Powered By Blogger

बुधवार, 28 अक्टूबर 2015

कैसे बना राजेंद्र सदाशिव निखल्जे, छोटा राजन? क्‍यों हुई दाऊद से दुश्‍मनी?

हरिगोविंद विश्वकर्मा
अकसर लोग यह सोचकर हैरान होते हैं कि कभी एक दूसरे के जिगरी दोस्त रहे मुंबई के दो सबसे बड़े डॉन छोटा राजन (Chhota Rajan) और दाऊद इब्राहिम (Dawood Ibrahim) आख़िर एक दूसरे के ख़ून के प्यासे कैसे हो गए। कई लोग यह भी मानते हैं कि इनकी दोस्ती में दरार 1993 में मुंबई में सीरियल ब्लास्ट के बाद पड़ी, लेकिन यह सच नहीं है। अनगिनत लोगों को असमय मौत की नींद सुलाने वाले इन दोनों सरगनाओं की दोस्ती के दुश्मनी में बदलने की दास्तां बड़ी रोचक है और रोमांचक भी।

वस्तुतः, राजेंद्र सदाशिव निखल्जे उर्फ छोटा राजन उर्फ नाना की कहानी तिलकनगर चेंबूर में एक दो मंज़िली इमारत में शुरू हुई थी, जहां बाद में सह्याद्रि क्रीड़ा संघ की स्थापना हुई। यहीं बीएमसी में काम करने वाले सदाशिव तीन बेटों और दो बेटियों समेत सात लोगों के परिवार के साथ रहते थे। राजन का मन पढ़ने में बिल्कुल नहीं लगता था। पांचवी में फेल होने पर उसने स्कूल छोड़ दिया। बचपन से ही उसे मारधाड़ वाली फिल्में बहुत पसंद थी, क्योंकि वह ख़ुद भी मारपीट करता था। एक दिन उसने एक पुलिस वाले की लाठी छीनकर सबके सामने उसे बुरी तरह पीट दिया। इस जुर्म में वह गिरफ़्तार हुआ, लेकिन ज़मानत किसी और ने नहीं, बल्कि तत्कालीन डॉन राजन नायर (Rajan Nayar aka Bada Rajan) उर्फ अन्ना राजन ने ली।

नये छोकरों पर पैनी नज़र रखने वाला अन्ना ताड़ गया था कि इस छोकरें में दम है। दरअसल, राजेंद्र उर्फ राजन के अपराधों की चर्चा अन्ना तक पहुंच चुकी थी। ज़मानत लेने के बाद राजन विधिवत अन्ना के गैंग में शामिल हो गया। उसे साहकार सिनेमा घर पर टिकट ब्लैक करने का काम मिला। गैंग में दो राजन होने से लोगों को असुविधा होने लगी। लिहाजा, अन्ना को बड़ा राजन और राजेंद्र को छोटा राजन कहा जाने लगा। राजन के टपोरी से डॉन बनने में गुरु अन्ना का बड़ा योगदान रहा। छोटा राजन बहुत जल्दी अन्ना राजन गैंग में नंबर दो हो गया।

अस्सी के दशक के शुरू में शक्तिशाली करीम लाला के पठान गिरोह (Pathan Gang) को दाउद इब्राहिम कासकर और उसके साथियों से चुनौती मिलने लगी। पठानों ने दाऊद के भाई साबिर इब्राहिम को धोखे से मार दिया। बदला लेने में अन्ना ने दाऊद की मदद की और पठान गैंग के आमिरज़ादा की हत्या की सुपारी ले ली। 1983 में आमिर की कोर्ट में जज के सामने हत्याकर दी गई। बदला लेते हुए पठानों ने 24वें दिन अन्ना को एस्प्लानेड कोर्ट के बाहर दिन दहाड़े मार दिया। अन्ना के बाद राजन इस गैंग का सरगना हो गया। इस दौरान उसका परिचय दाऊद से हो चुका था। राजन ने अन्ना की हत्या की सुपारी लेने वाले अब्दुल कुंजू को मारने का प्लान बनाया।

इसी बीच दाऊद का राजन के घर आना-जाना शुरू हुआ। राजन पड़ोस में रहने वाली अपने बचपन की दोस्त हमउम्र सुताजा से प्यार करता था। दाऊद सुजाता को बहन कहने लगा और सुजाता उसे राखी बांधने लगी। सुजाता के कारण राजन और दाऊद की दोस्ती इमोशनल हो गई। यही इमोशनल रिश्ता दोनों को एक दशक तक दोस्ती की डोर में बंधा रहा। बहरहाल, राजन पर दाऊद बहुत ज़्यादा भरोसा करने लगा, जिससे राजन डी-कंपनी में नबर दो हो गया। पठान गैंग के समद खान को मारने में दाऊद के साथ छोटा राजन अपने साथियों के साथ था। 1986 में दाऊद के दुबई पलायन करने के बाद डी-कंपनी को संभालने की ज़िम्मेदारी छोटा राजन पर आ गई।

बहरहाल, 1987 में राजन भी दुबई पहुंच गया और डी-गैंग का कामकाज उसे सौंप दिया गया। अघोषित तौर पर वह सिंडिकेट में नंबर दो की हैसियत पा गया। उसने नए-नए छोकरों की भर्ती की, जिसमें साधु शेट्टी, मोहन कोटियन, गुरु साटम, रोहित वर्मा, भारत नेपाली, ओमप्रकाश सिंह जैसे शार्प शूटर थे। कहा जाता है, उसके रिजिम में डी-कंपनी में गुंडों की तादाद पांच हज़ार पार कर गई। उसने प्रोटेक्शन मनी यानी हफ़्ता वसूलने का काम शुरू किया, जिसका भुगतान न करने वाले की हत्या कर दी जाती थी। लिहाज़ा, ख़ौफ़ से व्यवसायी, फ़िल्मकार और बिल्डर एक तय राशि का भुगतान हर महीने करने लगे।

कई सीनियर क्राइम रिपोर्टर कहते हैं कि राजन उर्फ नाना ने डी-केंपनी के कामकाज को कॉरपोरेट रूप दे दिया। दाऊद उसकी कार्य-शैली का कायल था। कंपनी का कोई भी ऑपरेशन राजन के अप्रूवल के बिना नहीं होता था। राजन ने दाऊद गैंग को दुनिया का सबसे संपन्न, ताक़तवर और ख़तरनाक क्राइम सिंडिकेट बना दिया। दाऊद गिरोह की ताक़त समकालीन रशियन और इज़राइल माफिया गिरोहों से भी ज़्यादा बढ़ गई। राजन रिमोट कंट्रोल से अंडरवर्ल्ड में स्मगलिंग, हफ़्ता वसूली, हवाला और कान्ट्रेक्ट किलिंग के काले धंधे को चलाने लगा। सिंडिकेट ड्रग और हथियार तस्करी के धंधे में भी था, लेकिन हफ़्ता वसूली और रीयल इस्टेट से सबसे ज़्यादा पैसे बरस रहे थे।

सन् 1988 ख़त्म होते होते शकील अहमद बाबू उर्फ छोटा शकील भी दुबई पहुंचा। अब दाऊद के दोनों सबसे वफ़ादार साथी उसके पास थे। जैसा कि होता है, तरक़्की करने वाले हर शख़्स से कोई न कोई जलने वाला पैदा हो जाता है। ऐसा राजन के साथ भी हुआ। शकील के दुबई आते ही टकराव शुरू हो गया और शकील की मौजूदगी में डी कंपनी में राजन विरोधी लॉबी मज़बूत होने लगी. शरद शेट्टी और सुनील सावंत उर्फ सावत्या जैसे लोगों को नाना का बढ़ता क़द रास नहीं आया। किसी भी ऑपरेशन के लिए राजन से मंजूरी लेना उन्हें नागवार लगता था। लिहाज़ा वे दाऊद का कान भरने लगे। हालांकि दाऊद पर कोई असर नहीं हुआ, क्योंकि राजन उसका सबसे वफादार था और दोनों का रिश्ता भावानात्मक था।

राजन और दाऊद के रिश्ते में संदेह की दीवार सबसे पहले तब खड़ी हुई, जब राजन ने मई 1992 में शिवसेना के कॉरपोरेटर खीमबहादुर थापा की हत्या दाऊद से पूछे बिना करवा दी। इससे पहले दाऊद के शूटर ने उसके साथी की हत्या कर दी थी। इसी दौरान सावत्या और साटम के बीच मतभेद गहरा गए। शकील ने सावत्या का पक्ष लिया तो राजन ने साटम का साथ दिया। उसी समय अरुण गवली गिरोह ने ऐसा काम कर दिया जिससे दाऊद-राजन की दोस्ती में दरार पड़ गई। 26 जुलाई 1992 को नागपाड़ा में अरब गली के होटेल क़ादरी के सामने दाऊद के जीजा इब्राहिम इस्माइल पारकर और उसके ड्राइवर की हत्या गवली गिरोह के शूटरों ने कर दी। गवली ने पारकर को मारकर अपने भाई पापा गवली और अशोक जोशी की हत्या का बदला लिया। गवली ने दाऊद को भावनात्मक दर्द देने के लिए उसकी सबसे प्यारी हसीना पारकर के शौहर को निशाना बनाया। यह दाऊद के लिए बड़ा आघात था। हत्या का बदला लेने की ज़िम्मेदारी गैंग में नंबर दो होने के नाते छोटा राजन पर थी। उसने छोकरों से कह दिया था कि हत्यारे शैलेश हल्दनकर और बिपिन शेरे को जल्द से जल्द मार दिया जाए। मगर जेजे अस्पताल में उन तक पहुंचना बहुत कठिन था।

छोटा राजन ने दाऊद से कहा, “भाई पारकर भाई के मर्डर का बदला मैं लूंगा। हत्यारे जेजे में हैं और वहां कड़ी सिक्योरिटी है। जिससे अपने शूटर नहीं पहुंच पा रहे हैं। मगर जिस दिन डिस्चार्ज होंगे, वह दिन उनका आख़िरी दिन होगा। राजन के विरोधी दाऊद से उसकी शिकायत करने लगे। छोटा शकील एक दिन सेठ यानी दाऊद के पास पहुंचा और कहा, “बॉस, बदला लेने को लेकर नाना सीरियस नहीं। लिहाज़ा बदला लेने का एक मौक़ा मुझे दिया जाए। दाऊद पल सोचता रहा, फिर पहली बार छोटा राजन से बिना पूछे ही गो अहेडकह दिया। भाई की इजाज़त मिलते ही शकील के आदमी संतोष शेट्टी उर्फ अन्ना और सावत्या मुंबई चल दिए। दो दिन के अंदर बदले की कार्रवाई को अंतिम रूप दे दिया गया। 12 सितंबर 1992 को बृजेश सिंह, सुभाष ठाकुर, बच्ची पांडेय, सावत्या, श्याम गरिकापट्टी, श्रीकांत राय और विजय प्रधान जैसे ख़तरनाक शूटरों समेत 24 लोग जेजे में दाखिल हुए और बीमार शैलेश को गोलियों से छलनी कर दिया। फ़ायरिंग में दो पुलिसकर्मियों की भी जान गई। 10 लोग गंभीर रूप से ज़ख़्मी हुए जिनमें कई मरीज़ और नर्स भी थे। मुंबई में पहली बार एके 47 राइफ़ल, माउज़र और 9 एमएम पिस्तौल का इस्तेमाल हुआ। कुल 500 राउंड गोलियां चलीं। ऑपरेशन में भिवंडी-निज़ामपुर के मेयर जयंत सूर्याराव, तत्कालीन केंद्रीय मंत्री कल्पनाथ राय के भतीजे वीरेंद्र राय और उल्हासनगर के कांग्रेस विधायक पप्पू कालानी से लॉजिस्टिक सपोर्ट मिला।

इस ऑपरेशन पर आपत्ति जताते हुए छोटा राजन ने कहा कि इतना तामझाम हुआ लेकिन केवल एक हत्यारा ही मारा जा सका। जेजे शूटआउट में दरकिनार किए जाने से नाना हैरान था, पर मौक़े की नज़ाकत समझकर चुप ही रहा। उसे डी-कंपनी के लिए गवली गैंग और दूसरे सरगनाओं से लोहा लेना पड़ रहा था। गवली के साथ सदा पावले, विजय तांडेल, सुनील घाटे और गणेश कोली जैसे शातिर शूटर थे, तो दशरथ रोहणे और तान्या कोली जैसे अपराधी कम ख़तरनाक नहीं थे। जेजे एपिसोड और चंद दूसरी घटनाक्रमों से राजन को लगने लगा कि दाऊद और उसके रास्ते अलग दिशा में जा रहे हैं।

1992 में दाऊद और राजन के बीच फासला और ज़्यादा गहराने लगा। दाऊद क्राइम वर्ल्ड का बेशक बेताज बादशाह था, पर उसे हमेशा डर सताता था कि कहीं अपने ही न उसे रास्ते से हटा दें। इस बीच एक और घटना ने दाऊद-राजन के बीच की खाई और चौड़ा कर दिया। राजन के ख़ास तैय्यब भाई को दाऊद के शूटरों ने मार डाला। राजन को बताया गया कि तैय्यब को बग़ाबत की सज़ा दी गई। इसी बीच दाऊद ने राजन से मुंबई की बजाय दुबई का कारोबार देखने को कहा, पर नाना तैयार नहीं हुआ।  दाऊद मुंबई में हिंदू नहीं, बल्कि कट्टर मुस्लिम कमांडर चाहता था। लिहाज़ा, राजन को साइडलाइन्ड कर अबू सलेम को यह दायित्व दे दिया गया। राजन समझ गया, कोई बड़ा गेम होने वाला है। लिहाज़ा, नया विकल्प तलाशने लगा। था तो वह दुबई में लेकिन दाऊद से दूर हो गया था। फिर एक दिन किसी अज्ञात जगह चला गया।

इसी दौरान मुंबई में सीरियल ब्लास्ट हुआ जिसने अंडरवर्ल्ड के समीकरण ही बदल दिए। अपराधी धर्म के आधार पर बंट गए। दाऊद को गद्दार कहता हुआ राजन औपचारिक रूप से अलग हो गया और डी-कंपनी को ख़त्म करने की कसम ले ली। देश-विदेश में फैले साथियों को उसने ऑपरेशन दाऊद पर काम बंद करने और अपने लिए काम करने का निर्देश दिया। राजन, गवली और नाईक बंधु हिंदू डॉन के रूप में उभरे, जबकि दाऊद की इमैज पाकिस्तानपरस्त मुस्लिम डॉन की बन गई। दाऊद ने 1994 में राजन के कई गुंडों की हत्या करवा दी। बदले में नाना ने डी-कंपनी के पांच वफादारों को मरवा दिया। दोनों डॉन एक दूसरे की कमज़ोरियां जानते थे। दाऊद के कराची जाने के बाद राजन मलेशिया के कुआलालंपुर शिफ़्ट हो गया। दो साल के भीतर उसने मुंबई ब्लास्ट के आरोपी डी-कंपनी के 18 शूटरों की हत्या करवा दी। मुंबई में दाऊद की तरफ़ से मोर्चा संभाले था, उसका नया शूटर अबू सालेम जबिक शॉर्प शूटर रोहित वर्मा राजन की ओर से था।

दोनों गैंग एक दूसरे के फ़ाइनांसर्स और सपोर्टर्स को भी मारने लगे। 1994 से 97 का समय बेहद ख़ून-खराबे वाला रहा। दाऊद ने राजन के दोस्त रमानाथ पय्यादे, बिल्डर ओमप्रकाश कुकरेजा और फिल्म निर्माता मुकेश दुग्गल को मरवा दिया तो राजन ने सावत्या को दुबई में मारा और दाऊद के साथी और ईस्ट-वेस्ट एयरलांइस के प्रमुख तकीउद्दीन वाहिद की हत्या रोहित वर्मा से करवा दी। राजन ने दाऊद के ख़ास नेपाली सांसद मिर्ज़ा दिलशाद बेग की काठमांडू में मरवा दिया। इसी दौरान दाऊद ने साधु शेट्टी समेत राजन के कई शूटरों को एनकॉउंटर स्पेशलिस्ट्स पुलिस अफसरों से मरवा दिया। इसके ग़ुस्साए राजन ने होटल मालिक दिनेश शेट्टी की हत्या करवा दी।

बेहद शक्तिशाली होने के बावजूद दोनों डॉन एक दूसरे से डरते थे। दाऊद के लिए राजन सबसे बड़ा ख़तरा है तो राजन के लिए दाऊद। ख़तरा भांपकर राजन लंबे समय तक समुद्र में याट में रहा। सन् 2000 में थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में पॉश इलाके में चरनकोर्ट नामक बिल्डिंग की पहली मंज़िल पर बड़ा घर लिया और रोहित वर्मा के परिवार के साथ रहने लगा। लेकिन छोटा शकील ने शरद शेट्टी की मदद से उसे खोज निकाला और शूटर मुन्ना झिंगड़ा ने अपने शूटरों के साथ हमला कर दिया जिसमें रोहित सपरिवार मारा गया जबकि राजन बाल-बाल बच गया। अगले दिन दोपहर तक मुंबई में ख़बर फैली कि राजन की हत्या हो गई। पर बाद में ख़बर का खंडन हो गया। बहरहाल, हमले का बदला लेते हुए 2003 में दुबई में राजन के शूटरों ने शरद शेट्टी को मार डाला।

इस दौरान राजन ने दाऊद को मारने के लिए अपने सात शॉर्प शूटर नेपाल के रास्ते कराची के उसके आवास तक भेजे थे. लेकिन ऑपरेशन लीक हो गया और दाऊद ऐन मौक़े पर वहां आया ही नहीं। उसे साज़िश की भनक लग गई थी। यह भी बात फैली थी कि दाऊद को सबक सिखाने के लिए राजन रॉ और आईबी की मदद कर रहा है। कहा जाता है कि क्राइम ब्रांच के कई डबल एजेंट दाऊद के आसपास हैं। वे दाऊद की डेली लोकेशन और दिनचर्या की जानकारी देते रहते हैं। बहरहाल दौऊद-राजन की यह जंग तभी ख़त्म हो सकती है जब दोनों में से किसी एक का अंत हो जाएं। बहरहाल, फ़िलहाल छोटा राजन गिरफ़्तार है और भारत में है, जबकि दाऊद अभी तक फ़रार है।


कोई टिप्पणी नहीं: