हरिगोविंद विश्वकर्मा
दुनिया भर के मुसलमानों और दूसरे समुदाय के लोगों के ख़िलाफ़ खुलेआम ज़हर
उगलने और अमेरिका में उन्हें अस्थाई रूप से न घुसने देने का आह्वान करने वाले
अमेरिका के खरबपति उद्योपति डोनाल्ड जॉन ट्रंप जब से रिपब्लिकन पार्टी की ओर से देश
के 45वें राष्ट्रपति के लिए उम्मीदवार बनाए गए हैं, हर जगह एक ही चर्चा है, क्या वाक़ई ट्रंप की तरह
कथिततौर पर ख़तरनाक सोच वाला व्यक्ति दुनिया का सबसे ताकतवर आदमी बनकर ह्वाइट हाऊस
पर क़ाबिज़ हो जाएगा?
कई लोग तो डोनाल्ड ट्रंप को उम्मीदवार बनाए जाने से ही हैरान हैं। ऐसे लोग
ट्रंप को जिद्दी, सिरफिरा और अनाप-शनाप बोलनेवाला करार देते हुए कहते हैं कि पैसे
का भरपूर उपयोग करके ट्रंप ने अमेरिका की जनता को पूरी तरह भ्रमित कर दिया। इतना
ही नहीं, ट्रंप का विरोध करने वाले यह भी मानते हैं कि अमेरिकियों ने इस बार कथिततौर
पर एक अलोकतांत्रिक और असभ्य से व्यक्ति को राष्ट्रपति
पद के लायक मान लिया है। बहरहाल, ट्रंप का मुक़ाबला डैमोक्रेटिक पार्टी की तरफ से
राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार और पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की पत्नी हिलेरी
क्लिंटन से हो रहा।
धरती के सबसे शक्तिशाली पद के लिए हो रहे चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप को जिस तरह
से अमेरिकी जनता, ख़ासकर युवाओं का समर्थन मिल रहा है, वह 2014 में नरेंद्र मोदी के चुनाव प्रचार की याद
दिला रहा है, जब दो ढाई साल पहले सेक्यूलर पॉलिटिक्स करने वाली ताकतों की हर संभव कोशिश के
बावजूद गठबंधन के दौर में भारत के मतदाताओं ने भारतीय जनता पार्टी को 282 सीटों का स्पष्ट बहुमत का
तोहफा दे दिया था, जिसके बाद कथिततौर पर सांप्रदायिक, तानाशह और मौत के सौदागर
नरेंद्र मोदी देख के प्रधानमंत्री बने थे।
दरअसल, किसी भी विचारधारा को आम लोगों पर जब कुछ ज़्यादा ही थोपा जाने लगता
है, तब एक समय के बाद लोगों को संदेह होने लगता है और उन्हें लगने लगता है, यह तो
कुछ ज़्यादा ही हो रहा है। यही 2002 के बाद तीन बार विधानसभा चुनाव में गुजरात में
हुआ। जब सेक्यूलर पॉलिटिक्स करने वाले
नरेंद्र मोदी को तानाशाह, हत्यारा, मौत का सौदागर वगैरह कहने लगे थे। सबसे
बड़ी बात पहले तो जनता को लगा कि मोदी ने ज़रूर ग़लत किया, लेकिन यह जुमला इतना
ज़्यादा उछाला गया कि लोगों को लगा कि इसमें वेस्टेड इंटरेस्ट है। बस क्या था मोदी
का विरोध करने वाले ही हाशिए पर चले गए। मज़ेदार बात यह रही कि जब मोदी का विरोध
कम होने की बजाय राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ने लगा, तब देश की जनता ने मोदी को
प्रधानमंत्री बना दिया।
कहना न होगा, अब भारत के हालात अमेरिका में दोहराए जा रहे हैं। सेक्यूलर जमात
के लोग आतंकवाद का उस स्तर पर विरोध नहीं करते और झट से कह देते हैं कि आतंकवाद का
कोई धर्म नहीं होता। लेकिन सारे आतंकवादी एक ही धर्म के प्रॉडक्ट क्यों हैं, इस
सवाल पर चुप्पी साध जाते हैं। चूंकि आतंकवाद भले अमेरिका ने पैदा किया हो, लेकिन
