हरिगोविंद विश्वकर्मा
एक तरफ़ रोज़ाना प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और इनकम
टैक्स (आईटी) के छापे में चंद लोगों के पास से कई-कई करोड़ रुपए ज़ब्त किए जा रहे
हैं और निजी बैंक और नैशनलाइज़्ड बैंक ही नहीं बल्कि रिज़र्व बैंक के अधिकारी
पकड़े जा रहे हैं। वहीं दूसरी ओर लोग खाते में पैसे होने के बावजूद पैसे-पैसे के
लिए मोहताज़ हैं और बैंकों का चक्कर काट रहे हैं।
डिमॉनिटाइज़ेशन यानी नोटबंदी की घोषणा को एक महीने से कुछ ज़्यादा हो गए हैं,
लेकिन तमाम बैंकों और एटीएम सेंटर्स के सामने लगने वाली लाइन कम होने का नाम ही नहीं
ले रही है। मुंबई में हालात अपेक्षाकृत थोड़े सुधरे हुए ज़रूर लग रहे हैं, लेकिन देश
के बाक़ी हिस्से में लंबी लाइनों का सिलसिला बरक़रार है। यह सच है कि नवंबर महीने में
जितनी भीड़ थी, अब उतनी तो नहीं है, लेकिन अब भी लोग अपने ख़ून-पसीने की कमाई बैंक
से निकालने के लिए कई-कई घंटे संघर्ष कर रहे हैं।
परेशान लोगों के जले पर नमक छिड़कते हुए केंद्र सरकार और रिज़र्व बैंक ऑफ
इंडिया की ओर से दावा किया जा रहा है कि 90 फ़ीसदी एटीएम अपडेट कर दिए गए हैं और
वे काम करने लगे हैं, लेकिन सच यह है कि किसी भी ओर निकल जाइए, आपको हर जगह 90
फ़ीसदी एटीएएम केंद्रों पर शटर गिरा हुआ ही दिखेगा। अभी एक न्यूज़ चैनल ने मुंबई
में कोलाबा से बोरिवली, मुलुंड और मानखुर्द तक सभी निजी और राष्ट्रीयकृत बैंकों के
एटीएम चेक करवाया तो पता चला 90 फ़ीसदी से ज़्यादा एटीएम पर अब भी ताला लगा हुआ
है।
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या बैंकवाले केंद्र सरकार को ग़लत रिपोर्ट दे रहे
हैं? अगर हां, तो सवाल है कि बैंकवाले ऐसा क्यों कर रहे
हैं? आख़िर वे कौन लोग हैं जो सरकार को गुमराह करते हुए
बता रहे हैं कि 90 फ़ीसदी एटीएम काम करने लगे हैं। जिस तरह से देश में रोज़ाना अलग-अलग
हिस्से में करोड़ों रुपए में नई करंसी के पकड़े जाने की ख़बरें आ रही हैं। उससे
लोग हतप्रभ हैं कि वे तो महज़ दो हज़ार रुपए की एक नोट पाने के लिए कई-कई घंटे
एटीएम की क़तार में खड़े हो रहे हैं, फिर इतनी बड़ी मात्रा में नई करेंसी चंद लोगों
के पास कैसे पहुंच रही है?
दरअसल, प्रवर्तन निदेशालय, सीबीआई और इनकम टैक्स अधिकारियों की जांच में जो
तथ्य सामने आ रहे हैं, उन पर एक बार किसी को यक़ीन नहीं होगा। पिछले 30-33 दिनों
में बैंकवालों ने जो कुछ किया, उससे देश का पूरा बैंकिंग सिस्टम सवालों के घेरे
में आ गया है। दरअसल, निजी बैंकों में जो घपले हुए सो हुए, कई नैशनलाइज़्ड बैंकों के
असरों ने जमकर काल धन सफेद किया। यहां तक कि रिज़र्व बैंक का अधिकारी भी कालाधन
सफ़ेद करने के अभियान में लग गया।
बेंगलुरु से 93 लाख रुपए के नए नोट बरामद होने की घटना सामने आने के बाद अब
पुलिस ने रिजर्व बैंक अधिकारी के माइकल को गिरफ्तार कर लिया। माइकल पर 1.51 करोड़
के पुराने नोटों को नई करेंसी से बदलने का
आरोप है। माइकल कमीशन के लिए पुराने नोटों को नए नोटों से बदल रहा था। इसके पास से
17 लाख रुपए नकद बरामद हुआ है। इस अधिकारी पर दलालों के साथ मिलकर कालेधन को सफेद
करने का आरोप है।
बहरहाल, बैंकवालों ने जो कुछ किया, वे तमाम बुरे कारनामे अगर सार्वजनिक कर दिए
गए तो लोग बैंकों पर दोबारा कभी भरोसा नहीं करेंगे। लोग बैंकों पर आंख मूंदकर
भरोसा करते रहे हैं और स्वेच्छा से अपने व्यक्तिगत दस्तावेज़ उनके हवाले कर देते हैं।
भविष्य में जब उन्हें पता चलेगा कि उनके व्यक्तिगत दस्तावेज़ों को ग़लत इस्तेमाल किया
गया तब खाताधारक को क्या सदमा नहीं लगेगा। इस बार बैंकवालों ने यही सब किया है।
सीबीआई ने बेंगलुरु के इंदिरानगर शाखा के कर्नाटक बैंक के चीफ़ मैनेजर
सूर्यनारायण बेरी को फर्जीवाड़े में पकड़ा है। दरअसल, नोटबंदी की घोषणा के बाद सूर्यनारायण
ने पूरी शाखा के साथ मिलकर अपने खाताधारकों के पैन कार्ड का गलत इस्तेमाल करके अवैध
लेनदेन किया। बैंक ने ग्राहकों को एक बार पैसे देकर उनके पैन कार्ड का विवरण ले
लिए, जब कस्टमर्स दोबारा
ब्रांच में गए तो उन्हें नए नोट नहीं होने का हवाला देकर लौटा दिया गया। बैंकरों
ने इन कस्टमर्स को पैसे देने के बजाय नए नोटों का अवैध लेनदेन किया।
सीबीआई जांच में पाया गया कि धनलक्ष्मी बैंक के 31 एटीएमों में डाले जाने के लिए 1.30 करोड़ रुपये के नए नोट जारी
किए गए थे, लेकिन पैसे कर्नाटक
सरकार के शीर्ष अधिकारी एससी जयचंद्र और चंद्रकांत रामलिंगम समेत अनेक
सहयोगियों के पास पहुंच गए। हालांकि बाद में इन सबको सस्पेंड कर दिया गया। दरअसल,
नोटबंदी के बाद दो दिन एटीएम बंद रहे। इस दौरान कछेक एटीएमों को अपडेट कर दिया
गया। इसके बावजूद एटीएम चालू नहीं किए गए। कई यूं ही डेड पड़े रहे। अब जांच में पता
चला है कि एटीएमों के लिए दिए गए नए नोटों से काला धन सफेद किया गया और नए नोट काले
धनवालों के पास पहुंचा दिया गया।
ये तो दो उदाहरण है। बैंक अधिकारियों द्वारा 8 नवंबर के बाद जमकर घोटाला किया
गया। लोगों की यह भी धारणा बन गई है कि जनता को जो भी कठिनाई हो रही है उसके लिए केवल
बैंकवाले ही ज़िम्मेदार है। दरअसल, अकूत काला धन रखने वाले बैंक अधिकारी नहीं
चाहते है कि प्रधानमंत्री की नोटबंदी के ज़रिए काला धन नष्ट करने की योजना फलीभूत
हो। इसीलिए वर्कलोड का रोना रोते हुए इस योजना की हवा निकाल रहे हैं। बैंक अफसर नोटबंदी
के लूपहोल्स का फ़ायदा उठाकर कालाधन जमकर सफ़ेद कर रहे हैं।
आजकल ट्रेन या बस में नोटबंदी और बैंकर्स के कथित भ्रष्टाचार की ही चर्चा है। लोग
खुलेआम कह रहे हैं कि बैंकवालों ने पूरे जीवन की कमाई एक महीने में ही कर ली। जिस
तरह से रोज़ाना नई करेंसी देश के हर कोने से ज़ब्त हो रही है, उससे तो लोगों की
आशंका सच लग रही है। ओवरटाइम कार्य का हवाला देकर बैंकवाले केवल कालेधन को सफ़ेद
करने में जुटे हैं। दादर पूर्व में एक बैंक के गेट के सामने सैंडविच बेचने वाला एक
दिन उसी बैंक से सौ-सौ रुपए के कई बंडल लेकर निकला। पूछने पर पहले तो उसने आनाकानी
की, फिर बताया कि बैंक में उसकी सेटिंग है, इसलिए, उसने ख़ूब पैसे एक्सचेंज किए।
रिज़र्व बैंक के डिप्टी गवर्नर आर गांधी ने 13 नंवबर को अधिकृत बयान जारी किया
कि नोटबंदी के बाद 10 दिसंबर तक बैंकों ने 35 दिन में 4.61 लाख करोड़ रुपये नए नोट
वितरित कर दिए गए हैं। मात्रा के हिसाब से कुल 21.8 अरब नोट जारी हैं. इनमें से
20.1 अरब नोट 10, 20, 50 और 100 रुपये के
हैं. वही 500 और 2,000 के कुल 1.7 अरब नए नोट जारी किए गए हैं। वहीं दूसरी ओर बैंकों
में 12.44 लाख करोड़ रुपये के पुराने 1000 और 500 के नोट जमा हुए हैं. रिजर्व बैंक
और करेंसी चेस्ट को लौटाए गए पुराने नोट 12.44 लाख करोड़ रुपये के हैं। वहीं दूसरी
ओर बैंकों में अब तक 12.44 लाख करोड़ रुपये के पुराने 1000 और 500 के नोट जमा हुए
हैं। अभी इससे कुछ ही ज़्यादा करेंसी कालाधन के रूप में लोगों के पास है, जिसके 30
दिसंबर तक बैंक में जमा होने की उम्मीद है।
नोटबंदी पर बैंकवालों की भूमिका की जांच करने के लिए ईडी, सीबीआई और इनकमटैक्स
डिपार्टमेंट का एक टॉस्क फोर्स या आयोग का गठन किया जाना चाहिए। इतना ही नहीं
बैंकों में काम करने वालों की निजी संपत्तियों की जांच की जानी चाहिए और उनकी
संपत्ति की उनके आय के स्रोतों से मिलान की जानी चाहिए। इसके अलावा नोटबंदी के बाद
जिन लोगों को पुराने नोट स्वीकार करने अनुमति दी गई थी। उनके लेनदेन की बारीक़ी से
जांच होनी चाहिए कि 8 नंवबर के बाद उनका लेनदेन अचानक बढ़ क्यों गया, जबकि नोटबंदी
के बाद पूरा देश मंदी के दौर में है।
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