हरिशंकर परसाई ने यह व्यंग्य 1968 में लिखा था.. आज भी कितना प्रासंगिक है... ज़रूर पढ़े..
एक गोभक्त से भेंट
एक शाम रेलवे स्टेशन पर एक स्वामीजी के दर्शन हो गए। ऊँचे, गोरे और तगड़े साधु थे। चेहरा लाल। गेरुए रेशमी कपड़े पहने थे। साथ एक छोटे साइज़ का किशोर संन्यासी था। उसके हाथ में ट्रांजिस्टर था और वह गुरु को रफ़ी के गाने के सुनवा रहा था।
मैंने पूछा – स्वामी जी, कहाँ जाना हो रहा है?
स्वामीजी बोले – दिल्ली जा रहे हैं, बच्चा!
स्वामीजी बात से दिलचस्प लगे। मैं उनके पास बैठ गया। वे भी बेंच पर पालथी मारकर बैठ गए। सेवक को गाना बंद करने के लिए कहा।
कहने लगे – बच्चा, धर्मयुद्ध छिड़ गया। गोरक्षा-आंदोलन तीव्र हो गया है। दिल्ली में संसद के सामने सत्याग्रह करेंगे।
मैंने कहा – स्वामीजी, यह आंदोलन किस हेतु चलाया जा रहा है ?
स्वामीजी ने कहा – तुम अज्ञानी मालूम होते हो, बच्चा! अरे गौ की रक्षा करना है। गौ हमारी माता है। उसका वध हो रहा है।
मैंने पूछा – वध कौन कर रहा है?
वे बोले- विधर्मी कसाई।
मैंने कहा – उन्हें वध के लिए गौ कौन बेचते हैं? वे आपके सधर्मी गोभक्त ही हैं न?
स्वामीजी ने कहा – सो तो हैं। पर वे क्या करें? एक तो गाय व्यर्थ खाती है, दूसरे बेचने से पैसे मिल जाते हैं।
मैंने कहा – यानी पैसे के लिए माता का जो वध करा दे, वही सच्चा गो-पूजक हुआ!
स्वामीजी मेरी तरफ़ देखने लगे। बोले – तर्क तो अच्छा कर लेते हो, बच्चा! पर यह तर्क की नहीं, भावना की बात है। इस समय जो हज़ारों गोभक्त आंदोलन कर रहे हैं, उनमें शायद ही कोई गौ पालता हो। पर आंदोलन कर रहे हैं। यह भावना की बात है।
स्वामीजी से बातचीत का रास्ता खुल चुका था। उनसे जमकर बातें हुईं, जिसमें तत्व मंथन हुआ। जो तत्व प्रेमी हैं, उनके लाभार्थ वार्तालाप नीचे दे रहा हूँ।
स्वामी और बच्चा की बात-चीत —
– स्वामीजी, आप तो गाय का दूध ही पीते होंगे?
– नहीं बच्चा, हम भैंस के दूध का सेवन करते हैं। गाय कम दूध देती है और वह पतला होता है। भैंस के दूध की बढ़िया गाढ़ी मलाई और रबड़ी बनती है।
– तो क्या सभी गोभक्त भैंस का दूध पीते हैं ?
– हाँ, बच्चा, लगभग सभी।
– तब तो भैंस की रक्षा हेतु आंदोलन करना चाहिए। भैंस का दूध पीते हैं, मगर माता गौ को कहते हैं। जिसका दूध पिया जाता है, वही तो माता कहलाएगी।
– यानी भैंस को हम माता… नहीं बच्चा, तर्क ठीक है, पर भावना दूसरी है।
– स्वामीजी, हर चुनाव के पहले गोभक्ति क्यों ज़ोर पकड़ती है? इस मौसम में कोई ख़ास बात है क्या?
– बच्चा, जब चुनाव आता है, तम हमारे नेताओं को गोमाता सपने में दर्शन देती है। कहती है – बेटा चुनाव आ रहा है। अब मेरी रक्षा का आंदोलन करो। देश की जनता अभी मूर्ख है। मेरी रक्षा का आंदोलन करके वोट ले लो। बच्चा, कुछ राजनीतिक दलों को गोमाता वोट दिलाती है, जैसे एक दल को बैल वोट दिलाते हैं। तो ये नेता एकदम आंदोलन छेड़ देते हैं और हम साधुओं को उसमें शामिल कर लेते हैं। हमें भी राजनीति में मज़ा आता है। बच्चा, तुम हमसे ही पूछ रहे हो। तुम तो कुछ बताओ, तुम कहाँ जा रहे हो ?