हाल के सालों में अमेरिकी जनता आतंकवाद की बड़ी विक्टिम रही है। इसीलिए उसे ट्रंप
का मुस्लिम विरोध अच्छा लग रहा है। इसीलिए अमेरिकी जनता भी आजकल वैसा ही सोच रही
है, जैसा
पिछले आम चुनाव में भारत की जनता सोच रही थी।
गौर करने वाली बात है कि डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन कुछ
दिन पहले तक अपनी जीत के प्रति पूरी तरह आश्वस्त थीं। लेकिन अब वह बिलकुल नहीं
हैं। यानी इस डेमोक्रेट प्रत्याशी को अब पक्के तौर पर नहीं लग रहा है कि वह ट्रंप
को हरा पाएंगी। दरअसल, हिलेरी को लगता है कि वह नहीं जीतेंगी क्योंकि ट्रंप कथित
तौर पर अपने सिरफिरेपन के कारण अमेरिकियों पर छा गए हैं। हिलेरी की चिंता के पीछे
उनके देश का मौजूदा रवैया एक वजह है। चुनाव में ट्रंप अपने बड़बोलेपन के कारण आम
अमेरिकियों पर छा से गए हैं। अमेरिका में मुस्लिमों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने,
देश में सतर्कता
बढ़ाए जाने एवं ‘कट्टरपंथ इस्लामी आतंकवादी’ को कुचलने का ट्रंप की जुमला आम अमेरिकियों को ज़्यादा
बेहतर लग रहा है।
अगर ट्रंप को मिल रहे समर्थन की बात करें तो अमेरिका को चीन से भी बड़ी चिंता
है। इसके अलावा यूरोप में शरणार्थियों का बोझ कब अमेरिकियों के सिर पर न आ जाए,
यह डर भी है। ऐसे
में अमेरिकी जनता ऐसा नेता खोज रही थी जो कूटनीति में नहीं, धमकियों से बात करे। जो हर बात
पर ‘सिर
फोड़ देंगे’, ‘धक्के देकर बाहर निकाल देंगे’, ‘उठाकर पटक देंगे’, ‘मारकर भगा देंगे’ वाली भाषा बोले जो
बहुतों को अच्छी भी लगती है। ट्रंप इस सांचे में एकदम फिट बैठ रहे हैं। कई लोगों
को लगता है कि अगर ट्रंप राष्ट्रपति बन गए तो अमेरिका शांति का दूत नहीं, धौंस देने वाल देश बन
जाएगा।
दरअसल, अमेरिका के ओरलैंडो में आतंकी वारदात के बाद ट्रंप ज़्यादा मुखर हो गए हैं।
ओरलैंडो शूटआउट पर उन्होंने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। ट्रंप ने साफ़-साफ कहा
था, ‘‘ओरलैंडो
के गे क्लब पर फायरिंग करने वाले अफगान मूल के बंदूकधारी उमर मतीन ने हत्याओं को
अंजाम देते समय ‘अल्ला हो अकबर’ कहा था। इसमें 50 से अधिक लोगों की मौत हो गई। ट्रंप ने एक चुनावी रैली में कहा, “इन हत्यारों को यहां
अमेरिका में नहीं होना चाहिए। हमारे समक्ष कट्टरपंथी इस्लामी आतंकवाद की समस्या
है।“
वैसे पिछले दौ दशक से दुनिया भर में हो रही आतंकवादी वारदात से अमेरिकी जनता
भी तंग आ चुकी है। 2001 में दुनिया से सबसे क्रूरतम आतंकी हमले की गवाह रही
अमेरिकी जनता आतंकवाद ख़ासकर इस्लामिक स्टेट ऑफ़ इराक ऐंड सीरिया (आईएसआईएस) से
सुरक्षा को लेकर बहुत आश्वस्त नहीं है। इस आतंकी संगठन में जिस तरह एजुकेटेड
मुस्लिम यूथ शामिल हो रहे हैं, इससे अमेरिकी जनता को लगता है कि ख़तरा सिर पर सवार है।
अमेरिका के लोग आशंकित रहते हैं कि न जाने कहां और कब आईएस का हमला हो जाए। इसीलिए
अमेरिकी मतदाताओं की पसंद नरम हिलेरी की बजाय गरम ट्रंप हैं।
अमेरिका को सबसे गहरी चोट देने वाले आतंकवादी ओसामा बिन लादेन को मार गिराने
वाले राष्ट्रपति बराक ओबामा ने हालांकि अपने कार्यकाल में अच्छी नीतियां बनाईं पर
इतनी अच्छी नहीं कि अमेरिका पुरानी ऊंचाइयों को छू सके। अमेरिकी जनता अपने वर्तमान
और भविष्य को लेकर चिंता में डूबी है। ट्रंप चुनावी रैलियों में कह रहे हैं कि वह
अमेरिका की खोई चमक फिर से लौटाएंगे। दो टूक शब्दों में कहते है, ‘‘हम सीरिया से लोगों को
आने नहीं दे सकते और इसे तत्काल रोका जाएगा। हमारे देश में हज़ारों लोग आ रहे हैं।
हमें नहीं मालूम कि कौन हैं। कोई कागजात नहीं हैं।"
अमेरिका में गैरक़ानूनी रूप से रहने वालों के लिए भी डोनाल्ड ट्रंप की सीधी
योजना है - निर्वासन। वह कहते हैं, दो साल में यह काम पूरा हो जाएगा। बहरहाल, सीमा मामलों के अधिकारी
कहते हैं- कुछ समय पहले ही साल भर में क़रीब चार लाख लोगों को निर्वासित किया गया
था। बहरहाल, ट्रंप की नीति पर बहस शुरू हो गई है कि अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे 1.1 करोड़ लोगों को वह कैसे
निकालेंगे और मैक्सिको की 1609 किलोमीटर लंबी सीमा पर दीवार कैसे बनाएंगे? डोनाल्ड ट्रंप को लोगों
का और पार्टी के उन मतदाताओं का अच्छा समर्थन मिल रहा है।
डोनाल्ड ट्रंप मुस्लिमों का अमेरिका में प्रवेश प्रतिबंधित करने और अवैध
प्रवासियों को देश से बाहर निकालने का अपने रूख को बार बार दोहरा रहे हैं। रिपब्लिकन पार्टी की ओर से उम्मीदवार बनने के
बाद ट्रंप ने एक रैली में अपने विवादास्पद भाषण को वापस लेने से इंकार कर दिया।
सीएनएन के साथ साक्षात्कार में, ट्रंप ने इतना ज़रूर कहा, “मुस्लिमों का अमेरिका में प्रवेश
अस्थायी तौर पर रोकने वाले बयान वापस नहीं लिया। दृढ़ रूख अख्तियार करते हुए ट्रंप
ने कहा कि वह इससे उन्हें खुदको नुकसान भी पहुंचे, तो भी वह इसकी परवाह नहीं करते।
इसी के साथ, उन्होंने कहा कि वह आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ने में मुस्लिम देशों के साथ
मिलकर काम करेंगे। ट्रंप ने यह तर्क भी दिया कि इसकी जिम्मेदारी पहले उन देशों पर
है।
न्यूयॉर्क टाइम्स और सीबीएस न्यूज के पोल बताते हैं कि ट्रंप को मतदाता पसंद
कर रहे हैं और उन्हें राष्ट्रपति के तौर पर उन्हें ही देखना चाहते हैं। 76 वर्षीय रिटायर टीचर
डेलोर्स स्टॉकेट कहते हैं, मैं ट्रंप का सहयोग करूंगा, क्योंकि अगर आप विकल्प के तौर पर
बाहरी व्यक्ति को लाते हैं, तो वह कम अनुकूल रहेगा। वैकल्पिक व्यक्ति में यह जरूरी नहीं
कि उसके विचार भी हमारी तरह हों या फिर वह हमारी बातों से सहमत हो। डोनाल्ड ट्रंप
के बारे में सीएनएन ने कुछ दिन पूर्व विश्व के विभिन्न देशों के कई लोगों से बात
की, जिसमें
जहां मुस्लिम दशों के लोग चाहते हैं कि ट्रंप राष्ट्रपति न बने जबकि इस्लामिक
आतंकवाद से पीड़ित लोगों ने एक स्वर से ट्रंप को हिलेरी क्लिंटन से बेहतर
उम्मीदवार करार दिया है। लोग मान रहे हैं कि ट्रंप आतंकवाद के मुकाबले ताकतवर
साबित होंगे। हालांकि लंदन की फैशन की दुनिया में जुड़े सीमन मार्टिन कहते हैं कि
यदि ट्रंप राष्ट्रपति चुने गए तो उनका मानवजाति से विश्वास समाप्त हो जाएगा।
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