका रही थी।
शाहिद ने अपने 11
साल के इंटरनेशनल हॉकी करियर के दौरान कुल 167 मैच खेले और 66 गोल किये। उनका
करियर वर्ष 1980 से लेकर 1990 तक चला। अपने जादुई खेल से विपक्षी रक्षापंक्ति को
परेशान करने वाले बनारस के इस खिलाड़ी ने चैंपियंस ट्राफी में पाकिस्तान के खिलाफ
वर्ष 1980 में करियर का आगाज किया और आखिरी मैच 1990 के बीजिंग एशियाड में प्रबल
प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान के खिलाफ ही खेला।
हालांकि 1980 के बाद
1984 के लॉस एंजेलिस और 1988 के सियोल ओलंपिक में भी मोहम्मद शाहिद ने भारत का
प्रतिनिधित्व किया। शाहिद अपनी कप्तानी में टीम को प्रतिष्ठित अजलान शाह कप में
भी स्वर्ण पदक दिला चुके हैं। 1985 में मलेशिया के इपोह शहर में अजलान शाह कप में
शाहिद टीम के कप्तान थे और भारत ने इसमें गोल्ड जीता था। वर्ष 1986 में भारत-पाकिस्तान
की टेस्ट सीरीज में भी भारत ने जीत हासिल की और शाहिद इस दौरान भारतीय टीम के कप्तान
थे।
पेट में दर्द की
शिकायत पर उन्हें 29 जून को वाराणसी के सर सुंदरलाल अस्पताल में दाखिल कराया गया
था। वहां हालत न सुधरने पर उन्हें एयरलिफ्ट करके गुड़गांव के मेदांता मेडिसिटी
अस्पताल में दाखिल कराया गया। उनका लीवर ट्रांसप्लांट किया जाना था लेकिन किडनी के
काम न करने के कारण ट्रांसप्लांट भी संभव नहीं हो पा रहा था। पिछले कुछ दिनों से
उनके डायलिसिस की प्रक्रिया चल रही थी। आईसीयू में भर्ती शाहिद ने बुधवार को आखिरी
सांस ली। अस्पताल में उनके साथ उनकी पत्नी परवीन शाहिद, बेटी हिना, बेटा मोहम्मद सैफ और परिवार के अन्य लोग उपस्थित रहे।
मास्को ओलंपिक में
उनके साथ खेल चुके एमके कौशिक ने कहा कि अंतिम समय तक उन्होंने जिंदादिली नहीं
छोड़ी। कौशिक ने मास्को ओलंपिक की यादों को ताजा करते हुए कहा कि वह 1980 में काफी
युवा था और हम उससे सीनियर थे। वह सभी का सम्मान करता और खूब हंसी मजाक करता लेकिन
इसका पूरा ध्यान रखता कि कोई आहत ना हो। उसके ड्रिबलिंग कौशल ने भारत को स्वर्ण
पदक जिताने में मदद की और पूरी दुनिया ने उसके फन का लोहा माना। पेनल्टी कार्नर
बनाने से लेकर गोल करने तक में उसका कोई सानी नहीं था।
विश्व कप 1975 में
भारत की खिताबी जीत के नायक और मेजर ध्यानचंद के बेटे अशोक कुमार ने उन्हें अपने
दौर में दुनिया के तीन सर्वश्रेष्ठ ड्रिबलरों में शुमार किया। अशोक कुमार ने कहा
कि लखनऊ होस्टल के दिनों में ही शाहिद को देखकर उन्हें अनुमान हो गया था कि यह
भारत के महानतम खिलाड़ियों में से एक होगा। उन्होंने कहा कि उस दौर में यानी
ध्यानचंद के बाद के दौर में इनामुर रहमान और पाकिस्तान के शहनाज शेख के अलावा किसी
को ड्रिबल के लिये जाना गया तो वह शाहिद थे।
उन्होंने ये भी कहा
कि मैं शाहिद को लखनउ होस्टल के दिनों से जानता था जब हम इंडियन एयरलाइंस के
सालाना शिविर के लिये केडी सिंह बाबू स्टेडियम जाते थे। मैं युवा लड़कों के साथ
अभ्यास करना पसंद करता था जिनमें से शाहिद एक था। उसका खेल इतनी कम उम्र में भी
सीनियर खिलाड़ियों की तरह था और मैं तभी समझ गया था कि एक दिन यह भारत के महानतम
खिलाड़ियों में से एक होगा।
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