हरिगोविंद विश्वकर्मा
देश के सबसे प्रतिष्ठित
समाजसेवी का ख़िताब गले में लटकाए घूम रहे अण्णा हज़ारे आख़िर चाहते क्या हैं? क्या वह सठिया गए हैं? या कांग्रेस ने उन्हें मैनेज कर लिया है? पूरे देश को पहले लगा कि अण्णा कोई फकीर टाइट आदमी हैं, मंदिर में रहते हैं, भ्रष्टाचार को यक़ीनन
समूल नष्ट करना चाहते हैं। मगर उनकी पैंतरेबाज़ी से पूरा मुल्क हैरान है, कि आख़िर अण्णा को हो क्या गया है? वह चाहते क्या हैं? भष्टाचार को संरक्षित करना चाहते हैं या उसका ख़ात्मा करना चाहते हैं?
वह भ्रष्टाचारियों के ख़िलाफ़ लड़ने वालों के साथ हैं या ख़ुद भ्रष्टाचारियों के साथ? ऐसे समय जब दिल्ली विधानसभा चुनाव
में आम
आदमी पार्टी और उसके नेता अरविंद केजरीवाल को जनता का भरपूर समर्थन मिल रहा है। पहली बार
चुनाव लड़ रही आप ने कांग्रेस ही नहीं बीजेपी के भी दांत खट्टे कर दिए हैं। आप के चलते ही चुनावी
मुक़ाबला कम से कम दिल्ली में त्रिकोणीय हो गया है। यानी भारतीय राजनीति में
मतदाताओं के सामने पहली बार ईमानदारी भी एक विकल्प के रूप में है। ऐसे समय भ्रष्टाचार के
ख़िलाफ़ लड़ने वाले साफ़-सुथरे लोगों का हौसला आफ़ज़ाई करने की बजाय अण्णा उन्हें हतोत्साहित कर रहे हैं। अण्णा उन्हीं लोगों को क्रेडिबिलिटी पर गंभीर
सवाल खड़ा कर रहे हैं जो उनका सबसे ज़्यादा रिस्पेक्ट करते हैं।
अण्णा ने केजरीवाल को जो चिट्ठी लिख मारी है उसे पढ़कर तो कम से कम यही लगता है उन्होंने फिलहाल अपना पाला बदल लिया है। वह “राग कांग्रेस” आलापने लगे हैं। देश का भट्ठा बैठाने
वाली कांग्रेस का खुला समर्थन कर रहे हैं।
इसीलिए, चुनाव
के अति नाज़ुक मौक़े पर, जब महज दो हफ़्ते पहले जब मतदान केवल दो सप्ताह दूर है, उन्होंने अरविंद के
चेहरे पर ग़ैरज़रूरी चिट्ठी दे मारी है। इससे भ्रष्ट कांग्रेस के नेताओं को आप के लोगों पर कीचड़ उछालने
का और मौक़ा मिल गया है। आप के उम्मीदवार हतोत्साहित हों, और कांग्रेस ज़ोर-शोर से दोहराती रहे कि केजरीवाल ने अण्णा को धोखा
दिया। इन
पंक्तियों के लिखने तक कांग्रेस के लोग यही करने भी लगे हैं। कांग्रेसी आप के महज पांच
करोड़ विदेशी चंदे की जांच करवा रही है। जबकि पार्टी के पास दो हज़ार करोड़ रुपए
के चंदे के सोर्स का कोई अता पता नहीं है।
खैर, चिट्ठी में सभी ग़ैरज़रूरी तथ्य उठाए गए हैं। मसलन, अण्णा ने कहा है कि
चुनाव में उनके नाम का दुरुपयोग हो रहा है। जबकि सच ये है कि आप का कोई उम्मीदवार
अण्णा का नाम तक नहीं ले रहा है। किसी पोस्टर पर उनकी फोटो नहीं है। किसी नारे में
उनका नाम नहीं है। फिर कैसे हुआ उनके नाम का दुरुपयोग? हां, जनलोकपाल की
चर्चा होने पर अरविंद या बाक़ी टॉप लीडरान यह ज़रूर कहते हैं कि यदि दिल्ली में आप
की सरकार बनी तो विधानसभा की अधिवेशन दिसंबर में ही रामलीला मैदान में होगा जिसमें
सबसे पहले अण्णा वाला जनलोकपाल का बिल पारित किया जाएगा। इसे अगर अण्णा अपने नाम
का इस्तेमाल मानते हैं, तो उनकी बलिहारी! इसके
अलावा उन्होंने आरोप लगाया है कि अण्णा आंदोलन का पैसा चुनाव में खर्च हो रहा है।
जबकि अण्णा के आंदोलन का पैसा आंदोलन के दौरान ही खर्च हो गया था। उस समय अतिरिक्त
राशि की ज़रूरत पड़ी थी। उसकी पाई-पाई का ब्यौरा ऑडिट हो चुका है जिसे अण्णा अगस्त
२०१२ में ही मान चुके थे। तीसरा पॉइंट है, अण्णा को लगता है कि जनलोकपाल क़ानून
बनाने के नाम पर आप के नेता झूठ बोल रहे हैं। यहीं बात कांग्रेस चुनाव में कह रही
है। बेशक देश के लिए क़ानून संसद में बनेगा लेकिन दिल्ली के लोगों के लिए क़ानून
तो दिल्ली एसेंबली में ही बनेगा। यह अण्णा अगर नहीं समझ पा रहे हैं, तो भगवान ही
मालिक।
अण्णा से कोई पूछे कि जनलोकपाल कैसे बनेगा? क्या जनलोकपाल आसमान से टपकेगा? या भगवान की तरह अचानक प्रकट होकर व्यवस्था से भ्रष्टाचार को समूल नाश कर
देगा? अण्णा से यह भी पूछा जाना चाहिए
कि जनलोकपाल बनेगा कैसे? क्या इस जनलोकपाल को सोनिया गांधी, मनमोहन, सुरेश कलमाड़ी, पवार, गडकरी, ए राजा, मुलायम, लालू यादव, धनंजय, रसीद मसूद, रघुराज सिंह, करुणानिधि, जयललिता, जगनमोहन जैसे भ्रष्ट लोग बनाएंगे? नहीं इन लोगों को बनाना
होता तो अब तक क़ानून बन गया होता या कह सकते हैं कि आम आदमी पार्टी के गठन की
नौबत ही नहीं आती।
अण्णा की फितरत देखिए, पहले तो भ्रष्टाचार उन्मूलन का खूब शोर मचाया। आनन-फानन में
आमरण अनशन पर बैठ गए। मासूम देशवासियों को लगा कि नासूर बन चुके भ्रष्टाचार को
ख़त्म करने वाला मसीहा आख़िरकार आ ही गया। इसका नतीजा यह हुआ कि उस आंदोलन के साथ पूरे देश में
आंदोलन शुरू हो गया। जो जहां था वहीं अनशन-धरने पर बैठ गया। जनता का अपार समर्थन पाकर अण्णा
हृदय परिवर्तन जैसी बहकी बहकी बाते करने लगे। ऐसा लगा कि अण्णा आदर्श समाज का सपना
देख रहे हैं जो कि मौजूदा दौर में मुमकिन नहीं है। उनकी बात सुनकर हर किसी को यही
लगने लगता है इस आदमी को कोई सीरियस साइकिक प्रॉब्लम है।
अण्णा जैसे हिडेन एजेंडा रखने वाले लोग भारतीय लोकतंत्र के लिए सबसे घातक हैं।
ये राजनीति को गंदी कहकर अपराधियों और बेईमानों को संसद में घुसने का वॉकओवर दे
देते हैं। इनके फैलाए भ्रम के कारण साफ़-सुथरी इमैज वाले लोग राजनीति में उतरते
नहीं और उसका नतीजा यह होता है कि शहाबुद्दीन, धनंजय, राजा भैया जैसे अपराधी सांसद-मंत्री
बन जाते हैं। सीधी-सी बात है, अगर आप जनलोकपाल क़ानून को लेकर सचमुच सीरियस हैं तो
आपको संसद और विधानसभाओं में ऐसे लोग चाहिए ही जो जनलोकपाल बिल के पक्ष में सदन
में मतदान करें। कम से कम मौजूदा दौर में संसद और विधान सभाओं पर अपराधियों या जरूरत
से कई गुना पैसा और संपत्ति जमा करने वाले सामाजिक अपराधियों का क़ब्ज़ा है। ये
अपराधी किसी भी कीमत जनलोकपाल बनने नहीं देंगे। इसी मुद्दे पर अण्णा ने शुरुआत में
राजनीतिक पार्टी बनाने की पहल का समर्थन किया था।
अगर समय पर ग़ौर करें तो अण्णा के अप्रत्याशित क़दम से साफ़ हैं कि आप को मिल रहे जनसमर्थन से
