हरिगोविंद विश्वकर्मा
दिल्ली के मुख्यमंत्री कार्यालय में सीबीआई के छापे को किसी भी ऐंगल से जस्टीफाई नहीं किया जा सकता। यह हेल्दी डेमोक्रेसी के लिए शुभ संकेत नहीं है। जनता द्वारा निर्वाचित सरकार को काम न करने देना, एक तरह से अघोषित आपातकाल है। ऐसा केवल आपातकाल के दौरान देखा गया था, लेकिन दिल्ली सीएम के प्रधान सचिव राजेंद्र कुमार के बारे में जो ख़बरें आ रही हैं, उससे प्रथम-दृष्ट्या तो यही लग रहा है कि राजेंद्र कुमार ने अपने कार्यकाल में बहुत ज़्यादा झोल कर चुके हैं और भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ने का दावा करके दिल्ली की सत्ता हासिल करने वाले अरविंद केजरीवाल के लिए इस कथित रूप से भ्रष्ट नौकरशाह को बचाना भारी पड़ रहा है।
एक नेता, जिसका जन्म ही भ्रष्ट-व्यवस्था से नफरत की रोशनी में हुआ। उसका सबसे क़रीबी अफ़सर ही दाग़दार निकले, इससे बड़े शर्म की बात हो ही नहीं सकती। राजेंद्र कुमार की “ईमानदारी” के बारे में सुनकर सब लोग हैरान हैं, कि ऐसा अफसर केजरीवाल का सहयोगी कैसे बन गया। इससे तो यही साफ़ होता है कि अरविंद का एजेंडा भ्रष्टाचार से लड़ना कतई नहीं था। तभी तो अपने पहले कार्यकाल में 49 दिन में ही जनलोकपाल बिल के मुद्दे पर सरकार छोड़ दी। अब धीरे-धीरे साल भर होने वाला है लेकिन उनका जनलोकपाल बिल आया ही नहीं। उन्होंने जो बिल ड्राफ़्ट करवाया था, उसमें उनके गुरु अण्णा हज़ारे ने ही खामी निकाल दी। केजरीवाल का बिल भी संसद द्वारा पारित “जोकपाल” की तरह ही है। जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सत्ता में आते ही लोकपाल को भूल गए वैसे केजरीवाल भी सीएम बनते ही लोकपाल को अपनी सूची से आउट कर दिया। या यह कहें कि सभी राजनेता लोकपाल को भूलना चाहते हैं। लोगों को वाक़ई उम्मीद बंधी थी, कि वाक़ई केजरीवाल अलग तरह की राजनीति की नींव डालेंगे, लेकिन उन्हें भी आलाकमान बनने का रोग लग गया। अब लोग आसानी से किसी नए नेता पर यकीन नहीं करेंगे। यह त्रासदीपूर्ण है।
फ़िलहाल, केजरीवाल और उनके “एसमेन” दिल्ली डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट बोर्ड में कथित घोटाले की जांच की मांग करते हुए वित्तमंत्री अरुण जेटली से उनका इस्तीफ़ा मांग रहे हैं। इसके पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि जेटली अपने पद पर रहते हुए निष्पक्ष जांच नहीं होने देंगे, उसमें रुकावट पैदा करेंगे। लेकिन केजरीवाल ने संदिग्ध हो चले राजेंद्र कुमार को हटाने का कोई संकेत नहीं दिया है। यह तो वही बात हुई कि दूसरों के लिए अलग मापदंड और अपने लिए अलग। केजरीवाल लालबत्ती-वीआईपी-बंगला कल्चर ख़त्म करने की बात करते थे। क्या उसका पालन कर रहे हैं? जवाब है, नहीं, बिल्कुल नहीं।
दरअसल, केजरीवाल दिल्ली में अभूतपूर्व जीत दर्ज करने के बाद जिस तरह का व्यवहार कर रहे हैं, उससे वह आम आदमी की सहानुभूति खोते जा रहे हैं। चाहे वह योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण और आनंद कुमार को गाली देने का ऑडियो हो या देश के प्रधानमंत्री के बारे में अशिष्ट ट्वीट। वैसे जिस तरह से केजरीवाल शुरू से राजेंद्र कुमार का फेवर कर रहे हैं, उससे यह आशंका भी बलवती हो रही है कि कहीं राजेंद्र कुमार उनके हिडेन एजेंडा के प्रतीक तो नहीं हैं। केजरीवाल के मेंटर अण्णा हज़ारे ने भी केजरीवाल को राजेंद्र कुमार जैसे संदिग्ध चरित्र वाले लोगों से दूर रहने की सलाह दी है। कम से कम इसके बाद केजरीवाल को संभल जाना चाहिए था, लेकिन नहीं संभले।
भ्रष्टाचार के मामले में फंसे राजेंद्र कुमार केजरीवाल के लिए नई मुसीबतें खड़ी करने लगे हैं। बताया जाता है कि वह इस साल जून से ही सीबीआई के रडार पर है। तीन महीने की पड़ताल में सीबीआई उनके फोन रिकॉर्ड खंगाल चुकी है, जिसमें कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। दरअसल, फोन टैपिंग करने वाली सीबीआई की 'स्पेशल यूनिट' की भी नज़र राजेंद्र कुमार पर है। वह सीएम से क्या क्या बात करते थे और आम आदमी पार्टी के साथ उनकी डीलिंग क्या थी, ये सभी सीक्रेट भी अब सीबीआई के पास हैं, जो केजरीवाल के लिए मुसीबत बन सकते हैं।
पटना के राजेंद्र कुमार पर केजरीवाल बहुत भरोसा करते रहे हैं। दरअसल, दोनों ही आईआईटी के प्रोडक्ट छात्र है और एक दूसरे को बहुत पहले से जानते थे। यही वजह थी कि तमाम विरोध के बावजूद केजरीवाल ने उन्हें अपना प्रमुख सचिव बनाया था। बताया जाता है कि के आशीष जोशी की शिकायत मिलने के बाद सीबीआई ने जून में ही उनकी पड़ताल शुरू कर दी थी। ख़ासकर मामलो में वह फंसे हैं, उनकी गोपनीय जांच कराई जा चुकी है। सीबीआई की एंटी करप्शन शाखा के दो अधिकारी ख़ासतौर पर उनके हर सौदे की बारीक़ जांच कर चुके हैं। सीबीआई को केजरीवाल और आप के कई टॉप लीडर्स के बारे में भी अहम सूचना मिली है। फ़िलहाल कुमार के खिलाफ पिछले साल के सौदे पर ही पूछताछ की जा रही है। हालांकि आधिकारिक तौर पर सीबीआई खंडन कर चुकी है कि राजेंद्र कुमार के ज़रिये केजरीवाल और उनके मंत्रियों पर शिकंजा कसा जा रहा है।
इसीलिए, अब केजरीवाल को उनके साथ हो रहे जेनुइन अन्याय के ख़िलाफ़ जनसमर्थन नहीं मिल रहा है। लोग जान रहे हैं कि उपराज्यपाल नज़ीब जंग केंद्र के इशारे पर लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित सरकार को काम नहीं करने दे रहे हैं। लोग यह भी समझ रहे हैं कि मोदी की अगुवाई में केंद्र सरकार दिल्ली सरकार और दिल्ली की जनता के साथ खुला पक्षपात और बेइमानी कर रही है, लेकिन खुले पक्षपात और बेइमानी पर न तो दिल्ली में, न ही देश में, किसी का ख़ून खौल रहा है। लोग एकदम चुप हैं, कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं कर रहे हैं। इसका मतलब यह भी है कि लोग जान गए हैं कि “आप” और केजरीवाल भी दूध के धुले नहीं हैं। लिहाज़ा, न तो “आप” को न ही केजरीवाल को जनता की सहानुभूति नहीं मिल रही है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के