हरिगोविंद विश्वकर्मा
सुप्रीम कोर्ट के लिए मेरे मन में वही सम्मान है जो पूरे देशवासियों के मन में है. इसलिए मैं पूरे सम्मान के साथ देश की सबसे बड़ी अदालत से पूछना चाहूंगा कि आख़िर किस आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को दो विकल्प दियाः पहला जल्दी से दिल्ली में सरकार बनाई जाए या दूसरा, विधानसभा चुनाव कराए जाएं. जबकि सुप्रीम कोर्ट को भी यह पता है कि दिल्ली विधानसभा में न तो भारतीय जनता पार्टी के पास सरकार बनाने लायक बहुमत है, न ही आम आदमी पार्टी के पास. अगर उपराज्यपाल की पहल पर बीजेपी सरकार बनी तो शक्ति-परीक्षण के दौरान हर दल अपने विधायकों के लिए ह्विप जारी करेगा. तब कांग्रेस या आप का जो विधायक अपने दल का निर्देश नहीं मानेगा और बीजेपी सरकार को किसी भी सूरत में समर्थन देगा, दल-बदल क़ानून के तहत उसकी सदस्यता ख़त्म हो जाएगी. ऐसे में 29 सदस्यों वाली संभावित बीजेपी सरकार काम कैसे करेगी? वह दिल्ली की जनता के लिए क़ानून कैसे बनाएगी?
67 सदस्यों वाली दिल्ली विधानसभा में बीजेपी के पास 29 सीट और आप के पास 27 सीट और कांग्रेस के पास 8 सीट है. तीनों दलों ने ऐलान कर दिया है कि एक दूसरे का किसी भी सूरत में समर्थन नहीं करेंगे. जब तीनों दल में कोई तालमेल ही नहीं, कोई सहमति नहीं, तब दिल्ली में सरकार कैसे बन सकती है? यानी सरकार बनाने का एक मात्र रास्ता है विधायकों की ख़रीद-फ़रोख़्त हो. यानी सुप्रीम कोर्ट के इस विकल्प से विधायकों की ख़रीद-फ़रोख़्त की पूरी आशंका है. यह बात सुप्रीम कोर्ट के जज न जानते हो, यह नहीं कह सकते.
ऐसे में माननीय सुप्रीम कोर्ट को साफ़-साफ़ कहना चाहिए था कि जब किसी के पास सरकार बनाने लायक बहुमत ही नहीं है, तब यथाशीघ्र राज्य में विधानसभा चुनाव कराए जाने चाहिए जिससे दिल्ली की जनता को लोकप्रिय सरकार मिल सके. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा कुछ नहीं किया. जिससे थोड़ी भी समझ रखने वाला नागरिक हैरान है. सुप्रीम कोर्ट को संविधान का संरक्षक भी माना जाता है, लिहाज़ा, संरक्षक को त्रिशंकु विधानसभा में ग़ैरक़ानूनी या ग़ैरसंवैधानिक काम होने से रोकने की पहल करनी चाहिए थी. न कि एक महीने का समय देना चाहिए था जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने किया है.
इस सूरत-ए-हाल में आम आदमी सोचने लगता है कि सुप्रीम कोर्ट का पांच सदस्यों की संविधान पीठ ने इस तरह का हैरान करने वाला फ़ैसला क्यों लिया? क्या चाहते हैं देश के सबसे प्रतिष्ठित जज? ख़ासकर ऐसे समय जब अभी हाल ही में रिटायर हुए मुख्य न्यायाधीश hr सदाशिवम को केरल का राज्यपाल बनाया गया है. क्या केंद्र सरकार ने एक रिटायर मुख्य न्यायाधीश को राज्यपाल बनाकर यह संकेत दे दिया कि सरकार का पक्ष लेने वाले जजों का ख़याल रखा जाएगा. देश में न्यायपालिका, ख़ासकर शीर्ष न्यायपालिका, ही एकमात्र ऐसा संस्थान रहा है जहां, लोग अब भी उम्मीद के साथ देखते हैं. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट को केंद्र सरकार को एक महीने का समय देने से पहले संभावित पहलुओं पर ग़ौर नहीं करना चाहिए था. आपकी क्या राय है? क्या आप सुप्रीम कोर्ट के आदेश से सहमत हैं?
http://harigovindvishwakarma.blogspot.com/2014/08/blog-post_50.html
सुप्रीम कोर्ट के लिए मेरे मन में वही सम्मान है जो पूरे देशवासियों के मन में है. इसलिए मैं पूरे सम्मान के साथ देश की सबसे बड़ी अदालत से पूछना चाहूंगा कि आख़िर किस आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को दो विकल्प दियाः पहला जल्दी से दिल्ली में सरकार बनाई जाए या दूसरा, विधानसभा चुनाव कराए जाएं. जबकि सुप्रीम कोर्ट को भी यह पता है कि दिल्ली विधानसभा में न तो भारतीय जनता पार्टी के पास सरकार बनाने लायक बहुमत है, न ही आम आदमी पार्टी के पास. अगर उपराज्यपाल की पहल पर बीजेपी सरकार बनी तो शक्ति-परीक्षण के दौरान हर दल अपने विधायकों के लिए ह्विप जारी करेगा. तब कांग्रेस या आप का जो विधायक अपने दल का निर्देश नहीं मानेगा और बीजेपी सरकार को किसी भी सूरत में समर्थन देगा, दल-बदल क़ानून के तहत उसकी सदस्यता ख़त्म हो जाएगी. ऐसे में 29 सदस्यों वाली संभावित बीजेपी सरकार काम कैसे करेगी? वह दिल्ली की जनता के लिए क़ानून कैसे बनाएगी?
67 सदस्यों वाली दिल्ली विधानसभा में बीजेपी के पास 29 सीट और आप के पास 27 सीट और कांग्रेस के पास 8 सीट है. तीनों दलों ने ऐलान कर दिया है कि एक दूसरे का किसी भी सूरत में समर्थन नहीं करेंगे. जब तीनों दल में कोई तालमेल ही नहीं, कोई सहमति नहीं, तब दिल्ली में सरकार कैसे बन सकती है? यानी सरकार बनाने का एक मात्र रास्ता है विधायकों की ख़रीद-फ़रोख़्त हो. यानी सुप्रीम कोर्ट के इस विकल्प से विधायकों की ख़रीद-फ़रोख़्त की पूरी आशंका है. यह बात सुप्रीम कोर्ट के जज न जानते हो, यह नहीं कह सकते.
ऐसे में माननीय सुप्रीम कोर्ट को साफ़-साफ़ कहना चाहिए था कि जब किसी के पास सरकार बनाने लायक बहुमत ही नहीं है, तब यथाशीघ्र राज्य में विधानसभा चुनाव कराए जाने चाहिए जिससे दिल्ली की जनता को लोकप्रिय सरकार मिल सके. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा कुछ नहीं किया. जिससे थोड़ी भी समझ रखने वाला नागरिक हैरान है. सुप्रीम कोर्ट को संविधान का संरक्षक भी माना जाता है, लिहाज़ा, संरक्षक को त्रिशंकु विधानसभा में ग़ैरक़ानूनी या ग़ैरसंवैधानिक काम होने से रोकने की पहल करनी चाहिए थी. न कि एक महीने का समय देना चाहिए था जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने किया है.
इस सूरत-ए-हाल में आम आदमी सोचने लगता है कि सुप्रीम कोर्ट का पांच सदस्यों की संविधान पीठ ने इस तरह का हैरान करने वाला फ़ैसला क्यों लिया? क्या चाहते हैं देश के सबसे प्रतिष्ठित जज? ख़ासकर ऐसे समय जब अभी हाल ही में रिटायर हुए मुख्य न्यायाधीश hr सदाशिवम को केरल का राज्यपाल बनाया गया है. क्या केंद्र सरकार ने एक रिटायर मुख्य न्यायाधीश को राज्यपाल बनाकर यह संकेत दे दिया कि सरकार का पक्ष लेने वाले जजों का ख़याल रखा जाएगा. देश में न्यायपालिका, ख़ासकर शीर्ष न्यायपालिका, ही एकमात्र ऐसा संस्थान रहा है जहां, लोग अब भी उम्मीद के साथ देखते हैं. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट को केंद्र सरकार को एक महीने का समय देने से पहले संभावित पहलुओं पर ग़ौर नहीं करना चाहिए था. आपकी क्या राय है? क्या आप सुप्रीम कोर्ट के आदेश से सहमत हैं?
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