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रविवार, 19 अगस्त 2018

मुंबई के नाथ टेकड़ीवाला बाबुलनाथ मंदिर

हरिगोविंद विश्वकर्मा 
सावन का महीना शुरू हो गया है। यह मनभावन महीना हिंदुओं के लिए बहुत अहम है। इसे सबसे पवित्र महीना माना जाता है। इस महीने में मुंबई के जिस धार्मिक स्थल में सबसे चहल पहल होती है वह मुंबई का बाबुलनाथ मंदिर है। इसके अलावा यहाँ महाशिवरात्रि और हर सोमवार को श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। 

प्राचीनकाल का ये शिव मंदिर मुंबई ही नहीं पूरे भारत में बने सबसे पुराने मंदिरों में से एक है।  गिरगांव चौपाटी के निकट मालाबार हिल्स की पहाड़ी पर बना यह प्राचीन मंदिर बबुल (बाबुल) के पेड़ के देवता के रूप में जाना जाता है, क्योंकि यह बबूल के पेड़ के देवता के रूप में विराजमान हैं। यहाँ के भगवान शंकर को मुंबई के लिफ्ट वाले शिवबाबा भी कहा जाता है।

हिंदू राजा भीमदेव ने 12 वीं शताब्दी में पवित्र शिवलिंग और मूर्तियों को बाबुलनाथ मंदिर के अंदर स्थापित करवाया था। यह मंदिर लंबे समय तक भूमि के अन्दर समाहित हो गया था। मौजूदा मंदिर को फिर से खोजा गया और जब मूल मूर्तियों को खोदकर बाहर निकाला जा रहा था तो पाँचवीं मूर्ति पानी में डूब कर टूट गई थी। आज मूलतः भगवान शिव, पार्वती, गणेश और हनुमान जी की चार मूर्तियाँ मंदिर में स्थापित हैं। 

वैसे तो मंदिर को लेकर कोई पक्के सुबूत अब तक किसी के हाथ नहीं लगे हैं, मगर कुछ इतिहासकार बताते हैं कि किसी ज़माने में यहाँ घना जंगल और चरागाह हुआ करता था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जहाँ पर आज मालाबार पहाड़ी है, आज से लगभग 300 साल पहले तक वहां चरागाह था, जिसमें बबूल के वृक्ष बहुतायत में थे। कहा जाता है कि इस इलाक़े की अधिकांश जमीन धनवान सोनार पांडुरंग की थी। पांडुरंग के पास अनेक गायें थीं, जिनकी देखभाल बाबुल नामक एक चरवाहा करता था, झुंड में कपिला नाम की भी एक गाय थी। वह हरी घास अधिक खाती थी और  अन्य गायों की अपेक्षा अधिक दूध देती थी। एक शाम कपिला ने दूध का एक भी बूँद नहीं दिया। पांडुरंग के पूछने पर बाबुल ने कहा कि कपिला दूध एक भगवान को पिला देती है। जहाँ गाय दूध गिराती थी, उसे खोदने पर एक स्वयंभू शिवलिंग निकला अर्थात काले पत्थर से निर्मित एक आत्म-अस्तित्व वाली शिवलिंग प्राप्त हुई। वही स्थान अब बाबुलनाथ मंदिर है।

मंदिर की वास्तुकला और अद्भभुत आन्तरिक संरचना को देखकर, ऐसा लगता है जैसे कैलाश पर्वत पर स्थित मंदिर वहीं पर मौजूद है। मंदिर की संपूर्ण छत और खंभे हिंदू पौराणिक कथाओं के सुंदर चित्रों से सुशोभित हैं। मंदिर का निर्माण सन् 1780 ई में हुआ था। अब तो मंदिर तक जाने के लिए लिफ़्ट यानी एस्केलेटर बना दिया गया है, जिससे भक्त आसानी से यहाँ पहुँच जाते हैं।

यदि आप एक व्यस्त शहरी जीवन जी रहे हैं तो धार्मिक स्थानों पर भ्रमण करने से आपके मन को शांति मिल सकती है। सदियों से यहां विराजमान बबूल देवता रोजाना सैकड़ों भक्तों को आशीर्वाद देकर उनकी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। रोजाना सैकड़ों की संख्या में भक्तों की भीड़ ऊंचाई पर स्थापित महादेव जी के इस अद्वितीय रूप के दर्शन करने को आती है।

स्वयंभू शिवलिंग - जंगलेश्वर महादेव मंदिर

हरिगोविंद विश्वकर्मा
वैसे तो सावन में हर शिवमंदिर में शिव भक्त आते हैं, लेकिन जंगलेश्वर महादेव मंदिर में बम-बम भोले बोलने वालों की भारी भीड़ उमड़ती है। इसीलिए बारिश के इस महीने में जंगलेश्वर मंदिर गुलजार रहता है। सोमवार के दिन तो भक्तों का रेला ही नहीं थमता है। घटकोपर पश्चिम में बना मंदिर करीब दो सौ साल पुराना है। बेहद सुकून देने वाला यह मंदिर भक्तों को संपूर्ण आनंद देता है। विशाल गुंबद और अर्धचंद्राकार स्तंभों वाले इस प्राचीन शिवमंदिर में विशालाकार स्वयंभू शिवलिंग दूर से ही नजर आता है। इस मंदिर के गर्भगृह में लिंग रूप में स्वयंभू रूप में प्रकटे महादेव, देवी पार्वती, गणेश, माता गंगा और माता लक्ष्मी विराजमान हैं। 1994 में समाजसेवक बाल सुर्वे ने इसका जीर्णोद्धार करवाया। जीर्णोद्धार के बाद इसका पूरा स्वरूप ही बदल गया है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, सदियों पहले खैरानी रोड जंगल और पहाड़ से घिरा था। यहां की बंजर भूमि में सर्पों का बसेरा था। माना जाता है कि जब भी कहीं कोई संकट आता है, वहां सर्प दिखाई देने लगते हैं। यह भी कहा जाता है कि सांपों के कारण यहां कोई भी जीवित नहीं बच पाता था। कालांत में संयोग से यहां साधु-संत आने लगे। साधुओं ने उबड़-खाबड़ जमीन समतल करके छोटा-सा मंदिर बनाया और उसमें शिवलिंग स्थापित कर दिया। बाद में इस पूरे इलाके में सर्प दिखाई देने बंद हो गए और इलाका मानवों से आबाद होने लगा। धीरे-धीरे यह मंदिर साधुओं के बीच बहुत लोकप्रिय हो गया। कहते हैं, एक दिन एक सांप मंदिर परिसर में आया और शिव की मूर्ति के बगल में बैठ गया। साधुओं ने उसे दूध पिलाया। उस दिन से वह सांप नियमित रूप से शिवलिंग के बगल में बैठने लगा। बाद में यह मंदिर सांप का स्थाई निवास बन गया, यह सिलसिला लंबे समय तक चला। बहरहाल, जैसे जैसे समय बीतने लगा और यहां की जनसंख्या बढ़ने लगी, उसके साथ ही सांप मंदिर परिसर से गायब होते गए।

एक दूसरी पौराणिक कथा के मुताबिक दौ सौ साल पहले यह बीहड़ इलाका घने जंगल से घिरा था। एक दिन जंगल साफ़ करते समय, जंगली महाराज उर्फ जंगली बाबा नाम के साधु को महादेव का दुर्लभ शिवलिंग मिला। साधु ने उसे मंदिर में स्थापित किया। चूंकि शिवलिंग धरती से निकला था, इसलिए जंगलेश्वर मंदिर में शिवलिंग को स्वयंभू शिवलिंग माना जाता है। जंगली महाराज के नाम पर इस मंदिर का नाम जंगलेश्वर महादेव मंदिर पड़ा। 

यह मंदिर करीब दो एकड़ भूखंड में फैला है। यहां स्थानीय इलाकों के लोग ही नहीं राज्यों के दूसरे हिस्से के लोग भी भगवान शिव की प्रार्थना करने आते हैं। कहा जाता है कि जो भी पूजा करता है उसकी तपस्या पूरी हो जाती है।

बाबुलनाथ के बाद यह प्राचीनतम मंदिर है। मंदिर में सोमवार को जुटने वाले हजारों भक्तों में ज्यादातर उत्तर भारतीय और गुजराती होते हैं। महाशिवरात्रि को भी भारी भीड़ उमड़ती है। इस मंदिर में सिर्फ शांति का वास है।
संभाजी लाड, 
सदस्य, 
जंगलेश्वर महादेव मंदिर भक्त मंडल

बहुत पुराना होने के कारण यह मंदिर जीर्ण अवस्था में था। जीर्णोद्धार के बाद इसकी भव्यता बढ़ गई। भगवान शिव की महिमा अपरंपार है, उनके पास सोने का दिल है। भोलेनाथ सबकी मनोकामना पूरी करते हैं।  
-दीवाकर महाराज, 
पुजारी,
जंगलेश्लर महादेव मंदिर

शनिवार, 11 अगस्त 2018

सावन का आकर्षण - तुंगारेश्वर महादेव मंदिर

हरिगोविंद विश्वकर्मा

अगर आप शिवभक्त हैं और प्रकृति से प्रेम करते हैं, लेकिन व्यस्तता या किसी दूसरे कारण से सावन महीने में वसई के तुंगारेश्वर महादेव मंदिर नहीं जा पाए हैं तो यकीन मानिए आप बेहद सुकून देने वाले आनंद से वंचित हैं। वैसे तो सावन में महादेव के हर मंदिर में भक्त आते हैं, लेकिन शिव को अत्यंत प्रिय इस महीने में सातिवली पहाड़ियों पर स्थित तुंगारेश्वर मंदिर में भक्तों का भारी हुजूम उमड़ता है। यह स्थान इतना मनोरम और हरियाली भरा है कि यहां से वापस लौटने का मन ही नहीं करता। यह मान्यता है कि तुंगारेश्वर महादेव की परिवार के साथ पूजा करने से पारिवारिक सुख शांति मिलती है और यश व शोहरत में वृद्धि होती है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान महादेव शंकर भोलेनाथ को सावन महीना बहुत प्रिय है। इसीलिए सावन में शिव का दर्शन-पूजन और अभिषेक भक्तों के लिए एक अनुष्ठान की तरह होता है। दरअसल, पूरे सावन मास में शैव संप्रदाय के अनुयायी बाबा भोलेनाथ के बारह ज्योतिर्लिंगों में से किसी एक जगह सामर्थ्य के अनुसार जलाभिषेक करते हैं। जो भक्त ज्योतिर्लिंग नहीं जा पाते हैं, वे किसी प्राचीन शिव मंदिर में श्रावणी पूजा करते हैं। इसीलिए तुंगारेश्वर महादेव मंदिर समेत तमाम प्राचीन मंदिरों में सावन में भीड़ होती है।

समुद्र तल से 2177 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस जगह, तुंगारेश्वर मंदिर के अलावा काल भैरव मंदिर, जगमाता मंदिर और बालयोगी सदानंद महाराज मठ भी है। यहां महाशिवरात्रि पर जनसैलाब उमड़ता है। मौजूदा तुंगारेश्वर मंदिर तीन सदी से भी अधिक पुराना है। वैसे इसका जिक्र पुराण में भी मिलता है। इसे वास्तु का ध्यान रखकर बनाया गया है, इससे यहां आने वालों को धनात्मक ऊर्जा बहुत ज्यादा मिलती है। शिवलिंग के करीब एक खास जगह ध्यान लगाने से सकारात्मक ऊर्जा अधिकतम स्तर तक पहुंच जाती है। यह देश के सबसे सुकून देने वाले मंदिरों में से है, क्योंकि यह मनोरम स्थल पर बना है।

यह मान्यता है कि यहां तुंगा नाम का राक्षस रहता था, जो ऋषि-मुनियों को बहुत प्रताड़ित करता था। तुंगा को परशुराम ने पराजित करके सबकी उससे रक्षा की। परशुराम ने देवी निर्मला को भी तुंगा के चंगुल से बचाया। उन्होंने उसे बंधक बना कर यहीं रखा। यहां तुंगा भगवान शिव की आराधना करने लगा। उसकी तपस्या से भगवान शिव प्रस्न्न हुए और शिव के कहने पर परशुराम ने तुंगा को मुक्त कर दिया। तुंगा से पूजित यहां के शिव कालांतर में तुंगारेश्वर के नाम से मशहूर हुए। परशुराम ने आदि शंकराचार्य के साथ शुपारक में ध्यान किया था, वही गांव बाद में शुपारक और आजकल सोपारा (नालासोपारा) कहलाता है।

तुंगारेश्वर का इलाका वसई का प्रमुख पर्यटन स्थल भी है। यहां दूर से श्रद्धालु आते हैं। तुंगारेश्वर नदी की खूबसूरती का कोई पारावार नहीं। यही नहीं ये जगह कई छोटे-बड़े जलप्रपातों (वॉटर फॉल्स) के लिए जानी जाती है। यहां चिंचोटी वॉटर फॉल भी है। यहाँ दो झरने हैं, एक 
से ठंडा और दूसरे से गर्म पानी निकलता है। यह मानसून के दौरान घूमने के लिए सबसे आदर्श स्थल है। तुंगारेश्वर वन्यजीव अभयारण्य बनाकर तुंगारेश्वर पहाड़ियों को वन्यजीव संरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया गया है। यहां आना शानदार अनुभव होता है।

मंदिर का अस्तित्व त्रेतायुग से है। मंदिर देश के पवित्रतम स्थल में गिना जाता है। आज बालयोगी श्री सदानंद महाराज के हाथों महाभिषेक और महाआरती होगी।   
पुरुषोत्तम पाटिल
अध्यक्ष - श्री तुंगारेश्वर देवस्थान विश्स्त मंडल

तुंगारेश्वर अभयारण्य यहां की ऑक्सीजन की जरूरत पूरा करता है। इसे और भी हरा भरा बनाने के लिए नए वृक्ष लगाया जाना जरूरी है।
राजीव पाटिल, पूर्व मेयर वसई-विरार