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सोमवार, 7 नवंबर 2016

कविता - विधवा

विधवा

एक विधवा
पूछ रही थी
उसके शहीद बेटे की
युवा पत्नी को भी
विधवा ही कहा जाएगा..

फिर उसे याद आया
विधवा, जवानी
हमदर्दी, वासनामयी आंखें
मुआवजा, दफ्तरों का चक्कर

वह घिघिया पड़ी
नहीं नहीं
शहीदों की पत्नियों को
सम्मान दो
उन्हें विधवा मत कहो

वह बुदबुदाती है
आजादी के बाद
देश ने
इतनी तरक्की कर ली
कितने नामकरण हो गए
फिर भी
विधवा विधवा ही रह गई

-हरिगोविंद विश्वकर्मा

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