Powered By Blogger

सोमवार, 7 सितंबर 2015

मुंबई पुलिस में हमेशा रहे हैं दाऊद के जासूस व सिंपैथाइज़र


पिछले दो दशक से ज़्यादा समय से देश के लिए सिरदर्द रहा मोस्टवांटेड क्रिमिनल दाऊद इब्राहिम कासकर एक बार फिर चर्चा में है। अंडरवर्ल्ड डॉन इस बार स्कॉटलैंड यार्ड के समकक्ष मानी जाने वाली मुंबई पुलिस में कथित लिंक यानी अपने जासूसों और सिंपैथाइज़र्स के कारण सुर्खियों में है। अगर दाऊद के पुलिस में लिंक की बात करें तो उसे अपराध की दुनिया में क़दम रखते ही खाकी वर्दी का सहयोग मिलने लगा था। इसीलिए जब कुछ लोग कहते हैं कि दाऊद को डी-सिंडिकेट का सरगना और अडरवर्ल्ड डॉन मुंबई पुलिस ने ही बनाया तो हैरानी बिलकुल नहीं होती।

दरअसल, कांग्रेस शासन में केंद्रीय गृह सचिव रहे बीजेपी के बिहार से लोकसभा सदस्य आरके सिंह ने 10-11 साल पहले के इंटेलिजेंस ब्यूरो के एक कथित ऑपरेशन का ज़िक्र करते हुए पिछले हफ़्ते टीवी इंटरव्यू में कह दिया कि दाऊद के लिए जासूसी करने वाले मुंबई पुलिस के चंद भ्रष्ट अफसरों की वजह से 2005 में डॉन को मारने का प्लान एक्ज़िक्यूट नहीं हो सका। कहा जा रहा है कि 1990 में रथयात्रा से सोमनाथ से अयोध्या जा रहे सीनियर बीजेपी लीडर लालकृष्ण आडवाणी को समस्तीपुर में गिरफ़्तार करने का आदेश देने वाले इस पूर्व नौकरशाह ने कोई नई बात नहीं कही। दरअसल, जो लोग दाऊद के मुंबई पुलिस में लिंक पर हैरानी जता रहे हैं, उन्हें मुंबई पुलिस में दाऊद की पोज़िशन का पता नहीं है।

मुंबई में अपराध की मामूली समझ रखने वाले भी दाऊद को मारने या पकड़कर लाने की चर्चा 1994 से सुनते ही आ रहे हैं। कई रिटायर पुलिस अफ़सर मानते हैं कि दाऊद के ख़िलाफ़ ऑपरेशन के सफल न होने के लिए केवल मुंबई पुलिस को ही ज़िम्मेदार ठहराना अतिरंजना होगी। इनके मुताबिक़, दाऊद के बारे में सबसे ज़्यादा इनपुट्स रखने वाली मुंबई पुलिस और आईबी ने अगर मिलकर ऑपरेशन को किया होता, तब सफलता की संभावना ज़्यादा हो सकती थी। वस्तुतः दोनों जांच एजेंसियों के अकेले क्रेडिट लेने की अपरिपक्व स्पर्धा के कारण ही डॉन के ख़िलाफ़ हर ऑपरेशन फेल होते गए।

कहा जाता है कि दाऊद की बड़ी बेटी महरूख की क्रिकेटर जावेद मियांदाद के बेटे जुनैद के साथ 23 जुलाई 2005 को दुबई के ग्रैंड हयात होटेल में निकाह की रस्म के समय ही डॉन को ख़त्म करने की योजना आईबी ने बनाई थी। लेकिन, आरके सिंह के मुताबिक़, मुंबई पुलिस में एक अफ़सर के इशारे पर इस काम पर लगे विक्की मल्होत्रा और फरीद तनाशा की गिरफ़्तारी से ऑपरेशन ही फेल हो गया। बहरहाल, बेहद चौकन्ने दाऊद ने एहतियातन दूसरी बेटी मेहरीन एवं बेटे मोइन का निकाह 2011 में क्रमशः चार फरवरी और 25 सितंबर को कराची के अपने बंगले मोइन पैलेस में ही किया। छोटी बेटी मारिया अभी 19 साल की है।

वैसे मुंबई में क्राइम रिपोर्टरों के बीच यह भी चर्चा होती रही है कि छोटा राजन के इशारे पर दाऊद की हत्या करने के लिए विक्की और तनशा पहले भी कई बार कराची जा चुके थे। इसी से आग बबूला होकर दाऊद के लेफ़्टिनेंट छोटा शकील ने सन् 2000 में थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक राजन को मारने की असफल कोशिश की थी। वैसे यह भी कहा जाता है कि दाऊद को मारने का प्लान गोपनीय तरीक़े से अटलबिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में 1998 के पोखरण दो के बाद शुरू हुआ। राजन के गुंडे रोहित वर्मा के हाथों दाऊद के ख़ास आदमी नेपाल के सांसद मिर्जा दिलसाद बेग की काठमांडो के पास हत्या के बाद डॉन टारगेट पर था। सुरक्षा एजेंसियां राजन की मदद कर रही थीं, लेकिन हर बार सूचनाएं के दाऊद तक पहुंच जाने से हर कोशिश नाकाम होती रही।

दो साल पहले इंटरव्यू में राजन ने स्वीकार किया था कि दाऊद को मारने के लिए उसने अपने शार्प शूटर दाऊद के क्लिफ़्टन रोड, कराची के आवास के पास दरगाह तक भेजे थे। परंतु ऐन मौक़े पर साज़िश की भनक लगने से दाऊद आया ही नहीं। यह भी चर्चा थी कि दाऊद ठिकाने लगाने के लिए राजन ख़ुफिया एजेंसी रॉ और आईबी की मदद कर रहा है। यह भी कहा जाता है कि मुंबई क्राइम ब्रांच के कई डबल एजेंट दाऊद के आसपास हैं। वे डॉन की डेली लोकेशन और दिनचर्या की जानकारी देते रहते हैं।

थोड़ा और पहले जाएं तो कहा जाता है कि 1994 में रॉ ने दाऊद को ख़त्म करने की दो कोशिश की थी, लेकिन दोनों बार ऐन मौक़े पर नरसिंह राव सरकार ने प्लान को वीटो कर दिया था। उसी साल महाराष्ट्र होम मिनिस्ट्री शीर्ष अधिकारी ने जनसत्तारिपोर्टर को बताया कि टाइगर मेमन की कराची में हत्या हो गई और दाऊद भारत लाया जा चुका है। संवाददाता ने ख़बर फ़ाइल कर दी, जो सभी संस्करणों में छपी। बाद में पता चला, अफ़सर की सूचना ग़लत थी। वैसे, दाऊद के भारत लाने या समर्पण की ख़बर से आज भी कई पॉलिटिशियन और दूसरे लोग टेंशन में आ जाते हैं। शायद उसके यहां आने से वे मुश्किल में पड़ सकते हैं। इसी ल़बी ने दाऊद के सरेंडर प्लान को सैबोटेज किया था।

यह भी माना जाता है कि मुंबई पुलिस में अब भी दाऊद के कई लोग हैं। कहा तो यहां तक जाता है, जब भी किसी गवाह को किसी केस की गवाही के लिए पुलिस मुख्यालय बुलाया जाता है, तो जानकारी पाकिस्तान में बैठे भाई तक पहुंच जाती है और चंद मिनटों में गवाह के पास फोन आ जाते हैं और गवाही का अंजाम भुगतने की धमकी दी जाती है।

जुलियो रिबेरो के बाद 1985 में कमिश्नर बने डीएस सोमण ने दाऊद का साम्राज्य ध्वस्त करने का फ़ैसला किया था, क्योंकि बेल कैंसल होने पर भी डॉन फ़रार था। चार बहुत भरोसेमंद अफ़सरों की स्पेशल टीम बनी। 1986 में एक दिन देर रात दाऊद के अड्डे पाकमोडिया स्ट्रीट के चाल मुसाफ़िरखाना को रेड किया गया, पर दाऊद नहीं मिला। दरअसल, सूचना किसी ने डॉन को दे दी थी और वह पांच मिनट पहले नौ दो ग्यारह हो गया। दूसरे दिन ख़बर आई कि डॉन मुंबई से दुबई पहुंच गया है। सोमण ने आपात बैठक में पूछा, “इतनी पक्की सूचना के बावजूद दाऊद को क्यों पकड़ नहीं पाए? क्या पुलिस के बहुत भरोसेमंद लोग दाऊद के हमदर्द या मोल हैं? या मुंबई पुलिस में हर लेवल पर उसके जासूस हैं?”

वैसे जानकार बताते हैं कि मुंबई पुलिस में दाऊद की दख़ल सत्तर के दशक से थी। उसे लेकर पुलिस पर नरम रवैया अपनाने और सूचनाएं लीक करने के आरोप लगते रहे हैं। 1981 से 85 के बीच दक्षिण मुंबई के थानों में दाऊद पहचाना नाम था। समद समेत दो मर्डर में पुलिस गिरफ़्त में आया भी लेकिन मई 1984 में अंतरिम बेल मिलते ही फ़रार हो गया। उसके शूटर सुहैल ने करीम लाला के भाई रहीम लाला को मार डाला। इसमें दाऊद का नाम आने पर उसे पुलिस तलाशने लगी। कहते हैं, पुलिस को पता होता था कि दाऊद कहां है, परंतु गिरफ़्तार नहीं करती थी। जब भी पकड़ने की योजना बनी, सूचना पहले दाऊद को मिल जाती और वह बचता जाता था। उसका नेटवर्क पुलिस में कई लेयर पर था। यह भी आरोप लगते रहे कि कई नामचीन एन्काऊंटर स्पेशलिस्ट केवल दाऊद की टिप्स पर ही राइवल गैंग के अपराधियों को मारते हैं।

बुज़ुर्ग पत्रकार और फ्रांसीसी पत्रिका शार्ली अब्दो का विवादित कार्टून छापने के विवाद में बंद उर्दू अखबार अवधनामाके संपादक खलील जाहिद, जो पहले उर्दू साप्ताहिक अख़बार-ए-आलमनिकालते थे, बताते हैंसत्तर के दशक में अपराध जगत में पठान गैंग सबसे ख़तरनाक व बेरहम था। हालांकि दाऊद और उसके भाई साबिर ने ग़ुनाह के सफ़र का आगाज़ पठान गैंग से ही किया। लेकिन बाद में माल के बंटवारे को लेकर पंगा होने से अलगाव हो गया। तब पठान गैंग के संरक्षक करीम लाला, हाजी मस्तान व वरदराजन मुदलियार की तूती बोलती थी। पठान गिरोह के गुंडों द्वारा की जा रही हत्या, अपहरण, बलात्कार, मारकाट और लूटपाट की वारदात से मुंबई पुलिस परेशान थी।

पठान गिरोह के इन गुंडे बेक़ाबू से जनता और व्यापारी परेशान थे। इसमें करीम लाला के भतीजों समद ख़ान, आमिरज़ादा, आलमज़ेब के अलावा सईद बाटला और अयूब लाला जैसे खूंखार हत्यारे थे। सुपारी किलर अयूब सबसे ख़तरनाक था। वह अनगिनत हत्याएं कर चुका था। जब भी कहीं दिखता तो माना जाता था कि बड़ा गेम होने वाला है। गुंडों से निपटने के लिए पुलिस ने कॉंन्टेबल रहे इब्राहिम कासकर के बेटे दाऊद को प्रमोट करना शुरू किया। कहा जाता है कि 1970 में 14 साल की उम्र में पहला अपराध करने वाले दाऊद के ख़िलाफ़ शिकायत पुलिस का बेटा होने के कारण नहीं ली जाती थी। बाद में दाऊद का पंगा डॉन बाशूदादा से हुआ। बासू ने इब्राहिम की इनसल्ट कर दी थी। लिहाज़ा, दाऊद ने बासू पर हमला किया और उसके अखाड़ें में तोड़फोड़ की, लेकिन पुलिस ने अपराध का संज्ञान ही नहीं लिया।

सन् 1974 में दाऊद-साबिर और उसके साथियों ने मस्जिद में दिन दहाड़े डकैती की और फ़िल्मी स्टाइल में टैक्सी से मेट्रोपोलिटन कॉरपोरेशन बैंक के 4 लाख 75 हज़ार रुपए लूटे, लेकिन पायधुनी पुलिस ने फौरी कार्रवाई नहीं की। इब्राहिम से बेटों को थाने लाने को कहा गया। पुलिस कहीं भी अपराधी के सौंपे जाने का इंतज़ार नहीं करती, लेकिन दाऊद को लेकर रवैया ऐसा ही रहा। उस घटना ने दाऊद को भावी डॉन के रूप में स्टेब्लिश्ड कर दिया। हालांकि, दाऊद पर मुक़दमा चला। सेशन्स कोर्ट ने सभी आरोपियों को चार साल की सज़ा सुनाई। लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट ने ज़मानत दे दी।

आपातकाल के बाद पुलिस खुले तौर पर दाऊद को प्रमोट करने लगी। पठान गैंग के सईद बाटला और अयूब लाला नागपाड़ा के चावला गेस्टहाऊस में ठहरे नवविवाहित दंपति के कमरे में घुसकर पति की हत्या की और पत्नी के साथ रेप किया। पुलिस कमिश्नर की वीवी चौबल ख़ूब किरकिरी हुई। यह करीम लाला गिरोह का आतंक था कि हत्यारों और रेपिस्टों को लोग जानते थे, लेकिन किसी की मुंह खोलने की जुर्रत नहीं की। इन्क़लाबसे जुड़े दाऊद के साथी पत्रकार मोहम्मद इक़बाल नाटिक़ ने अपने क्राइम वीकली राज़दारमें बाटला और अयूब का नाम लेकर ख़बर छाप दी। दोनों गिरफ़्तार हो गए।

हालांकि बाद में पठानों ने नाटिक़ को बेरहमी से पीट करके खाड़ी में फेंक दिया, जिससे उसकी मौत हो गई। यही से दाऊद की पठानों से खुली दुश्मनी शुरू हुई जो गैंग के नेस्तमाबूद होने तक चली। इससे शुरू गैंगवार से सबसे ज़्यादा फ़ायदा पुलिस को हुआ। वैसे बेनिफिशियरी दाऊद भी रहा। उसके राइटहैंड ख़ालिद पहलवान ने अयूब को डोंगरी की एक गली में तड़पा-पड़पा कर मारा। उसका एक-एक अंग काटा, लेकिन पुलिस मौन बैठी रही। डोंगरी के सीनियर पुलिस इंस्पेक्टर रणबीर सिंह लीखा जैसे पुलिस अफ़सर दाऊद के सिंपैथाइज़र थे, क्योंकि वह पठानों को चुनौती दे रहा था। पुलिस के सहयोग से दाऊद की धाक जम गई और पहले वह कोंकणी युवकों के गैंग का मुखिया हुआ फिर मुंबई का निर्विवाद डॉन बन गया।

इसी बीच 12 फरवरी 1981 की रात प्रभादेवी में पठान गैंग के आमिरज़ादा-आलमज़ेब ने धोखे से साबिर की हत्या कर दी। साज़िश मनोहर उर्फ मान्या सुर्वे ने रची थी। लिहाज़ा, साल भर के अंदर मान्या को इशाक बाग़वान की टीम ने अंबेडकर कॉलेज के पास एककाउंटर में मार दिया। छह सितंबर 1983 को दाऊद की सुपारी पर बड़ा राजन उर्फ अन्ना के गुंडे डेविड परदेसी ने कोर्ट में जज के सामने आमिरज़ादा को भून डाला। चार अक्टूबर 1984 को पुलिस की मौन स्वीकृत पर दाऊद ने पठान गिरोह का सबसे बड़ा विकेट गिरा दिया। वीपी रोड गिरगांव के सिक्कानगर परिसर में डॉन ने छोटा राजन, बाबू रेशिम, रमा नाईक, दिलीप बुआ, सुनील सावंत और अली अंतुले के साथ समद को छलनी कर दिया। 1985 में 29 दिसंबर को आलमज़ेब सूरत के बाहरी इलाके में एक फ्लैट में मुठभेड़ में मार डाला गया। यह चर्चा थी कि दाऊद ने सब-इंसपेक्टर दलसुख पारधी को टिप दी थी। इस तरह दाऊद ने तीन साल से भी कम समय में पठान गिरोह को नेस्तनाबूद कर दिया और उसका बाल भी बांका नहीं हुआ।

