हरिगोविंद विश्वकर्मा
शायद लोगों को याद हो पर दो-तीन साल पहले भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ पूरे देश में आक्रोश के चलते अचानक जननायक बन गए अरविंद केजरीवाल स्टिंग ऑपरेशन करने पर ख़ूब ज़ोर देते थे। वह बेबाक कहते थे, “कोई ग़लत कर रहा हो तो उसका स्टिंग कर लो और उस स्टिंग को पब्लिक कर दो।“ 2013 में दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने के बाद भी वह कहते रहे, “जो रिश्वत मांगे, उसकी आवाज़ रिकॉर्ड कर लो और मेरे पास भेज दो, मैं उसे फ़ौरन जेल भेज दूंगा।“ अब लगता है, वही स्टिंग ऑपरेशन आम आदमी पार्टी के गले की हड्डी बन गया है, क्योंकि स्टिंग ऑपरेशन के चलते पहले अरविंद खुद बेनक़ाब हुए और अब उनकी पार्टी के आदर्शवादी नेता एक-एक करके एक्सपोज़ हो रहे हैं।
फ़िलहाल, स्टिंग ऑपरेशन से ‘आप सुप्रीमो’ अरविंद को पता चला कि उनकी पार्टी में संदीप कुमार नाम की एक गंदी मछली है। शायद अरविंद ने संदीप कुमार को साफ़-सुथरी मछली समझकर पहले चुनाव में टिकट दिया, फिर जीतने के बाद उन्हें महिलाओं को डिपार्टमेंट दे दिया। अब पता चला कि वह मछली साफ़ नहीं, बल्कि गंदी थी। वह गंदी मछली महिलाओं पर‘बुरी नज़र’ रखती थी और उनसे ‘सेक्सुअल फेवर’ मांगती थी। लिहाज़ा, उस गंदी मछली को सरकार से बाहर निकाल फेंका गया। कभी ‘निष्पक्ष पत्रकार’ रहे आप सुप्रीमो के लेफ़्टिनेंट आशुतोष गुप्ता अब उस गंदी मछली की तुलना महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, अटलबिहारी वाजपेयी और जॉर्ज फर्नांडिस जैसे नेताओं से कर रहे हैं। आशुतोष तो जेएनयू प्रोडक्ट हैं, इसके बावजूद उन्हें शायद पता नहीं कि जिन भारतीय नेताओं का नाम वह ले रहे हैं, उन पर किसी स्त्री ने कभी रेप का आरोप नहीं लगाया था।
दिल्ली में महिला विकास मंत्रालय के प्रभारी रहे संदीप कुमार का स्टिंग तो तमाम स्टिंग्स पर भारी पड़ा। यह स्टिंग आप नेताओं के बारे में जनता की सोच ही बदल दी। भारतीय समाज ऐसे नेता को पसंद नहीं करता। इस स्टिंग से यही संदेश गया कि केजरीवाल ने प्रशांत-योगेंद्र के विरोध का धता-बताकर चुनाव में अनेक दाग़दार छवि वाले नेताओं को टिकट ही नहीं दिया बल्कि उनमें से दो को तो मंत्री भी बना दिया। ज़ाहिर है, इस स्टिंग से पार्टी को जो नुकसान हुआ है, उसकी गंभीरता अभी कम से कम आशुतोष जैसे नेता नहीं समझ रहे हैं। भारतीय राजनीति में नेता का चरित्र बहुत अहम होता है। संदीप कुमार प्रकरण से लोग यही सोचना शुरू कर सकते हैं कि इस पार्टी में सभी नेता ऐसे ही हैं।
बहरहाल, यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि स्टिंग ऑपरेशन आप के लिए ख़ासा सिरदर्द साबित हो रहा है। स्टिंग ऑपरेशन की पार्टी पहली बार नवंबर 2013 में शिकार हुई, जब मीडिया सरकार के अनुरंजन झा ने दिल्ली विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कुमार विश्वास और साज़िया इल्मी (तब आप में थीं) समेत 13 आप उम्मीदवारों का स्टिंग कर सनसनी फैला दी। स्टिंग के चलते आप चुनाव में बहुतम पाने से वंचित रह गई। लिहाज़ा, त्रिशंकु एसेंबली में सरकार बनाने के लिए कांग्रेस से हाथ मिलाने का अपयश झेलना पड़ा। हर वक़्त कांग्रेस को कोसने वाले अरविंद के उसी के समर्थन से सरकार बनाने पर पहली बार लोगों को संदेह हुआ कि कहीं केजरीवाल भी आम भारतीय नेताओं की तरह तो नहीं हैं। जो बातें आदर्शवाद की करते हैं लेकिन अंदर से सत्ता का भूखा है।
जो भी हो, ख़ुद आप सुप्रीमो अरविंद के असली और स्वाभाविक चरित्र और चेहरे को उजागर किया उनके ही कार्यकर्ता उमेश सिंह के सनसनीख़ेज़ स्टिंग ने। आदर्शवाद और संस्कार की बात करने वाले अरविंद के मुंह से गाली पूरे देश ने सुनी, वह भी प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव और आनंद कुमार जैसे बेहद सौम्य और जनता के बीच अच्छी छवि रखने वाले लोगों के लिए। किसी को यक़ीन ही नहीं हुआ, लेकिन यह सच था। मई 2015 में पब्लिक हुए स्टिंग ने साबित कर दिया कि केजरीवाल गाली-गलौज़ करने वाले नेता हैं। इस स्टिंग के बाद भारतीय राजनीति में उनकी पर्सनॉलिटी कल्ट ही ख़त्म हो गई। वह जोक्स और उपहास के सब्जेक्ट बन गए।
बहरहाल, भ्रष्टाचार को सबसे गंभीर सामाजिक बुराई मानने वाली आप के पंजाब प्रभारी सुच्चा सिंह छोटेपुर का भी स्टिंग इसी साल हुआ। सुच्चा एक नेता से कथित तौर पर टिकट देने के बदले दो लाख रुपए लेते हुए पकड़े गए। बतौर सीएम 1984 के दिल्ली दंगे की फिर से जांच कराने का आदेश देकर सिख जनता के हीरो बने केजरीवाल पंजाब में सरकार बनाने का सपना देख रहे थे, क्योंकि लोकसभा में पार्टी के चारों सांसद पंजाब से ही हैं, लेकिन स्टिंग ने उनका समीकरण ही गड़बड़ा दिया है।
वस्तुतः कुछ दिन पहले पंजाब से ही एक और स्टिंग पब्लिक हुआ, जिसमें आप नेता हरदीप किंगरा ने पंजाब प्रभारी संजय सिंह और सह प्रभारी दुर्गेश पाठक पर पैसे लेने का आरोप लगाया। स्टिंग के मुताबिक़, माघी मेले के लिए पार्टी की फाइनेंस कमेटी के सुरिंदर अरोड़ा ने जो छह लाख रुपए जमा कराए थे, उनमें से एक लाख रुपए तो पार्टी फंड में जमा हुआ, लेकिन बाक़ी पांच लाख रुपए संजय सिंह ने कैश ले लिए। अभी तक संजय सिंह ने इस आरोप का खंडन नहीं किया है।
पिछले दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले आप को दूसरी पार्टियों से अलग पार्टी माना जाता था। लोग मानते थे, आप एकमात्र पार्टी है, जिसकी कथनी और करनी में अंतर नहीं है। मसलन,हर मुद्दे पर इसका नज़रिया और नीति साफ़ है। मसला अपराधियों को राजनीति से दूर रखने की हो, चंदे में पारदर्शिता की हो या फिर पार्टी में सुप्रीमो कल्चर की, हर मुद्दे पर कम से कम आप का रवैया पारदर्शी, सर्वमान्य और लोकतांत्रिक था। इसका इंपैक्ट सीधे जनता पर होता था। लोग मानते थे कि बीजेपी-कांग्रेस जैसी दूसरी पार्टियां आप को ख़त्म करने की साज़िश में लगी हुई हैं, ताकि पिछले क़रीब सात दशक से जिस तरह की राजनीति हो रही है, वह बदस्तूर जारी रहे।
यही वजह है कि चुनाव में जनता ने आप को वह मैंडेट दिया, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। केजरीवाल ने चीफ़ मिनिस्टर बनते समय अपील की, “कुछ भी हो अपने ऊपर अंहकार हावी मत होने देना, क्योंकि अहंकार ने बीजेपी-कांग्रेस का बेड़ा गर्क कर दिया।” यह बात लोगों को बहुत पसंद आई। राजनीतिक हलकों में सुगबुगाहट होने लगी कि मुमकिन है,2019 का आम चुनाव नरेंद्र मोदी बनाम राहुल गांधी न होकर नरेंद्र मोदी बनाम अरविंद केजरीवाल हो। लेकिन योगेंद्र-प्रशांत को जिस तरह बाहर का रास्ता दिखाया गया उससे साफ़ लगा कि इस पार्टी में सभी नेताओं में अहंकार भर गया है।
अब लग रहा है कि जनता से मिला शानदार मौक़ा अरविंद अहंकार और अपने चमचों की बात मानकर गंवा रहे हैं। 2013-14 में उनकी सरकार ने 49 दिन में गुड गवर्नेंस का परिचय दिया था। इसी आधार पर लोगों ने वोट दिया। परंतु दूसरे कार्यकाल में वह ख़ुद ही बेनकाब हो रहे है। एक-एक करके वही काम कर रहे थे, जिसकी कभी वह मुखालफत किया करते थे। वह लालबत्ती-वीआईपी-बंगला कल्चर ख़त्म करने की बात करते थे। क्या उसका पालन कर रहे हैं? उनके सारे नेता बंगलों में रह रहे हैं और लालबत्ती कार से चल रहे हैं।
बेशक, केजरीवाल के साथ केंद्र सरकार गंभीर अन्याय कर रही है। लोग जान रहे हैं कि लेफ़्टिनेंट गवर्नर नज़ीब जंग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इशारे पर दिल्ली सरकार को काम नहीं करने दे रहे हैं। यह किसी इमरजेंसी जैसे हालात से कम नहीं है, लेकिन न तो दिल्ली, न ही देश में, किसी का ख़ून खौल रहा है। मतलब, केजरीवाल को जनसमर्थन नहीं मिल रहा है। लोग चुप हैं, कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहे हैं। इसका मतलब यह भी है कि लोग जान गए हैं कि आप और केजरीवाल भी दूध के धुले नहीं हैं। लिहाज़ा, न तो आप को, न ही केजरीवाल को सहानुभूति नहीं मिल रही है।
अब जिस तरह से आप के नेताओं के स्टिंग सामने आ रहे हैं और एक के बाद एक आप एमएलए की गिरफ़्तारी हो रही है। उससे ख़तरा यह पैदा हो गया है कि कहीं स्टिंग ऑपरेशन से पार्टी का अस्तित्व ही संकट में न पड़ जाए। लोग यह भी मानने लगे हैं कि संभवतः केजरीवाल ने लोगों का ट्रैक रिकॉर्ड चेक किए बिना ही पार्टी में शामिल किया, टिकट दे दिया और जीतने पर अपनी सरकार में मंत्री बना दिया। इसका यह भी मतलब कि अरविंद में अच्छे-बुरे लोगों की पहचान करने का हुनर नहीं है। यानी आप बंडलबाज़ और स्त्रियों का शोषण करने वाले नेताओं का जमघट हो गया है।
भारतीय जनता, ख़ास करके वोटर बड़े उदार रहे हैं। नेताओं के ग़ुनाह माफ़ करते रहे हैं। अगर केजरीवाल वाक़ई चाहते हैं कि उनकी पार्टी की साख़ पर लगा दाग़ धुले तो उन्हें ग़लत नेताओं को पार्टी में शामिल करने, टिकट देने और फिर मंत्री बनाने की भूल के लिए सार्वजनिक तौर पर माफ़ी मांगनी चाहिए। उन्हें तमाम संदिग्ध चरित्र वाले नेताओं को पार्टी से निकाल बाहर करना चाहिए। चाहे संदीप कुमार हो, जीतेंद्र तोमर हों या अपनी पत्नी का टॉर्चर करने वाले सोमनाथ भारती। अगर अरविंद माफ़ी मांगकर यह क़दम उठाते हैं तो मुमकिन है जनता उन्हें माफ़ कर दे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें