हरिगोविंद विश्वकर्मा
अगर आप शिवभक्त हैं और प्रकृति से प्रेम करते हैं, लेकिन व्यस्तता या किसी दूसरे कारण से सावन महीने में वसई के तुंगारेश्वर महादेव मंदिर नहीं जा पाए हैं तो यकीन मानिए आप बेहद सुकून देने वाले आनंद से वंचित हैं। वैसे तो सावन में महादेव के हर मंदिर में भक्त आते हैं, लेकिन शिव को अत्यंत प्रिय इस महीने में सातिवली पहाड़ियों पर स्थित तुंगारेश्वर मंदिर में भक्तों का भारी हुजूम उमड़ता है। यह स्थान इतना मनोरम और हरियाली भरा है कि यहां से वापस लौटने का मन ही नहीं करता। यह मान्यता है कि तुंगारेश्वर महादेव की परिवार के साथ पूजा करने से पारिवारिक सुख शांति मिलती है और यश व शोहरत में वृद्धि होती है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान महादेव शंकर भोलेनाथ को सावन महीना बहुत प्रिय है। इसीलिए सावन में शिव का दर्शन-पूजन और अभिषेक भक्तों के लिए एक अनुष्ठान की तरह होता है। दरअसल, पूरे सावन मास में शैव संप्रदाय के अनुयायी बाबा भोलेनाथ के बारह ज्योतिर्लिंगों में से किसी एक जगह सामर्थ्य के अनुसार जलाभिषेक करते हैं। जो भक्त ज्योतिर्लिंग नहीं जा पाते हैं, वे किसी प्राचीन शिव मंदिर में श्रावणी पूजा करते हैं। इसीलिए तुंगारेश्वर महादेव मंदिर समेत तमाम प्राचीन मंदिरों में सावन में भीड़ होती है।
समुद्र तल से 2177 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस जगह, तुंगारेश्वर मंदिर के अलावा काल भैरव मंदिर, जगमाता मंदिर और बालयोगी सदानंद महाराज मठ भी है। यहां महाशिवरात्रि पर जनसैलाब उमड़ता है। मौजूदा तुंगारेश्वर मंदिर तीन सदी से भी अधिक पुराना है। वैसे इसका जिक्र पुराण में भी मिलता है। इसे वास्तु का ध्यान रखकर बनाया गया है, इससे यहां आने वालों को धनात्मक ऊर्जा बहुत ज्यादा मिलती है। शिवलिंग के करीब एक खास जगह ध्यान लगाने से सकारात्मक ऊर्जा अधिकतम स्तर तक पहुंच जाती है। यह देश के सबसे सुकून देने वाले मंदिरों में से है, क्योंकि यह मनोरम स्थल पर बना है।
यह मान्यता है कि यहां तुंगा नाम का राक्षस रहता था, जो ऋषि-मुनियों को बहुत प्रताड़ित करता था। तुंगा को परशुराम ने पराजित करके सबकी उससे रक्षा की। परशुराम ने देवी निर्मला को भी तुंगा के चंगुल से बचाया। उन्होंने उसे बंधक बना कर यहीं रखा। यहां तुंगा भगवान शिव की आराधना करने लगा। उसकी तपस्या से भगवान शिव प्रस्न्न हुए और शिव के कहने पर परशुराम ने तुंगा को मुक्त कर दिया। तुंगा से पूजित यहां के शिव कालांतर में तुंगारेश्वर के नाम से मशहूर हुए। परशुराम ने आदि शंकराचार्य के साथ शुपारक में ध्यान किया था, वही गांव बाद में शुपारक और आजकल सोपारा (नालासोपारा) कहलाता है।
तुंगारेश्वर का इलाका वसई का प्रमुख पर्यटन स्थल भी है। यहां दूर से श्रद्धालु आते हैं। तुंगारेश्वर नदी की खूबसूरती का कोई पारावार नहीं। यही नहीं ये जगह कई छोटे-बड़े जलप्रपातों (वॉटर फॉल्स) के लिए जानी जाती है। यहां चिंचोटी वॉटर फॉल भी है। यहाँ दो झरने हैं, एक
से ठंडा और दूसरे से गर्म पानी निकलता है। यह मानसून के दौरान घूमने के लिए सबसे आदर्श स्थल है। तुंगारेश्वर वन्यजीव अभयारण्य बनाकर तुंगारेश्वर पहाड़ियों को वन्यजीव संरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया गया है। यहां आना शानदार अनुभव होता है।
मंदिर का अस्तित्व त्रेतायुग से है। मंदिर देश के पवित्रतम स्थल में गिना जाता है। आज बालयोगी श्री सदानंद महाराज के हाथों महाभिषेक और महाआरती होगी।
पुरुषोत्तम पाटिल
अध्यक्ष - श्री तुंगारेश्वर देवस्थान विश्स्त मंडल
तुंगारेश्वर अभयारण्य यहां की ऑक्सीजन की जरूरत पूरा करता है। इसे और भी हरा भरा बनाने के लिए नए वृक्ष लगाया जाना जरूरी है।
राजीव पाटिल, पूर्व मेयर वसई-विरार
अगर आप शिवभक्त हैं और प्रकृति से प्रेम करते हैं, लेकिन व्यस्तता या किसी दूसरे कारण से सावन महीने में वसई के तुंगारेश्वर महादेव मंदिर नहीं जा पाए हैं तो यकीन मानिए आप बेहद सुकून देने वाले आनंद से वंचित हैं। वैसे तो सावन में महादेव के हर मंदिर में भक्त आते हैं, लेकिन शिव को अत्यंत प्रिय इस महीने में सातिवली पहाड़ियों पर स्थित तुंगारेश्वर मंदिर में भक्तों का भारी हुजूम उमड़ता है। यह स्थान इतना मनोरम और हरियाली भरा है कि यहां से वापस लौटने का मन ही नहीं करता। यह मान्यता है कि तुंगारेश्वर महादेव की परिवार के साथ पूजा करने से पारिवारिक सुख शांति मिलती है और यश व शोहरत में वृद्धि होती है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान महादेव शंकर भोलेनाथ को सावन महीना बहुत प्रिय है। इसीलिए सावन में शिव का दर्शन-पूजन और अभिषेक भक्तों के लिए एक अनुष्ठान की तरह होता है। दरअसल, पूरे सावन मास में शैव संप्रदाय के अनुयायी बाबा भोलेनाथ के बारह ज्योतिर्लिंगों में से किसी एक जगह सामर्थ्य के अनुसार जलाभिषेक करते हैं। जो भक्त ज्योतिर्लिंग नहीं जा पाते हैं, वे किसी प्राचीन शिव मंदिर में श्रावणी पूजा करते हैं। इसीलिए तुंगारेश्वर महादेव मंदिर समेत तमाम प्राचीन मंदिरों में सावन में भीड़ होती है।
समुद्र तल से 2177 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस जगह, तुंगारेश्वर मंदिर के अलावा काल भैरव मंदिर, जगमाता मंदिर और बालयोगी सदानंद महाराज मठ भी है। यहां महाशिवरात्रि पर जनसैलाब उमड़ता है। मौजूदा तुंगारेश्वर मंदिर तीन सदी से भी अधिक पुराना है। वैसे इसका जिक्र पुराण में भी मिलता है। इसे वास्तु का ध्यान रखकर बनाया गया है, इससे यहां आने वालों को धनात्मक ऊर्जा बहुत ज्यादा मिलती है। शिवलिंग के करीब एक खास जगह ध्यान लगाने से सकारात्मक ऊर्जा अधिकतम स्तर तक पहुंच जाती है। यह देश के सबसे सुकून देने वाले मंदिरों में से है, क्योंकि यह मनोरम स्थल पर बना है।
यह मान्यता है कि यहां तुंगा नाम का राक्षस रहता था, जो ऋषि-मुनियों को बहुत प्रताड़ित करता था। तुंगा को परशुराम ने पराजित करके सबकी उससे रक्षा की। परशुराम ने देवी निर्मला को भी तुंगा के चंगुल से बचाया। उन्होंने उसे बंधक बना कर यहीं रखा। यहां तुंगा भगवान शिव की आराधना करने लगा। उसकी तपस्या से भगवान शिव प्रस्न्न हुए और शिव के कहने पर परशुराम ने तुंगा को मुक्त कर दिया। तुंगा से पूजित यहां के शिव कालांतर में तुंगारेश्वर के नाम से मशहूर हुए। परशुराम ने आदि शंकराचार्य के साथ शुपारक में ध्यान किया था, वही गांव बाद में शुपारक और आजकल सोपारा (नालासोपारा) कहलाता है।
तुंगारेश्वर का इलाका वसई का प्रमुख पर्यटन स्थल भी है। यहां दूर से श्रद्धालु आते हैं। तुंगारेश्वर नदी की खूबसूरती का कोई पारावार नहीं। यही नहीं ये जगह कई छोटे-बड़े जलप्रपातों (वॉटर फॉल्स) के लिए जानी जाती है। यहां चिंचोटी वॉटर फॉल भी है। यहाँ दो झरने हैं, एक
से ठंडा और दूसरे से गर्म पानी निकलता है। यह मानसून के दौरान घूमने के लिए सबसे आदर्श स्थल है। तुंगारेश्वर वन्यजीव अभयारण्य बनाकर तुंगारेश्वर पहाड़ियों को वन्यजीव संरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया गया है। यहां आना शानदार अनुभव होता है।
मंदिर का अस्तित्व त्रेतायुग से है। मंदिर देश के पवित्रतम स्थल में गिना जाता है। आज बालयोगी श्री सदानंद महाराज के हाथों महाभिषेक और महाआरती होगी।
पुरुषोत्तम पाटिल
अध्यक्ष - श्री तुंगारेश्वर देवस्थान विश्स्त मंडल
तुंगारेश्वर अभयारण्य यहां की ऑक्सीजन की जरूरत पूरा करता है। इसे और भी हरा भरा बनाने के लिए नए वृक्ष लगाया जाना जरूरी है।
राजीव पाटिल, पूर्व मेयर वसई-विरार
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