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सोमवार, 30 मार्च 2020

क्या है तबलीग़ी आलमी मरकज़?

यह जानने के लिए ज़रूर पढ़े... 

हरिगोविंद विश्वकर्मा
अपना दिल थाम लीजिए, क्योंकि भारत में चीनी कोरोना वायरस (चीनी कम्युनिस्ट पार्टी वाइरस यानी सीसीपी वायरस यानी कोविड-19) से संक्रमित कोरोना पॉजिटिव मरीज़ों की संख्या में विस्फोट होने वाला है। यह संख्या किसी भी समय बहुत ज़्यादा बढ़ सकती है। यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि राजधानी दिल्ली ही नहीं, बल्कि पूरे देश में सीसीपी वायरस का एपीसेंटर दिल्ली के निजामुद्दीन पश्चिम में स्थित तबलीग़ी जमात का आलमी मरकज़ यानी ग्लोबल सेंटर ही होगा।

ऐसे समय में जब विश्स स्वास्थ्य संगठन और अन्य विशेषज्ञ घातक कोरोनावायरस के प्रसार पर अंकुश लगाने के लिए 'सामाजिक दूरी' रखने की अपील कर रहे हैं और चीनी वायरस को और फैलने से रोकने के लिए पूरे देश में लॉकडाउन घोषित किया गया है। 17 से 19 मार्च 2020 के दौरान 300 से ज़्यादा विदेशियों समेत तक़रीबन 3500 तबलीग़ जमात के लोग इस मकरज़ की बंगलेवाली मस्जिद में एकत्रित हुए थे।

तबलीग़ी आलमी मरकज़ में हुए तीन दिवसीय सम्मेलन के बाद तक़रीबन हज़ार देसी-विदेशी इस्लामी प्रचारक 10 या 12 के समूह में देश के अलग-अलग हिस्सों में चले गए। यह कहना ग़लत नहीं होगा कि तबलीग़ी जमात के लोगों ने कोरोना वायरस को देश के हर इलाक़े में मुसलमानों में फैला दिया है। ऐसा ही एक समूह तेलंगाना की मस्जिद में बैठक में भाग लिया, जिनमें से सोमवार को पांच लोगों को कोविड-19 से मौत हो गई है। इसके अलावा प्रोग्राम में शिरकत करने वाले तमिलनाडु के व्यक्ति की मौत हो गई। अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में सभी 10 कोरोना पॉजिटिव यहीं से गए थे। कश्मीर में जिस व्यक्ति की जान गई है, वह भी यहां से इस्लाम के प्रचार-प्रसार का हुनर सीख कर गया था।

जब पूरा देश अपने घरों में क़ैद है, तब लीग़ी मरकज़म 1500 लोग सोशल डिस्टेंसिंग की अपील को धता-बता कर एक साथ रह रहे थे। इन लोगों ने एक साथ जुमे की नमाज़ भी पढ़ी। यहां आए लोगों को मौलानाओं ने आश्वस्त करते हुए कहा था, डरो मत अल्लाह-ताला हमें कोरोना वाइरस से दूर रखेगा। अब बड़ी संख्या में इस कार्यक्रम मं शामिल हुए लोग कोरोना पॉजिटिव निकल रहे हैं। यह देखकर सरकार के हाथ-पांव फूल गए हैं।

दरअसल, सोमवार को तेलंगाना में छह लोगों की कोरोना वायरस से मौत की खबर आई तो पूरे देश में हड़कंप मच गया। ये सभी लोग तबलीग़ी आलमी मरकज़ में इस्लाम के प्रचार-प्रसार के लिए आयोजित मजहबी प्रोग्राम में हिस्सा लेकर अपने घरों को लौटे थे। कार्यक्रम में शामिल क़रीब नौ सौ लोगों में कोरोना के संक्रमण की आशंका बताई जा है। पूरे देश में लॉकडाउन के बावजूद इतनी बड़ी संख्या में राजधानी में हुए इस धार्मिक आयोजन ने सुरक्षा-व्यवस्था की पोल खोल दी है।

अब केंद्र और राज्य सरकारें तबलीग़ी आलमी मरकज़ में हुए तीन दिवसीय सम्मेलन में शामिल सभी लोगों को ढूंढकर उनकी जांच करने में जुटी हैं। ऐसे में, ज़ाहिर है, आपकी जिज्ञासा तबलीगी जमात के बारे में जानने की हो रही होगी, कि आखिर क्या है यह जमात और दिल्ली में इतनी बड़ी संख्या में क्यों हो रहा था इसका आयोजन? दरअसल, तबलीगी जमात मरकज का हिंदी में अर्थ होता है, अल्लाह की कही बातों का प्रचार करने वाले तालिबों के समूह का केंद्र। तबलीगी जमात से जुड़े लोग पारंपरिक इस्लाम को मानते हैं और इसी का प्रचार-प्रसार करते हैं। एक दावे के मुताबिक इस जमात के दुनिया भर में 15 करोड़ सदस्य हैं। बताया जाता है कि तबलीगी जमात आंदोलन को 1927 में मुहम्मद इलियास अल-कांधलवी ने हरियाणा के नूंह जिले के गांव से शुरू किया था।

तबलीगी जमात के मुख्य उद्देश्य "छह उसूल" (कलिमा, सलात, इल्म, इक्राम-ए-मुस्लिम, इख़्लास-ए-निय्यत, दावत-ओ-तबलीग़) हैं। एशिया में इनकी अच्छी खासी आबादी है। राजधानी दिल्ली का निजामुद्दीन में इस जमात का मुख्यालय है। इस जमात को अपनी पहली बड़ी मीटिंग करने में करीब 14 साल का समय लगा। अविभाजित भारत में ही इस जमात ने अपना आधार मज़बूत कर चुका था। 1941 में 25,000 तबलीग़ियों की पहली मीटिंग आयोजित हुई।

बहुमंजिला बंगलेवाली मस्जिद भीड़ वाली सड़क पर स्थित है। सूफी संत हजरत निजामुद्दीन औलिया का मकबरे इससे सटा हुआ है। इस्लाम मजहब के प्रचार प्रसार के लिए यहां हर साल तबलीग़ ढोल और नगाड़े की थापों के बीच सूफी की मजार पर चादर चढ़ते हैं। लंबी दाढ़ी रखने और लंबा कुरता और छोटा पैजामा पहनने वाले मौलवी इस्लाम का प्रचार-प्रचार करते हैं। तब्लीगी जमात के मरकज़ और निज़ामुद्दीन औलिया की मजार के बीच, कालजयी शायर मिर्ज़ा ग़ालिब की मजार है। समुदाय के कई लोग कहते हैं कि तबलीग़ी जमात के लोग धर्म प्रचारकों को पलायनवादी और दुनिया से कटे हुए होते हैं, क्योंकि ये लोग ज़मीन के नीचे और आकाश के ऊपर की बातों का ज़िक्र करते हैं।

तबलीग़ी का दावा है कि किसी के पास इस मरकज़ में आने वाले सदस्यों की सूची या रजिस्टर नहीं है, लेकिन इसके सदस्य दुनिया भर में फैले हुए हैं। धीरे-धीरे यह आंदोलन पूरी दुनिया में फैल गया और दुनिया के अलग-अलग देशों में हर साल इसका सालाना कार्यक्रम होता है। तबलीग़ी इस जमात का सबसे बड़ा जलसा हर साल बांग्लादेश में आयोजित होता है। भारत और पाकिस्तान में भी इस जमात का सालाना जलसा होता है। इन जलसों में दुनिया के क़रीब 200 देशों से बड़ी संख्या में मुसलमान शिरकत करते हैं। इस तरह तबलीगी आलमी मरकज़ के कारण भारत में आंशिक सामुदायिक विस्तार शुरू हो गया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने यह बात स्वीकार किया है कि स्थिति ख़तरनाक है।

रविवार, 29 मार्च 2020

Corona Virus - चीन के लिए दुनिया भर में बढ़ रही है नफ़रत


हरिगोविंद विश्वकर्मा
ऐसे समय जब चीन की लापरवाही से चीन के वुहान से निकलकर दुनिया भर में फैल चुके कोरोना वायरस से बहुत बड़ी तादाद में मौत और संक्रमण की ख़बरें मिल रही है। तब चीन और चीन के लोगों के ख़िलाफ़ दुनिया भर में नफ़रत बहुत तेज़ी से बढ़ रही है। वॉट्सअप, फ़ेसबुक, ट्विटर और दूसरी सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर लोग इन मौतों के लिए चीन को ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं और चीन पर  जमकर गुस्‍सा निकाल रहे रहे हैं। बड़ी संख्या में लोग चीन में निर्मित सामानों के बहिष्कार की अपील कर रहे हैं तो बहुत बड़ी तादाद में लोग चीन के ख़िलाफ़ अंतरराष्ट्रीय अदालत में मुक़दमा दर्ज करने की पैरवी कर रहे हैं।

अमेरिका, यूरोप ही नहीं एशिया और चीन के पड़ोसी देशों से लोगों में चीन के प्रति ग़ुस्सा और नफ़रत देखी जा रही है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर बहुत सारे लोग कोरोना संबंधी ट्वीट करने के लिए कुंगफू, चाइना वायरस और कम्युनिस्ट वायरस जैसे हैशटैग का इस्तेमाल कर रहे हैं। ऐसी साइटों पर डाटा टै्रफिक 1000 फीसदी तक बढ़ गया है। कुछ मीडिया आउटलेट्स भी एशियाई लोगों के खिलाफ भड़काने का काम कर रहे हैं।

भारत में 21 दिन के लॉकडाउन के कारण बहुत से लोगों का समय सोशल मीडिया, कम्युनिकेशन एप्स, चैट रूम और गेमिंग में बीत रहा है। इस दौरान बहुत बड़ी संख्या में लोग चीन और चीन लोगों के ख़िलाफ़ संदेश भेजकर कोरोना फैलाने में उनका हाथ बता रहे हैं। देश में कोरोना का क़हर बहुत तेज़ी से फैल रहा है।

इज़रायल स्थित टेक स्टार्टअप लाइट की रिपोर्ट कहती है कि कोरोना वायरस को लेकर भारी तादाद में लोग चीन को ज़िम्मेदार मान रहे हैं। इसलिए वे चीन के लोगों के लिए नफ़रत भरे संदेश भेजकर बीज़िंग के खिलाफ भड़ास निकाल रहे हैं। लोगों के संदेशों में गाली गलौज़, विषवमन, आक्रोश और ग़स्सा दिख रहा है। यह स्टार्टअप सोशल मीडिया पर समाज विरोधी कंटेंट की आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से निगरानी करता है।

टेक स्टार्टअप लाइट कंपनी के अनुसार चीन से शुरू होने वाली इस महामारी के बाद कुछ दिनों तक तो प्रेरक कंटेंट देखने को मिला लेकिन अब सिर्फ ग़ुस्‍से भरे संदेश ही देखने को मिल रहे हैं। इन संदेशों में दुनिया भर में कोरोना का प्रकोप फैलने के पीछे चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। इसीलिए बड़ी संख्या में लोग कोरोना वायरस को चीनी वायरस या सीसीपी वायरस कहा जा रहा है।

पश्चिम ही नहीं, पूरी दुनिया मानती है कि कोरोना वायरस चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के कुप्रबंधन ने चलते चीने के बाहर चला गया और आजकल वैश्विक महामारी बन चुका है। अमेरिकी अख़बार दी अपोच टाइम्स तो अपनी हर स्टोरी में कोरोना वायरस को सीसीपी वायरस यानी कम्युनिस्ट पार्टी वायरस के रूप में लिख रहा जा रहा है। अख़बार के मुताबिक, लोग मानते हैं कि कोराना चीन की जनता की लापरवाही से नहीं, बल्कि चीन में सत्तारूढ़ चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की लीपापोती का नतीजा है। इसीलिए इसे सीसीपी वायरस कहा जा रहा है। आस्ट्रेलिया में स्काई न्यूज ने एक वीडियो जिसमें कहा गया है कि चीन ने जान बूझकर दुनिया में कोरोना फैलाया। इस वीडियो पर पांच हजार से अधिक लोगों ने कमेंट किया है।

अमेरिका के कई राजनेता और दक्षिणपंथी समूहों के कार्यकर्ता चेतावनी दे चुके हैं। इसीलिए कोरोना को लेकर चीनी समुदाय के ख़िलाफ़ नस्लभेदी  नफ़रत बढ़ रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा कोविड-19 वायरस को बार-बार चाइनीज वायरस कहने से भी लोगों के मन में चीन के प्रति दुर्भावना बढ़ रही है।

सोमवार, 23 मार्च 2020

Corona Virus - दो महीने से ग़ायब हैं चीन के 2 करोड़ मोबाइल फोनधारक

हरिगोविंद विश्वकर्मा
चीन में कोरोना वायरस के क़हर के बाद 2 करोड़ 10 लाख 3 हजार मोबाइल और 8.40 लाख लैंडलाइन्स फोनों का न तो कॉल के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है और न ही उनके बिल भरे जा रहे हैं। इसलिए मजबूर होकर चीन की सर्विस प्रोवाइडर कंपनियों ने इन फोनों को बंद कर दिया है। इससे दुनिया भर में आशंका यह जताई जा रही है कि चीन में कोविड-19 से बहुत बड़ी संख्या में नागरिकों की मौत हुई, लेकिन वहां की कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार ने मृतक के आंकड़ों पर लीपापोती कर रही है।

अमेरिका के न्यूयॉर्क टाइम्स और वॉशिंगटन पोस्ट के बाद सबसे प्रतिष्ठित अख़बार समूह The Epoch Times ने अपने प्रिंट एवं डिजिटल एडिशन में इस बारे में विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की है। रिपोर्ट के मुताबिक, चीन में 21 मिलियन यानी दो करोड़ दस हजार मोबाइल फोन अकाउंट्स पिछले दो महीने के दौरान डिएक्टिवेट हो गए हैं। आशंका यह जताई जा रही है कि कोरोना वाइरस से जो लोग अपना जान गंवा बैठे, उनका फोन बंद हो गया है। हालांकि चीन कह रहा है कि कोरोना के चलते परेशान होकर लोग मोबाइल फोन अकाउंट बंद कर रहे हैं। आज के दौर में किसी का अपना फोन कोरोना के कारण बंद करने की बात हज़म नहीं हो रही है। इसलिए लग रहा है कि चीन शर्तिया कोरोना मृतकों की संख्या अब भी छुपा रहा है।

चीनी मामलों के टिप्पणीकार तांग जिंगुआन ने 21 मार्च बातचीत कै दौरान कहा, “सेल फोन चीन में लोगों के जीवन का एक बहुत ही अनिवार्य हिस्सा हैं। वहां दुनिया के दूसरे देशों के मुक़ाबले अदिक लोग मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हैं। चीन में डिजिटलीकरण का स्तर दुनिया के किसी भी देश के मुक़ाबले बहुत अधिक ऊंचा है। वहां लोग सेल फोन के बिना जीवित नहीं रह सकते हैं। पेंशन और सामाजिक सुरक्षा के लिए सरकार से व्यवहार करने, ट्रेन टिकट खरीदने, खरीदारी करने के लिए लोग सेल फोन का उपयोग करते हैं।”

तांग जिंगुआन कहते हैं “कम्युनिस्ट शासन में हर चीनी को हेल्थ कोड जनरेट करना पड़ता है, उसके लिए हर नागरिक अपने सेल फोन का उपयोग करता है। फिलहाल, केवल ग्रीन हेल्थ कोड धारक को चीन में कहीं आने-जाने की अनुमति है। ऐसे परिवेश में किसी नागरिक के लिए अपना सेल फोन खाता बंद या रद्द करना असंभव सा है। चीन ने फोन को पंजीकृत करने वाले हर व्यक्ति की पहचान की पुष्टि के लिए 1 दिसंबर, 2019 को अनिवार्य रूप से फेस स्कैनिंग की शुरू की।

तांग जिंगुआन कहते हैं “इससे पहले, 1 सितंबर, 2010 तक चीन को सभी सेल फोन उपयोगकर्ताओं को अपनी वास्तविक पहचान (आईडी) के साथ फोन को पंजीकृत करने की आवश्यकता होती थी, जिसके द्वारा सरकार अपने व्यापक निगरानी प्रणाली के माध्यम से लोगों के भाषणों की मॉनिटरिंग कर सकती थी। इसके अलावा, चीनी लोगों को अपने सेल फोन के साथ अपने बैंक खाते और सामाजिक सुरक्षा खाते को जोड़ना पड़ता है, क्योंकि इन सभी सेवा के ऐप ही फोन के सिम कार्ड का पता लगा सकते हैं और फिर सरकार के डेटाबेस के जरिए यह सुनिश्चित करने के लिए जांच सकते हैं कि अमुक नंबर उसी व्यक्ति का है या नहीं है।"

बीजिंग ने 10 मार्च, 2020 को सेल फोन आधारित हेल्थ कोड को शुरू किया। इसके लिए चीन में हर नागरिक को सेल फोन ऐप इंस्टॉल करना और उसमें अपनी व्यक्तिगत हेल्थ इनफॉर्मेंशन दर्ज जरूरी हो गया। उसके बाद ऐप लोगों के हेल्थ स्टैटस को वर्गीकृत करने के लिए, तीन रंगों में क्यूआर कोड जनरेट करता है। रेड का अर्थ है, व्यक्ति को कोई संक्रामक बीमारी, येलो का अर्थ, व्यक्ति को कोई संक्रामक बीमारी हो सकती है और ग्रीन का अर्थ है कि व्यक्ति को कोई संक्रामक बीमारी नहीं है।

चीनी उद्योग और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने पिछले 19 मार्च 2020 को फरवरी में हर राज्य में फोनधारकों की संख्या बताई। पिछली घोषणा की तुलना में, जिसे नवंबर 2019 तक के डेटा के लिए 18 दिसंबर, 2019 को जारी किया गया था, दोनों सेल फोन धारकों और लैंडलाइन उपयोगकर्ताओं की संख्या में नाटकीय रूप से भारी गिरावट दर्ज की गई है। एक साल पहले इसी अवधि में सेल फोन धारकों खातों की संख्या में वृद्धि हुई थी।

सेल फोन उपयोगकर्ताओं की संख्या 1.600957 बिलियन यानी 160.0957 करोड़ से घटकर 1.579927 बिलियन यानी 157.9927 करोड़ हो गई, जो कि 21.03 मिलियन यानी 2 करोड़ 10 लाख 3 हजार कम है। लैंडलाइन उपयोगकर्ता 190.83 मिलियन यानी 19.083 करोड़ से घटकर 189.99 मिलियन यानी 18.999 करोड़ तक गिर गए, जो कि 0.84 मिलियन यानी 8 लाख 40 हज़ार कम है।

फरवरी 2019 में, संख्या बढ़ गई थी। 26 मार्च, 2019 और 20 दिसंबर, 2018 को मंत्रालय की घोषणाओं के अनुसार, फरवरी 2019 में सेल फोन उपयोगकर्ताओं की संख्या 1.5591 बिलियन यानी 155.91 करेड़ से बढ़कर 1.5835 बिलियन यानी 158.35 करोड़ हो गई, जो कि 24.37 मिलियन यानी 2 करोड़ 43 लाख और सात हजार अधिक है। लैंडलाइन उपयोगकर्ता 183.477 मिलियन यानी 18.3477 करोड़ से बढ़कर 190.118 मिलियन यानी 19.0118 करोड़ हो गए थे, जो 6.641 मिलियन यानी 66 लाख 41 हजार अधिक था।

चीनी राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो के अनुसार, 2019 के अंत में देश की जनसंख्या 2018 की तुलना में 4.67 मिलियन यानी 46 लाख 70 हज़ार अधिक थी, और 1.40005 बिलियन यानी एक अरब 40 करोड़ 50 हज़ार तक पहुंच गई थी। लैंडलाइन उपयोगकर्ताओं में 2020 की कमी फरवरी में राष्ट्रव्यापी क्वारंटीन के कारण हो सकती है, जिसके दौरान कई छोटे व्यवसायों को बंद कर दिया गया था। लेकिन सेल फोन उपयोगकर्ताओं की कमी को इस तरह से नहीं समझाया जा सकता है। सभी तीन चीनी सेल फोन वाहक के ऑपरेशन डेटा के अनुसार, दिसंबर 2019 तक सेल फोन खातों में वृद्धि होती रही, लेकिन 2020 में अचानक तेज़ी से गिरावट हुई।

चीन को सेल फोन मार्केट में लगभग 60 प्रतिशत हिस्सेदार चाइना मोबाइल चीन में मोबाइल सर्विस देने वाली सबसे बड़ी कंपनी है। कंपनी ने बताया कि उसने फरवरी 2020 में 7.254 मिलियन यानी 72 लाख 54 हज़ार सेल फोन धारक खो दिए। इसी तरह जनवरी 2020 में 0.862 मिलियन यानी 86 हजार 2 सौ फोन काते बंद हो गए थे। जबकि कंपनी के मोबाइल खाता धारकों में दिसंबर 2019 में 3.732 मिलियन यानी 37 लाख 32 हज़ार मोबाइल फोन धारकों की बढ़ेतरी हुई थी। 2019 की शुरुआत में चाइना मोबाइल का कारोबर लाभोन्मुख था। जनवरी 2019 में कंपनी के ग्राहकों की संख्या में 2.411 मिलियन यानी 24 लाख 11 हज़ार की बढ़ोतरी हुई थी। इसी तरह फरवरी 2019 में कंपनी के 1.091 मिलियन यानी 10 लाख 91 हज़ार उपयोगकर्ता बढ़े थे।

चीन को सेल फोन मार्केट में लगभग 21 प्रतिशत हिस्सेदार चाइना टेलीकॉम चीन की दूसरी सबसे बड़ी सर्विस प्रोवाइडर कंपनी है इस कंपनी ने फरवरी 2020 में 5.6 मिलियन यानी 56 लाख उपयोगकर्ता खो दिए। इसी तरह जनवरी 2020 में 0.43 मिलियन यानी 43 लाख उपयोगकर्ता खो दिए। गौरतलब है कि चाइना टेलीकॉम ने 2019 के दिसंबर में 1.18 मिलियन यानी 11 लाख 80 हज़ार उपयोगकर्ता, फरवरी में 2.96 मिलियन यानी 29 लाख 60 हज़ार और जनवरी में 4.26 मिलियन यानी 42 लाख 60 हज़ार उपयोकर्ता हासिल कि किए।

चीन की तीसरी मोबाइल कंपनी चाइना यूनिकॉम ने अभी तक फरवरी का डेटा सार्वजनिक नहीं किया है। इस कंपनी ने जनवरी 2020 में और 2019 की शुरुआत में अपने यूजर्स की संख्या को सर्वजनिक किया है। कंपनी ने जनवरी 2020 में 1.186 मिलियन यानी 11 लाख 86 हज़ार उपयोगकर्ता खो दिए, जबकि पिछले साल फरवरी यानी फरवरी 2019 में कंपनी को 1.962 मिलियन यानी 19 लाख 62 हज़ार उपयोगकर्ता प्राप्त हुए। इसी तरह जनवरी 2019 में कंपनी को 2.763 मिलियन यानी 27 लाख 63 हज़ार उपयोगकर्ता मिले थे।

चीनी सरकार हर वयस्क चीनी नागरिक को अधिकतम पांच सेल फोन नंबर्स के लिए आवेदन करने की अनुमति देता है। 10 फरवरी के बाद से अधिकांश चीनी छात्रों ने स्कूल/कॉलेज बंद होने के चलते सेल फोन नंबर के साथ ऑनलाइन कक्षाएं अटेंड की। इन छात्रों के खाते उनके माता-पिता के नाम से हैं, जिसका अर्थ है कि कुछ माता-पिता को फरवरी में अपने बच्चों के लिए एक नया सेल फोन अकाउंट खोलने की आवश्यकता थी। इसका मतलब फरवरी में मोबाइल यूजर्स की संख्या बढ़नी अपेक्षित थी। अब सवाल यह उठता है कि क्या सेल फोन खातों में नाटकीय गिरावट कोरोना वायरस के कारण मरने वालों के खाता बंदी को दर्शाता है?

तांग जिंगुआन कहते हैं "यह भी संभव है कि कुछ प्रवासी श्रमिकों के पहले दो सेल फोन नंबर थे। एक उनके गृहनगर से है, और दूसरा वे जिस शहर में काम करते हैं। इस हिसाब से फरवरी से वे अपने कार्यस्थल वाले फोन नंबर को बंद कर सकते हैं, क्योंकि वे वहां नहीं जा सकते। आमतौर पर, प्रवासी श्रमिक जनवरी में चीनी नववर्ष के लिए अपने गृह शहर चले जाते थे, और फिर यात्रा प्रतिबंधों ने उस शहर में लौटने से रोक दिया होता जहां वे नौकरी करते थे। चीन में सेल फोन के लिए कुछ मूल मासिक शुल्क के चलते अधिकांश प्रवासी श्रमिक केवल एक सेल फोन रखते हैं। चीनी राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो ने 29 अप्रैल, 2019 को घोषणा की थी कि चीन में 288.36 मिलियन यानी 28 करोड़ 83 लाख 60 हजार प्रवासी श्रमिक थे। पिछले 17 मार्च को चीन सरकार ने कहा कि हुबेई प्रांत को छोड़कर चीन के सभी प्रांतों में 90 प्रतिशत से अधिक व्यवसाय का संचालन शुरू हो गया है। झेजियांग, शंघाई, जिआंगसु, शानडांग, गुआंग्शी और चोंगकिंग में लगभग सभी व्यवसायों ने उत्पादन फिर से शुरू कर दिया है। इस तरह यदि प्रवासी श्रमिकों की संख्या और रोज़गार का स्तर दोनों सही हैं, तो 90 फ़ीसदी से अधिक प्रवासी श्रमिक काम पर वापस आ गए हैं।

तांग जिंगुआन कहते हैं "ऐसा संभव है कि चीन में शटडाउन के कारण हुए आर्थिक उथल-पुथल के चलते कुछ दो फोन रखने वाले लोग अपना दूसरा अतिरिक्त फोन सरेंडर कर सकते हैं, क्योंकि व्यापार बंद होने के कारण, वे अतिरिक्त बिल का खर्च वहन नहीं करना चाहते हैं। बहरहाल, वर्तमान समय में डेटा का विवरण कोई नहीं जानता है। अगर केवल 10 प्रतिशत सेल फोन यूजर्स की करोना से मौत हो जाने से बंद होते तो भी चीन में कोरोना से मरने वालों की संख्या दो मिलियन यानी 20 लाख तक हो जाएगी।चीन की ओर से जारी मौत की जानकारी दूसरे स्रोतों से मिली सूचना से मेल नहीं खाती है, अन्यथा वहां की स्थिति के बारे में जाना जा सकता है।

चीन की इटली के साथ तुलना करने से पता चलता है कि चीन में मरने वालों की संख्या बहुत कम है। इटली ने भी सी तरह के साधनों को अपनाया जो चीनी शासन ने चीन में इस्तेमाल किया था। इसके बावजूद कोरोना वायरस से इटली में 4,825 मौंते हुई यानी वहां 9 प्रतिशत की मृत्यु दर है। जबकि चीन में वायरस से अधिक बड़ी आबादी के साथ था फिर भी वहां इटली में रिपोर्ट की गई आधी से भी कम 4 प्रतिशत की मृत्यु दर 3,265 लोगों की मौत बताई जा रही है।

हुबेई प्रांत के कोरोना वायरस के एपिसेंटर में गतिविधियां चीन में होने वाली मौतों के आंकड़ों के भी एकदम विपरीत हैं। चीन के वुहान में सात अंतिम संस्कार घरों में जनवरी के अंत में 24 दिन, 24 घंटों के शव जलते रहने की सूचना थी। चीन 16 फरवरी से लगातार हुबेई प्रांत में एक दिन में 5 टन मेडिकल कचरा निकल रहा है और चीन शव जलाने में सक्षम 40 मोबाइल क्रिमेटर्स का उपयोग कर रहा है।

जो भी हो डेटा में कमी के चलते चीन में कोरोना वायरस की मौत एक रहस्य बन गया है। दो करोड़ से ज़्यादा मोबाइल फोन का अचानक बंद होना यही संकेत करता है कि चीन में कोराना वायरस से मरने वालों की वास्तविक संख्या आधिकारिक संख्या से बहुत अधिक भी हो सकती है। गौरतलब है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के कवरअप और कुप्रबंधन ने कोरोना वायरस को पूरे चीन में फैलने और एक वैश्विक महामारी बनाने की अनुमति दी।


सारी सूचनाएं अमेरिकी अख़बार The Epoch Times से साभार 

शनिवार, 21 मार्च 2020

Corona Virus : बहुत बड़ी विपदा की दस्तक – कोरोना से नहीं, भूख से मरने का ख़तरा अधिक!

हरिगोविंद विश्वकर्मा

फ़ेसबुक या दूसरी सोशल नेटवर्किंग साइट पर ज़्यादातर नौकरीशुदा लोग सक्रिय हैं। जिन्हें नियमित रूप से हर महीने वेतन मिलता है। ज़िंदगी एक सही ढर्रे पर होती है। ज़ाहिर है, उनके सामने कम से कम भोजन का संकट यानी क्वैश्चन ऑफ एग्ज़िस्टेंस नहीं है। उन्हें केवल और बेहतर जीवन की उम्मीद रहती है। उनकी यही एकमात्र समस्या होती है, जिसे जेनुइन समस्या की कैटेगरी में नहीं रखा जा सकता है। कह सकते हैं कि इसलिए अमूमन ऐसे लोग बिंदास रहते हैं। किसी घटना को लेकर बहुत चिंतित नहीं होते, क्योंकि उनके सामने रोटी की संकट नहीं होता है। लॉक्ड डाउन की अवस्था में उनके सामने ‘वर्क फ्रॉम होम’ का विकल्प है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी निजी कंपनियों से अपील भी कर चुके हैं कि संकट की कर्मचारियों का वेतन न काटा जाए। ज़ाहिर है कोई भी कंपनी अपने कर्मचारियों का वेतन नहीं काटने वाली है। इसीलिए नौकरीशुदा लोग बहुत ज़्यादा चिंतित नहीं हैं। कई लोगों के फेसबुक पोस्ट से तो यही लगता है कि कोरोना संक्रमण उनके एक एडवेंचर की तरह हैं, इसीलिए ऐसे लोग इस महामारी के हमले के बाद के घटनाक्रम को उत्सव की तरह ले रहे हैं।

जिनके पास नौकरी नहीं है, या जो दैनिक आधार पर श्रम करने वाले लोग हैं, वे सोशल नेटवर्किंग साइट पर बहुत कम सक्रिय रहते हैं। ऐसे लोगों का ज़्यादातर समय दो जून की रोटी जुटाने में ही चला जाता है। उनके सोशल प्लेटफ़ॉर्म पर बहुत सक्रिय न होने से आम सोशली या नौकरीशुदा व्यक्ति को उनकी सोच, उनकी पीड़ा, उनके दुख-दर्द का एहसास नहीं हो पाता। यह महसूस करना हो तो बाहर जाने वाली ट्रेनों के प्रस्थान स्थल यानी कुर्ला टर्मिनस यानी एलटीटी चले जाइए। सब भाग रहे हैं। सब कुछ छोड़कर भाग रहे हैं। केवल बीवी बच्चों के साथ। ये लोग कोरोना के डर से नहीं भाग रहे हैं, बल्कि ये लोग कोरोना के चंगुल में फंसे देश में होने वाली रोटी के संकट से घबराकर भाग रहे हैं। उन्हें पता है कि कोरोना से लॉक्ड डॉउन का दौर लंबा खिंचा तो वे कोरोना से नहीं तो भुखमरी से अवश्य मर जाएंगे। इसलिए अपने वतन जाना चाहते हैं, गांव में कम से कम दो जून की नहीं तो, एक जून रोटी तो मिल जाएगी।

जिनके पास किसी तरह नौकरी नहीं है। यानी जो लोग जिस दिन काम करते हैं, उन्हें उसी दिन का मेहनताना मिलता है, ज़ाहिर है, उनका सब कुछ, ज़्यादातर का जीवन ही, ख़त्म होने के कग़ार पर है। वे लोग ‘काम नहीं तो दाम नहीं’ जैसे माहौल में ज़िंदा रह पाएंगे, इसे लेकर आश्वस्त नहीं हैं। इन असंगठित क्षेत्र के बदनसीब लोगों के पास ‘वर्क फ्रॉम होम’ का विकल्प ही नहीं है। ज़ाहिर है, इनमें से ज़्यादातर कोरोना संक्रमण से बच जाएंगे, लेकिन कारोबार चौपट होने से उपजे हालात में भोजन का संकट उनकी जान ले लेगा।

दैनिक आधार पर काम करने वाले जानते हैं कि इटली, स्पेन और ब्रिटेन जैसे देश, जहां बेरोज़गारों को इतनी भत्ता मिलता है कि वे साल में एक बार विदेश यात्रा करते हैं, में लोग कोरोना को नियंत्रित नहीं कर पा रहे हैं तो भारत जैसा देश, जहां स्वास्थ्य सेवाएं पूरी तरह राम भरोसे हैं, जहां हैं, वहां मुनाफ़ाखोर हेल्थ इश्योरेंस कंपनियों के क़ब्ज़े में हैं, ऐसे हालात में यह देश कोरोना जैसी महामारी से कैसे निपटेगा, यह सब लोग बख़ूबी जानते हैं। कोई भी सरकार भाषण का ज्ञान देने के अलावा कुछ नहीं कर पाती, मौजूदा सरकार भी वही कर रही है। हमारी सरकार कोरोना को चीन की बीमारी समझती रही। कह लें हाथ पे हाथ धरे बैठी रही। जनवरी से ही विदेश से आने वाले हर शख्स पर नज़र नहीं रखा जा सका। यही वजह यह हुई कि कनिका कपूर जैसे लोग कोरोना वायरस लेकर आते रहे और इसे परमाणु संलयन (चेन रिएक्शन) की तरह फैलाते रहे। हर दिन दूसरे दिन से ज़्यादा लोग कोरोना की चपेट में आ रहे हैं। इसलिए फिर कह रहा हूं, इस कोरोना वायरस को फैलने से रोका जाए और इस देश को तुरंत लॉक्ड डॉउन कर दिया जाए।

फ़िलहाल, काम के अभाव में लोग घरों में क़ैद हो रहे हैं। दिन भर से घर में बैठे हैं। चुपचाप। ख़ाली बैठा, मैं कभी फेसबुक पर चला जाता हूं, कभी टीवी चालू कर देता हूं। अभी मैंने जी सिनेमा चैनल पर ‘उजड़ा चमन’ फिल्म देखी। अच्छी फिल्म लगी। फिल्म ख़त्म होने के बाद फिर सोचने लगा। बहुत विचलित हो रहा हूं। समझ में नहीं आ रहा है, क्या किया जाए? आगे क्या होगा? इसकी भी बहुत अधिक चिंता है। दुबई से जबलपुर का चार लोगों का एक परिवार कोरोना पॉजिटिव पाया गया है। इन लोगों ने मुंबई से जबलपुर तक की यात्रा ट्रेन से की। अभी-अभी ख़बर आई है कि विदेश संपर्क के बाद ट्रेन में बिना विदेश संपर्क के आठ कोरोना केस पाए गए हैं। ये लोग दिल्ली से रामगुंडम की यात्रा कर रहे थे। यानी कम्युनिटी स्प्रेड का ख़तरा एकदम हमारी चौखट तक आ गया है।