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शनिवार, 9 अगस्त 2014

रक्षाबंधन : स्त्री की रक्षा के लिए ही राखी की परिकल्पना

हरिगोविंद विश्वकर्मा
गहन रिसर्च के बावजूद राखी का त्यौहार कब शुरू हुआ इसका एकदम सटिक प्रमाणिक जानकारी नहीं मिल सकी. इसके बावजूद लगता तो यही है कि मानव सभ्यता के विकसित होने के बाद जब समाज पर पुरुषों का वर्चस्व हुआ, तब स्त्री की रक्षा के उद्देश्य को पूरा करने के लिए ही इस त्यौहार की परिकल्पना की गई होगी. मकसद यह रहा होगा कि समाज में पति-पत्नी के अलावा स्त्री-पुरुष में भाई-बहन का पवित्र रिश्ता कायम हो. बहरहाल, हो सकता है लेखक का आकलन शत-प्रतिशत सही न हो. लेकिन स्वस्थ्य समाज की संरचना के लिए ऐसा ही कुछ हुआ होगा. वैसे, हमारा देश उत्सवों और परंपराओं का देश है. सदियों से पूरे साल अनेक तीज-त्यौहार, पर्व, परंपराएं मनाए जाते रहे हैं. इन्हीं त्योहारों में रक्षा-बंधन यानी राखी भी है. यह त्यौहार भाई-बहन के बीच अटूट-बंधन और पवित्र-प्रेम को दर्शाता है. भारत के कुछ हिस्सों में इसे 'राखी-पूर्णिमा' के नाम से भी जाना जाता है.

स्कंध पुराण, पद्म पुराण भविष्य पुराण और श्रीमद्भागवत गीता में वामनावतार नामक कथा में राखी का प्रसंग मिलता है. मसलन, दानवेंद्र राजा बलि ने जब 100 यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयत्न किया तो इंद्र ने विष्णु से प्रार्थना की. तब विष्णु वामन अवतार लेकर बलि से भिक्षा मांगने पहुंचे. बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी. विष्णु ने तीन पग में आकाश पाताल और धरती नापकर बलि को रसातल में भेज दिया. इस प्रकार विष्णु द्वारा बलि के अभिमान को चकनाचूर कर देने से ही यह त्योहार बलेव नाम से भी मशहूर है. विष्णु पुराण के मुताबिक श्रावण की पूर्णिमा के दिन विष्णु ने हयग्रीव के रूप में अवतार लेकर वेदों को ब्रह्मा के लिए फिर से प्राप्त किया था. हयग्रीव को विद्या और बुद्धि का प्रतीक माना जाता है.

भविष्य पुराण के मुताबिक सुर-असुर संग्राम में जब दानव हावी होने लगे तब इंद्र घबराकर बृहस्पति के पास गये. इंद्र की पत्नी इंद्राणी ने रेशम का धागा मंत्रों की शक्ति से पवित्र करके पति के हाथ पर बांध दिया. संयोग से वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था. मान्यता है कि लड़ाई में इसी धागे की मंत्र शक्ति से ही इंद्र विजयी हुए. उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन धागा बांधने की प्रथा शुरू हो गई.

महाभारत में भी इस बात का उल्लेख है कि जब ज्येष्ठ पांडव युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा, मैं सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूं तब भगवान कृष्ण ने उनकी और उनकी सेना की रक्षा के लिए राखी का त्यौहार मनाने की सलाह दी थी. उनका कहना था कि राखी के धागे में वह शक्ति है जिससे आप हर आपत्ति से मुक्ति पा सकते हैं. जब कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया तब उनकी तर्जनी में चोट आ गई. द्रौपदी ने उस समय अपनी साड़ी फाड़कर उनकी उंगली पर पट्टी बांध दी. यह श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था. कृष्ण ने इस उपकार का बदला बाद में चीरहरण के समय उनकी साड़ी को बढ़ाकर चुकाया.

राजपूत जब लड़ाई पर जाते थे तब महिलाएं उन्हों माथे पर तिलक के साथ साथ हाथ में धागा बांधती थी. इस भरोसे के साथ कि धागा विजयश्री ले आएगा. मेवाड़ की रानी कर्मावती को बहादुरशाह द्वारा मेवाड़ पर हमला करने की सूचना मिली. रानी ने मुगल बादशाह हुमायूं को राखी भेज कर रक्षा याचना की. हुमायूं ने मुसलमान होते हुए भी राखी की लाज रखी और मेवाड़ पहुंचकर कर्मावती और उसके राज्य की रक्षा की. एक अन्य प्रसंगानुसार सिकंदर की पत्नी ने पति के हिंदू शत्रु पुरूवास को राखी बांधकर मुंहबोला भाई बनाया और युद्ध के समय सिकंदर को न मारने का वचन लिया. पुरूवास ने युद्ध के दौरान हाथ में बंधी राखी और अपनी बहन को दिए हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकंदर को जीवन-दान दिया.


रक्षाबंधन श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है. इसीलिए इसे श्रावणी या सलूनो भी कहते हैं. राखी सामान्यतः बहनें भाई को ही बांधती हैं, परंतु कई समाज में छोटी लड़कियां संबंधियों को भी राखी बांधती हैं. कभी-कभी सार्वजनिक रूप से किसी नेता या प्रतिष्ठित व्यक्ति को भी राखी बांधी जाती है. अब तो प्रकृति संरक्षण हेतु वृक्षों को राखी बांधने की परम्परा भी प्रारंभ हो गयी है जो प्रकृति को बचाने के एक प्रयास है. ज़ाहिर है, इस तरह के प्रयास को बढ़ावा देना चाहिए. 
राखी पर सभी को शुभकामनाएं.

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