हरिगोविंद विश्वकर्मा
देश
में पिछले छह साल से सत्तारूढ़ राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी अक्सर कांग्रेस पर
मुसलमानों के कथित तुष्टीकरण का आरोप लगाती रही है। कांग्रेस की नीतियों को भाजपा
के नेता ‘इम्पीज़मेंट पॉलिटिक्स’ की संज्ञा देते रहे हैं। लेकिन दिल्ली के
निज़ामुद्दीन के तबलीग़-ए-जमात आलमी मरकज़ में देश-विदेश से आए जमातियों को वहां
से निकलने के बारे जो भी खुलासे हो रहे हैं, उस पर ग़ौर करें, तो यही लगता है कि कट्टरपंथी
मुसलमानों को डील करने में राष्ट्रवाद की पैरोकार भाजपा मुसलमानों के लिए सॉफ्ट
कॉर्नर रखने वाली कांग्रेस से भी ज़्यादा फिसड्डी साबित हुई है।
निज़ामुद्दीन
में छह मंज़िली इमारत में मौजूद हज़ारों की तादाद में जमातियों को निकालने के लिए तबलीग़ी
मरकज़ के सदर मौलाना मोहम्मद साद को मनाने और राजी करने हेतु राष्ट्रीय सुरक्षा
सलाहकार अजित डोभाल का रात दो बजे मरकज़ में जाना, यही दर्शाता है कि कट्टरपंथी मुसलमानों
को डील करते समय भाजपा भी कांग्रेस की तरह बहुत सॉफ़्ट अप्रोच अख़्तियार करती है
और कट्टरपंथियों को नाराज़ नहीं करना चाहती है। अन्यथा 22 मार्च को जनता कर्फ़्यू
से पहले ही कोरोना वायरस फैलाने वाले इन जमातियों को डंडे मार कर हकालकर क़्वारंटीन
सेंटर में दिया जाता।
देश
भर में कोरोना मरीज़ों की संख्या में सात सौ कोरोना पॉज़िटिव मरीज़ो का योगदान देने
वाला तबलीग़ी आलमी मरकज़ तो चीनी वायरस फैलने के लिए तो सबसे अधिक ज़िम्मेदार है
ही, लोकल पुलिस और स्थानीय नागरिक प्रशासन से लेकर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और
दिल्ली सूबे के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तक भी उतने ही ज़िम्मेदार हैं, क्योंकि
ये लोग 19, 20 और 21 मार्च की अवधि के दौरान कोई सख़्त कार्रवाई करने की बजाय बस हाथ
पर हाथ धरे बैठे रहे। अगर देश-विदेश से आए जमातियों के जमावड़े की बात इन तक पहुंचाई
ही नहीं गई तो यह तो और भी गंभीर मसला है।
तबलीग़ी
आलमी मरकज़ की बंगलेवाली मस्जिद की इमारत में मौजूद 2346 लोगों को बेशक निकाल लिया
गया है, लेकिन यह सवाल अभी तक अनुत्तरित है कि इतनी बड़ी तादाद में लोगों को वहां
रुकने और चीनी वायरस फैलाने की इजाज़त किन परिस्थियों में दी गई। जमातियों की जांच
करके पहले ही सभी को क़्वारंटीन सेंटर में क्यों नहीं भेजा गया। केंद्रीय गृहमंत्री
के आदेश पर काम करने वाली दिल्ली पुलिस ने 22 मार्च से पहले सख़्त क़दम क्यों नहीं
उठाया। इसका जवाब मांगा जाना ही चाहिए।
ऐसे
समय, जब देश के सभी धार्मिक और शिक्षण संस्थान 18 मार्च को ही बंद कर दिए गए। 18
मार्च को ही देश में सबसे अधिक भीड़ खींचने वाले तिरुपति बालाजी मंदिर और जम्मू-कश्मीर
के वैष्णोदेवी मंदिर को बंद कर दिया गया। 20 मार्च को दुनिया में सबसे अधिक भीड़
खींचने वाली मक्का मस्जिद और मदीना मस्जिद भी बंद कर दी गई। तब तबलीग़ी आलमी मरकज़
की बंगलेवाली मस्जिद की इमारत में चार हज़ार तमातियों को निकालने के लिए स्थानीय
पुलिस सक्रिय क्यों नहीं हुई?
दरअसल,
चीनी वाइरस का ख़तरा देश में 30
जनवरी
को पहला कोरोना पॉज़िटिव केस मिलने के बाद ही महसूस किया जाने लगा था। कई कंपनियां
अपने कर्मचारियों को घर से काम करने की सलाह देने लगी थी। इस दौरान कभी केरल से तो
कभी महाराष्ट्र से कोरोना पॉज़िटिव की इक्का-दुक्का ख़बरें आ रही थीं। 12 मार्च को
कर्नाटक के कुलबर्गी में सऊदी अरब से हज़ करके लौटे 76 वर्षीय बुज़ुर्ग की कोरोना से
मौत की ख़बर आते ही देश में हलचल मचने लगी। अगले दिन एक और कोरोना डेथ के बाद
संस्थानों को बंद करने का सिलसिला शुरू हो गया, क्योंकि तब तक देश में कोरोना
पॉज़िटिव के 80 से ज़्यादा मरीज़ों की पुष्टि हो चुकी थी।
दिल्ली
सरकार ने 13 मार्च को डॉ. राममनोहर लोहिया अस्पताल में एक महिला
की कोरोना से मौत के बाद इस चीनी वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए 200 से अधिक
लोगों के एक जगह एकत्रित होने पर रोक लगा दी। 17 मार्च को 50 लोगों के एक जगह जमा होने
प्रतिबंध लगा दिया गया। 19 मार्च को खतरा बढ़ता देख यह संख्या 20 कर दी गई। 20 मार्च को एक जगह पांच लोगों के
इकट्ठा होने पर रोक लगा दी गई। ऐसे क्रिटिकल समय में निज़ामुद्दीन में तबलीग़ी
आलमी मरकज़ की इमारत में क़रीब चार हज़ार लोगों को क्यों जमा होने दिया गया? इसका जवाब लोकल पुलिस के साथ साथ लोकल
प्रशासनिक अधिकारियों से भी पूछा जाना चाहिए।
वस्तुतः
तबलीग़ी आलमी मरकज़ इमारत की दीवार निज़ामुद्दी पुलिस स्टेशन की दीवार से एकदम सटी
हुई है। सड़क से जाने पर मरकज़ से पुलिस स्टेशन की दूरी 40 मीटर से ज़्यादा नहीं
होगी। ऐसे में हज़रत निज़ामुद्दीन पुलिस या स्थानीय ख़ुफ़िया इकाई (लोकल
इंटेलिजेंस यूनिट) को इतनी बड़ी तादाद में लोगों को जुटने की पक्की ख़बर रही ही
होगी और ज़ाहिर है इस सूचना को निश्चित रूप से थानाध्यक्ष और एलआईयू ने अपने आला अधिकारियों
के साथ ज़रूर शेयर किया होगा।
ऐसे
में लग यही रहा है, केंद्रीय गृहमंत्री और मुख्यमंत्री समेत आला अफ़सरों से कोई
स्पष्ट निर्देश न मिलने की अवस्था में स्थानीय पुलिस स्टेशन के प्रभारी मुकेश
वालिया नीरो की तरह बंसी बजाते रहे। 23 मार्च
को जब कोरोना मरीज़ों की संख्य़ा 400 पार कर गई और चीनी वायरस से मरने वालों की
संख्य 4 से अचानक 7 पहुंच गई, तब थाना प्रभारी को लगा कि मामला सीरियस होता जा रहा
है। लिहाज़ा, तबलीग़ी आलमी मरकज़ छह सात लोगों बुलाकर उन्होंने कैमरे के सामने
मरकज़ को खाली करने का निर्देश दिया। यह कार्य थानाध्यक्ष ने चार दिन पहले क्यों
नहीं किया?
