ऐसा ना सोचो कि मैं बिखर जाऊंगा
बस संभलते संभलते संभल जाऊंगा
मौसम क्या वह तो बदलता रहता है
फूल की तरह मैं कभी गिर जाऊंगा
वक़्त भर देता है हर तरह के ज़ख्म
मैं भी इस दौर से निकल जाऊंगा
कब पूरी हुई है आरजू हर किसी की
यही सोचकर अपना मन बहलाऊंगा
नसीबवाले रहे जिन्हें मोहब्बत मिली
उनका नाम ना लो बिफर जाऊंगा
हरिगोविंद विश्वकर्मा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें