हरिगोविंद
विश्वकर्मा
आजकल सचिन तेंदुलकर
अपनी किताब 'प्लेइंग इट माई वे' को बेचने के लिए, पूर्व कोच ग्रेग
चैपल के बारे में खूब बयान दे रहे हैं। अब सवाल यह पैदा होता है कि अगर भारतीय
क्रिकेट को ग्रेग चैपल से इतना खतरा था तो संचिन तेंदुलकर ने उसी समय आवाज क्यों
नहीं उठाई। तब वह टीम के बेहद सीनियर खिलाड़ी थे और भारतीय क्रिकेट का कोई अगर नुकसान
कर रहा था तो उसे फौरन उसे हटाने की मांग कर सकते थे लेकिन सचिन ने ऐसा कुछ भी
नहीं किया। उलटे सचिन ग्रेग चैपल के मार्गदर्शन में खेलते रहे। यहां तक कि जब ग्रेग
चैपल ने जब सौरव गांगुली को निशाना बनाना शुरू किया तब भी एकदम सचिन चुप थे। और तटस्थ होकर खेलते रहे। सचिन की यही चुप्पी उनकी भारतीय
क्रिकेट के प्रति निष्ठा पर एक गंभीर सवाल खड़ा करती है। अब किताब बेचनी है तो वह
भी नटवर सिंह और संजय बारू की तरह सनसनी परोस रहे हैं।
एक ऐसे खिलाड़ी जिसे
भारत रत्न दिया जा चुका हो उससे अपनी किताब बेचने के लिए इस तरह के हथकंडे का
सहारा नहीं लेना चाहिए था, लेकिन सचिन अब किताब को बेचने के लिए उसमें उन घटनाओं
का जिक्र कर दिया है, जिनकी सत्यता संदिग्ध है।
जो भी हो सचिन
तेंदुलकर अगस्त के बाद फिर चर्चा में है। सचिन और लता मंगेशकर और अमिताभ बच्चन हर काम केवल और केवल अपने या अपने परिवार या अपनी
कंपनी के फ़ायदे के लिए करते हैं। ये महान व्यक्तित्व इतनी ऊंचाई तक पहुंचने के
बावजूद कभी निहित स्वार्थ से ऊपर नहीं ऊठ पाए। यह आदत इनके महान क़द को छोटा कर
देता है।
सचिन का दमन साफ
नहीं है। कांग्रेस द्वारा राज्यसभा सदस्य बनाने जाने के बाद भी वह विज्ञापनों की
शूटिंग के लिए ख़ूब समय निकालते रहे हैं,
क्योंकि उससे मोटी रकम मिलती है। इसीलिए, क्रिकेट को अलविदा कहने के बावजूद महेंद्र सिंह धोनी और विराट कोहली के सचिन
विज्ञापन से सबसे ज़्यादा कमाई करने वाले मॉडल हैं। सचिन आज भी बहुराष्ट्रीय कंपनी
अविवा, कोकाकोला,
अदिदास,
तोशीबा,
फ़्यूचर ग्रुप, एसएआर ग्रुप, स्विस घड़ी कंपनी ऑडिमार्स से जुड़े हुए हैं। कई छोटी-मोटी कंपनियों के
प्रॉडक्ट भी बेचते रहते हैं। तभी तो 2013 में फ़ोर्ब्स ने उनकी कमाई 22 मिलियन डॉलर बताई थी। दरअसल,
राज्यसभा में सचिन जाएं या न जाएं, उनको उतना ही पैसा (वेतन-भत्ता) मिलेगा। लिहाज़ा संसद में बैठकर वक़्त जाया
करने की बजाय वह अपना कीमती वक़्त कॉमर्शियल शूटिंग्स को देते हैं।
क्रिकेटर के रूप में
सचिन ने कभी कोई ऐसी पारी नहीं खेली जिससे भारत को जीत मिली हो। इसीलिए, “विज़डन की 100 बेस्ट इनिंग्स” में सचिन की कोई
पारी नहीं है। जबकि सुनील गावस्कर,
वीवीएस लक्ष्मण, राहुल द्रविड़, सौरव गांगुली, गुलडप्पा विश्वनाथ, कपिलदेव और वीरेंद्र सेहवाग जैसे अनेक भारतीय बल्लेबाज़ हैं जिनकी कोई न कोई
पारी विज़डन का 100 बेस्ट पारियों में रही है।
सचिन की टेस्ट मैच, वनडे और टी-20 मैचों में बल्लेबाज़ी का बारीक़ी से अध्ययन
करें तो जब भी भारत संकट में रहा,
वह सस्ते में पैवेलियन लौट गए। टेस्ट मैच में एक
बार पाकिस्तान के ख़िलाफ़ भारत मैच जीतने की पोज़िशन में था लेकिन शतक बनाने के
थोड़ी देर बाद ही सचिन आउट हो गए और भारत मैच हार गया। सचिन ने 200 टेस्ट की 329 पारियों में 53 के औसत से 15921 रन बनाए लेकिन उनके ज़्यादातर शतक ड्रा हुए मैचेज़ में रहे। वह गेंदबाज़ों की
तूफानी या शॉर्टपिच गेंद कभी विश्वास से नहीं खेल पाए। उन्हें डेनिस लिली, माइकल
होल्डिंग, गारनर, मार्शल आदि की गेंदे खेलने का अवसर तो नहीं मिला। हां, अपने मसय
में उन्होंने डेल स्टेन,
डोनाल्ड,
मैकग्रा, ली,
वकार,
इयान, विशप या मलिंगा की गेंदों के सामने उनके
खाते में बहुत ज़्यादा रन नहीं हैं। उनका खेल बांग्लादेश या जिंबाब्वे की फिसड्डी
टीमों के ख़िलाफ़ सबसे उम्दा रहा है। उनका करीयर बेस्ट अविजित 248 भी बांग्लादेश के ख़िलाफ़ ही है। दरअसल,
यूएनआई में नौकरी के दौरान इन पंक्तियों के लेखक
ने काफ़ी रिसर्च के बाद सचिन पर इसी तरह की एक बढ़िया रिपोर्ट फ़ाइल की थी लेकिन
उसे सचिन विरोधी क़रार देते हुए एजेंसी ने रिलीज़ नहीं की क्योंकि उस समय सचिन के
बारे में निगेटिव लिखना तो दूर कोई सोचता भी नहीं था।
सचिन ने राज्यसभा की
मर्यादा को ही नहीं घटाया बल्कि,
भारतरत्न पुरस्कार की प्रतिष्ठा में भी बट्टा
लगा दिया है। भारत रत्न पुरस्कार पा चुका खिलाड़ी टीवी पर लोगों से एक ख़ास किस्म
के प्रोडक्ट ख़रीदने की अपील करता है। जबकि दुनिया जानती है सारे किरदार टीवी
विज्ञापन में झूठ बोलते हैं। सचिन एक आम अभिनेता या खिलाड़ी के रूप में यह झूठ
बोलते तो कोई हर्ज़ नहीं था,
लेकिन यह झूठ सचिन भारत रत्न के रूप में बोलते
हैं। इसका निश्चित तौर पर ग़लत संदेश जाता है।
बहरहाल, अब सचिन को अपनी
किताब बेचने के लिए ग्रेग चैपल का वह व्यवहार याद आ गया। काश सचिन चैपल का वह
पक्षपात पहले ही उजागर कर दिए होते।