उन्हें जलन हो रही है। इसी कारण वह भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के ख़िलाफ़ चल रहे मूवमेंट कमज़ोर करने की कोशिश कर रहे
हैं। जिससे दिल्ली विधानसभा
में आप को सेटबैक मिले। यही तो कांग्रेस का असली ऐजेंडा है जिसे अमली जामा अब अण्णा
पहना रहे हैं। उनको कौन समझाए कि अगर जनलोकपाल अस्तित्व में आया तो उसे ईमानदार लोग ही बनाएंगे। अनैतिक
तरीके और भ्रष्टाचार
से अरबों-खरबों की दौलत
जमा कर
चुके भ्रष्ट और अपराधी सांसद हमेशा लोकपाल बिल के ख़िलाफ़ ही वोट करेंगे। क्योंकि
जनलोकपाल एक ऐसी व्यवस्था बनाएगा जहां गांधी-नेहरू के वंशवाद, शरद पवार संपत्ति
बनाने की लालच, मुलायम, पटनायक, ठाकरे, बादल, अब्दुल्ला, करुणानिधि, जगनमोहन के
परिवारवाद, लालू और रॉब्रट वाड्रा की लूट-खसोट और राजाभैया के दहशतवाद के लिए कोई
जगह नहीं होगी। यानी इन सबका अस्तित्त ही ख़त्म हो जाएगा। कल्पना कीजिए, ऐसी
भारतीय राजनीति का जहां ये सारे विदूषक जेल की हवा खा रहे हों। और उनकी संपत्ति
जब्त कर ली गई हो। तो इस देश में कोई बेरोज़गार या भूखा नहीं रहेगा।
अब अण्णा चाहते हैं कि वह राजनीति को गंदा कहकर उसमें ना उतरे ताकि उनके कपड़े
गंदे न हो सके। ज़ाहिर सी बात है, अगर आपको इस देश और देश के लोगों की ज़रा भी
फिक्र हैं तो आप पैसा जमा नहीं कर सकते क्योंकि तक़रीबन देश की ८० फीसदी आबादी की
दैनिक आमदनी १०० रुपए से भी कम है। यानी महुमत में यह देश ग़रीबों का देश हैं। और
यह ग़रीबी भ्रष्टाचार के कारण है। जब तक भ्रष्टाचारी जेल नहीं भेजे जाते और उनकी
भ्रष्टाचार की कमाई जब्त नहीं की जाती, यह मनमानी ऐसे ही चलती रहेगी। इसीलिए तो
बेईमानी का निवाला खानो वालों की नींद हराम हो गई है। आप के उम्मीदवार ईमानदार है,
तभी तो अरविंद ने कह दिया कि अण्णा संतोष हेगड़े से जांच करवा लें। अगर अरविंद
दोषी पाए गए तो दिल्ली ऐसेंबली का चुनाव नहीं लड़ेंगे। किसी दूसरी पार्टी के नेता
में इतनी हिम्मत है। ज़ाहिर सी बात है कि अगर आपका अपने ऊपर अंकुश हैं तो कोई
व्यवस्था आपको भ्रष्ट नहीं कर सकती। चाहे वह राजनीति ही क्यों न हो। दिल्ली में आप
के लोगों को जो समर्थन मिल रहा है, उससे साफ़ हैं कि लोग बेईमानी का पैसा खा-खाकर
तुंद फैलाने वाले इन भ्रष्ट नेताओं से जनता छुटकारा पाना चाहती है और विकल्प तलाश
रही है। ऐसे में साफ़-सुथरे लोगों को राजनीति में उतरना ही होगा। और उसके लिए आप
सर्वोत्तम मंच है।
जो लोग इस देश की खुशहाली के अभिलाषी हैं। उन्हें किसी बहकावे में नहीं आना
चाहिए। बहकाने की वह कोशिश चाहे अण्णा हजारे जैसे पलायनवादी कर रहे हों या विदूषक
बन चुकी भारतीय मीडिया के लोग। पहली बार ईमानदारी का विकल्प वोटरों के सामने है।
अगर आप अपना और अपनी आने वाली पीढ़ी का भला चाहते हैं। यानी आप एक ऐसा सिस्टम चाहते
हैं जहां लोगों के सामने अस्त्तित्व संकट ना हो तो इस बार किसी बहकावे में मत आइए।
यह तटस्थ रहने का समय नहीं है। या तो बेईमानों का साथ दीजिए या ऊमानदारों का।
समाप्त