हरिगोविंद विश्वकर्मा
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लमीन के प्रमुख और हैदराबाद से लोकसभा सदस्य असदुद्दीन
ओवैसी ने पहले कहा, “गर्दन पर छूरी रख दो तब भी
भारत माता की जय नहीं बोलूंगा।“ अब पता नहीं उन्हें क्या
हो गया है, जहां भी जाते हैं, वहां “हिंदुस्तान ज़िंदाबाद” या “जय हिंद” ज़रूर बोलते हैं, वह भी एक बार नहीं, कई-कई बार बोलते
हैं। शायद अपनी ग़लती का एहसास हो गया है, इसीलिए, 29
मार्च को लखनऊ में अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने पांच बार "हिंदुस्तान
ज़िंदाबाद" और पांच बार "जय हिंद" के नारे लगाए। कोई मांग नहीं रहा
है फिर भी उन्होंने सफ़ाई भी दी वह देश भक्त हैं। हिंदुस्तान के शहरी हैं। अव्वल
दर्जे के शहरी, लेकिन उन्हें किसी से देश भक्ति
का सर्टिफिकेट नहीं चाहिए।
ओवैसी ही नहीं, देश में किसी नागरिक को किसी दूसरे नागरिक या संगठन से
देशभक्ति का सर्टिफिकेट लेने की कोई ज़रूरत नहीं है। लिहाज़ा, कोई व्यक्ति या
संगठन अपने को “देशभक्त” और दूसरे को “अदेशभक्त” भी नहीं कह सकता। भारतवासियों के मूल अधिकारों को महफूज़
रखने के लिए बनाए गए भारतीय संविधान में कहीं भी नहीं लिखा गया है कि सुबह उठकर
सबसे पहले ज़ोर से भारत माता की जय बोलें या जो लोग भारत माता की जय बोलेंगे, केवल
वही देशभक्त कहलाएंगे, बाक़ी देशभक्त नहीं कहलाएंगे। परंतु भारतीय संविधान के 395
अनुच्छेदों में कहीं भी कहीं नहीं लिखा है, कि सार्वजनिक तौर पर चिल्ला-चिल्ला कर या
फतवा जारी करके कहें कि “भारत माता की जय” नहीं बोलेंगे।
सम्मान या भक्ति प्रदर्शित करने की चीज़ नहीं हैं, लोग स्वेच्छा से अपने
माता-पिता और बड़ो के प्रति सम्मान और
भक्ति प्रदर्शित करते हैं। अगर कोई बच्चा अपने माता-पिता या बड़ों का सम्मान न
करें, तो वे लोग उससे यह नहीं कहेंगे कि सम्मान करो या भक्ति दिखाओ। देशभक्ति भी
इसी तरह प्रदर्शित करने की चीज़ नहीं। वह सच्चे नागरिक, जिसे अंग्रेज़ी में सन ऑफ़
सॉइल कहते हैं, की पर्सनॉलिटी में इनबिल्ट होती है। इसलिए भारत माता की जय बोलिए
या मत बोलिए, इस महान देश को कोई फ़र्क नहीं पड़ता। हां, गंभीर, समझदार और
ज़िम्मेदार नागरिक पब्लिकली कोई ऐसी ओछी बातें नहीं करते, जिससे किसी को उसकी
निष्ठा पर उंगली उठाने का मौक़ा मिले। इस मसले पर सहारनपुर के दारुल उलूम देवबंद
ने फतवा जारी किया है कि मुसलमान वंदे मातरम् की तरह ही भारत माता की जय भी नहीं
बोल सकते। मुफ़्तियों की खंडपीठ के मुताबिक़, इंसान को जन्म इंसान ही दे सकता है,
तो धरती मां कैसे
हो सकती है। मुसलमान अल्लाह के अलावा किसी की पूजा नहीं कर सकता तो भारत को देवी
कैसे मानें। इसी आधार पर देवबंद ने कहा कि भारत माता की जय बोलना इस्लाम में नहीं
है, लिहाज़ा
मुसलमान भारत माता की जय नहीं बोलेंगे।
दरअसल, इस्माल की ग़लत व्याख्या करने वाले ये नीम हकीम मुफ़्ती हमेशा अपनी
क़ौम का नुकसान करते रहे हैं। यहां इनका तर्क हैं कि लोग पृथ्वी को मां नहीं कह
सकते, क्योंकि उन्हें पृथ्वी ने पैदा नहीं किया, बल्कि उन्हें उनकी मां ने पैदा
किया है। यह बड़ी अजीब और हास्यास्पद हालत है। इन लोगों को कौन समझाए कि इंसान
जिससे भोजन लेता है, उसी को मां कहता है। मां वस्तुतः परवरिश की सिंबल है। बच्चा
पैदा होने के बाद जिस स्त्री का स्तनपान करता है, उसे मां कहता है। इसी तरह पृथ्वी
यानी धरती भी मां हैं, क्योंकि ज़िंदगी भर इंसान भोजन धरती से लेता है। और धरती के
हिंद महासागर क्षेत्र में कुल 3,287,263 वर्ग किलोमीटर भूभाग पर फैले हुए हिस्से
को भारत, हिंदुस्तान और इंडिया कहा जाता है। चूंकि यही भूखंड यहां पैदा होने और