– स्वामीजी मैं ‘मनुष्य-रक्षा आंदोलन’ में जा रहा हूँ।
– यह क्या होता है, बच्चा ?
– स्वामीजी, जैसे गाय के बारे में मैं अज्ञानी हूँ, वैसे ही मनुष्य के बारे में आप हैं।
– पर मनुष्य को कौन मार रहा है ?
– इस देश के मनुष्य को सूखा मार रहा है, अकाल मार रहा है, महँगाई मार रही है। मनुष्य को मुनाफ़ाखोर मार रहा है,काला-बाज़ारी मार रहा है। भ्रष्ट शासन-तंत्र मार रहा है। सरकार भी पुलिस की गोली से चाहे जहाँ मनुष्य को मार रही है, स्वामीजी, आप भी मनुष्य-रक्षा आंदोलन में शामिल हो जाइए न!
– नहीं बच्चा, हम धर्मात्मा आदमी हैं। हमसे यह नहीं होगा। एक तो मनुष्य हमारी दृष्टि में बहुत तुच्छ है। ये मनुष्य ही तो हैं, जो कहते हैं, मंदिरों और मठों में लगी जायदाद को सरकार जब्त करले, बच्चा तुम मनुष्य को मरने दो। गौ की रक्षा करो। कोई भी जीवधारी मनुष्य से श्रेष्ठ है। तुम देख नहीं रहे हो, गोरक्षा के जुलूस में जब झगड़ा होता है, तब मनुष्य ही मारे जाते हैं।एक बात और है, बच्चा! तुम्हारी बात से प्रतीत होता है कि मनुष्य-रक्षा के लिए मुनाफ़ाख़ोर और काला-बाज़ारी के खिलाफ़ संघर्ष लड़ना पड़ेगा। यह हमसे नहीं होगा। यही लोग तो मंदिरो, मठो व गोरक्षा-आंदोलन के लिए धन देते हैं। हम इनके खिलाफ़ कैसे लड़ सकते हैं
– ख़ैर, छोड़िए मनुष्य को। गोरक्षा के बारे में मेरी ज्ञान-वृद्धि कीजिए। एक बात बताइए, मान लीजिए आपके बरामदे में गेहूँ सूख रहे हैं। तभी एक गोमाता आकर गेहूँ खाने लगती है। आप क्या करेंगे ?
– बच्चा ? हम उसे डंडा मारकर भगा देंगे।
– पर स्वामीजी, वह गोमाता है पूज्य है। बेटे के गेहूँ खाने आई है। आप हाथ जोड़कर स्वागत क्यों नहीं करते कि आ माता, मैं कृतार्थ हो गया। सब गेहूँ खा जा।
– बच्चा, तुम हमें मूर्ख समझते हो?
– नहीं, मैं आपको गोभक्त समझता था।
– सो तो हम हैं, पर इतने मूर्ख भी नहीं हैं कि गाय को गेहूँ खा जाने दें।
– पर स्वामीजी, यह कैसी पूजा है कि गाय हड्डी का ढाँचा लिए हुए मुहल्ले में काग़ज़ और कपड़े खाती फिरती है और जगह-जगह पिटती है!
– बच्चा, यह कोई अचरज की बात नहीं है। हमारे यहाँ जिसकी पूजा की जाती है उसकी दुर्दशा कर डालते हैं। यही सच्ची पूजा है। नारी को भी हमने पूज्य माना और उसकी जैसी दुर्दशा की सो तुम जानते ही हो।
– स्वामीजी, दूसरे देशों में लोग गाय की पूजा नहीं करते, पर उसे अच्छी तरह रखते हैं और वह खूब दूध देती है।
– बच्चा, दूसरे देशों की बात छोड़ो। हम उनसे बहुत ऊँचे हैं। देवता इसीलिए सिर्फ़ हमारे यहाँ अवतार लेते हैं। दूसरे देशों में गाय दूध के उपयोग के लिए होती है, हमारे यहाँ वह दंगा करने, आंदोलन करने के लिए होती है। हमारी गाय और गायों से भिन्न है।
– स्वामीजी, और सब समस्याएँ छोड़कर आप लोग इसी एक काम में क्यों लग गए हैं ?