दरअसल,
28 मार्च को अंडमान-निकोबार से रिपोर्ट आई कि संक्रमित 10 से से 9 लोग तबलीग़ी
आलमी मरकज़ के प्रोग्राम में शामिल हुए थे। चौथी संक्रमित मरीज़ मरकज़ में शामिल
एक मौलाना की बीवी थी। इस रिपोर्ट से सभी के कान खड़े हो गए और लोकल पुलिसकर्मी और
एसडीएम के साथ इमारत में गए और मौलाना साद से इमारत खाली करवाने और खांस रहे लोगों
को अस्पताल और बाक़ी जमातियों को क्वारंटीन सेंटर भेजने का आग्रह किया, लेकिन
कोरोना वायरस को ही इस्लाम के ख़िलाफ़ साज़िश मानने वाला मौलाना साद अड़ गया और
कहा कि उसके लोग मस्जिद में मर जाएंगे, लेकिन अस्पताल या क्वारंटीन सेंटर में
बिल्कुल नहीं जाएंगे।
यहीं
झाम फंस गया। लात और डंडे खाने के पात्र मौलना साद को पुलिस वाले मनाने मे जुटे
रहे। “मान जाइए। खांस-छींक रहे लोगों को अस्पताल
और बाक़ी लोगों को क्वारंटीन सेंटर भेजने दीजिए” कहते
हुए मनुहार करते रहे।
पूरे
देश में प्रवासी मजदूरों को पुलिस डंडे मारती रही और मुर्गा बनने के लिए मजबूर करती
रही, लेकिन मरकज़ में ‘मिशन मान-मनौव्वल’ चलता रहा। जब रात 12 बजे ‘मिशन मान-मनौव्वल’ फेल हो गया तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को
सूचित किया गया। तब प्रधानमंत्री ने भी मौलाना और गंदी मानसिकता वाले जमातियों डंडे
मारने का आदेश देने की जगह मौलाना को मनाने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को भेजा।
अजित
डोभाल के मनाने के बाद मौलाना साद तैयार हो गया और रात में ही खांस-छींक रहे
जमातियों को बाहर निकलने का सिलसिला शुरू हुआ। वहां इतने अधिक जमाती थे कि इमारत
को खाली कराने में तीन दिन लग गए। सबको निकलने के बाद बताया गया कि 2346 लोग थे। यह
कहना ग़लत नहीं होगा भारत धरती का इकलौता ऐसा मुल्क है, जहां बुद्धिजीवी मुसलमान तो
डर महसूस करते हैं, लेकिन पर्यटन वीज़ा लेकर विदेश इस्लाम का प्रचार करने यानी
धर्म परिवर्तन को बढ़ावा देने के लिए इस भयस्थल के दौरे पर आते हैं और अपना काम
ख़त्म करके चले भी जाते हैं। अब भारत सरकार होश में आई है और लगभग एक हज़ार विदेशी
जमातियों को ब्लैकलिस्ट कर दिया गया है।
अब यह
भी पता चल रहा है कि तबलीग़ी मरकज़ में बड़ा कुर्ता छोटा पायजामा पहनने और दाढ़ी
रखने वाले इन जमातियों को क्या प्रशिक्षण दिया जाता है। ज़ाहिर है, इन लोगों को महिलाओं
को ‘भोग की वस्तु’ मानने की तालीम दी जाती है। तभी तो ये लोग
जहां हैं, वहीं उपद्रव कर रहे हैं। अस्पताल में महिला नर्सों के सामने नंगे होकर अंडरवियर
पहन रहे हैं, अश्लील वीडियों देख रहे हैं, अश्लील इशारे कर रहे हैं और कुछ ऐसे भी
काम कर रहे हैं जिसे लिखा भी नहीं जा सकता। सबसे दुखद बात यह कि मोदी-विरोध में
अंधे कई तथाकथित बुद्धिजीवी दूसरी मिसालें देकर इन जाहिलों और जानवरों की पैरवी कर
रहे हैं।
स्कॉटलैंड
यार्ड की तरह सक्षम और तेज़-तर्रार मानी जाने वाली दिल्ली पुलिस एक हफ़्ता गुज़र
जाने के बावजूद मौलाना साद को नहीं खोज पाई है। ऐसी पुलिस से किसी आतंकवादी को खोज
लेने की कैसे उम्मीद की जा सकती है। ज़ाहिर है, पुलिस जानती है कि मौलाना साद कहां
छिपा हुआ है, लेकिन उसे तलाशने का बहाना कर रही है। यह कांग्रेस शासन में होता तो
गले उतर जाता लेकिन भाजपा शासन में यह बात बिल्कुल हज़म नहीं हो रही है।
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