हरिगोविंद विश्वकर्मा
नेशनल हेराल्ड के
स्वामितव के सौदे को लेकर पूरे देश में घमासान मचा हुआ है। इस बार विवाद की केंद्र
में कोई और नहीं, बल्कि सीधे कांग्रेस
अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके बेटे और पार्टी के भावी कर्ता-धर्ता राहुल गांधी
हैं। घटना जिस तरह हुई है, उससे कई सवाल उठ रहे हैं कि क़ानून की गहरी समझ, जानकारी और अनुभव रखने वाले कांग्रेस के नेताओं ने अपने
नेताओं को कहीं किसी साज़िश के तहत तो क़ानूनी पचड़े में नहीं फंसा दिया।
कांग्रेस में अभिषेक
मनु संघवी, कपिल सिब्बल और मनीष
तिवारी जैसे एक से एक क़ानून के धुरंधर हैं। इन सबके अलावा भी पार्टी में बड़ी
संख्या में एक से बढ़कर एक वकील हैं। तब इन लोगों ने सोनिया-राहुल को संभावित
ख़तरे से पहले ही आगाह क्यों नहीं कर दिया? या फिर, इतना रिस्की डील करने से पहले उसके नतीजे का संकेत क्यों नहीं दे दिया?
अगर गांधी-नेहरू परिवार के कथित वफादारों ने
पहले ही पार्टी प्रमुख को संभावित क़ानूनी ख़तरे के प्रति आगाह कर दिया होता तो
संभवतः कांग्रेस के दोनों शीर्ष नेताओं के कोर्ट में हाजिर होने की नौबत न आती।
अगर कुछ नहीं कर सकते थे, तो कम से कम तीनों अख़बारों का प्रकाशन ही शुरू करवा देते। तब अधिग्रहण के औचित्य
को सही ठहराते हुए कोर्ट को इतना तो बताया जा सकता था कि तीनों अख़बार चालू कर दिए
गए हैं।
एक और अहम तथ्य यह
है कि नेशनल हेराल्ड का स्वामित्व रखने वाली कंपनी के शेयर होल्डर्स अध्यक्ष
सोनिया और राहुल ने आरोप लगाने वाले भारतीय जनता पार्टी नेता (तब वह जनता पार्टी
के अध्यक्ष थे) डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी पर मानहानि का मुक़दमा क्यों नहीं ठोंका?
जबकि डॉ स्वामी के आरोप लगाने के फौरन बाद राहुल
गांधी ने बयान दिया था कि उनको कोर्ट में घसीटेंगे। आगे ख़तरा है, यह जानते हुए भी सोनिया राहुल, मोतीलाल वोरा और आस्कर फर्नांडिस दो साल तक
चुपचाप बैठे रहे।
डॉ.स्वामी ने एक
नवंबर 2012 को जब सोनिया और
राहुल पर गैरक़ानूनी डील करने का आरोप लगाया था। उसी दिन त्वरित रिएक्शन में राहुल
ने मानहानि का मुकदमा दायर करने का फ़ैसला किया था। राहुल ने डॉ.स्वामी के आरोप को
आधारहीन और झूठा बताते हुए कहा था कि उनके ख़िलाफ कार्रवाई करने के बारे में
कानूनी राय ली जा रही है। राहुल के ऑफ़िस से डॉ. स्वामी को भेजे पत्र में कहा गया
था, “आपके ख़िलाफ़ मानहानि की
कार्रवाई इसलिए करने का फ़ैसला लिया गया है, ताकि आप या कोई व्यक्ति या कोई संस्था अभिव्यक्ति की आज़ादी
के नाम पर किसी पर तथ्यहीन आरोप लगाकर उसकी छवि खराब न कर सके।“ लेकिन इसके बाद दो साल तक न तो सोनिया और न ही
राहुल ने स्वामी के ख़िलाफ़ कोई क़ानूनी कार्रवाई की।
शायद क़ानून के
जानकारों ने सोनिया और राहुल को बता दिया होगा था कि बहुत देर हो चुकी है, मानहानि का मुक़दमा करने पर अपनी ही फजीहत हो
सकती है। इसलिए राहुल ने मानहानि का मुक़दमा दायर करने के अपने फ़ैसले से पीछे हट
गए होंगे। हालांकि इसके बाद भी सोनिया, राहुल, वोरा, आस्कर और कांग्रेस इन आरोपों को सिरे से ख़ारिज़
करते रहे हैं। जनार्दन द्विवेदी तो डॉ.स्वामी को अजूबा बता चुके हैं। उन्होंने कहा
था, “हर देश और समाज में
सुब्रमण्यम स्वामी जैसे अजूबे मौजूद हैं। ये हर वक्त किसी भी मसले पर बोलने को
तैयार बैठे रहते हैं।“
बहरहाल, डॉ. स्वामी ने तीन साल पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस
में कांग्रेस अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पर सनसनीखेज़ आरोप लगाए थे। उनका कहना था कि
यंग इंडियन नामक कंपनी के 38-38 फ़ीसदी शेयर सोनिया और राहुल के पास है। बाक़ी शेष 24 फ़ीसदी संपत्ति के मालिक वोरा और आस्कर, सैम पित्रोदा और सुमन दुबे हैं।
डॉ.स्वामी ने यह भी
आरोप लगाया कि राहुल के पास करोड़ों की अघोषित संपत्ति है, जिसका ज़िक्र कभी उन्होंने अपने चुनावी हलफनामे में नहीं
किया है। उस प्रेस वार्ता में जनता पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष ने इस प्रकरण की
उच्चस्तरीय जांच कराने की मांग की थी। उनके मुताबिक, “सोनिया-राहुल ने चुपके-चुपके द एसोसिएट्स जर्नल्स लिमिटेड
का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया।
यह कंपनी इंग्लिश
न्यूज़पेपर 'नेशनल हेराल्ड',
हिंदी समाचार पत्र ‘नवजीवन’ और उर्दू अख़बार ‘क़ौमी आवाज़’
प्रकाशन करती थी। एसोसिएट्स जर्नल्स के पास 11 मंज़िली इमारत का मालिकाना हक है। नई दिल्ली के
बहादुरशाह जफर मार्ग के हेराल्ड हाऊस की कीमत तक़रीबन 1,600 करोड़ रुपए है।“
डॉ.स्वामी के अनुसार,
“कांग्रेस ने 26 फरवरी 2011 को एसोसिएट्स जर्नल्स की 90 करोड़ रुपये की देनदारियों को अपने ज़िम्मे लिया था और
बिना ब्याज के 90 करोड़ का क़र्ज़
दिया। कांग्रेस ने यह फ़ैसला ऐतिहासिक अख़बार समूह के कर्मचारियों को बेरोज़गार
होने से बचाने के लिए किया था, लेकिन तीनों में से कोई अख़बार शुरू नहीं किया गया और 26 अप्रैल 2012 को सोनिया और राहुल की कंपनी यंग इंडियन ने एसोसिएटेड जर्नल्स का मालिकाना
हासिल कर लिया।
दरअसल, विवाद इस बात को लेकर हुआ कि यंग इंडियन ने
अख़बार तो शुरू किया नहीं, उल्टे महज़ 50 लाख रुपए में नेशनल
हेराल्ड की 1600 करोड़ की संपत्ति
हासिल कर ली। चूंकि यंग इंडियन में सोनिया और राहुल की 38-38 फ़ीसदी हिस्सेदारी है। इससे नेशनल एसोसिएट्स जर्नल्सका
नियंत्रण उनके हाथ में आ गया। आमतौर पर भारतीय कंपनियों की आर्थिक हैसियत का
मूल्यांकन उनकी चल-अचल संपत्ति के आधार पर किया जाता है।
प्रेसवार्ता में
डॉ.स्वामी ने कहा था, “चूंकि हेराल्ड हाऊस को केंद्र सरकार ने समाचार पत्र चलाने के लिए ज़मीन दी थी,
इस लिहाज से उसे व्यावसायिक उद्देश्य के लिए
इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। मगर फ़िलहाल पॉसपोर्ट सेवा केंद्र का संचालन हेराल्ड
हाऊस से हो रहा है, जिससे शेयरधारकों को
भारी मुनाफ़ा हो रहा है।“
डॉ.स्वामी ने यह भी
कहा था कि वह इसकी सीबीआई और दूसरी संबंधित एजेंसियों जांच कराने की मांग करते हुए
तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिख चुके हैं। डॉ.स्वामी ने 2009 के आम चुनाव में राहुल गांधी के अपनी संपत्ति
के बारे में निर्वाचन आयोग में दिए गए हलफ़नामे की भी जांच की मांग की थी। जांच न
होने पर जनता पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष ने एक महीने इंतज़ार करने के बाद अदालत
का दरवाज़ा खटखटाया।
दरअसल, जवाहरलाल नेहरू ने नेशनल हेराल्ड की स्थापना 8 सितंबर 1938 को लखनऊ में की थी। पंडित नेहरू ही अखबार के पहले संपादक
थे। वह प्रधानमंत्री बनने तक नेशनल हेराल्ड बोर्ड के चेयरमैन रहे। आज़ादी में
नेशनल हेराल्ड ने काफी सक्रिय भूमिका निभाई थी।
बाद में नवजीवन और ऊर्दू में कौमी आवाज़ भी निकाले गए।
स्वतंत्र भारत में
नेशनल हेराल्ड अख़बार कांग्रेस का मुखपत्र बना रहा। लेकिन मिसमैनेज़मेंट और ख़राब
माली हालात के चलते 2008 में अख़बार का प्रकाशन बंद कर दिया गया। उस समय इसका स्वामित्व एसोसिएटेड
जर्नल्स के पास था। जो भी हो, अधिग्रहण के बाद या डॉ.स्वामी के मुक़दमा दायर करने के बाद भी 'नेशनल हेराल्ड', ‘नवजीवन’ और ‘क़ौमी आवाज़’
का प्रकाशन शुरू कर दिया गया होता, तो लोगों को लगता कि इन लोगों की नीयत बुरी नहीं
है।
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