– इसी से सबका भला हो जाएगा, बच्चा! अगर गोरक्षा का क़ानून बन जाए, तो यह देश अपने-आप समृद्ध हो जाएगा। फिर बादल समय पर पानी बरसाएँगे, भूमि ख़ूब अन्न देगी और कारखाने बिना चले भी उत्पादन करेंगे। धर्म का प्रताप तुम नहीं जानते। अभी जो देश की दुर्दशा है, वह गौ के अनादर का परिणाम है।
– स्वामीजी, पश्चिम के देश गौ की पूजा नहीं करते, बल्कि गो-मास खाते हैं, फिर भी समृद्ध हैं?
– उनका भगवान दूसरा है बच्चा। उनका भगवान इस बात का ख़्याल नहीं करता।
– और रूस जैसे देश भी गाय को नहीं पूजते, पर समृद्ध हैं?
– उनका तो भगवान ही नहीं बच्चा। उन्हें दोष नहीं लगता।
– यानी भगवान रखना भी एक झंझट ही है। वह हर बात का दंड देने लगता है।
– तर्क ठीक है, बच्चा, पर भावना ग़लत है।
– स्वामीजी, जहाँ तक मैं जानता हूँ, जनता के मन में इस समय गोरक्षा नहीं है, महँगाई और आर्थिक शोषण है। जनता महँगाई के ख़िलाफ़ आंदोलन करती है। जनता आर्थिक न्याय के लिए लड़ रही है। और इधर आप गोरक्षा-आंदोलन लेकर बैठ गए हैं। इसमें तुक क्या है ?
– बच्चा, इसमें तुक है। तुम्हे अंदर की बात बताता हूंl देखो, जनता जब आर्थिक न्याय की माँग करती है, तब उसे किसी दूसरी चीज़ में उलझा देना चाहिए, नहीं तो वह ख़तरनाक हो जाती है। जनता कहती है – हमारी माँग है महँगाई कम हो, मुनाफ़ाख़ोरी बंद हो, वेतन बढ़े, शोषण बंद हो, तब हम उससे कहते हैं कि नहीं, तुम्हारी बुनियादी माँग गोरक्षा है, आर्थिक क्रांति की तरफ़ बढ़ती जनता को हम रास्ते में ही गाय के खूँटे से बाँध देते हैं। यह आंदोलन जनता को उलझाए रखने के लिए है।
– स्वामीजी, किसकी तरफ़ से आप जनता को इस तरह उलझाए रखते हैं?
– जनता की माँग का जिन लोगो पर असर पड़ेगा, उसकी तरफ़ से। यही धर्म है। एक उदाहरन देते हैं।
बच्चा, ये तो तुम्हे पता ही है कि लूटने वालों के ग्रुप मे सभी धर्मो के सेठ शामिल हैं और लूटे जाने वाले गरीब मज्दूरो मे भी सभी धर्मो के लोग शामिल हैं, मान लो एक दिन सभी धर्मो के हज़ारों भूखे लोग इकटठे होकर हमारे धर्म के किसी सेठ के गोदाम में भरे अन्न को लूटने के लिए निकल पड़ेl सेठ हमारे पास आया। कहने लगा- स्वामीजी, कुछ करिए। ये लोग तो मेरी सारी जमा-पूँजी लूट लेंगे। आप ही बचा सकते हैं। आप जो कहेंगे, सेवा करेंगे। बस बच्चा, हम उठे, हाथ में एक हड्डी ली और मंदिर के चबूतरे पर खड़े हो गए। जब वे हज़ारों भूखे गोदाम लूटने का नारा लगाते आये, तो मैंने उन्हें हड्डी दिखायी और ज़ोर से कहा- किसी ने भगवान के मंदिर को भ्रष्ट कर दिया। वह हड्डी किसी पापी ने मंदिर में डाल दी। विधर्मी हमारे मंदिर को अपवित्र करते हैं।, हमारे धर्म को नष्ट करते हैं। हमें शर्म आऩी चाहिए। मैं इसी क्षण से यहाँ उपवास करता हूँ। मेरा उपवास तभी टूटेगा, जब मंदिर की फिर से पुताई होगी और हवन करके उसे पुनः पवित्र किया जाएगा। बस बच्चा, वह जनता जो इकट्ठी होकर सेठ से लड़ने आ रही थी, वो धर्म के नाम पर आपस में ही लड़ने लगी। मैंने उनका नारा बदल दिया। जव वे लड़ चुके, तब मैंने कहा–धन्य है इस देश की धर्म-प्राण जनता! धन्य हैं अनाज के व्यापारी सेठ अमुकजी! उन्होंने मंदिर की शुद्धि का सारा ख़र्च देने को कहा है। बच्चा जिस सेठ का गोदाम लूटने भूखे लोग जा रहे थे, वो उसकी ही जय बोलने लगे। बच्चा, यह है धर्म का प्रताप। अगर इस जनता को गोरक्षा-आंदोलन में न लगाएँगे, यह रोजगार प्रापती के लिये आंदोलन करेगी, तनख़्वाह बढ़वाने का आंदोलन करेगी, मुनाफ़ाख़ोरी के ख़िलाफ़ आंदोलन करेगा। जनता को बीच में उलझाए रखना हमारा काम है बच्चा।
– स्वामीजी, आपने मेरी बहुत ज्ञान-वृद्धि की। एक बात और बताइए। कई राज्यों में गोरक्षा के लिए क़ानून है। बाक़ी में लागू हो जाएगा। तब यह आंदोलन भी समाप्त हो जाएगा। आगे आप किस बात पर आंदोलन करेंगे।
– अरे बच्चा, आंदोलन के लिए बहुत विषय हैं। सिंह दुर्गा का वाहन है। उसे सरकसवाले पिंजरे में बंद करके रखते हैं और उससे खेल कराते हैं। यह अधर्म है। सब सरकसवालों के ख़िलाफ़ आंदोलन करके, देश के सारे सरकस बंद करवा देंगे। फिर भगवान का एक अवतार मत्स्यावतार भी है। मछली भगवान का प्रतीक है। हम मछुओं के ख़िलाफ़ आंदोलन छेड़ देंगे। सरकार का मछली पालन विभाग बंद करवाँयेंगेे।
बच्चा, लोगो की मुसीबतें तो तब तक खतम नही होंगी, जब तक लूट खत्म नही होगी, एक मुद्दा और भी बन सकता है बच्चा, हम जनता मे ये बात फैला सकते हैं कि हमारे धर्म के लोगो की सभी मुसीबतों का कारण दूसरे धर्मो के लोग हैं, हम किसी ना किसी तरह जनता को धर्म के नाम पर उलझये रखेगे बच्चा।
इतने में गाड़ी आ गई। स्वामीजी उसमें बैठकर चले गए। बच्चा, वहीं रह गया।
मैंने पूछा – स्वामी जी, कहाँ जाना हो रहा है?
स्वामीजी बोले – दिल्ली जा रहे हैं, बच्चा!
स्वामीजी बात से दिलचस्प लगे। मैं उनके पास बैठ गया। वे भी बेंच पर पालथी मारकर बैठ गए। सेवक को गाना बंद करने के लिए कहा।
कहने लगे – बच्चा, धर्मयुद्ध छिड़ गया। गोरक्षा-आंदोलन तीव्र हो गया है। दिल्ली में संसद के सामने सत्याग्रह करेंगे।
मैंने कहा – स्वामीजी, यह आंदोलन किस हेतु चलाया जा रहा है ?
स्वामीजी ने कहा – तुम अज्ञानी मालूम होते हो, बच्चा! अरे गौ की रक्षा करना है। गौ हमारी माता है। उसका वध हो रहा है।
मैंने पूछा – वध कौन कर रहा है?
वे बोले- विधर्मी कसाई।
मैंने कहा – उन्हें वध के लिए गौ कौन बेचते हैं? वे आपके सधर्मी गोभक्त ही हैं न?
स्वामीजी ने कहा – सो तो हैं। पर वे क्या करें? एक तो गाय व्यर्थ खाती है, दूसरे बेचने से पैसे मिल जाते हैं।
मैंने कहा – यानी पैसे के लिए माता का जो वध करा दे, वही सच्चा गो-पूजक हुआ!
स्वामीजी मेरी तरफ़ देखने लगे। बोले – तर्क तो अच्छा कर लेते हो, बच्चा! पर यह तर्क की नहीं, भावना की बात है। इस समय जो हज़ारों गोभक्त आंदोलन कर रहे हैं, उनमें शायद ही कोई गौ पालता हो। पर आंदोलन कर रहे हैं। यह भावना की बात है।
स्वामीजी से बातचीत का रास्ता खुल चुका था। उनसे जमकर बातें हुईं, जिसमें तत्व मंथन हुआ। जो तत्व प्रेमी हैं, उनके लाभार्थ वार्तालाप नीचे दे रहा हूँ।
स्वामी और बच्चा की बात-चीत —
– स्वामीजी, आप तो गाय का दूध ही पीते होंगे?
– नहीं बच्चा, हम भैंस के दूध का सेवन करते हैं। गाय कम दूध देती है और वह पतला होता है। भैंस के दूध की बढ़िया गाढ़ी मलाई और रबड़ी बनती है।
– तो क्या सभी गोभक्त भैंस का दूध पीते हैं ?
– हाँ, बच्चा, लगभग सभी।
– तब तो भैंस की रक्षा हेतु आंदोलन करना चाहिए। भैंस का दूध पीते हैं, मगर माता गौ को कहते हैं। जिसका दूध पिया जाता है, वही तो माता कहलाएगी।
– यानी भैंस को हम माता… नहीं बच्चा, तर्क ठीक है, पर भावना दूसरी है।
– स्वामीजी, हर चुनाव के पहले गोभक्ति क्यों ज़ोर पकड़ती है? इस मौसम में कोई ख़ास बात है क्या?
– बच्चा, जब चुनाव आता है, तम हमारे नेताओं को गोमाता सपने में दर्शन देती है। कहती है – बेटा चुनाव आ रहा है। अब मेरी रक्षा का आंदोलन करो। देश की जनता अभी मूर्ख है। मेरी रक्षा का आंदोलन करके वोट ले लो। बच्चा, कुछ राजनीतिक दलों को गोमाता वोट दिलाती है, जैसे एक दल को बैल वोट दिलाते हैं। तो ये नेता एकदम आंदोलन छेड़ देते हैं और हम साधुओं को उसमें शामिल कर लेते हैं। हमें भी राजनीति में मज़ा आता है। बच्चा, तुम हमसे ही पूछ रहे हो। तुम तो कुछ बताओ, तुम कहाँ जा रहे हो ?
– स्वामीजी मैं ‘मनुष्य-रक्षा आंदोलन’ में जा रहा हूँ।
– यह क्या होता है, बच्चा ?
– स्वामीजी, जैसे गाय के बारे में मैं अज्ञानी हूँ, वैसे ही मनुष्य के बारे में आप हैं।
– पर मनुष्य को कौन मार रहा है ?
– इस देश के मनुष्य को सूखा मार रहा है, अकाल मार रहा है, महँगाई मार रही है। मनुष्य को मुनाफ़ाखोर मार रहा है,काला-बाज़ारी मार रहा है। भ्रष्ट शासन-तंत्र मार रहा है। सरकार भी पुलिस की गोली से चाहे जहाँ मनुष्य को मार रही है, स्वामीजी, आप भी मनुष्य-रक्षा आंदोलन में शामिल हो जाइए न!
– नहीं बच्चा, हम धर्मात्मा आदमी हैं। हमसे यह नहीं होगा। एक तो मनुष्य हमारी दृष्टि में बहुत तुच्छ है। ये मनुष्य ही तो हैं, जो कहते हैं, मंदिरों और मठों में लगी जायदाद को सरकार जब्त करले, बच्चा तुम मनुष्य को मरने दो। गौ की रक्षा करो। कोई भी जीवधारी मनुष्य से श्रेष्ठ है। तुम देख नहीं रहे हो, गोरक्षा के जुलूस में जब झगड़ा होता है, तब मनुष्य ही मारे जाते हैं।एक बात और है, बच्चा! तुम्हारी बात से प्रतीत होता है कि मनुष्य-रक्षा के लिए मुनाफ़ाख़ोर और काला-बाज़ारी के खिलाफ़ संघर्ष लड़ना पड़ेगा। यह हमसे नहीं होगा। यही लोग तो मंदिरो, मठो व गोरक्षा-आंदोलन के लिए धन देते हैं। हम इनके खिलाफ़ कैसे लड़ सकते हैं
– ख़ैर, छोड़िए मनुष्य को। गोरक्षा के बारे में मेरी ज्ञान-वृद्धि कीजिए। एक बात बताइए, मान लीजिए आपके बरामदे में गेहूँ सूख रहे हैं। तभी एक गोमाता आकर गेहूँ खाने लगती है। आप क्या करेंगे ?
– बच्चा ? हम उसे डंडा मारकर भगा देंगे।
– पर स्वामीजी, वह गोमाता है पूज्य है। बेटे के गेहूँ खाने आई है। आप हाथ जोड़कर स्वागत क्यों नहीं करते कि आ माता, मैं कृतार्थ हो गया। सब गेहूँ खा जा।
– बच्चा, तुम हमें मूर्ख समझते हो?
– नहीं, मैं आपको गोभक्त समझता था।
– सो तो हम हैं, पर इतने मूर्ख भी नहीं हैं कि गाय को गेहूँ खा जाने दें।
– पर स्वामीजी, यह कैसी पूजा है कि गाय हड्डी का ढाँचा लिए हुए मुहल्ले में काग़ज़ और कपड़े खाती फिरती है और जगह-जगह पिटती है!
– बच्चा, यह कोई अचरज की बात नहीं है। हमारे यहाँ जिसकी पूजा की जाती है उसकी दुर्दशा कर डालते हैं। यही सच्ची पूजा है। नारी को भी हमने पूज्य माना और उसकी जैसी दुर्दशा की सो तुम जानते ही हो।
– स्वामीजी, दूसरे देशों में लोग गाय की पूजा नहीं करते, पर उसे अच्छी तरह रखते हैं और वह खूब दूध देती है।
– बच्चा, दूसरे देशों की बात छोड़ो। हम उनसे बहुत ऊँचे हैं। देवता इसीलिए सिर्फ़ हमारे यहाँ अवतार लेते हैं। दूसरे देशों में गाय दूध के उपयोग के लिए होती है, हमारे यहाँ वह दंगा करने, आंदोलन करने के लिए होती है। हमारी गाय और गायों से भिन्न है।
– स्वामीजी, और सब समस्याएँ छोड़कर आप लोग इसी एक काम में क्यों लग गए हैं ?
– इसी से सबका भला हो जाएगा, बच्चा! अगर गोरक्षा का क़ानून बन जाए, तो यह देश अपने-आप समृद्ध हो जाएगा। फिर बादल समय पर पानी बरसाएँगे, भूमि ख़ूब अन्न देगी और कारखाने बिना चले भी उत्पादन करेंगे। धर्म का प्रताप तुम नहीं जानते। अभी जो देश की दुर्दशा है, वह गौ के अनादर का परिणाम है।
– स्वामीजी, पश्चिम के देश गौ की पूजा नहीं करते, बल्कि गो-मास खाते हैं, फिर भी समृद्ध हैं?
– उनका भगवान दूसरा है बच्चा। उनका भगवान इस बात का ख़्याल नहीं करता।
– और रूस जैसे देश भी गाय को नहीं पूजते, पर समृद्ध हैं?
– उनका तो भगवान ही नहीं बच्चा। उन्हें दोष नहीं लगता।
– यानी भगवान रखना भी एक झंझट ही है। वह हर बात का दंड देने लगता है।
– तर्क ठीक है, बच्चा, पर भावना ग़लत है।
– स्वामीजी, जहाँ तक मैं जानता हूँ, जनता के मन में इस समय गोरक्षा नहीं है, महँगाई और आर्थिक शोषण है। जनता महँगाई के ख़िलाफ़ आंदोलन करती है। जनता आर्थिक न्याय के लिए लड़ रही है। और इधर आप गोरक्षा-आंदोलन लेकर बैठ गए हैं। इसमें तुक क्या है ?
– बच्चा, इसमें तुक है। तुम्हे अंदर की बात बताता हूंl देखो, जनता जब आर्थिक न्याय की माँग करती है, तब उसे किसी दूसरी चीज़ में उलझा देना चाहिए, नहीं तो वह ख़तरनाक हो जाती है। जनता कहती है – हमारी माँग है महँगाई कम हो, मुनाफ़ाख़ोरी बंद हो, वेतन बढ़े, शोषण बंद हो, तब हम उससे कहते हैं कि नहीं, तुम्हारी बुनियादी माँग गोरक्षा है, आर्थिक क्रांति की तरफ़ बढ़ती जनता को हम रास्ते में ही गाय के खूँटे से बाँध देते हैं। यह आंदोलन जनता को उलझाए रखने के लिए है।
– स्वामीजी, किसकी तरफ़ से आप जनता को इस तरह उलझाए रखते हैं?
– जनता की माँग का जिन लोगो पर असर पड़ेगा, उसकी तरफ़ से। यही धर्म है। एक उदाहरन देते हैं।
बच्चा, ये तो तुम्हे पता ही है कि लूटने वालों के ग्रुप मे सभी धर्मो के सेठ शामिल हैं और लूटे जाने वाले गरीब मज्दूरो मे भी सभी धर्मो के लोग शामिल हैं, मान लो एक दिन सभी धर्मो के हज़ारों भूखे लोग इकटठे होकर हमारे धर्म के किसी सेठ के गोदाम में भरे अन्न को लूटने के लिए निकल पड़ेl सेठ हमारे पास आया। कहने लगा- स्वामीजी, कुछ करिए। ये लोग तो मेरी सारी जमा-पूँजी लूट लेंगे। आप ही बचा सकते हैं। आप जो कहेंगे, सेवा करेंगे। बस बच्चा, हम उठे, हाथ में एक हड्डी ली और मंदिर के चबूतरे पर खड़े हो गए। जब वे हज़ारों भूखे गोदाम लूटने का नारा लगाते आये, तो मैंने उन्हें हड्डी दिखायी और ज़ोर से कहा- किसी ने भगवान के मंदिर को भ्रष्ट कर दिया। वह हड्डी किसी पापी ने मंदिर में डाल दी। विधर्मी हमारे मंदिर को अपवित्र करते हैं।, हमारे धर्म को नष्ट करते हैं। हमें शर्म आऩी चाहिए। मैं इसी क्षण से यहाँ उपवास करता हूँ। मेरा उपवास तभी टूटेगा, जब मंदिर की फिर से पुताई होगी और हवन करके उसे पुनः पवित्र किया जाएगा। बस बच्चा, वह जनता जो इकट्ठी होकर सेठ से लड़ने आ रही थी, वो धर्म के नाम पर आपस में ही लड़ने लगी। मैंने उनका नारा बदल दिया। जव वे लड़ चुके, तब मैंने कहा–धन्य है इस देश की धर्म-प्राण जनता! धन्य हैं अनाज के व्यापारी सेठ अमुकजी! उन्होंने मंदिर की शुद्धि का सारा ख़र्च देने को कहा है। बच्चा जिस सेठ का गोदाम लूटने भूखे लोग जा रहे थे, वो उसकी ही जय बोलने लगे। बच्चा, यह है धर्म का प्रताप। अगर इस जनता को गोरक्षा-आंदोलन में न लगाएँगे, यह रोजगार प्रापती के लिये आंदोलन करेगी, तनख़्वाह बढ़वाने का आंदोलन करेगी, मुनाफ़ाख़ोरी के ख़िलाफ़ आंदोलन करेगा। जनता को बीच में उलझाए रखना हमारा काम है बच्चा।
– स्वामीजी, आपने मेरी बहुत ज्ञान-वृद्धि की। एक बात और बताइए। कई राज्यों में गोरक्षा के लिए क़ानून है। बाक़ी में लागू हो जाएगा। तब यह आंदोलन भी समाप्त हो जाएगा। आगे आप किस बात पर आंदोलन करेंगे।
– अरे बच्चा, आंदोलन के लिए बहुत विषय हैं। सिंह दुर्गा का वाहन है। उसे सरकसवाले पिंजरे में बंद करके रखते हैं और उससे खेल कराते हैं। यह अधर्म है। सब सरकसवालों के ख़िलाफ़ आंदोलन करके, देश के सारे सरकस बंद करवा देंगे। फिर भगवान का एक अवतार मत्स्यावतार भी है। मछली भगवान का प्रतीक है। हम मछुओं के ख़िलाफ़ आंदोलन छेड़ देंगे। सरकार का मछली पालन विभाग बंद करवाँयेंगेे।
बच्चा, लोगो की मुसीबतें तो तब तक खतम नही होंगी, जब तक लूट खत्म नही होगी, एक मुद्दा और भी बन सकता है बच्चा, हम जनता मे ये बात फैला सकते हैं कि हमारे धर्म के लोगो की सभी मुसीबतों का कारण दूसरे धर्मो के लोग हैं, हम किसी ना किसी तरह जनता को धर्म के नाम पर उलझये रखेगे बच्चा।
इतने में गाड़ी आ गई। स्वामीजी उसमें बैठकर चले गए। बच्चा, वहीं रह गया।
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