प्रधान सचिव राजेंद्र कुमार 1989 बैच के आईएएस अफ़सर हैं। केजरीवाल ने उन्हें अपने 49 दिन के पहले कार्यकाल के दौरान भी प्रधान सचिव बनाया था। राजेंद्र कुमार केजरीवाल के कितने क़रीब हैं इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर की अनदेखी करते हुए उनको प्रधान सचिव बनाया था। इसी साल जून में राजेंद्र कुमार के खिलाफ दिल्ली डायलॉग के पूर्व सचिव आशीष जोशी ने भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए शिकायत की थी। आशीष ने अपनी शिकायत में लिखा है, “जब मैं डीयूएसआईबी का चीफ डिजिटाइलेशन ऑफिसर बना तो मुझे आईटी से जुड़े राजेंद्र कुमार की भ्रष्ट गतिविधियों का पता चला। मुझे दिल्ली सरकार ने डीओपीटी के 2010 के आदेशों का उल्लंघन करते हुए अचानक पद से हटा दिया। मैंने राजेंद्र कुमार और दूसरे लोगों के खिलाफ संसद मार्ग और आईपी एस्टेट पुलिस थाने में शिकायत भी दर्ज कराई थी।“
बहरहाल, इसी शिकायत पर काम करते हुए सीबीआई ने दिल्ली सचिवालय में और राजेंद्र कुमार के घर पर छापेमारी की थी। पता चला है कि राजेंद्र कुमार के घर से सील बंद 12 लीटर विदेशी शराब की बोतलें, तीन 750 एमएल की खुली बोतलें बरामद की है। इतनी ज़्यादा शराब मिलने से सीबीआई ने उनके ख़िलाफ एक और मामला दर्ज कर लिया। शराब मिलने का मतलब राजेंद्र कुमार शराब के शौक़ीन जान पड़ते हैं। मतलब राजनीति बदलने का दंभ भरने वाले केजरीवाल को ईमानदार एक शराबी अफसर ही मिला।
दिल्ली के मुख्यमंत्री कार्यालय में सीबीआई के छापे को किसी भी ऐंगल से जस्टीफाई नहीं किया जा सकता। यह हेल्दी डेमोक्रेसी के लिए शुभ संकेत नहीं है। जनता द्वारा निर्वाचित सरकार को काम न करने देना, एक तरह से अघोषित आपातकाल है। ऐसा केवल आपातकाल के दौरान देखा गया था, लेकिन दिल्ली सीएम के प्रधान सचिव राजेंद्र कुमार के बारे में जो ख़बरें आ रही हैं, उससे प्रथम-दृष्ट्या तो यही लग रहा है कि राजेंद्र कुमार ने अपने कार्यकाल में बहुत ज़्यादा झोल कर चुके हैं और भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ने का दावा करके दिल्ली की सत्ता हासिल करने वाले अरविंद केजरीवाल के लिए इस कथित रूप से भ्रष्ट नौकरशाह को बचाना भारी पड़ रहा है।
एक नेता, जिसका जन्म ही भ्रष्ट-व्यवस्था से नफरत की रोशनी में हुआ। उसका सबसे क़रीबी अफ़सर ही दाग़दार निकले, इससे बड़े शर्म की बात हो ही नहीं सकती। राजेंद्र कुमार की “ईमानदारी” के बारे में सुनकर सब लोग हैरान हैं, कि ऐसा अफसर केजरीवाल का सहयोगी कैसे बन गया। इससे तो यही साफ़ होता है कि अरविंद का एजेंडा भ्रष्टाचार से लड़ना कतई नहीं था। तभी तो अपने पहले कार्यकाल में 49 दिन में ही जनलोकपाल बिल के मुद्दे पर सरकार छोड़ दी। अब धीरे-धीरे साल भर होने वाला है लेकिन उनका जनलोकपाल बिल आया ही नहीं। उन्होंने जो बिल ड्राफ़्ट करवाया था, उसमें उनके गुरु अण्णा हज़ारे ने ही खामी निकाल दी। केजरीवाल का बिल भी संसद द्वारा पारित “जोकपाल” की तरह ही है। जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सत्ता में आते ही लोकपाल को भूल गए वैसे केजरीवाल भी सीएम बनते ही लोकपाल को अपनी सूची से आउट कर दिया। या यह कहें कि सभी राजनेता लोकपाल को भूलना चाहते हैं। लोगों को वाक़ई उम्मीद बंधी थी, कि वाक़ई केजरीवाल अलग तरह की राजनीति की नींव डालेंगे, लेकिन उन्हें भी आलाकमान बनने का रोग लग गया। अब लोग आसानी से किसी नए नेता पर यकीन नहीं करेंगे। यह त्रासदीपूर्ण है।
फ़िलहाल, केजरीवाल और उनके “एसमेन” दिल्ली डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट बोर्ड में कथित घोटाले की जांच की मांग करते हुए वित्तमंत्री अरुण जेटली से उनका इस्तीफ़ा मांग रहे हैं। इसके पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि जेटली अपने पद पर रहते हुए निष्पक्ष जांच नहीं होने देंगे, उसमें रुकावट पैदा करेंगे। लेकिन केजरीवाल ने संदिग्ध हो चले राजेंद्र कुमार को हटाने का कोई संकेत नहीं दिया है। यह तो वही बात हुई कि दूसरों के लिए अलग मापदंड और अपने लिए अलग। केजरीवाल लालबत्ती-वीआईपी-बंगला कल्चर ख़त्म करने की बात करते थे। क्या उसका पालन कर रहे हैं? जवाब है, नहीं, बिल्कुल नहीं।
दरअसल, केजरीवाल दिल्ली में अभूतपूर्व जीत दर्ज करने के बाद जिस तरह का व्यवहार कर रहे हैं, उससे वह आम आदमी की सहानुभूति खोते जा रहे हैं। चाहे वह योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण और आनंद कुमार को गाली देने का ऑडियो हो या देश के प्रधानमंत्री के बारे में अशिष्ट ट्वीट। वैसे जिस तरह से केजरीवाल शुरू से राजेंद्र कुमार का फेवर कर रहे हैं, उससे यह आशंका भी बलवती हो रही है कि कहीं राजेंद्र कुमार उनके हिडेन एजेंडा के प्रतीक तो नहीं हैं। केजरीवाल के मेंटर अण्णा हज़ारे ने भी केजरीवाल को राजेंद्र कुमार जैसे संदिग्ध चरित्र वाले लोगों से दूर रहने की सलाह दी है। कम से कम इसके बाद केजरीवाल को संभल जाना चाहिए था, लेकिन नहीं संभले।
भ्रष्टाचार के मामले में फंसे राजेंद्र कुमार केजरीवाल के लिए नई मुसीबतें खड़ी करने लगे हैं। बताया जाता है कि वह इस साल जून से ही सीबीआई के रडार पर है। तीन महीने की पड़ताल में सीबीआई उनके फोन रिकॉर्ड खंगाल चुकी है, जिसमें कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। दरअसल, फोन टैपिंग करने वाली सीबीआई की 'स्पेशल यूनिट' की भी नज़र राजेंद्र कुमार पर है। वह सीएम से क्या क्या बात करते थे और आम आदमी पार्टी के साथ उनकी डीलिंग क्या थी, ये सभी सीक्रेट भी अब सीबीआई के पास हैं, जो केजरीवाल के लिए मुसीबत बन सकते हैं।
पटना के राजेंद्र कुमार पर केजरीवाल बहुत भरोसा करते रहे हैं। दरअसल, दोनों ही आईआईटी के प्रोडक्ट छात्र है और एक दूसरे को बहुत पहले से जानते थे। यही वजह थी कि तमाम विरोध के बावजूद केजरीवाल ने उन्हें अपना प्रमुख सचिव बनाया था। बताया जाता है कि के आशीष जोशी की शिकायत मिलने के बाद सीबीआई ने जून में ही उनकी पड़ताल शुरू कर दी थी। ख़ासकर मामलो में वह फंसे हैं, उनकी गोपनीय जांच कराई जा चुकी है। सीबीआई की एंटी करप्शन शाखा के दो अधिकारी ख़ासतौर पर उनके हर सौदे की बारीक़ जांच कर चुके हैं। सीबीआई को केजरीवाल और आप के कई टॉप लीडर्स के बारे में भी अहम सूचना मिली है। फ़िलहाल कुमार के खिलाफ पिछले साल के सौदे पर ही पूछताछ की जा रही है। हालांकि आधिकारिक तौर पर सीबीआई खंडन कर चुकी है कि राजेंद्र कुमार के ज़रिये केजरीवाल और उनके मंत्रियों पर शिकंजा कसा जा रहा है।
इसीलिए, अब केजरीवाल को उनके साथ हो रहे जेनुइन अन्याय के ख़िलाफ़ जनसमर्थन नहीं मिल रहा है। लोग जान रहे हैं कि उपराज्यपाल नज़ीब जंग केंद्र के इशारे पर लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित सरकार को काम नहीं करने दे रहे हैं। लोग यह भी समझ रहे हैं कि मोदी की अगुवाई में केंद्र सरकार दिल्ली सरकार और दिल्ली की जनता के साथ खुला पक्षपात और बेइमानी कर रही है, लेकिन खुले पक्षपात और बेइमानी पर न तो दिल्ली में, न ही देश में, किसी का ख़ून खौल रहा है। लोग एकदम चुप हैं, कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं कर रहे हैं। इसका मतलब यह भी है कि लोग जान गए हैं कि “आप” और केजरीवाल भी दूध के धुले नहीं हैं। लिहाज़ा, न तो “आप” को न ही केजरीवाल को जनता की सहानुभूति नहीं मिल रही है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के प्रधान सचिव राजेंद्र कुमार 1989 बैच के आईएएस अफ़सर हैं। केजरीवाल ने उन्हें अपने 49 दिन के पहले कार्यकाल के दौरान भी प्रधान सचिव बनाया था। राजेंद्र कुमार केजरीवाल के कितने क़रीब हैं इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर की अनदेखी करते हुए उनको प्रधान सचिव बनाया था। इसी साल जून में राजेंद्र कुमार के खिलाफ दिल्ली डायलॉग के पूर्व सचिव आशीष जोशी ने भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए शिकायत की थी। आशीष ने अपनी शिकायत में लिखा है, “जब मैं डीयूएसआईबी का चीफ डिजिटाइलेशन ऑफिसर बना तो मुझे आईटी से जुड़े राजेंद्र कुमार की भ्रष्ट गतिविधियों का पता चला। मुझे दिल्ली सरकार ने डीओपीटी के 2010 के आदेशों का उल्लंघन करते हुए अचानक पद से हटा दिया। मैंने राजेंद्र कुमार और दूसरे लोगों के खिलाफ संसद मार्ग और आईपी एस्टेट पुलिस थाने में शिकायत भी दर्ज कराई थी।“
बहरहाल, इसी शिकायत पर काम करते हुए सीबीआई ने दिल्ली सचिवालय में और राजेंद्र कुमार के घर पर छापेमारी की थी। पता चला है कि राजेंद्र कुमार के घर से सील बंद 12 लीटर विदेशी शराब की बोतलें, तीन 750 एमएल की खुली बोतलें बरामद की है। इतनी ज़्यादा शराब मिलने से सीबीआई ने उनके ख़िलाफ एक और मामला दर्ज कर लिया। शराब मिलने का मतलब राजेंद्र कुमार शराब के शौक़ीन जान पड़ते हैं। मतलब राजनीति बदलने का दंभ भरने वाले केजरीवाल को ईमानदार एक शराबी अफसर ही मिला।
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