हरिगोविंद विश्वकर्मा
सावन का महीना शुरू हो गया है। यह मनभावन महीना हिंदुओं के लिए बहुत अहम है। इसे सबसे पवित्र महीना माना जाता है। इस महीने में मुंबई के जिस धार्मिक स्थल में सबसे चहल पहल होती है वह मुंबई का बाबुलनाथ मंदिर है। इसके अलावा यहाँ महाशिवरात्रि और हर सोमवार को श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है।
प्राचीनकाल का ये शिव मंदिर मुंबई ही नहीं पूरे भारत में बने सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। गिरगांव चौपाटी के निकट मालाबार हिल्स की पहाड़ी पर बना यह प्राचीन मंदिर बबुल (बाबुल) के पेड़ के देवता के रूप में जाना जाता है, क्योंकि यह बबूल के पेड़ के देवता के रूप में विराजमान हैं। यहाँ के भगवान शंकर को मुंबई के लिफ्ट वाले शिवबाबा भी कहा जाता है।
हिंदू राजा भीमदेव ने 12 वीं शताब्दी में पवित्र शिवलिंग और मूर्तियों को बाबुलनाथ मंदिर के अंदर स्थापित करवाया था। यह मंदिर लंबे समय तक भूमि के अन्दर समाहित हो गया था। मौजूदा मंदिर को फिर से खोजा गया और जब मूल मूर्तियों को खोदकर बाहर निकाला जा रहा था तो पाँचवीं मूर्ति पानी में डूब कर टूट गई थी। आज मूलतः भगवान शिव, पार्वती, गणेश और हनुमान जी की चार मूर्तियाँ मंदिर में स्थापित हैं।
वैसे तो मंदिर को लेकर कोई पक्के सुबूत अब तक किसी के हाथ नहीं लगे हैं, मगर कुछ इतिहासकार बताते हैं कि किसी ज़माने में यहाँ घना जंगल और चरागाह हुआ करता था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जहाँ पर आज मालाबार पहाड़ी है, आज से लगभग 300 साल पहले तक वहां चरागाह था, जिसमें बबूल के वृक्ष बहुतायत में थे। कहा जाता है कि इस इलाक़े की अधिकांश जमीन धनवान सोनार पांडुरंग की थी। पांडुरंग के पास अनेक गायें थीं, जिनकी देखभाल बाबुल नामक एक चरवाहा करता था, झुंड में कपिला नाम की भी एक गाय थी। वह हरी घास अधिक खाती थी और अन्य गायों की अपेक्षा अधिक दूध देती थी। एक शाम कपिला ने दूध का एक भी बूँद नहीं दिया। पांडुरंग के पूछने पर बाबुल ने कहा कि कपिला दूध एक भगवान को पिला देती है। जहाँ गाय दूध गिराती थी, उसे खोदने पर एक स्वयंभू शिवलिंग निकला अर्थात काले पत्थर से निर्मित एक आत्म-अस्तित्व वाली शिवलिंग प्राप्त हुई। वही स्थान अब बाबुलनाथ मंदिर है।
मंदिर की वास्तुकला और अद्भभुत आन्तरिक संरचना को देखकर, ऐसा लगता है जैसे कैलाश पर्वत पर स्थित मंदिर वहीं पर मौजूद है। मंदिर की संपूर्ण छत और खंभे हिंदू पौराणिक कथाओं के सुंदर चित्रों से सुशोभित हैं। मंदिर का निर्माण सन् 1780 ई में हुआ था। अब तो मंदिर तक जाने के लिए लिफ़्ट यानी एस्केलेटर बना दिया गया है, जिससे भक्त आसानी से यहाँ पहुँच जाते हैं।
यदि आप एक व्यस्त शहरी जीवन जी रहे हैं तो धार्मिक स्थानों पर भ्रमण करने से आपके मन को शांति मिल सकती है। सदियों से यहां विराजमान बबूल देवता रोजाना सैकड़ों भक्तों को आशीर्वाद देकर उनकी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। रोजाना सैकड़ों की संख्या में भक्तों की भीड़ ऊंचाई पर स्थापित महादेव जी के इस अद्वितीय रूप के दर्शन करने को आती है।
सावन का महीना शुरू हो गया है। यह मनभावन महीना हिंदुओं के लिए बहुत अहम है। इसे सबसे पवित्र महीना माना जाता है। इस महीने में मुंबई के जिस धार्मिक स्थल में सबसे चहल पहल होती है वह मुंबई का बाबुलनाथ मंदिर है। इसके अलावा यहाँ महाशिवरात्रि और हर सोमवार को श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है।
प्राचीनकाल का ये शिव मंदिर मुंबई ही नहीं पूरे भारत में बने सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। गिरगांव चौपाटी के निकट मालाबार हिल्स की पहाड़ी पर बना यह प्राचीन मंदिर बबुल (बाबुल) के पेड़ के देवता के रूप में जाना जाता है, क्योंकि यह बबूल के पेड़ के देवता के रूप में विराजमान हैं। यहाँ के भगवान शंकर को मुंबई के लिफ्ट वाले शिवबाबा भी कहा जाता है।
हिंदू राजा भीमदेव ने 12 वीं शताब्दी में पवित्र शिवलिंग और मूर्तियों को बाबुलनाथ मंदिर के अंदर स्थापित करवाया था। यह मंदिर लंबे समय तक भूमि के अन्दर समाहित हो गया था। मौजूदा मंदिर को फिर से खोजा गया और जब मूल मूर्तियों को खोदकर बाहर निकाला जा रहा था तो पाँचवीं मूर्ति पानी में डूब कर टूट गई थी। आज मूलतः भगवान शिव, पार्वती, गणेश और हनुमान जी की चार मूर्तियाँ मंदिर में स्थापित हैं।
वैसे तो मंदिर को लेकर कोई पक्के सुबूत अब तक किसी के हाथ नहीं लगे हैं, मगर कुछ इतिहासकार बताते हैं कि किसी ज़माने में यहाँ घना जंगल और चरागाह हुआ करता था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जहाँ पर आज मालाबार पहाड़ी है, आज से लगभग 300 साल पहले तक वहां चरागाह था, जिसमें बबूल के वृक्ष बहुतायत में थे। कहा जाता है कि इस इलाक़े की अधिकांश जमीन धनवान सोनार पांडुरंग की थी। पांडुरंग के पास अनेक गायें थीं, जिनकी देखभाल बाबुल नामक एक चरवाहा करता था, झुंड में कपिला नाम की भी एक गाय थी। वह हरी घास अधिक खाती थी और अन्य गायों की अपेक्षा अधिक दूध देती थी। एक शाम कपिला ने दूध का एक भी बूँद नहीं दिया। पांडुरंग के पूछने पर बाबुल ने कहा कि कपिला दूध एक भगवान को पिला देती है। जहाँ गाय दूध गिराती थी, उसे खोदने पर एक स्वयंभू शिवलिंग निकला अर्थात काले पत्थर से निर्मित एक आत्म-अस्तित्व वाली शिवलिंग प्राप्त हुई। वही स्थान अब बाबुलनाथ मंदिर है।
मंदिर की वास्तुकला और अद्भभुत आन्तरिक संरचना को देखकर, ऐसा लगता है जैसे कैलाश पर्वत पर स्थित मंदिर वहीं पर मौजूद है। मंदिर की संपूर्ण छत और खंभे हिंदू पौराणिक कथाओं के सुंदर चित्रों से सुशोभित हैं। मंदिर का निर्माण सन् 1780 ई में हुआ था। अब तो मंदिर तक जाने के लिए लिफ़्ट यानी एस्केलेटर बना दिया गया है, जिससे भक्त आसानी से यहाँ पहुँच जाते हैं।
यदि आप एक व्यस्त शहरी जीवन जी रहे हैं तो धार्मिक स्थानों पर भ्रमण करने से आपके मन को शांति मिल सकती है। सदियों से यहां विराजमान बबूल देवता रोजाना सैकड़ों भक्तों को आशीर्वाद देकर उनकी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। रोजाना सैकड़ों की संख्या में भक्तों की भीड़ ऊंचाई पर स्थापित महादेव जी के इस अद्वितीय रूप के दर्शन करने को आती है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें