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बुधवार, 9 नवंबर 2016

भारत के लिए ट्रंपकार्ड हो सकते हैं डोनॉल्ड ट्रंप

हरिगोविंद विश्वकर्मा
पूरी दुनिया की भविष्यवाणी को झूठ साबित करते हुए कथित तौर पर बहुत ख़तरनाक विचारधारा वाले डोनॉल्ड जॉन ट्रंप आख़िरकार दुनिया के सबसे ताकतवर आदमी बन गए हैं और अगले साल के आरंभ में वह ह्वाइट हाऊस पर क़ाबिज़ हो जाएंगे। रिपब्लिकन पार्टी के ट्रंप के अमेरिका के 45 वें राष्ट्रपति चुने जाने से दुनिया का एक तबक़ा आशंकित है। अपेक्षाकृत ज़्यादा क़ाबिल, उदारवादी और सौम्य महिला हिलेरी क्लिंटन के रिजेक्शन के बाद सवाल उठने लगा है कि क्या अमेरिकी जनता भी आजकल वैसा ही सोचने लगी है, जैसा ढाई साल पहले हुए आम चुनाव में भारत की जनता सोच रही थी?

दरअसल, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और प्रेसिडेंट डोनॉल्ड ट्रंप में प्राइमा फेसाई कई समानताएं हैं। यह संयोग है कि राग सेक्यूलर आलापने वाले लोग न तो मोदी को पसंद करते हैं और न ही ट्रंप को। सेक्लयूर विचारक 2002 के गुजरात दंगों के चलते मोदी को 14 साल बाद भी माफ़ करने की स्थिति में नहीं हैं। उऩकी मोदी की नापसंदी इस स्तर तक है कि मोदी का विरोध करने वाले किसी भी ऐरे-गैरे नत्थू खैरे के साथ हो लेते हैं। इसी तरह ट्रंप से उदारवादियों की खुन्नस मुसलमानों के ख़िलाफ़ ज़हर उगलने और अमेरिका में मुसलमानों को अस्थाई रूप से प्रवेश न देने वाले उनके बयान के चलते है।

इसी बिना पर सेक्यूलर विचारधारा के लोग जुलाई से ही ट्रंप को ज़िद्दी, सिरफिरा और अनाप-शनाप बोलनेवाला नेता करार देते रहे और कहते रहे कि पैसे का भरपूर उपयोग करके उन्होंने अमेरिकी जनता को भ्रमित करके चुनाव जीत लिया। इसके बावजूद डोनॉल्ड को ह्वाइट हाऊस में जाने से नहीं रोका जा सका। दरअसल, ऐसा लगता है जुलाई से नवंबर तक ट्रंप का जिस तरह विरोध बढ़ता रहा, उसी अनुपात में अमेरिकी जनता उनका समर्थन करती रही। ट्रंप की जीत 2014 में मोदी के प्रचार की याद दिला रही थी, जब सेक्यूलर विचारधारा के लोगों की की मोदी के ख़िलाफ़ हर कोशिश नाकाम हो गई। गठबंधन के दौर में मतदाताओं ने मोदी को 282 सीटों का स्पष्ट बहुमत दिया था और सांप्रदायिक, तानाशाह और मौत का सौदागर जैसे शब्दों से अलंकृत मोदी देश के प्रधानमंत्री बन गए थे।

ऐसा, लगता है अमेरिकी जनता एक ऐसा प्रेसिडेंट खोज रही थी जो कूटनीति की नहीं, बल्कि धमकियों की भाषा बोले और हर बात पर धौंस जमाए। कमोबेश ट्रंप इस सांचे में एकदम फिट बैठते हैं। माना जा रहा है कि ट्रंप के नेतृत्व में अंकल सैम शांति का दूत नहीं, धौंस जमाने वाले देश बन रहे हैं। अपने बयानों में ट्रंप कथित तौर पर कट्टरपंथी इस्लामिक आतंकवाद को अमेरिका के लिए गंभीर चुनौती मानते रहे हैं। हालांकि वह कह चुके हैं कि इस्लामिक आतंक के ख़िलाफ़ लड़ाई में भारत और मुस्लिम देशों के साथ मिलकर काम करेंगे।

जो भी हो, नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप की अप्रत्याशित और हैरतअंगेज जीत के बाद उनके बारे में अपरिपक्व बयान देने का समय नहीं रहा, क्योंकि यह अमेरिकी जनता का जनादेश है। लिहाज़ा, ट्रंप ये करेंगे या ट्रंप वो करेंगे, ऐसे बयान देने का बचपना करने की बजाय हर किसी को अब अमेरिकी जनता के फ़ैसले का सम्मान करते हुए उसे उसी तरह स्वीकार करना चाहिए, जिस तरह ढाई साल पहले पूरी दुनिया ने भारत की जनता का जनादेश स्वीकार करते हुए मोदी को भारतीय जनता का आधिकारिक प्रतिनिधि माना और उनका स्वागत किया था।

कहना न होगा, भारत के हालात अमेरिका में दोहराए गए। इसकी एक वजह यह भी है कि सेक्यूलर जमात के लोग आतंकवाद का उस स्तर पर विरोध नहीं करते, जितना करना चाहिए और झट से कह देते हैं कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं, लेकिन इस सवाल का जवाब नहीं देते कि सारे आतंकवादी एक ही धर्म के प्रॉडक्ट क्यों हैं। बेशक आतंकवाद को अमेरिका ने पैदा किया, लेकिन हाल के सालों में वहां की जनता भी आतंकवाद की बड़ी विक्टिम रही है। कहा जा रहा है कि इसीलिए अमेरिकी जनता को ट्रंप का मुस्लिम विरोध अच्छा लगा और उन्हें राष्ट्रपति चुन लिया। यानी इस्लामिक टेरॉरिज़्म को जड़ से कुचलने के नारे पर ही ट्रप को अमेरिकी जनता का इतना समर्थन मिला।

बहरहाल, अगर पिछले चार-पांच महीने के घटनाक्रम पर नज़र डालें तो, इस बार का अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव भारत के नज़रिए से काफ़ी अहम रहा। कहा जाने लगा है कि भारत के लिए डोनॉल्ड ट्रंपकार्ड साबित हो सकते हैं, क्योंकि प्रत्याशी बनने से पहले से ही ट्रंप दुनिया से इस्लामिक आतंकवादको जड़ से कुचलने की बात कर रहे हैं। चूंकि भारत आतंकवाद से सबसे ज़्यादा पीड़ित देशों की शुमार में रहा है और चार दशक से आतंकवाद, ख़ासकर पाकिस्तान स्पॉन्सर्ड दहशतगर्दी, का दंश झेल रहा है। ऐसे में ट्रंप की ख़तरनाक कार्रवाई से भारत को नुकसान नहीं, बल्कि फ़ायदा मिल सकता है। यह भारतीय विदेश मंत्रालय में बैठे लोगों को सोचना होगा कि कैसे ट्रंप से अधिकतम लाभ ले सकते हैं।

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में भारत से द्विपक्षीय संबंध अहम मुद्दा था। दुनिया के सबसे ताक़तवर व्यक्ति बने ट्रंप का भारत के प्रति अप्रोच हिलेरी क्लिंटन के मुक़ाबले ज़्यादा सकारात्मक लगा। सबसे मज़ेदार बात यह कि चुनाव प्रचार और प्रेसिडेंशियल डिबेट्स में ट्रंप भारत और नरेंद्र मोदी की चर्चा करते रहे। ट्रंप
भारत को अमेरिका का नैचुरल अलाई मानते हैं। यह भारत के नीति-नियंताओं के लिए अच्छी ख़बर है, जिससे भारत फ़ायदे में रह सकता है।

डोलॉल्ड ट्रंप प्रचार के दौरान अगर किसी विदेशी नेता का नाम सबसे ज़्यादा ले रहे थे तो वह भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी थे। ट्रंप भारत और भारतीय प्रधानमंत्री के प्रशंसक के रूप में उभरे हैं। दुनिया भर के मुसलमानों के ख़िलाफ़ खुलेआम ज़हर उगलने वाले ट्रंप को आरंभ में भारत विरोधी माना जा रहा था, लेकिन भारत और भारतीयों को उन्होंने ग्रेट कंट्री ऐंड ग्रेट पीपल’  कहकर अपनी असली मंशा का परिचय दे दिया। ट्रंप के रुख से यही लगता है, उनके दुनिया का सबसे ताकतवर व्यक्ति बनने और ह्वाइट हाऊस पर क़ाबिज़ होने से भारत फ़ायदे में रहेगा।

कहा जा रहा है कि कमोबेश 70 वर्षीय ट्रंप भारत को हिंदू देश मानते हैं, क्योंकि प्रचार में उन्होंने भारत को ग्रेट नेशन क़रार देते हुए कहा था, विश्व सभ्यता एवं अमेरिकी संस्कृति में विलक्षणयोगदान के लिए भारतीय समुदाय की मैं प्रशंसा करता हूं। वैश्विक सभ्यता और अमेरिकी संस्कृति में हिंदू समुदाय ने असाधारण योगदान दिया है। हम हमारे मुक्त उद्यम, कड़ी मेहनत, पारिवारिक मूल्यों और दृढ़ अमेरिकी विदेश नीति के साझा मूल्यों को रेखांकित करना चाहते हैं।

ट्रंप वादा कर चुके हैं किट्रंप एडमिनिस्ट्रेशन में भारत और अमेरिका 'बेस्ट फ्रेंड' बनेंगे। वह मोदी के कथित आर्थिक सुधारों की भी जमकर तारीफ़ करते रहे हैं। ट्रंप के मुताबिक़, मोदी की वजह से ही भारत आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है। ट्रंप कहते हैं कि मोदी ने जो क़दम उठाए, वैसे ही क़दम अमेरिका में भी उठाए जाने ज़रूरी है।

भारत को इनक्रेडिबल पीपल का इनक्रेडिबल कंट्री करार देते हुए ट्रंप कह चुके हैं, “मैं हिंदुओं व भारत का बहुत बड़ा फैन हूं और ट्रंप ऐडमिनिस्ट्रेशन में भारतीय और हिंदू समुदाय वाइटहाउस में हमारे सच्चे दोस्त होंगे। हिंदुओं और इंडो-अमेरिकी लोगों की कई पीढ़ियों ने देश को मज़बूती दी है। भारतीय मूल के लोग कठोर परिश्रम और उद्यमी होते हैं। मेरा भारत में बहुत ज्यादा विश्वास है। 19 महीने पहले भारत में वहां था और वहां कई बार और जाने की सोच रहा हूं।


ट्रंप कहते हैं, “इस्लामिक आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई में अब तक भारत की भूमिका ज़बरदस्त रही है। हमारा शानदार दोस्त भारत कट्टरपंथी इस्लामिक आतंकवाद के ख़िलाफ़ अमेरिका के साथ है। भारत को आतंकवाद से ज़ख़्म ही ज़ख़्म मिला है। संसद पर हमला और मुंबई पर आतंकी हमला भारत कभी नहीं भूल सकता। मुंबई एक ऐसी जगह है, जिसे मैं प्यार करता हूं और समझता हूं। इस तरह के बयान यही संक्त देते हैं कि ट्रंप भारत के लिए आतंकवाद से लड़ने में ट्रंपकार्ड हो सकते हैं।

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