गुजरात के तस्कर किंग सुकूर नारायण बखिया के साथ मिलकर तस्करी का मोटे मुनाफे का काम शुरू करने वाला दाऊद निर्विवाद रूप से अंडरवर्ल्ड का बेताज़ बादशाह बन गया। खाड़ी देशों से गोल्ड तस्करी के दौरान उसने पुलिस को मोटा नज़राना देने की परिपाटी शुरू की, जिसका बहुंत बढ़िया रिजल्ट आया। मुंबई पुलिस ही नहीं, हर जगह उसके आदमीबन गए। जो बेहद मददगार साबित हुए। दाऊद ने कस्टम में कोंकणी मुस्लिम अफ़सरों से मधुर रिश्ता बनाकर उम्दा नेटवर्क खड़ा कर लिया। इस दौरान उसके रास्ते में जो भी आया, मारा गया। कुछ को दाऊद ने गुंडों से मरवा दिया तो कुछ को दाऊद के दुश्मनों को निशाना बनाने वाले पुलिसवालों से इनकाउंटर में ख़त्म कर दिया। दाऊद के टिप पर 21 जुलाई 1988 को नागपाड़ा के सबइंपेक्टर राजन कटधरे अपने ज्यूरिडिक्शन से बाहर चेंबूर जाकर रमा नाईक को मार डाला। इसी तरह अशोक जोशी, पापा गवली, माया डोलस, दिलीप बुआ, शैलेश हल्दनकर, अमर नाईक, सदा पावले, विजय तांडेल, नामदेव हरी पाटिल और साधु शेट्टी वगैरह मारे गए।

कई लोग मानते हैं कि दाऊद के मुंबई पुलिस में लिंक का पता लगाना है तो तीन दशक के दौरान मुंबई पुलिस के आला अफ़सरों द्वारा खड़ी की गई संपत्ति की निष्पक्ष जांच कराई जानी चाहिए, ख़ासकर एन्काउंटर सेल से जुड़े अफसरों की। तब पता लग सकता है कि किन-किन पुलिस वालों ने दाऊद को डॉन बनाने में मदद की। वैसे दाऊद को देश में लाने की चर्चा सीरियल धमाकों के बाद से हो रही है। एक तबक़ा चाहता है कि 257 निर्दोषों की हत्या के आरोपी को देश में लाया जाए। इसलिए दिल्ली सल्तनत पर क़ाबिज़ होने वाली हर सरकार डॉन को लाने की बात करती है। कांग्रेस गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने दो बार कहा था कि दाऊद जल्द भारत लाया जाएगा। भारत अमेरिकी की फ़ेडरल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टिगेशन के संपर्क में है। हालांकि बाद में एफ़बीआई ने साफ़ किया कि भारत ने इस तरह का कोई फॉर्मल अनुरोध नहीं किया है।


वैसे ज़ियाउद्दीन अंसारी उर्फ अबु जिंदल, अब्दुलकरीम टुंडा और यासिन मलिक की गिरफ़्तारी के बाद लगा था भारत सीरियस है। भारत पाकिस्तान ही नहीं अमेरिका को भी कई बार डोज़ियर सौंप चुका है जिसमें दाऊद की कुंडली है। हालांकि कुछ न हुआ। विदेशी मामलों के जानकार कहते हैं कि परमाणु बम बना लेने के बावजूद भारत की इमैज दुनिया में सॉफ़्ट नेशन की है। इसीलिए नई दिल्ली अपनी बात ग्लोबल फोरा पर नहीं मनवा पाती। सल्तनत बदल गई है। उदार कांग्रेस की जगह सख़्त बीजेपी सत्ता में है। कठोर प्रशासक नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री हैं और दाऊद के बारे में देश में सबसे ज़्यादा जानकारी रखने वाले अजित डोभाल राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हैं। फिर मोदी चुनाव से पहले ही कह चुके हैं कि दाऊद के ख़िलाफ़ कोई ऐक्शन शोर मचाकर नहीं, गोपनीय तरीक़े से लिया जाएगा लेकिन वह ऑपरेशन कब होगा, इस बारे में मोदी भी ख़ामोश हैं।

कोई टिप्पणी नहीं: