Powered By Blogger

सोमवार, 25 फ़रवरी 2019

इंडियन एयरलांइस के विमान IC-814 को अपहृत करके कंधार ले जाने वाला उस्ताद गौरी वायुसेना के हमले में मारा गया


भारत दुश्मन को उसके घर में घुसकर मारने वाला इज़राइल व अमेरिका के बाद दुनिया का तीसरा देश बना
हरिगोविंद विश्वकर्मा
14 फरवरी 2019 को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में आतंकी हमले के बाद 12 दिन बाद आज तड़के भारतीय वायु सेना ने लाइन ऑफ कंट्रोल पार करके पाकिस्तान में जैश-ए-मोहम्मद के बालाकोट कैंपों पर 1000 किलोग्राम बम गिराया जिससे सभी शिविर तबाह हो गए। इसके अलावा जैश का अल्फा-3 कंट्रोल रूम भी नष्ट कर दिया गया है। वायुसेना ने बताया कि हमले में तकरीबन 300 आतंकवादी भी मारे गए हैं। भारत आगे भी कार्रवाई करेगा और अगर पाकिस्तान की ओर से किसी भी तरह क प्रतिक्रिया या दुस्साहस किया जाता है तो भारतीय सेना पूरी दमखम के साथ सामना करने के लिए तैयार है।
भारतीय वायुसेना का ऑपरेशन इस्लामाबाद से 190 किलोमीटर दूर बालाकोट, जहां कई आतंकी शिविर है, में किया गया। ऑपरेशन को सर्जिकल स्ट्राइक 2 कहा जा रहा है। सर्जिकल स्ट्राइक 2 भी पहली सर्जिकल स्ट्राइक की तर्ज पर रात में की गई। वायुसेना ने इस बार तीन जगहों पर बमबारी की। पहला हमला वायुसेना के विमानों 3.45 बजे से 3.53 बजे के बीच किया। इसी तरह दूसरा और तीसरा हमला क्रमशः 3.48 से 3.55 बजे के बीच और 3.58 से 4.04 बजे के बीच हुआ। इसमें केवल 19 मिनट लगे और निशाने पर आतंकवादी संगठन के ठिकाने थे। 

सीधे शब्दों में कहें तो यह घर में घुसकर मारने की कार्रवाई। 14 फरवरी के पुलवामा आतंकी हमले का बदला लेते हुए भारतीय वायुसेना के मिराज 2000 विमानों ने एलओसी के उस पार जाकर आतंकवादी टेरर लॉन्चिंग पैड पर अंधाधुंध बम गिराए। यह साहसिक कार्रवाई करने के बाद दुश्मन को घर में घुसकर मारने वाला भारत इज़राइल और अमेरिका के बाद दुनिया का तीसरा देश बन गया है। इससे पहले दुश्मन को उसके घर में घुस कर केवल अमेरिका और इज़राइल ही मारते रहे हैं। अब भारत इन दोनों देशों के समकक्ष पहुंच गया है।

इसे भी पढ़ें - ट्रिपल तलाक़ - राजीव गांधी की ग़लती को सुधारने का समय

विदेश सचिव विजय गोखले ने मीडिया को बताया कि विश्वसनीय खुफिया जानकारी मिली थी कि देश के विभिन्न हिस्सों में जैश-ए-मोहम्मद एक और आत्मघाती आतंकी हमले की कोशिश कर रहा था। फिदायीन जिहादियों को इस काम के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा था। इसलिए भारत ने बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के सबसे बड़े कैंप पर हमला किया। आज तड़के भारत ने बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद का सबसे बड़ा प्रशिक्षण शिविर को ध्वस्त कर दिया। इस ऑपरेशन में जैश-ए-मोहम्मद में बड़ी संख्या में आतंकवादी, प्रशिक्षक, सीनियर कमांडर, फिदायीन हमला करने वाले जिहादी मारे गए। बालाकोट में बड़ी संख्या में जैश के आतंकवादी, ट्रेनर, सीनियर कमांडर को सफाया कर दिया गया। इस कैंप का नेतृत्व मसूद अजहर का बहनोई मौलाना यूसुफ अजहर उर्फ उस्ताद गौरी कर रहा था। वह भी मारा गया। उस्ताद गौरी इंडियन एयरलांइस के विमान IC-814 को अपहृत करके कंधार ले गया। जिसके बदले भारत को मौलाना मसूद अजहर समेत 5 आतंकवादियों को छोड़ना पड़ा था।  

दरअसल, जब भी सेना कोई ऐसा ऑपरेशन करती है जो स्पेशिफिक टारगेट ओरिएंटेड होता है यानी वह ऑपरेशन जिसमें सिविलियन्स को कोई नुकसान नहीं होता, केवल दुश्मन की सेना या जो टारगेट पर है उस पर स्ट्राइक करती है और उसी को नुकसान पहुंचाती है। इस तरह का हमला सेना की योजनाबद्ध तरीके से करती है। भारत पहले ही साफ कर दिया था कि पुलवामा आतंकी हमले का बदला लिया जाएगा। इसके बाद वायसेना ने रणनीति बनाई और पीएमओ से गो अहेड का सिग्नल मिलने के बाद भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमान एलओसी के अंदर घुस गए और जैश के आतंकवादी पैड अल्फा-3 कंट्रोल को नष्ट कर दिया।
दरअसल, इस तरह का हमला 'सरप्राइज' होता है, यानी टारगेट पर अचानक हमला कर दिया जाता है ताकि सामने वाले को जवाब देने का मौका ही न मिले। असल में यह वायुसेना का नियंत्रित हमला था। इसे वायुसेना ने खास तरह से डिजाइन किया था। भारतीय सेना की घर में घुसकर मारने की यह तीसरी घटना है। इससे पहले सेना ने दो साल दो सर्जकल स्ट्राइक किया था। सितंबर 2016 में स्पेशल फोर्सेज के कमांडोज़ कश्मीर में एलओसी के अंदर जाकर आतंकी लांच पैड को नष्ट किए थे, उससे पहले जून 2015 में म्यानमार के जंगल में घुसकर नगा आतंकवादियों को मार डाला था।

घर में घुसकर मारने के हुनर में इज़राइल अमेरिका से भी ज़्यादा ख़तरनाक रहा है। इज़राइल डिफेंस फोर्सेस के 100 कमांडो ने 4 जुलाई 1976 को यूगांडा में 'पॉपुलर फ्रंट फॉर द लिबरेशन फॉर फिलिस्तीन'  के आतंकवादियों के ख़िलाफ़ यूगांडा के एंटेबे हवाई अड्डे पर सर्जिकल स्ट्राइक किया था और सभी फिलीस्तीन आतंकवादियों को मौत के घाट उतार दिया था। दरअसल, फिलीस्तीन आतंकियों ने फ्रैंच विमान का अपहरण करके 106 इज़राइली नागरिकों को बंधक बना लिया था। सबसे बड़ी बात यूगांडा का राष्ट्रपति आतंकवादियों का समर्थन कर रहा था। उस कार्रवाई में इजराइली कमांडो ने यूगांडा के 37 जवानों को भी मार डाला था। अततः अपने नागरिकों को मुक्त कराकर इज़राइल वापस लौट गए थे। इज़राइल ने उस ऑपरेशन को 'ऑपरेशन एंटेबे' का नाम दिया था। उस ऑपरेशन में इज़राइल के मौजूदा प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के भाई लेफ्टिनेंट कर्नल योनातन नेतन्याहू शहीद हो गए थे।
सर्जिकल स्ट्राइक शब्द पहली बार 2001 में तब चर्चा में आया था। जब अमेरिका की अगुवाई में तालिबान और अल कायदा के ठिकानें पर हमला किया गया। अमेरिकी सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक के तहत एयरक्राफ्ट का इस्तेमाल किया था। बहरहाल, सर्जिकल स्ट्राइक का यह सिलसिला 2003 में शुरू हुए इराक युद्ध में भी चला। इराक युद्ध के दौरान इराकी तानाशाह सद्दाम हुसैन को पकड़ने के लिए अमेरिकी सेनाएं सर्जिकल स्ट्राइक करती थीं। अमेरिकी और 2004 में सद्दाम हुसैन को पकड़ने के लिए अमेरिका ने सर्जिकल स्ट्राइक किया था। दुनिया का सबसे बड़ा सर्जिकल स्ट्राइक अमेरिका ने मई 2011 में किया था और दुनिया के मोस्टवांटेड आतंकवादी ओसामा बिन लादेन को उसके ठिकाने पर घुस कर मार गिराया और उसका शव समुद्र में फेंक दिया। इस कार्य को अंजाम दिया अमेरिकी की इलीट पोर्स यूएस नेवी सील्स ने।

इसी तरह 1961 में अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैंनेडी ने क्यूबा के फीडल कास्ट्रो को सत्ताच्युत करने के लिए सर्जिकल स्ट्राइक किया था और कास्ट्रो को हटाने में सफल रहा। इस लड़ाई में स्पेशल फोर्स के कमांडोज़ ने कास्ट्रो समर्थक 100 सैनिकों को मार डाला था। 1979 में ईरानी छात्रों ने तेहरान में 53 अमेरिकी कर्मचारियों को अमेरिकन दूतावास में बंधक बना लिया था। जिमी कार्टर का वह सर्जिकल स्ट्राइक –ऑपरेशन ईगल क्लॉ- असफल रहा, क्योंकि अमेरिकन स्पेशल फोर्सेस को भारी नुसान उठाना पड़ा और किसी बंधक को छुड़ाया नहीं जा सका। 1989 में पनामा के तानाशह मैनुएल नोरिगा को सत्ताच्युत करने के लिए अमेरिका की स्पेशल फोर्सेस ने सर्जिकल स्ट्राइक किया। इस ऑपरेशन को अंजाम लादेन को मारने वाली यूएस नेवी सी ने दिया। हमले के बाद अततः नोरिगा ने समर्पण कर दिया।

सन् 1993 में यूएस स्पेशल फोर्स को सोमाली सेनापति मोहम्मद फराह ऐदीदी को पकड़ने के लिए किया गया सर्जिकल स्ट्राइक बुरी तरह असफल रहा। विरोधी सैनिकों ने दो यूएस ब्लैक हॉक हेलिकॉप्टर को मार गिराया। 18 अमेरिकी जवान मारे गए जबकि 70 ज़ख्मी हुए। सन् 2003 में इराकी सेना ने सीरिया में यूएस सोल्जर जेसिका लिंच को पकड़ लिया। नौ दिन बाद अमेरिकी स्पेशल फोर्स ने अस्पताल पर सर्जिकल स्ट्राइक करके जसिका को छुड़ा लिया। सन् 2003 में ही सीआईए ने सर्जिकल स्ट्राइक पाकिस्तान में किया। दरअसल 9/11 का की प्लानर खालिद शेख मोहम्मद समेत कई आतंकवादियों के पकड़ने के लिए यह ऑपरेशन किया गया। सर्जिकल स्ट्राइक रावलपिंडी में हुई थी। सन् 2006 में इराक में अल क़ायदा नेता अबु मुसाब अल-ज़रवाक़ी को पकड़ने के लिए सर्जिकल स्ट्राइक किया था। इस हमले में अबु मुसाब अल-ज़रवाक़ी अमेरिकी सेना के हाथ मारा गया।

मंगलवार, 19 फ़रवरी 2019

कुलभूषण जाधव भारत वापस आएंगे या सरबजीत जैसा होगा हाल?

कुलभूषण जाधव भारत वापस आएंगे या सरबजीत जैसा होगा हाल?

हरिगोविंद विश्वकर्मा
जम्मू कश्मीर के पुलवामा आतंकी हमले में शहीद जवानों को श्रद्धांजलि देने और पाकिस्तान को कड़ा सबक़ सिखाने के अलावा एक और बात आजकल हर भारतीय के मन में कौंध रही है कि क्या भारत पूर्व इंडियन नेवी ऑफ़िसर कुलभूषण जाधव को सकुशल स्वदेश लाने में सफल हो सकेगा या इस भारतीय सपूत का हश्र सरबजीत सिंह की तरह ही होगा?

दुनिया देख चुकी है कि पाकिस्तान के लाहौर की सेंट्रल जेल में कैसे सरबजीत को पीट पीटकर मार डाला गया था। सरबजीत के बारे में पाकिस्तान की बताई कहानी के अनुसार, 26 अप्रैल 2013 को तक़रीबन दोपहर के 4.30 बजे सेंट्रल जेल, लाहौर में कुछ कैदियों ने ईंट, लोहे की सलाखों और रॉड से सरबजीत पर हमला कर दिया था। नाजुक हालत में सरबजीत को लाहौर के जिन्ना अस्पताल में भर्ती करवाया गया। इलाज के दौरान वह कोमा में चले गए और 1 मई 2013 को जिन्ना हॉस्पिटल के डॉक्टरों  ने सरबजीत को ब्रेनडेड घोषित कर दिया। लिहाज़ा उनका शव भारत वापस आया था।

इसे भी पढ़ें - क्या मोदी का अंधविरोध ही मुसलमानों का एकमात्र एजेंडा है?

कुलभूषण जाधव को पाकिस्तान की सैनिक अदालत ने फांसी की सज़ा सुनाई है और वह फिलहाल जेल में बंद है। भारत की ओर से पाकिस्तान के इस एकतरफा फ़ैसले को इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस को चुनौती दी है। इस केस की अगली सुनवाई 19 फरवरी से हेग में शुरू हो रही है। इस मुक़दमे में इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस में भारत का पक्ष बेहद मज़बूत है। अगर भारत की ओर से इस केस में किसी तरह की बड़ी भूल या ब्लंडर नहीं किया गया तो इस बात की पूरी संभावना है कि अंतरराष्ट्रीय अदालत भारत के पक्ष में फ़ैसला दे सकता है। अगर यह मुमकिन हुआ तो भारतीय विदेश नीति के लिए यह इतिहास की सबसे बड़ी जीत होगी। हेग में इस केस की अगली सुनवाई के दौरान पाकिस्तान अपना पक्ष रखेगा। इस तरह कह सकते हैं कि जाधव का मामला आने वाले दिनों में एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्ख़ियों में आने वाला है।

अंतरराष्ट्रीय अदालत में पिछले साल 31 दिसंबर, 2018 को पाकिस्तान ने जाने या अनजाने एक ऐसा क़दम उठाया जिससे भारत और कुलभूषण जाधव का पक्ष और भी ज़्यादा मज़बूत हो गया। पाकिस्तानी प्रतिनिधि ने अंतरराष्ट्रीय अदालत के उस फ़ैसले के पक्ष में वोट दिया, जिसका संदर्भ भारत ने कुलभूषण जाधव के केस में दिया है। पाकिस्तान के इस क़दम को कुलभूषण केस में किया गया सेल्फ़-गोल माना गया था। दरअसल, पहले सुनवाई के दौरान भारत ने कुलभूषण को कांसुलर ऐक्सेस न देने के मामले में 2004 के अवीना केस और दूसरे मेक्सिकन नागरिकों के संदर्भ में इंटरनेशनल कोर्ट के फ़ैसले से जोड़ दिया था। इस केस में अमेरिका पर वियना कन्वेंशन का उल्लंघन करने का आरोप साबित हुआ था। अमेरिका ने मेक्सिको को मौत की सजा पाए मेक्सिकन नागरिकों को कांसुलर ऐक्सेस नहीं दी थी।

इसे भी पढ़ें - ट्रिपल तलाक़ - राजीव गांधी की ग़लती को सुधारने का समय

दरअसल, पाकिस्तान ने उस समय भारत समेत 68 दूसरे देशों के साथ संयुक्त राष्ट्र के उस प्रस्ताव के समर्थन में वोट किया था, जिसमें कहा गया है कि अमेरिका अंतरराष्ट्रीय अदालत के अवीना फ़ैसले को तत्काल जस का तस लागू करे। अमेरिका 14 साल से लागू करने से इनकार कर रहा है। चूंकि पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय अदालत के फ़ैसले के पक्ष में वोट दिया है, इसलिए यही फ़ैसला कुलभूषण के मामले में अब उसके गले की हड्डी बनने जा रहा है। भारत की ओर से निश्चित तौर पर कोर्ट के समक्ष अवीना जजमेंट के समर्थन में पाकिस्तान के वोट देने का मसला भी उठाया जाएगा।

अंतरराष्ट्रीय अदालत में जिरह के दौरान भारत की ओर से यही पूछा जाएगा कि अगर पाकिस्तान अवीना जजमेंट को लागू करने का पक्षधर है, जो वस्तुतः भारत के स्टैड का केंद्र बिंदु है तो वह कुलभूषण जाधव केस में उसी फ़ैसले को मानने से इनकार क्यों कर रहा है? अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में पाकिस्तान अपने स्टैड के ख़िलाफ़ जाकर वोट दे दिया था। इससे पहले वह कहता था कि कुलभूषण जाधव का मामला अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है। जाधव को जासूस बताकर पाकिस्तान की सैन्य अदालत मौत की सजा सुना चुकी है और इसके बाद भी भारत को जाधव तक पहुंचने की राजनयिक पहुंच की अनुमति नहीं दी। कुलभूषण के बारे में भारत की ओर से 16 बार राजनयिक के ज़रिए जानकारी मांगी गई, लेकिन पाकिस्तान लगातार इनकार करता रहा और कोई जानकारी नहीं दी।

वस्तुत: वियना संधि समझने के लिए अवीना केस ठीक से समझना बहुत ज़रूरी है। अवीना केस मेक्सिको के 54 नागरिकों का मामला है, जिन्हें अमेरिका के विभिन्न राज्यों में मौत की सज़ा सुनाई गई थी। मेक्सिको ने जनवरी 2003 में अमेरिका के ख़िलाफ़ अंतरराष्ट्रीय अदालत की शरण में पहुंचा। मेक्सिको ने कहा कि उसके नागरिकों को गिरफ़्तार कर मुक़दमा चलाया गया और दोषी ठहराकर मौत की सज़ा सुना दी गई, जो वियना कन्वेंशन के अनुच्छेद 36 का सीधा उल्लंघन है। दरअसल, दुनिया के सभी स्वतंत्र एवं संप्रभु देशों के बीच आपसी राजनयिक संबंध को लेकर राष्ट्र संघ की पहल पर सबसे पहले सन् 1961 में वियना सम्मेलन हुआ। इसमें राजनियकों को विशेष अधिकार देने के लिए अंतरराष्ट्रीय संधि का प्रावधान किया गया। 1963 में इस संधि को और विस्तृत रूप दिया गया। इसे ‘वियना कन्वेंशन ऑन कांसुलर रिलेशंस’ कहा गया। इसका मकसद विभिन्न देशों के बीच कांसुलर रिलेशंस का ख़ाका तैयार करना था। किसी देश का कांसुल दूसरे देश में दो तरह के काम करता है। पहला, मेजबान देश में अपने नागरिकों के हितों की रक्षा करना। दूसरा, उस देश के साथ आर्थिक और वाणिज्यिक संबंध स्‍थापित करना।

इसे भी पढ़ें - इजराइल से क्यों नफ़रत करते हैं मुस्लिम ?

इस अहम अंतरराष्ट्रीय संधि में कुल 79 अनुच्छेद हैं, जिनमें अनुच्छेद 36 सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण हैं। इसके तहत अगर कोई विदेशी नागरिक गिरफ़्तार किया गया है या हिरासत में लिया गया है तो बिना किसी देरी के उसका (गिरफ्तार व्यक्ति का) उसके देश के दूतावास या कांसुलेट से तुरंत संपर्क कराया जाना चाहिए और गिरफ़्तारी या हिरासत में रखने की सूचना उन्‍हें दी जानी चाहिए। गिरफ़्तार विदेशी नागरिक के आग्रह पर पुलिस को संबंधित दूतावास या राजनयिक को फ़ैक्स करके इसकी सूचना भी देनी पड़ेगी। फ़ैक्स में गिरफ़्तार व्यक्ति का नाम, गिरफ़्तारी की जगह और वजह भी बतानी होगी। गिरफ़्तार विदेशी नागरिक को किसी भी सूरत में राजनयिक पहुंच देनी होगी। वियना संधि का ड्राफ्ट इंटरनेशनल लॉ कमीशन ने तैयार किया। 1964 में यह संधि लागू हुई। फरवरी 2017 तक इस संधि पर कुल 191 देशों ने दस्तख़त कर चुके थे। अंतरराष्ट्रीय अदालत ने अमेरिका को वियना कन्वेंशन का खुल्लम खुल्ला उल्लंघन करने का दोषी ठहराया और अपने फ़ैसले में कहा कि अमेरिका मेक्सिकन नागिरकों को सुनाई गई सजा पर फिर से विचार करे और मेक्सिको को कांसुलर ऐक्सेस दे।

अमेरिका को अंतरराष्ट्रीय अदालत ने वियना संधि का उल्लंघन करने का दोषी ठहराया और कहा कि अमेरिका सजा पर पुनर्विचार करे और मेक्सिको को कांसुलर ऐक्सेस दे। भारत ने इंटरनेशनल कोर्ट में कुलभूषण का केस इसी संधि के तहत उठाया है। अनुच्छेद 36 के प्रावधानों का हवाला देते हुए भारत ने कहा कि पाकिस्तान कुलभूषण के बारे में कोई जानकारी क्यों नहीं दे रहा है? जाधव को राजनयिक पहुंच दूर क्यों रखा जा रहा है? भारत कुलभूषण के ख़िलाफ़ दायर आरोपपत्र की कॉपी मांग रहा है, लेकिन पाकिस्तान साफ़ इनकार कर रहा है। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून के जानकारों का भी मानना है कि पाकिस्तान तथ्य जिस तरह छुपा रहा है या सूचना देने से आनाकानी कर रहा है, वह संदेह पैदा कर रहा है। कम से कम कोई देश किसी भी विदेशी जासूस के साथ ऐसा सलूक नहीं करता कि संबंधित देश को उसके बारे में कोई जानकारी ही न दी जाए। हेग में पिछली सुनवाई में भारत ने अपना पक्ष बड़ी मज़बूती से रखा था। कुलभूषण की गिरफ़्तारी को भारत ने वियना संधि का उल्लंघन साबित कर किया तो अदालत ने इस्लामाबाद को जमकर लताड़ लगाई थी। इसलिए इस बार इमरान ख़ान सरकार ज़्यादा सतर्क है। पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कहा है कि कथित भारतीय जासूस के खिलाफ पक्के सबूत पेश करेगा। पाकिस्तान की कानूनी टीम इस पर दिन रात काम कर रही है।

इसे भी पढ़ें - तो क्या बचाया जा सकता था गांधीजी को?

पाकिस्तान का आरोप है कि कुलभूषण जाधव भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के लिए काम करते थे। वह ईरान से इलियास हुसैन मुबारक़ पटेल के नकली नाम पर पाकिस्तान आया जाया करते थे। इस्लामाबाद का कहना है कि 29 मार्च 2016 को उन्हें बलूचिस्तान प्रांत के किसी जगह से गिरफ़्तार किया गया। पाकिस्तान का दावा है कि कुलभूषण बलूचिस्तान में विध्वंसक गतिविधियों में शामिल रहे हैं। इसी आरोप के लिए 11 अप्रैल 2017 को पाकिस्तान के मिलिट्री कोर्ट ने कुलभूषण को मौत की सजा सुनाई, जिसका भारत सरकार व भारतीय जनता ने भारी विरोध किया। भारत सारे आरोपों से इनकार करता आया है। उसका कहना है कि कुलभूषण को ईरान से किडनैप कर लिया गया। भारत हमेशा उन्हें इंडियन नेवी से रिटायर्ड ऑफ़िसर ही कहता रहा है जो ईरान में अपना बिज़नेस कर रहे थे। भारत ने साफ़ कर दिया है कि कुलभूषण जाधव का देश की सरकार से कोई लेना-देना नहीं है।भारत का दावा है कि कुलभूषण को ईरान से किडनैप किया गया। सन् 1970 में महाराष्ट्र के सांगली में जन्मे कुलभूषण के पिता सुधीर जाधव मुंबई पुलिस में वरिष्ठ अधिकारी रहे हैं। उनका बचपन दक्षिण मुंबई में गुजरा था। उम्र में बड़े उन्हें भूषण और छोटे उन्हें “भूषण दादा” कहते थे। फुटबॉल के शौक़ीन कुलभूषण ने 1987 में नेशनल डिफेन्स अकादमी में प्रवेश लिया। 1991 में नौसेना में शामिल हुए। सेवा-निवृति के बाद ईरान में व्यापार शुरू किया था। उसी सिलसिले में वह ईरान में थे, जहां से अपहृत करके उन्हें पाकिस्तान ले जाया गया था।

भारत में लोग कुलभूषण की गिरफ़्तारी की ख़बर आने के बाद से ही ख़ासे परेशान हैं। वॉट्सअप, फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल नेटवर्किंग पर कुलभूषण को बचाने के लिए कई साल से मुहिम चल रही है और उन्हें किसी भी क़ीमत पर सकुशल देश में लाने की अपील प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से की जा रही है। भारत में लोगों का मानना है कि सरकार को अपनी पूरी ताकत झोंक देनी चाहिए ताकि कुलभूषण को सही सलामत वापस स्वदेश वापस लाया जा सके।