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सोमवार, 8 जून 2015

मुंबई हिंदी पत्रकार संघः एक सुखद संयोग....

हरिगोविंद विश्वकर्मा
प्रस्तावित हिंदी पत्रकार संघ के गठन की प्रक्रिया चल रही है. इस संदर्भ में नब्बे के आरंभ के दशक की पत्रकारिता का ज़िक्र समीचीन होगा. तब मौजूदा प्रस्तावित हिंदी पत्रकार संघ के ज़्यादातर लोग कॉलेज में रहे होंगे. अस्सी के दशक के अंत और नब्बे के दशक के आरंभ में टेब्लायड सांध्य अखबारों का दौर शुरू हुआ. अश्विनी कुमार मिश्र का निर्भय पथिक पहला सांध्य दैनिक था. आदरणीय डॉ. राममनोहर त्रिपाठी अपने संपादन में दो बजे दोपहर अख़बार लेकर आए. जनसत्ता का संझा जनसत्ता(स्थानीय संपादक राहुल देव, प्रभारी सतीश पेंडणेकर) शुरू हुआ. निखिल वागले का आपलं महानगर और हमारा महानगर (संपादक, अनुराग चतुर्वेदी) आरंभ हुआ. शिवसेना भी पीछे नहीं रही. संजय निरुपम के संपादन में सांध्य दैनिक दोपहर का सामना शुरू हुआ. अचानक से शहर में हिंदी पत्रकारों का तादाद बहुत ज़्यादा बढ़ गई.

मैंने भी उस समय बस पत्रकारिता शुरू ही की थी. बहरहाल, नब्बे के दशक में अचानक शहर के क़रीब-क़रीब सभी हिंदी के पत्रकारों को लगा कि हर भाषा के पत्रकारों का संगठन है, लेकिन हिंदी पत्रकारों का कोई संघ नहीं है. तब मुंबई में अंग्रज़ी के लिए अंग्रेज़ी डॉमिनेटेड मुंबई प्रेस क्लब, मराठी के लिए मराठी पत्रकार संघ, गुजराती के लिए गुजराती पत्रकार संघ और उर्दू के लिए उर्दू पत्रकार संघ जैसे पत्रकारों के भाषाई फ़ोरम हैं लेकिन हिंदी पत्रकार संघ नहीं है. इसीलिए हिंदी पत्रकारों का एक संगठन खड़ा करने की मुहिम शुरू हुई.

बहरहाल, राहुल देव (जनसत्ता के स्थानीय संपादक) और विश्वनाथ सचदेव (नवभारत टाइम्स के स्थानीय संपादक) की अप्रत्यक्ष पहल पर मुंबई हिंदी पत्रकार संघ बनाने की कवायद शुरू हुई. बॉम्बे यूनियन ऑफ़ जर्नलिस्ट (बीयूजे) में कई मीटिंग्स वगैरह हुईं. अंततः मुंबई हिंदी पत्रकार संघ अस्तित्व में आ गया. उसके लिए बीयूजे में विधिवत लोकतांत्रिक तरीक़े से चुनाव हुआ, जिसमें बतौर मतदाता मैंने भी वोट दिया. चुनाव में द्विजेंद्र तिवारी (जनसत्ता) अध्यक्ष और हरीश पाठक महासचिव (धर्मयुग, तब विश्वनाश सचदेव धर्मयुग के संपादक थे और उसे बंद करवाने तक संपादक वही रहे) निर्वाचित हुए.

उन दिनों मुलायम सिंह यादव पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे. वह मुंबई आए और उनके सम्मान में मुंबई हिंदी पत्रकार संघ ने इंडियन मर्चेंट चैंबर्स में एक कार्यक्रम किया. मुलायम सिंह ने उस कार्यक्रम में मुंबई हिंदी पत्रकार संघ को आर्थिक मदद के रूप में पांच लाख रुपए का चेक दिया. उस समय अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलवाने, उत्तराखंड की आंदोलनकारी महिलाओं से कथित बलात्कार और दैनिक जागरण अख़बार के ख़िलाफ़ समाजवादी पार्टी का हल्लाबोल आंदोलन के कारण मुलायम सिंह यादव की छवि इंडियन मीडिया में ठीक नहीं थी. लिहाज़ा, उनसे पैसे लेने पर मुंबई हिंदी पत्रकार संघ में गंभीर मतभेद हो गया. अंततः मुलायम सिंह यादव का पांच लाख रुपए नहीं लेने का फ़ैसला किया गया.

उसी दौरान शिवसेना का मुंबई की मीडिया से पंगा हो गया. दरअसल, आपलं महानगर (मराठी और हिंदी दोनों) ने शिवसेना के ख़िलाफ़ ख़बर छाप दी. बदले में शिवसैनिकों ने अखबार के दफ़्तर में तोड़फोड़ की और निखिल वागले पर हमला कर दिया. हमले के विरोध में शिवसेना भवन के सामने पत्रकारों ने विरोध प्रदर्शन किया. उसी समय शिवसैनिकों ने पत्रकारों पर हमला कर दिया जिसमें मणिमाला (नवभरत टाइम्स) और मिलिंद खांडेकर (दो बजे दोपहर) को गंभीर चोट लगी. इसके बाद मुंबई हिंदी पत्रकार संघ जनसत्ता और दोपहर का सामना के बीच शुरू शाब्दिक जंग में उलझ गया और धीरे-धीरे दम तोड़ दिया.

इसे संयोग ही कहेंगे कि पुराने जनरेशन के पत्रकारों और उनके संगठन ने वसूल का हवाला देते हुए मुलायम सिंह यादव से पांच लाख रुपए लेने से मना कर दिया, लेकिन नई जनरेशन के पत्रकार और उनका संगठन उनके बेटे अखिलेश यादव के मेहमान बनने वाले हैं. वैसे इस तरह के दौरे अकसर सरकारें अपने काम का एक्सपोज़र पाने के लिए कराती रहती हैं. उत्तर प्रदेश सरकार, झारखंड सरकार, केंद्र सरकार और जम्मू-कश्मीर सरकार के इस तरह के दौरे होते रहते हैं. जम्मू-कश्मीर सरकार तो पत्रकारों को वादियों की खूब सैर करवाती है. यह देशाटन तो है ही, अनुभव के लिहाज़ भी पत्रकार के लिए बेहरतरीन आयोजन होता है.

प्रस्तावित हिंदी पत्रकार संघ का कार्यक्रम जितना धांसू हुआ, उतना ही धांसू कवरेज (अख़बारी और वॉट्सअप, टीवी वाले इस तरह की ख़बर नहीं चलाते हैं) हो गई. मुंबई के सभी समाचार पत्रों के साथ लखनऊ तक के अख़बार (तरुणमित्र) में ख़बर छपी. जहां भी छपा, वॉट्सअप पर उसकी क्लिपिंग देखने को मिली. मुझे लगता है सभी साथी मुझसे सहमत होंगे.

प्रेस रिलीज़, पता नहीं किसने तैयार किया, परंतु शर्तिया किसी असाधारण प्रतिभा के धनी हिंदी पत्रकार ने ही गहन रिसर्च और मशक्कत के बाद तैयार किया होगा. ऐसा मेरा मानना है. इसीलिए उसकी लेखनी तस की तस हर अख़बार ने छाप दी, केवल हेडिंग पेज इंचार्ज ने अपने अनुसार लगाया. बस नवभारत अखबार अपवाद रहा, जिसने असाधारण प्रतिभा के धनी हिंदी पत्रकार द्वारा पत्रकार घोषित किए गए लोगों के अलावा कुछ और लोगों को पत्रकार करार देते हुए उनके नाम भी छाप दिए. वैसे, एक ही समाचार क़रीब-क़रीब सभी (नवभारत टाइम्स मैंने पढ़ा नहीं) हिंदी अख़बारों में पढ़ते-पढ़ते कई लोगों को तो यह समाचार कंठस्थ हो गया होगा. जो भविष्य मैं काम आएगा. इसके लिए शुभकामनाएं, ऐसी ही प्रेस रिलीज़ तैयार करके हिंदी पत्रकारिता का भला करते रहिए. सभी साथियों को इस शानदार आयोजन के लिए बधाई और कोटि-कोटि धन्यवाद.


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