पलने-बढ़ने वालों को भोजन देता है, इसलिए इस भूखंड को सम्मान से भारत माता कहा
जाता है।
भारत माता यानी भारत एक राष्ट्र है। एक संपूर्ण स्वाधीन और लोकतांत्रिक राष्ट्र
जो 29 राज्यों और सात केंद्र शासित क्षेत्रों में विभाजित है। इस भूखंड पर रहने
वाला हर नागरिक केवल और केवल भारतीय यानी भारतवासी है। बिना किसी संदेह के
भारतीयता इस देश में सबसे बड़ा धर्म है। कबिलाई कल्चर की तरह नहीं, बल्कि इस देश
को एक सभ्य देश की तरह चलाने के लिए एक संविधान बनाया गया है, वह देश का सबसे बड़ा
धर्मग्रंथ है। हिंदुत्व हो, इस्माल हो या फिर ईसाइयत या फिर दूसरा कोई धर्म, सभी
धर्म भारतीयता नाम के इस धर्म के सामने बौने हैं। इसी तरह देश के धर्मग्रंथ यानी “भारतीय संविधान” के आगे गीता, क़ुरआन और
बाइबल सबके सब दूसरी वरीयता के धर्म हैं। यही अंतिम सच है, इस पर तर्क-वितर्क की
कोई गुंजाइश नहीं।
कोई नागरिक अगर हिंदू धर्म को भारतीयता से ऊपर और गीता को भारतीय संविधान से
बड़ा मानता है, तो उसे ऐसी जगह या ऐसे देश में चले जाना चाहिए, जहां भारत,
भारतीयता या भारतीय संविधान न हो। कोई नागरिक अगर इस्लाम को भारतीयता से ऊपर और क़ुरआन
को भारतीय संविधान से बड़ा मानता है, तो उसे ऐसी जगह या ऐसे देश में चले जाना
चाहिए, जहां भारत, भारतीयता या भारतीय संविधान न हो। इसी तरह अगर कोई नागरिक किसी
दूसरे धर्म को भारतीयता से ऊपर और अपने धर्मग्रंथ को भारतीय संविधान से ऊपर मानता
है, तो उसे भी ऐसी जगह या ऐसे देश में चले जाना चाहिए, जहां भारत, भारतीयता या
भारतीय संविधान न हो। और जब तक इस भूखंड पर आप हैं, आप सबसे पहले भारतीय हैं, न कि
हिंदू, मुस्लिम या ईसाई।
इस संप्रभु, सामाजिक और सेक्यूलर देश में हर नागरिक को लिखने, बोलने और धर्म
मानने की पूरी आज़ादी मिली हुई है। बोलने-लिखने की आज़ादी इतनी ज़्यादा है कि लोग
देश के सर्वोच्च शासक प्रधानमंत्री तक की आलोचना करते हैं। उसके फ़ैसलों से
सार्वजनिक तौर पर असहमति जताते हैं। इसी आज़ादी के चलते आजकल देश का विभाजन व देश
के टुकड़े करने की बात कहना, राष्ट्रगान या राष्ट्रीय गीत न गाना और भारत माता की
जय न बोलने की बात करने का फैशन सा बन गया है। लिहाज़ा, असदुद्दीन ओवैसी के
ख़िलाफ़ सार्वजनिक तौर पर भारत माता की जय नहीं बोलने का ऐलान करने के लिए कठोर कार्रवाई
होनी चाहिए थी। ओवैसी ही नहीं, पब्लिकली ऐसे बयान देने वाले हर व्यक्ति का
मताधिकार भी छीन लिया जाना चाहिए। यह पहल सुप्रीम कोर्ट को ही करनी होगी। देश से
जुड़े ऐसे संवेदनशील मसले पर सुप्रीम कोर्ट को ख़ुद संज्ञान लेना चाहिए।
दरअसल, भारत माता की जय बोलने और न बोलने पर विवाद ही नहीं होना चाहिए था।
आतंकवाद से मुसलमानों का पहले ही बहुत ज़्यादा नुकसान हो चुका है। लिहाज़ा, ख़ुद
मुसलमानों को ही आगे आकर भारत माता की जय बोलने का विरोध कर रहे लोगों का
सार्वजनिक तौर पर बहिष्कार करना चाहिए। वरना यह मसला मुसलमानों को मुख्यधारा से
अलग-थलग कर सकता है। इतना ही नहीं, यदि मुसलमान चुप रहे तो यह संदेश देने की साज़िश
भी की जा सकती है कि हर मुसलमन की यही भावना है, जबकि यह सच नहीं है। ओवैसी जैसे
मुट्ठी भर लोगों को छोड़ दिया जाए तो देश का आम मुसलमान उसी तरह देशभक्त है, जिस
तरह हिंदू। उसे किसी से देशभक्ति का प्रमाणपत्र लेने की ज़रूरत नहीं है। इस नाजुक मसले
पर संवेदनशील होने की ज़रूरत है और बहके हुए लोगों से कहना चाहिए कि “भारत माता की जय” मत
बोलें, पर शोर भी न करें कि “भारत माता की जय” नहीं बोलेंगे। अगर जागरुक मुसलमान फ़ौरन आगे आकर इसे नहीं संभाल
तो इस संवेदनशील मसले को आरएसएस हाईजैक कर सकता है, जैसा कि लगने लगा है।
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