हरिगोविंद विश्वकर्मा
आमिर ख़ान अभिनेता हैं। इसमें थोड़ा और संशोधन करें तो वह केवल अभिनेता नहीं,
स्टार हैं। अगर
थोड़ा और संशोधन कर दें, तो वह स्टार नहीं
सुपरस्टार हैं। सुपरस्टार यानी एक ऐसी हस्ती जिसकी हर ऐक्ट्विटी पर देश ही नहीं
दुनिया की नज़र होती है। जब किसी का रहन-सहन, मूवमेंट, व्यवहार और सबसे ऊपर बयान
अगर इतनी अहमियत रखने लगे तो उसे हर शब्द बहुत सोच-समझ कर ज़ुबान से निकालना
चाहिए। एकदम लिखी हुई स्क्रिप्ट की तरह। उसे एक भी शब्द ऐसा नहीं बोलना चाहिए,
जिससे देश या समाज की प्रतिष्ठा पर कोई आंच आए। इसी फिलॉसफी के तहत दुनिया भर के
प्रमुख लोग हर सार्वजनिक मंच पर लिखा हुआ भाषण पढ़ते हैं।
सबसे पहले इस पर ध्यान देना ज़रूरी है कि आमिर ख़ान ने कहा क्या, जिस पर इतना
बवाल मच गया है। दरअसल, रामनाथ गोयनका पुरस्कार समारोह में आमिर ख़ान से पुरस्कार
वापसी पर पूछे गए एक सवाल के जवाब कहा, “विरोध
करने का कोई भी अहिंसक तरीक़ा मुझे उचित जान पड़ता है।“ यानी साहित्यकारों और कलाकारों के पुरस्कार वापस करने के
फ़ैसले का अभिनेता ने समर्थन किया। आमिर से दूसरा सवाल था कि क्या इस बात से वह
सहमत हैं कि देश में असहिष्णुता बढ़ रही है? इस पर आमिर ने अपनी सहमति जताई।
यानी आमिर को भी लगता है कि इस देश में असहिष्णुता बढ़ रही है। इस पर पत्नी किरण
राव से बातचीत का हवाला देते हुए आमिर ने कहा, “मेरी
पत्नी किरण और मैं जन्म से ही भारत में रह रहे हैं, परंतु पहली बार किरण ने बातचीत
कै दौरान मुझसे कहा कि क्या हम लोग भारत छोड़कर विदेश चले जाएं?” यानी यह देश इस
सेलेब्रेटी कपल के लिए सेफ़ नहीं है। हालांकि, आमिर ख़ान ने साथ ही यह भी जोड़ा था
कि किरण का इस तरह का सवाल पूछना ही अपने आप में बड़ा बयान है और डिज़ास्टरस यानी
दुर्भाग्यपूर्ण या आपदाकारी है। आमिर ख़ान के इसी बयान पर पूरा देश दो खेमे में
बंट गया है। ज़्यादातर लोग आमिर ख़ान से सहमत नहीं हैं, जबकि कुछ लोग आदतन आमिर के
बयान का समर्थन कर रहे हैं।
कई लोग मानते हैं कि पहली बात आमिर ख़ान 50 साल पार कर गए हैं। उन्हें समझदारी
दिखाते हुए
पत्नी से सवाल करना चाहिए था कि देश में ऐसा क्या नया हो गया है, कि वह देश
में रहना असुरक्षित मानने लगी है। लेकिन पत्नी की ग़लतफ़हमी दूर करने की बजाय इस
संजीदा अभिनेता ने उसके बयान को पब्लिक कर दिया। यहां निश्चित तौर पर आमिर ख़ान यह
भूल गए कि देश के हर नागरिक का पहला कर्तव्य होता है कि वह कोई भी बयान, ख़ासकर
जिससे देश की साख़ पर असर पड़े, अपने मौजूदा स्टैटस को ध्यान में रखकर देना चाहिए।
किसी पूर्वाग्रह के तहत वह बात नहीं कहनी चाहिए जिसका कोई आधार या सिर-पैर न हो।
अब इस बात पर भी चर्चा करना बेहद ज़रूरी है कि क्या वाकई आमिर ख़ान या उनकी
पत्नी किरण राव पर इस देश में कथित तौर पर बढ़ रही इनटॉलरेंस का असर हो सकता है। यानी
इस देश मे रहना उनके या उनके बच्चों के लिए जोखिम भरा हो सकता है। दरअसल, आमिर
ख़ान अभिनेता हैं तो उनकी पत्नी किरण राव फिल्म बनाती हैं। आमिर अपनी हर फिल्म
अभिनय या टीवी शो में ऐंकरिंग करने के बदले करोड़ों रुपए मेहनताना लेते हैं। साल
में उनकी कम से कम दो-तीन फिल्में या शो आ ही जाते हैं। यानी आमिर ख़ान उन लोगों
में है जो साल भर में 40-50 करोड़ रुपए कमा लेते हैं। 2013-14 के बजट के मुताबिक सवा
अरब से ज़्यादा जनसंख्या वाले इस देश में केवल 42800 लोग यानी आबादी का 0.00354
फ़ीसदी लोग ही सालाना एक करोड़ कमाते हैं। ये लोग वीवीआईपी माने जाते हैं। कमाई के
आधार पर आमिर ख़ान देश में उस क्लास के नागरिक हैं, जिन्हें वीवीआईपी कहा जाता है। जैसा
कि सर्वविदित है किसी भी वीवीआईपी देश के हालात कैसे भी हो कोई असर नहीं पड़ता। इन
पर महंगाई का भी असर नहीं पड़ता। कीमतें आसमान छूने लगें तब भी उनकी मौज़मस्ती जस
की तस रहती है। जो घटनाएं या बदलाव आम आदमी का जीना हराम कर देते हैं, वीवीआईपी
लोग उससे बिल्कुल अछूते रहते हैं. दरअसल, ये घटनाएं या बदलाव सड़क, गली मोहल्ले,
गार्डन जैसे सार्वजनिक स्थलों पर दिखते हैं, जहां वीवीआईपीज़ की मौजूदगी ही नहीं होती।
यानी देश में इनटॉलरेंस चाहे जितना बढ़ जाए, कम से कम किसी वीवीआईपी समुदाय के
सदस्य का बाल भी बांका नहीं हो सकता। भारत ही नहीं, किसी भी मुल्क में वीवीआईपी पर
देश में होने वाली घटनाओं, बदलावों या गतिविधियों का असर तब पड़ता है, जब कोई बहुत
बड़ी बग़ावत हुई हो या किसी दूसरे देश ने आक्रमण कर दिया हो गया फिर सरकार ने ही आपातकाल
घोषित दिया गया हो। इन तीनों का भारत में निकट भविष्य में कोई संभावना नहीं है।
इसके विपरीत, फ़िलहाल भारत जैसे जनतांत्रिक देश में विधि का शासन है। हर नागरिक को
जाति, धर्म,
क्षेत्र, भाषा, नस्ल और लिंग से परे वह
हर नागरिक स्वतंत्रता हासिल है जो किसी भी सभ्य देश में नागरिकों को मिलता है। उसी
अधिकार का इस्तेमाल करके आमिर ख़ान ने “पीके” जैसी फिल्म में विवादास्पद डायलॉग बोल गए थे, जिस पर थोड़ा
विवाद ज़रूर हुआ था, लेकिन इस देश की सहिष्णु जनता ने उसे कला मानकर विरोध या
विरोधियों को बढ़ावा ही नहीं दिया। इसलिए किरण का इस देश में डर जाना और आमिर ख़ान
का ख़ुद किरण के डर से इत्तिफाक ही नहीं रखना, बल्कि उनके डर को सार्वजनिक कर देना
अपने आपमें बेहद अगंभीर क़दम है। आमिर का पत्नी की बात सार्वजनिक करना किसी भी
दृष्टिकोण से सही नहीं है। यह उनकी प्रतिष्ठा और उनके क़द को कम करने वाला बयान
है। उनकी पत्नी किरण राव का डर भी काल्पनिक और निहायत बचकाना है।
यहां गैरक़ानूनी तौर पर घातक हथियार रखने के जुर्म में सज़ा काट रहे अभिनेता
संजय दत्त का जिक्र करना समीचीन होगा, क्योंकि इसी तरह का डर संजय को भी महसूस हुआ
था। संयोग हैं कि आमिर ख़ान और संजय दत्त मुंबई में बांद्रा के बेहद पॉश इलाके
पाली हिल में रहते हैं। दरअसल, मुंबई में दंगे शुरू होने पर संजय भी बहुत डर गए थे
और मुंबई सीरियल ब्लास्ट के मास्टरमाइंड और मुख्य फ़रार आरोपी
दाऊद इब्राहिम कासकर के भाई अनीस से अपनी और परिवार की रक्षा के लिए हथियार मांगा
था। वह भी इंसान को सेकेंड में मार देने वाली प्रतिबंधित एके-56 राइफल। मज़ेदार पहलू यह
था कि संजय जिस पॉश पाली हिल इलाक़े में रहते थे, वहां कभी दंगा हुआ ही नहीं। दंगे
(इन पंक्तियों के लेखक ने तब ‘जनसत्ता’ के लिए दंगों की रिपोर्टिंग की थी) पॉश इलाकों में नहीं,
बल्कि
झुग्गीबाहुल्य क्षेत्रों में हुए थे। लिहाज़ा, संजय का सुरक्षा की दुहाई देना सरासर
बेमानी थी। यानी उस समय कम से कम संजय या दत्त परिवार के लिए किसी तरह का कोई ख़तरा
नहीं था। दंगे मुस्लिम इलाकों से ही शुरू हुए और मारकाट में सबसे ज़्यादा
जानमाल का नुकसान अल्पसंख्यकों को ही उठाना पड़ा था। छह दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी
मस्जिद ढहाये जाने के बाद पूरे देश की तरह मुंबई में भी दंगे हुए। जिसमें
श्रीकृष्णा आयोग के मुताबिक, कुल 850 लोग (575 मुसलमान और 275 हिंदू) मारे गए। कहने का
तात्पर्य संजय ने किसी तरह का ख़तरा न होने के बावजूद केवल शेखी बघारने के लिए
एके-56
राइफ़ल जैसा प्रतिबंधित ख़तरनाक़ हथियार मंगवाया था।
कहने का मतलब किसी भी इंसान को डर लगना चाहिए, लेकिन हाइपोथेटिकल डर रहीं लगना
चाहिए, जैसा कि 1993 में संजय दत्त को लगा था और आजकल किरण राव ख़ान और आमिर ख़ान
को लग रहा है। आमिर ख़ान के अभिनय की धाक भारपत ही नहीं पूरी दुनिया में है। ऐसे
में उनके इस तरह के अगंभीर बयान से देश की साख पर बुरा असर पड़ सकता है। चचीन और
पाकिस्तान जैसे भारत के राइवल देश इसका ग़लत इस्तेमाल कर सकते हैं। राहुल गांधी या
अरविंद केजरीवाल जैसे लोग, जो आमिर ख़ान के बयान पर गंभीरता से गौर किए बिना उनके
बयान का समर्थन कर रहे हैं, वे लोग अपना बहुत बड़ा नुक़सान कर रहे हैं।
समाप्त
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