हरिगोविंद विश्वकर्मा
लगता है, दिल्ली के चीफ़ मिनिस्टर अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी अभी तक दिल्ली सरकार में मंत्री रहे अपने विधायक जीतेंद्र सिंह तोमर की फ़र्ज़ी डिग्रियों के मामले में गिरफ़्तारी और फिर तिहाड़ जेल की हवा खाने के वाक़ये से नहीं उबर पाएं हैं। इसीलिए अरविंद समेत आप के क़रीब-क़रीब सभी प्रमुख नेता इन दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री को फ़र्ज़ी साबित करने के लिए जी जान से जुटे हुए हैं। इस क्रम में 'आप' नेताओं की ओर से रोज़ाना नए-नए खुलाए करने के दावे किए जा रहे हैं।
'आप' के लीडरान आशुतोष, संजय सिंह आदि दावा कर रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जो डिग्री बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और वित्तमंत्री अरुण जेटली ने जारी की है, वह फ़र्ज़ी है। आशुतोष ने तंज कसते हुए कहा है कि जालसाज़ी करने के लिए भी अक्ल चाहिए। हो सकता है, उनका इशारा जीतेंद्र सिंह तोमर की ओर हो, जिन्होंने ‘अक्ल का इस्तेमाल’ करते हुए बड़ी चतुराई से फ़र्ज़ी डिग्री को एक बार तो असली साबित ही कर दिया था, लेकिन संबंधित संस्थानों की ओर से डिग्री देने से इनकार करने पर बेचारे फंस गए थे और मंत्रिपद ही नहीं गया, ख़ुद भी जेल गए।
बहरहाल, आशुतोष ने दावा किया है कि बैचलर और मास्टर की डिग्रियों में नरेंद्र मोदी के नाम में अंतर है, जो नहीं होना चाहिए। आशुतोष का तर्क है कि किसी का नाम बदलने के लिए क़ानूनी प्रक्रिया होती है। आशुतोष ने यह भी दावा करते हैं कि 1977 की मार्कशीट है, लेकिन डिग्री 1978 की है। बीए की मार्कशीट पर नाम नरेंद्रकुमार दामोदरदास मोदी लिखा है, जबकि एमए डिग्री में नरेंद्र दामोदरदास मोदी है। हालांकि इस बार में गुजरात विश्वविद्यालय के कुलपति महेश पटेल साफ़ कर चुके हैं कि ख़ुद मोदी ने 1981 में दाखिला लेते समय प्रवेश फॉर्म पर नरेंद्रकुमार मोदी लिखा था, जो डीयू के सर्टिफिकेट में लिखा था, लेकिन मोदी ने ही 1982 में नरेद्र मोदी कर दिया था। यहां सवाल यह भी है कि क्या कोई संस्थान किसी छात्र को नाम में संशोधन करने की इजाजत देता है। इस बात की पड़ताल होनी चाहिए।
वैसे अरविंद केजरीवाल को उनकी हरकतों और बड़बोलेपन की वजह से भले ही लोगों ने उन्हें सीरियसली लेना बंद कर दिया हो और उन पर सोशल मीडिया में जोक पर जोक बनाए जा रहे हों, लेकिन देश के प्रधानमंत्री की डिग्री के बारे में अरविंद और आम आदमी पार्टी के आरोप को बिना गहन जांच के ख़ारिज़ भी नहीं किया जा सकता है। ऐसे में गाहे-बगाहे मन में सवाल ज़रूर उठता है कि कहीं नरेंद्र मोदी की बीए की डिग्री और उसके बाद एमए की डिग्री वाक़ई फ़र्ज़ी तो नहीं है।
दरअसल, कहा जाता है कि नरेंद्र मोदी ने महज़ 17 साल की उम्र में अपना घर छोड़कर निकल गए थे। तब तक उन्होंने केवल 10वीं तक की पढ़ाई बड़नगर के गुजराती मीडियम के भागवताचार्य नारायणाचार्य हाईस्कूल से पूरी की थी। इंटर में उन्होंने एडमिशन तो लिया था, लेकिन इंटर पूरा किए बिना घर से चले गए थे। बहराहल, वापस आकर मोदी ने दोबारा 12वीं पास की या नहीं, यह जानकारी कहीं भी उपलब्ध नहीं है। इसकी पुष्टि केवल प्रधानमंत्री ही कर सकते हैं।
अलबत्ता, सन् 1990 में तत्कालीन पत्रकार (अब सीनियर कांग्रेस लीडर) राजीव शुक्ला के टीवी कार्यक्रम ‘रूबरू’ में तत्कालीन बीजेपी जनरल सेक्रेटरी नरेंद्र मोदी ने स्वीकार किया था कि उन्होंने नियमित रूप से केवल स्कूली शिक्षा पूरी की है। जब शुक्ला ने दोबारा पूछा कि स्कूली शिक्षा का मतलब प्राइमरी तक? तब मोदी ने कहा था –प्राइमरी नहीं, हाईस्कूल। उसी इंटरव्यू में मोदी ने कहा कि बाद में संघ के एक अधिकारी के आग्रह पर उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से एक्सटर्नल इग्ज़ाम देकर राजनीति शास्त्र में बीए किया और उसके बाद गुजरात विश्वविद्यालय से एक्सटर्नल एग्ज़ाम देकर संपूर्ण राजनीति शास्त्र से एमए कर लिया।
बहरहाल केजरीवाल ने डीयू से आग्रह किया है कि प्रधानमंत्री की डिग्री वेबसाइट पर सार्वजनिक करे और यह सुनिश्चित करे कि डिग्री के दस्तावेज सुरक्षित हैं। 'आप' का आरोप है कि वास्तव में डीयू के पास ऐसे डाक्यूमेंट्स ही नहीं हैं, जिससे साबित हो कि नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने 1978 में यूनिवर्सिटी से डिग्री हासिल की। पीएम ने यह जानकारी वर्ष 2014 के चुनाव के अपने हलफनामे में दी है।
'आप' का कहना था कि उसने पीएम मोदी की ओर से दी गई ग्रेजुएशन की तारीख वाले दिन 'नरेंद्र महावीर मोदी' के ग्रेजुएट होने की जानकारी हासिल की है। आप के अनुसार, यह 'नरेंद्र महावीर मोदी' राजस्थान के अलवर से हैं जबकि पार्टी ने स्कूल सर्टिफिकेट के आधार पर कहा है कि पीएम मोदी गुजरात के बड़नगर से हैं। पीएम मोदी जैसे नाम वाले शख्स ने माना कि 1975 से 1978 तक डीयू में था।
सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि दिल्ली विश्वविद्यालय प्रधानमंत्री की डिग्री सही मानता है, लेकिन उसके पास कोई रिकॉर्ड नहीं है। डीयू की केंद्रीय जन सूचना अधिकारी जयचंद्रा ने पिछले साल सितंबर में मुंबई के आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को भेजे जबाब में कहा था चार दशक पुराना रिकॉर्ड उनके पास नहीं हैं। इसलिए वर्ष 1978 में पास छात्र-छात्राओं की जानकारी के लिए संबंधित कॉलेज से संपर्क करें। मगर विवाद बढ़ने के बाद डीयू ने मोदी की डिग्री सार्वजनिक की। विश्वविद्यालय प्रशासन ने तर्क दिया है कि मोदी ने 1978 में कक्षाएं अटेंड की थी और परीक्षा में पास हुए थे, लेकिन विश्वविद्यालय के पास कोई रिकॉर्ड नहीं है।
क्या ऐसा संभव है, जहां से कोई छात्र पढ़ाई किया हो, उस संस्थान के पास उस छात्र का कोई रिकॉर्ड ही न हो। किसी भी व्यक्ति ने जहां भी पढ़ाई की है, अगर वहां जाकर रिकॉर्ड मांगे तो पूरा रिकॉर्ड मिलेगा, क्योंकि हर छात्र का रिकॉर्ड सुरक्षित रखना संस्थान की ज़िम्मेदारी होती है। ऐसे में दिल्ली विश्वविद्यालय जैसा संस्थान ऐसा कैसे कह सकता है कि मोदी ने चूंकि 40 साल पहले पढ़ाई की थी, इसलिए उनका कोई रिकॉर्ड नहीं है।
बहरहाल, आम आदमी पार्टी के नेताओं का यह भी कहना है कि सत्तर और अस्सी के दशक में दिल्ली विश्वविद्यालय डिग्री पाने वाले सभी छात्रों को सर्टिफिकेट हाथ ले लिखकर देता था, लेकिन मोदी की जो डिग्री जारी की गई है, वह कंप्यूटराइज़्ड फॉन्ट में है। इससे संदेह गहरा जाता है। इतना ही नहीं, जिस तरह गुजरात विश्वविद्यालय ने मोदी के भरे गए फॉर्म को झेरॉक्स कॉपी जारी करके साबित कर दिया है कि मोदी ने 1981 से 83 तक उनके यहां पढ़ाई की थी, उसी तरह दिल्ली विश्वविद्यावय को भी पूरा दस्तावेज़ सार्वजनिक कर देना चाहिए। मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं, उनकी डिग्री पर ससपेंस कतई ठीक नहीं। अगर इसमें लेट किया गया तो आम लोगों को लगने लगेगा कि दाल में कहीं कुछ काला है। वैसे सोशल मीडिया पर कानाफूसी होने लगी है कि कहीं प्रधानमंत्री की डिग्री कहीं वाक़ई फ़र्ज़ी तो नहीं हैं!
लगता है, दिल्ली के चीफ़ मिनिस्टर अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी अभी तक दिल्ली सरकार में मंत्री रहे अपने विधायक जीतेंद्र सिंह तोमर की फ़र्ज़ी डिग्रियों के मामले में गिरफ़्तारी और फिर तिहाड़ जेल की हवा खाने के वाक़ये से नहीं उबर पाएं हैं। इसीलिए अरविंद समेत आप के क़रीब-क़रीब सभी प्रमुख नेता इन दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री को फ़र्ज़ी साबित करने के लिए जी जान से जुटे हुए हैं। इस क्रम में 'आप' नेताओं की ओर से रोज़ाना नए-नए खुलाए करने के दावे किए जा रहे हैं।
'आप' के लीडरान आशुतोष, संजय सिंह आदि दावा कर रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जो डिग्री बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और वित्तमंत्री अरुण जेटली ने जारी की है, वह फ़र्ज़ी है। आशुतोष ने तंज कसते हुए कहा है कि जालसाज़ी करने के लिए भी अक्ल चाहिए। हो सकता है, उनका इशारा जीतेंद्र सिंह तोमर की ओर हो, जिन्होंने ‘अक्ल का इस्तेमाल’ करते हुए बड़ी चतुराई से फ़र्ज़ी डिग्री को एक बार तो असली साबित ही कर दिया था, लेकिन संबंधित संस्थानों की ओर से डिग्री देने से इनकार करने पर बेचारे फंस गए थे और मंत्रिपद ही नहीं गया, ख़ुद भी जेल गए।
बहरहाल, आशुतोष ने दावा किया है कि बैचलर और मास्टर की डिग्रियों में नरेंद्र मोदी के नाम में अंतर है, जो नहीं होना चाहिए। आशुतोष का तर्क है कि किसी का नाम बदलने के लिए क़ानूनी प्रक्रिया होती है। आशुतोष ने यह भी दावा करते हैं कि 1977 की मार्कशीट है, लेकिन डिग्री 1978 की है। बीए की मार्कशीट पर नाम नरेंद्रकुमार दामोदरदास मोदी लिखा है, जबकि एमए डिग्री में नरेंद्र दामोदरदास मोदी है। हालांकि इस बार में गुजरात विश्वविद्यालय के कुलपति महेश पटेल साफ़ कर चुके हैं कि ख़ुद मोदी ने 1981 में दाखिला लेते समय प्रवेश फॉर्म पर नरेंद्रकुमार मोदी लिखा था, जो डीयू के सर्टिफिकेट में लिखा था, लेकिन मोदी ने ही 1982 में नरेद्र मोदी कर दिया था। यहां सवाल यह भी है कि क्या कोई संस्थान किसी छात्र को नाम में संशोधन करने की इजाजत देता है। इस बात की पड़ताल होनी चाहिए।
वैसे अरविंद केजरीवाल को उनकी हरकतों और बड़बोलेपन की वजह से भले ही लोगों ने उन्हें सीरियसली लेना बंद कर दिया हो और उन पर सोशल मीडिया में जोक पर जोक बनाए जा रहे हों, लेकिन देश के प्रधानमंत्री की डिग्री के बारे में अरविंद और आम आदमी पार्टी के आरोप को बिना गहन जांच के ख़ारिज़ भी नहीं किया जा सकता है। ऐसे में गाहे-बगाहे मन में सवाल ज़रूर उठता है कि कहीं नरेंद्र मोदी की बीए की डिग्री और उसके बाद एमए की डिग्री वाक़ई फ़र्ज़ी तो नहीं है।
दरअसल, कहा जाता है कि नरेंद्र मोदी ने महज़ 17 साल की उम्र में अपना घर छोड़कर निकल गए थे। तब तक उन्होंने केवल 10वीं तक की पढ़ाई बड़नगर के गुजराती मीडियम के भागवताचार्य नारायणाचार्य हाईस्कूल से पूरी की थी। इंटर में उन्होंने एडमिशन तो लिया था, लेकिन इंटर पूरा किए बिना घर से चले गए थे। बहराहल, वापस आकर मोदी ने दोबारा 12वीं पास की या नहीं, यह जानकारी कहीं भी उपलब्ध नहीं है। इसकी पुष्टि केवल प्रधानमंत्री ही कर सकते हैं।
