3,787 भारतीयों का हत्यारा एंडरसन बिना सज़ा भोगे मर गया
सरकार और न्यायपालिका के गाल पर तमाचा
हरिगोविंद विश्वकर्मा
भोपाल के करीब चार हजार मासूमों का हत्यारा अंततः मगर गया। उसे भारत लाकर सजा नहीं दी जा सकी. यह भारत सरकार की असफलता तो है ही, उससे ज़्यादा सड़ी हुई भारतीय न्याय-व्यवस्था की असफलता है। अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड का प्रमुख और भोपाल गैस त्रासदी में भगोड़ा वारेन एंडरसन बिना दंड भोगे ही मर गया। एंडरसन की मौत 29 सितंबर को ही हो गई थी लेकिन खबर अब सामने आई है।
जो न्याय-व्यवस्था किसी केस की सुनवाई 30 साल में भी न कर सके, वह बेकार उसे तुरंत बदलने की ज़रूरत है। उसे इंसाफ़ करने के और नाटक करने से रोका जाना चाहिए। तमाम जज आख़िर करते क्या रहे। अभी तक मुकदमे का निपटारा नहीं हो सका।
हादसे के बाद एंडरसन गिरफ्तार भी हुआ था, लेकिन कुछ ही घंटों में कोर्ट द्वारा उसे जमानत पर छोड़ दिया गया। अदालत को पता था एंडरसन रिहा होते ही अमेरिकी भाग जाएगा। फिर उसे जमानत क्यों दी। ढेर सारे अपराधी अदालत द्वारा रिहा कर दिए जाते हैं और बाद में फरार हो जाते हैं। यानी भोपाल के लोगों को इंसाफ न मिल पाने की सबसे ज्यादा जवाबदेही भारतीय आदालतों पर हैं। इसके बाद से उसे अमेरिका से भारत लाने का नाटक हुआ। नाटक तो नाटक होता है लिहाजा कामयाबी कैसे मिलती। एक कोर्ट ने उसे भगोड़ा घोषित जरूर किया। लेकिन हुआ कुछ नहीं। अब एंडरसन की मौत के साथ ही इंसाफ की उम्मीद भी खत्म हो गई।
30 साल पहले 1984 में 2-3 दिसंबर की रात में भोपाल में कार्बाइड के प्लांट से गैस रिसने से मध्य प्रदेश सरकार के मुताबिक कुल 3,787 मौते हुई थी। गैर सरकारी आकलन का कहना है कि मौतों की संख्या 10 हजार से भी ज्यादा थी। पांच लाख से ज्यादा लोग घायल हो गए थे, बहुतों की मौत फेफड़ों के कैंसर, किडनी फेल हो जाने और लीवर से जुड़ी बीमारी के चलते हुई।
भोपाल के लोगों को इसलिए भी इंसाफ नहीं मिल पाया क्योंकि सारे मरने वाले और विकलांग होने वाले प्रजा वर्ग के लोग थे। सत्ता वर्ग के लिए वे कीड़े-मकोड़े से ज्यादा हैसियत नहीं रखते. इसीलिए वे इंसाफ से वंचित रहे। इतने ढेर सारे लोगों की हत्या करने वाले को सत्ता वर्ग के लोगों ने बचा लिया क्योंकि वह उन्ही की जमात का था।
ये मूर्ख सोचते हैं सत्ता वर्ग के लोग उनका ध्यान रखेंगे। कितने गलतफहमी में जीते हैं ये भोलेभाले लोग। भगवान इनमूर्खों को सद्बुद्धि दे। ये हितैषी औरदुश्मन में फर्क कर सकें।
वर्ष 1989 में, यूनियन कार्बाइड ने भारत सरकार को इस आपदा के कारण शुरू हुए मुकदमे के निपटान के लिए 47 करोड़ डॉलर दिए थे। वह भी सत्ता वर्ग के लोग डकार गए।
सरकार और न्यायपालिका के गाल पर तमाचा
हरिगोविंद विश्वकर्मा
भोपाल के करीब चार हजार मासूमों का हत्यारा अंततः मगर गया। उसे भारत लाकर सजा नहीं दी जा सकी. यह भारत सरकार की असफलता तो है ही, उससे ज़्यादा सड़ी हुई भारतीय न्याय-व्यवस्था की असफलता है। अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड का प्रमुख और भोपाल गैस त्रासदी में भगोड़ा वारेन एंडरसन बिना दंड भोगे ही मर गया। एंडरसन की मौत 29 सितंबर को ही हो गई थी लेकिन खबर अब सामने आई है।
जो न्याय-व्यवस्था किसी केस की सुनवाई 30 साल में भी न कर सके, वह बेकार उसे तुरंत बदलने की ज़रूरत है। उसे इंसाफ़ करने के और नाटक करने से रोका जाना चाहिए। तमाम जज आख़िर करते क्या रहे। अभी तक मुकदमे का निपटारा नहीं हो सका।
हादसे के बाद एंडरसन गिरफ्तार भी हुआ था, लेकिन कुछ ही घंटों में कोर्ट द्वारा उसे जमानत पर छोड़ दिया गया। अदालत को पता था एंडरसन रिहा होते ही अमेरिकी भाग जाएगा। फिर उसे जमानत क्यों दी। ढेर सारे अपराधी अदालत द्वारा रिहा कर दिए जाते हैं और बाद में फरार हो जाते हैं। यानी भोपाल के लोगों को इंसाफ न मिल पाने की सबसे ज्यादा जवाबदेही भारतीय आदालतों पर हैं। इसके बाद से उसे अमेरिका से भारत लाने का नाटक हुआ। नाटक तो नाटक होता है लिहाजा कामयाबी कैसे मिलती। एक कोर्ट ने उसे भगोड़ा घोषित जरूर किया। लेकिन हुआ कुछ नहीं। अब एंडरसन की मौत के साथ ही इंसाफ की उम्मीद भी खत्म हो गई।
30 साल पहले 1984 में 2-3 दिसंबर की रात में भोपाल में कार्बाइड के प्लांट से गैस रिसने से मध्य प्रदेश सरकार के मुताबिक कुल 3,787 मौते हुई थी। गैर सरकारी आकलन का कहना है कि मौतों की संख्या 10 हजार से भी ज्यादा थी। पांच लाख से ज्यादा लोग घायल हो गए थे, बहुतों की मौत फेफड़ों के कैंसर, किडनी फेल हो जाने और लीवर से जुड़ी बीमारी के चलते हुई।
भोपाल के लोगों को इसलिए भी इंसाफ नहीं मिल पाया क्योंकि सारे मरने वाले और विकलांग होने वाले प्रजा वर्ग के लोग थे। सत्ता वर्ग के लिए वे कीड़े-मकोड़े से ज्यादा हैसियत नहीं रखते. इसीलिए वे इंसाफ से वंचित रहे। इतने ढेर सारे लोगों की हत्या करने वाले को सत्ता वर्ग के लोगों ने बचा लिया क्योंकि वह उन्ही की जमात का था।
ये मूर्ख सोचते हैं सत्ता वर्ग के लोग उनका ध्यान रखेंगे। कितने गलतफहमी में जीते हैं ये भोलेभाले लोग। भगवान इनमूर्खों को सद्बुद्धि दे। ये हितैषी औरदुश्मन में फर्क कर सकें।
वर्ष 1989 में, यूनियन कार्बाइड ने भारत सरकार को इस आपदा के कारण शुरू हुए मुकदमे के निपटान के लिए 47 करोड़ डॉलर दिए थे। वह भी सत्ता वर्ग के लोग डकार गए।