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शुक्रवार, 11 अगस्त 2017

क्या है धारा 35 ए और क्यों चाहिए कश्मीरी नेताओं को विशेष दर्जा?

हरिगोविंद विश्वकर्मा
यह सुखद संयोग है कि जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370  और 35 ए के औचित्य पर सुप्रीम कोर्ट में पहल हुई है। देश की सबसे बड़ी अदालत में भारतीय संविधान से इन अनुच्छेदों को हटाने के लिए दो याचिकाएं दायर की गई हैं। इन याचिकाओं को स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को चार हफ़्ते के भीतर इन पर जवाब देने का निर्देश दिया है। मुख्य न्यायाधीश जगदीशसिंह केहर की तीन सदस्यीय खंडपीठ कुमारी विजयलक्ष्मी झा की याचिका पर सुनवाई कर रही है। याचिका में अनुच्छा 370 के तहत राज्य को मिल रहे स्पेशल ग्रांट को चैलेंज किया गया है। यह अनुच्छेद उनके बच्चों को बेदख़ल करता है। 35 ए को चुनौती देने वाली सुप्रीम कोर्ट की वकील और कश्मीरी नागरिक एडवोकेट चारू वालीखन्ना ने कहा है कि धारा 35 ए गैरकश्मीरी युवक से शादी करने वाली कश्मीरी लड़की को नागरिकता से वंचित कर देता है, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन हैं। इसलिए 35 ए को रद किया जाए।

35 ए के चलते राज्य में बेटियों के साथ घोर पक्षपात होता है। कुपवाड़ा की अमरजीतकौर इस अमानवीय पक्ष की मिसाल हैं। गैरकश्मीरी से शादी के बाद उन्हें नागरिकता साबित करने व पैत्रृक संपति पर अधिकार पाने में 24 साल लग गए। गैरकश्मीरी से शादी के बाद बेटियां नागरिक बनी रहेंगी या नहीं, इस पर आज भी साफ़ गाइडलाइन नहीं है। जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के 2002 के फ़ैसले के बाद धारा 35 ए व 370 की विसंगतियां सामने आईं। 2004 में एसेंबली में परमानेंट रेज़िडेंट्स डिसक्वालिफ़िकेशन बिल पेश किया था। मकसद हाईकोर्ट का फैसला निरस्त करना था। यह बिल क़ानून नहीं बन सका तो इसका श्रेय विधान परिषद को जाता है जिसने इसे ख़ारिज़ कर दिया। देश के विभाजन के समय 20 लाख हिंदू शरणार्थी जम्मू-कश्मीर में आए थे, लेकिन धारा 35 ए के चलते ही उन्हें स्टेट सब्जेक्ट नहीं माना गया। वे नागरिकता से वंचित कर दिए गए। इनमें 85 फीसदी पिछड़े और दलित समुदाय से हैं।

अदालत के क़दम से सबसे ज्यादा आगबबुला धारा 35 ए  और 370 का चार पीढ़ी से लाभ लेने वाले डॉ. फारुक अब्दुल्ला हुए हैं। उन्होंने धमकी दी है कि विशेष दर्जे से कोई छेड़छाड़ हुई तो कश्मीरी जनता विद्रोह कर देगी, जिसे संभालना मुश्किल हो जाएगा। उन्होंने सन् 2008 के आंदोलन का हवाला दिया है, जब श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड को श्रद्धालुओं के लिए अस्थाई शेड बनाने के लिए ज़मीन देने के राज्य सरकार के फ़ैसले पर बड़ा आंदोलन हुआ था। अलगाववादी नेताओं ने इस मुद्दे पर 12 अगस्त को बंद का एलान किया है। मुख्यमंत्री मेहबूबा मुफ़्ती भी डॉ. अब्दुल्ला के सुर में सुर मिला रही हैं। महबूबा ने कहा था कि धारा 35ए के साथ छेड़छाड़ किया जाता है तो कश्मीर में कोई तिरंगा थामनेवाला नहीं होगा।

डॉ. फारुक की धमकी महज़ भ्रांति है। राज्य में जितने लोग इसके समर्थक हैं, उससे ज़्यादा इसके विरोधी। इसलिए, अगर इसे ख़त्म किया जाता है, तो बहुत होगा, मुट्ठी भर लोग श्रीनगर की सड़कों पर निकलेंगे। ऐसे विरोध-प्रदर्शन घाटी में पिछले तीन दशक से रोज़ ही हो रहे हैं। एक और विरोध प्रशासन झेल लेगा। वैसे 8 अगस्त 1953 को शेख अब्दुल्ला को कश्मीर को भारत से अलग करने की साज़िश रचने के आरोप में डिसमिस करके जेल में डालने पर भी विरोध हुआ था परंतु धीरे-धीरे शांत हो गया। ठीक इसी तरह अनुच्छेद 35 ए या 370 को ख़त्म करने पर विरोध होगा, लेकिन धीरे-धीरे शांत हो जाएगा। दरअसल, पिछले क़रीब सात दशक से सत्तासुख भोगने वाले मेहबूबा-अब्लुल्ला जैसे लोग इसे ख़त्म करना तो दूर इस पर चर्चा से भी डरते हैं। बहस या समीक्षा की मांग सिरे से ख़ारिज़ कर देते हैं। इसमें दो राय नहीं कि 35ए व 370 जैसे विकास-विरोधी प्रावधान को अब्दुल्ला-मुफ्ती जैसे सियासतदां और नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी जैसी पार्टियां अपने स्वार्थ के लिए बनाए रखना चाहती हैं, क्योंकि यह धारा उनकी सियासत को बनाए रखने का कारगर टूल बन गया है।

26 अक्टूबर 1947 को जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय के बाद शेख अब्दुल्ला राज्य के प्रधानमंत्री बने थे। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू से सांठगांठ करके राज्य के लिए विशेष दर्जा हासिल कर लिया। लिहाजा, संविधान में अनुच्छेद 370 शामिल किया गया। 1952 में राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के आध्यादेश जारी करके राज्य के हित में संविधान में धारा 35-A का प्रावधान किया। यह धारा 370 का ही हिस्सा है। धारा 35-A राज्य के बाहर से आए लोगों को नागरिकता नहीं देता। उन्हें यहां ज़मीन ख़रीदने, सरकारी नौकरी करने वजीफ़ा या अन्य रियायत पाने का अधिकार भी नहीं है। बहरहाल, जम्मू कश्मीर के कथित राष्ट्रवादी और अलगाववादी नेता भली-भांति यह तथ्य जानते हैं कि राज्य का स्वतंत्र अस्तित्व मुमकिन नहीं। यानी जम्मू कश्मीर कभी भी भारत से अलग नहीं हो सकता। लिहाज़ा, अपनी अहमियत बनाए रखने के लिए आज़ादी का राग आलापते रहते हैं। देश के पैसे पर पल रहे ये लोग इतने भारत को अपना देश मानते ही नहीं और दुष्प्रचार करते रहते हैं। इनकी पूरी कवायद धारा 370 अक्षुण्ण रखने के लिए होती है।

जम्मू कश्मीर जैसे सीमावर्ती राज्य की समस्या के लिए अगर केवल पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को ज़िम्मेदार ठहराया जाए,  तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। नेहरू की अदूरदर्शिता नतीजा पूरा मुल्क़ भुगत रहा है। धारा 370 का सभी ने कड़ा विरोध किया था, पर नेहरू अड़े रहे। ’अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धता और मज़बूरी’ का हवाला देकर इसे लागू कराने में सफल रहे। इसका पुरज़ोर विरोध करते हुए डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने 1952 में नेहरू से कहा, “आप जो करने जा रहे हैं, वह नासूर बन जाएगा और किसी दिन देश को विखंडित कर देगा। यह प्रावधान भारत देश नहीं,कई राष्ट्रों का समूह मानने वालों को मज़बूत करेगा।

आज घाटी में जो हालात हैं, उन्हें देखकर लगता है कि मुखर्जी की आशंका ग़लत नहीं थी?  धारा 370 के कारण ही राज्य मुख्यधारा से जुडऩे की बजाय अलगाववाद की ओर मुड़ गया। यानी देश के अंदर ही एक मिनी पाकिस्तान बन गया, जहां तिरंगे का अपमान होता है, देशविरोधी नारे लगाए जाते हैं और भारतीयों की मौत की कामना की जाती है। डॉ. भीमराव आंबेडकर भी कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने के पक्ष में नहीं थे। शेख़ को लताड़ते हुए उन्होंने ने साफ़ शब्दों में कहा था, “आप चाहते हैं, भारत आपकी सीमाओं की रक्षा करे, वह आपके यहां सड़कें बनाए, आपको राशन दे और कश्मीर का वही दर्ज़ा हो जो भारत का है! लेकिन भारत के पास सीमित अधिकार हों और जनता का कश्मीर पर कोई अधिकार नहीं हो। ऐसे प्रस्ताव को मंज़ूरी देना देश के हितों से दग़ाबाज़ी करने जैसा है। मैं क़ानून मंत्री होते हुए ऐसा कभी नहीं करूंगा।“

एक सच यह भी है कि केंद्र इस राज्य को आंख मूंदकर पैसे देता है, फिर भी राज्य में उद्योग–धंधा खड़ा नहीं हो सका। यहां पूंजी लगाने के लिए कोई तैयार नहीं, क्योंकि यह धारा आड़े आती हैं। उद्योग का रोज़गार से सीधा संबंध है। उद्योग नहीं होगा तो रोज़गार के अवसर नहीं होंगे। राज्य सरकार की रोज़गार देने की क्षमता कम हो रही है। क़ुदरती तौर पर इतना समृद्ध होने के बावजूद इसे शासकों ने दीन-हीन राज्य बना दिया है। यह केंद्र के दान पर बुरी तरह निर्भर है। इसकी माली हालत इतनी ख़राब है कि सरकारी कर्मचारियों के वेतन का 86 फ़ीसदी हिस्सा केंद्र देता है। इतना ही नहीं इस राज्य के लोग पूरे देश के पैसे पर ऐश करते हैं।

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