अलबत्ता, सन् 1990 में तत्कालीन पत्रकार (अब सीनियर कांग्रेस लीडर) राजीव शुक्ला के टीवी कार्यक्रम ‘रूबरू’ में तत्कालीन बीजेपी जनरल सेक्रेटरी नरेंद्र मोदी ने स्वीकार किया था कि उन्होंने नियमित रूप से केवल स्कूली शिक्षा पूरी की है। जब शुक्ला ने दोबारा पूछा कि स्कूली शिक्षा का मतलब प्राइमरी तक? तब मोदी ने कहा था –प्राइमरी नहीं, हाईस्कूल। उसी इंटरव्यू में मोदी ने कहा कि बाद में संघ के एक अधिकारी के आग्रह पर उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से एक्सटर्नल इग्ज़ाम देकर राजनीति शास्त्र में बीए किया और उसके बाद गुजरात विश्वविद्यालय से एक्सटर्नल एग्ज़ाम देकर संपूर्ण राजनीति शास्त्र से एमए कर लिया।
बहरहाल केजरीवाल ने डीयू से आग्रह किया है कि प्रधानमंत्री की डिग्री वेबसाइट पर सार्वजनिक करे और यह सुनिश्चित करे कि डिग्री के दस्तावेज सुरक्षित हैं। 'आप' का आरोप है कि वास्तव में डीयू के पास ऐसे डाक्यूमेंट्स ही नहीं हैं, जिससे साबित हो कि नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने 1978 में यूनिवर्सिटी से डिग्री हासिल की। पीएम ने यह जानकारी वर्ष 2014 के चुनाव के अपने हलफनामे में दी है।
'आप' का कहना था कि उसने पीएम मोदी की ओर से दी गई ग्रेजुएशन की तारीख वाले दिन 'नरेंद्र महावीर मोदी' के ग्रेजुएट होने की जानकारी हासिल की है। आप के अनुसार, यह 'नरेंद्र महावीर मोदी' राजस्थान के अलवर से हैं जबकि पार्टी ने स्कूल सर्टिफिकेट के आधार पर कहा है कि पीएम मोदी गुजरात के बड़नगर से हैं। पीएम मोदी जैसे नाम वाले शख्स ने माना कि 1975 से 1978 तक डीयू में था।
सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि दिल्ली विश्वविद्यालय प्रधानमंत्री की डिग्री सही मानता है, लेकिन उसके पास कोई रिकॉर्ड नहीं है। डीयू की केंद्रीय जन सूचना अधिकारी जयचंद्रा ने पिछले साल सितंबर में मुंबई के आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को भेजे जबाब में कहा था चार दशक पुराना रिकॉर्ड उनके पास नहीं हैं। इसलिए वर्ष 1978 में पास छात्र-छात्राओं की जानकारी के लिए संबंधित कॉलेज से संपर्क करें। मगर विवाद बढ़ने के बाद डीयू ने मोदी की डिग्री सार्वजनिक की। विश्वविद्यालय प्रशासन ने तर्क दिया है कि मोदी ने 1978 में कक्षाएं अटेंड की थी और परीक्षा में पास हुए थे, लेकिन विश्वविद्यालय के पास कोई रिकॉर्ड नहीं है।
क्या ऐसा संभव है, जहां से कोई छात्र पढ़ाई किया हो, उस संस्थान के पास उस छात्र का कोई रिकॉर्ड ही न हो। किसी भी व्यक्ति ने जहां भी पढ़ाई की है, अगर वहां जाकर रिकॉर्ड मांगे तो पूरा रिकॉर्ड मिलेगा, क्योंकि हर छात्र का रिकॉर्ड सुरक्षित रखना संस्थान की ज़िम्मेदारी होती है। ऐसे में दिल्ली विश्वविद्यालय जैसा संस्थान ऐसा कैसे कह सकता है कि मोदी ने चूंकि 40 साल पहले पढ़ाई की थी, इसलिए उनका कोई रिकॉर्ड नहीं है।
बहरहाल, आम आदमी पार्टी के नेताओं का यह भी कहना है कि सत्तर और अस्सी के दशक में दिल्ली विश्वविद्यालय डिग्री पाने वाले सभी छात्रों को सर्टिफिकेट हाथ ले लिखकर देता था, लेकिन मोदी की जो डिग्री जारी की गई है, वह कंप्यूटराइज़्ड फॉन्ट में है। इससे संदेह गहरा जाता है। इतना ही नहीं, जिस तरह गुजरात विश्वविद्यालय ने मोदी के भरे गए फॉर्म को झेरॉक्स कॉपी जारी करके साबित कर दिया है कि मोदी ने 1981 से 83 तक उनके यहां पढ़ाई की थी, उसी तरह दिल्ली विश्वविद्यावय को भी पूरा दस्तावेज़ सार्वजनिक कर देना चाहिए। मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं, उनकी डिग्री पर ससपेंस कतई ठीक नहीं। अगर इसमें लेट किया गया तो आम लोगों को लगने लगेगा कि दाल में कहीं कुछ काला है। वैसे सोशल मीडिया पर कानाफूसी होने लगी है कि कहीं प्रधानमंत्री की डिग्री कहीं वाक़ई फ़र्ज़ी तो नहीं हैं!
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