गुजरता
जा रहा है रोज़ाना एक दिन
तुमको
भी पड़ेगा ही जाना एक दिन
क्यों
कहते हो आत्महंताओं को कायर
सबको
पड़ेगा ज़हर खाना एक दिन
जंग
जीतकर कोई ना यहां से गया
मुंहकी
खाएगा हर सयाना एक दिन
दौलत
क्या जिस्म भी नहीं तुम्हारा
समझोगे
ज़िंदगी का फसाना एक दिन
पूरी
ज़िदगी तुमने जो जो भी किया
पड़ेगा
सब कुछ बताना एक दिन
हरिगोविंद विश्वकर्मा
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