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शनिवार, 26 नवंबर 2016

जनरल क़मर जावेद बाजवा के पाकिस्तान का सेनाध्यक्ष बनने के बाद भारत को सीमा पर ज़्यादा चौकस रहना होगा

हरिगोविंद विश्वकर्मा
पाकिस्तान के निवर्तमान चीफ़ ऑफ़ आर्मी स्टॉफ़ जनरल राहील शरीफ़ भारत के लिए बेहद ख़तरनाक साबित हुए, उनके कार्यकाल में भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा पर सबसे ज़्यादा सीज़फायर का उल्लंघन हुआ था। लेकिन कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ सैन्य अधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल क़मर जावेद बाजवा भारत के नज़रिए से जनरल शरीफ़ से भी ज़्यादा ख़तरनाक जनरल साबित हो सकते हैं, क्योंकि उनको कश्मीर मामलों का विशेषज्ञ माना जाता है और वह सैन्य ट्रेनिंग मामलों में भी बहुत कुशल सेना अधिकारी रहे हैं। सबसे अहम पाकिस्तानी आईएसआई के डायरेक्टर जनरल को भी कोर कमांडर बनाकर कराची भेजा जा रहा है यानी वहां भी नया व्यक्ति आएगा।

लिहाज़ा, जनरल याह्या खान (1966 से 1971), जनरल असलम बेग (1988 से 1991) और जनरल अशरफ परवेज कयानी (2007 से 2013) के रूप में देश को तीन-तीन सेनाध्यक्ष देने वाले बलूच रेजीमेंट के जनरल बाजवा के पाकिस्तान का नया चीफ़ ऑफ़ आर्मी स्टॉफ़ बनाए जाने के बाद भारत को ज़्यादा सीमा पर चौकस नज़र रखनी होगी, क्योंकि जनरल बाजवा कश्मीर में पोस्टिंग के दौरान बेहद निरंकुश थे और उनके 26 महीने का कार्यकाल में पाकिस्तान की ओर से एलओसी पर सबसे ज़्यादा सीज़फायर का उल्लंघन हुआ था।

जनरल क़मर जावेद बाजवा के कार्यकाल में भारतीय सेना को सीमा -लाइन ऑफ़ कंट्रोल (एलओसी) और अंतरराष्ट्रीय सीमा (आईबी) दोनों पर ख़ासा मुस्तैद रहना होगा। ख़ासकर पाकिस्तान कश्मीर ही नहीं पूरे भारत को अस्थिर करने के लिए जनरल बाजवा की अगुवाई में ज़्यादा से ज़्यादा आतंकवादियों की घुसपैठ कराने का दुस्साहस ज़्यादा कर सकता है, क्योंकि ख़ुद जनरल बाजवा कश्मीर के चप्पे-चप्पे से वाकिफ़ हैं। भारतीय सैनिकों का सिर जनरल बाजवा के कार्यकाल में काटा गया था।

दरअसल, लेफ्टिनेंट जनरल बाजवा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और भारत से लगी अतंरराष्ट्रीय सीमा और नियंत्रण रेखा पर सक्रिय दो बटालियनों में से एक 10 वीं कोर (कोर्प टेन) के अगस्त 2013 से सितंबर 2015 तक कमांडर रहे हैं। 10 कोर पाकिस्तान की सबसे बड़ी बटालियान है और जिसकी तैनाती सियाचिन से रावलपिंडी तक है। इसमें पूरा लाइन ऑफ कंट्रोल का एरिया भी शामिल है। इसके अलावा लेफ्टिनेंट जनरल बाजवा नॉर्दर्न एरिया फोर्स कमांड के चीफ रहे हैं। इस रेजिमेंट की तैनाती पूरे गिलगिट-बल्तिस्तान में रही है।

राजनीतिक हलकों में यह माना जा रहा है कि जनरल बाजवा को उनके कश्मीर अनुभव के आधार पर ही प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने उन्हें सेना प्रमुख के पद की रेस में जनरल स्टाफ के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल जुबैर महमूद हयात पर तरजीह दी। वरिष्ठता क्रम में फ़िलहाल सैन्य मुख्यालय में चीफ ऑफ जनरल स्टाफ पद पर तैनात लेफ्टिनेंट जनरल हयात जनरल बाजवा से ऊपर थे। लिहाज़ा, सेनाप्रमुख पद पर पहले उनका दावा था। हालांकि हयात को ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ कमिटी के चेयरमन पद पर नियुक्त करके नवाज़ शरीफ ने उन्हें संतुष्ट करने की कोशिश की है। बहरहाल, प्रधानमंत्री की सिफारिश पर राष्ट्रपति मामनून हुसैन ने दोनों सैन्य अधिकारियों को थ्री स्टार से प्रोन्नत कर फोर स्टार रैंक दे दिया।

वस्तुतः वरिष्ठता क्रम में दूसरा नाम लेफ्टिनेंट जनरल अश्फाक नदीम अहमद का था जो मुल्तान के कोर कमांडर हैं। इससे पहले वह चीफ ऑफ जनरल स्टाफ रह चुके हैं। उन्होंने स्वात और उत्तरी वज़ीरीस्तान में चरमपंथियों के ख़िलाफ़ सैन्य कार्रवाई की है। बहरहाल, चारो नामों में लेफ्टिनेंट जनरल जावेद इक़बाल रामदेई के सेना प्रमुख बनाए जाने की चर्चा ज़्यादा थी, क्योंकि घायल सैनिक होने के कारण वह सेना और देश में ज़्यादा लोकप्रिय हासिल हैं। यही लोकप्रियता उनके आड़े आ गई। हालांकि जनरल राहील शरीफ़ भी नहीं चाहते थे कि लेफ्टिनेंट इक़बाल उनके उत्तराधिकारी बनें।

बहरहाल, तमाम सस्पेंस और अटकलों को विराम देते हुए शनिवार को घोषित किया गया कि लेफ्टिनेंट जनरल बाजवा पाकिस्तान का 16 वें आर्मी चीफ होंगे। वज़ीरे आजम नवाज शरीफ ने उनको आर्मी चीफ़ के पद पर नियुक्त करने का फ़ैसला लिया। शरीफ ने उपलब्ध सीमित विकल्प में लेफ्टिनेंट जनरल बाजवा में ज़्यादा भरोसा जताया। जनरल बाजवा 29 नवंबर को जनरल राहिल शरीफ के स्थान पर पाकिस्तानी फौज के नये प्रमुख बन जाएंगे।

दरअसल, 24 अक्टूबर 1980 को 16 बलोच रेजिमेंट में कमीशन पाने वाले जनरल बाजवा का 10 कोर के कमांडर के तौर पर कार्यकाल काफी चर्चित रहा। 10 कोर का गठन 1974 में लेफ्टिनेंट जनरल अफ़ताब अहमद ख़ान ने 1974 में की। इसका मुख्यालय रावलपिंडी में है। इसे उर्दू में आफ़ताब यानी 10 सूर्य किरण के नाम पर किया गया। यह कश्मीर में हर ऑपरेशन के लिए ज़िम्मेदार होती है। बहरहाल, 10 कोर ने जनरल अशफ़ाक़ कियानी के बाद देश को दूसरा सेनाध्यक्ष दिया है।

पाकिस्तान में सेना प्रमुख बदलना बहुत बड़ी घटना मानी जाती है। संभवतः वहां प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति चुनने से ज़्यादा मशक़्कत भरा सैनाध्यक्ष का चयन होता है। बहरहाल, पाकिस्तान ने शांति के साथ अपने सेनाध्यक्ष को बदल दिया। हमारे पड़ोसी मुल्क में सेनाध्यक्ष को जैसी ताक़त हासिल है, उसे देखते हुए यह बहुत बड़ी घटना मानी जाती है। यह तय था कि जनरल शरीफ को सेवा विस्तार नहीं मिलने जा रहा है। तभी से नए सेना प्रमुख के नाम की अटकल लगाई जा रही थी।

पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और उत्तरी इलाके गिलगिट-बल्तिस्तान में मामलों से निपटने में माहिर माने जाने वाले लेफ्टिनेंट जनरल बाजवा अभी तक पाकिस्‍तानी सेना मुख्‍यालय (जीएचक्‍यू) में प्रशिक्षण और मूल्यांकन विभाग में महानिरीक्षक पद पर कार्यरत थे। कांगों में संयुक्त राष्ट्र के इंटरनैशनल पीस मिशन के दौरान भी ब्रिगेडियर रहते हुए बाजवा अपनी सेवाएं दे चुके हैं। वहां पर वह भारत में सेना प्रमुख रह चुके जनरल बिक्रम सिंह के मातहत थे। इसके अलावा, बाजवा क्‍वेटा के इन्‍फैंट्री स्‍कूल में भी काम कर चुके हैं।

पाकिस्तानी सूत्रों का कहना है कि कश्मीर मामले का अच्छा जानकार माने जाने वाले जनरल बाजवा जेहादी ताकतों को पाकिस्तान के लिए बड़ा खतरा भी मानते हैं। अब आने वाला समय ही बताएगा कि कश्मीर में सक्रिय आतंकी संगठनों को पाकिस्तानी सेना की मदद में इजाफा होगा या कमी आएगी। वैसे बाजवा के करीबियों के मुताबिक़, वह सुर्खियों में रहना पसंद नहीं करते और अपनी सेनाओं से करीबी से जुड़े रहते हैं। दरअसल, जनरल कमर जावेद बाजवा को पाकिस्‍तान की सेना और राजनीति में बेहद मजबूत पकड़ मानी जाती है। वह कश्‍मीर ऑपरेशंस पर बेहद रुचि लेते हैं और कट्टर विचारधारा के हैं।

जनरल रहील शरीफ और पीएम नवाज शरीफ के रिश्तों में खटास सार्वजनिक थी। इस वजह पिछले दो साल के दौरान देश में सत्ता विभाजित थी। जनरल शरीफ़ जहां राष्ट्रीय सुरक्षा नीति से जुड़े सारे फ़ैसले ले रहे थे, वहीं नवाज़ शरीफ की सरकार अर्थव्यवस्था और सामान्य प्रशासन संभाल रही थी। माना जा रहा है कि जनरल बाजवा और नवाज़ शरीफ के बीच रिश्ते बेहतर रहेंगे। पाक के रक्षा हलक़ों में इन दिनों बलूचिस्तान के मामले में नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल की नीतियों के प्रति गहरी चिंता जताई जा रही है। बाजवा की चुनौतियों में इसे प्रमुख मुद्दा बताया जा रहा है।

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के पास सेनाध्यक्ष को सेवावृद्धि देने का अधिकार है, कहा जा रहा है कि इसी खटास के कारण जनरल शरीफ़ को सेवा विस्तार नहीं दिया गया। बेबाक और अनुशासित सैन्य अफसर जनरल जहांगीर करामत को छोड़ दें तो क़रीब क़रीब सारे सेनाध्यक्षों ने सेवावृद्धि ली है। 1998 में प्रधानमंत्री बनने के बाद नवाज शरीफ ने जनरल करामत से पद छोड़ने का आग्रह किया था। इसके बाद उन्होंने समयपूर्व इस्तीफा दे दिया था। उसके बाद सेनाध्यक्ष पद पर जनरल परवेज मुशर्रफ की नियुक्ति का रास्ता साफ हुआ था। मुशर्रफ ने 1999 में करगिल में घुसपैठ की साजिश अंजाम दी। बाद की घटनाओं की अंतिम परिणति नवाज शरीफ के तख्ता पलट में हुई थी।


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