Powered By Blogger

रविवार, 14 जनवरी 2018

ग़ज़ल - किस्मत से ज़ियादा

टूटा है कहर सब पर किस्मत से ज़ियादा
नफरत भरी है यहां मोहब्बत से ज़ियादा
दिल का कदर क्या वह खाक करेगा
जिसके लिए प्यार नहीं तिजारत से ज़ियादा
भाई-चारे का घटना गर यूं ही जारी रहा
खून-खराबा होगा महाभारत से ज़ियादा
खौफज़दा है सारा मुल्क उस शख्स से आज
जो जानता नहीं कुछ शरारत से ज़ियादा
जब तक ना आया था ऊंट पहाड़ के नीचे
समझता था ख़ुद को ऊंचा पर्वत से ज़ियादा
किसी के पास कुछ देख बेशुमार ना कहो
हर चीज मिली सबको ज़रूरत से ज़ियादा
आखिर ख़ुदा बरक्कत करे तो कैसे करे
झूठ बोलता है आदमी इबादत से ज़ियादा
-हरिगोविंद विश्वकर्मा

कोई टिप्पणी नहीं: