Powered By Blogger

गुरुवार, 9 अप्रैल 2020

चीन के वुहान से लॉकडाउन हटते ही हज़ारों लोगों का पलायन

हरिगोविंद विश्वकर्मा
दुनिया को वैश्विक महामारी सीसीपी वारयस (चीनी कम्युनिस्ट पार्टी वायरस) को नज़राना देने वाले और इस मौत के सौदागर का एपीसेंटर रहे चीन के हुबेई प्रांत के वुहान में सरकार ने जैसे ही 76 दिवसीय लॉकडाउन को उठाने की घोषणा की वैसे ही वुहान से पलायन करने वालों का तांता लग गया है। पहले दिन यानी 8 अप्रैल 2020 को ही 20 हज़ारों लोग शहर से पलायन कर गए।

अमेरिका के न्यूयॉर्क टाइम्स और वॉशिंगटन पोस्ट के बाद सबसे प्रतिष्ठित समाचार पत्र समूह The Epoch Times ने अपने प्रिंट एवं डिजिटल एडिशन में इस बारे में विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की है। रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले तीन महीने के दौरान बहुत बड़ी तादाद में लोगों की लाशें देखकर ये लोग विचलित हो गए हैं और अपने भविष्य को लेकर बहुत चिंतित हैं, इसलिए लोग किसी तरह ऐसी जगह जाना के लिए तत्पर थे जहां, उनकी जान बच सके। इसीलिए मौक़ा मिलते ही लोग परिवार समेत वुहान से पलायन कर रहे हैं। 

रिपोर्ट के मुताबिक 23 जनवरी, जब सरकार ने शहर के 1 करोड़ 10 लाख लोगों को उनके घरों में क़ैद करने की घोषणा की थी, के बाद से कोरोना का मार झेल चुके इस शहर ने इतनी अभूतपूर्व भीड़ कभी नहीं देखी थी। आलम यह था कि सरकार द्वारा लॉकडाउन ख़त्म करे के निर्धारित समय आधी रात होने से पहले ही एक्सप्रेसवे पर बहुत बड़ी तादाद में लोग हो गए थे। लोगों ने ट्रेन और विमान पकड़ने के लिए रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डों पर जाने के लिए पहले से ही अपने शरीर को सुरक्षात्मक लिहाफ लपेटकर शहर से बाहर निकलने के लिए अपनी बारी का इतज़ार करते देखे गए थे।


सीमावर्ती क्षेत्र से लिए गए विडियों के फुटेज यह कहानी ख़ुद बयां कर रहा है। स्थानीय लोगों को अपनी कार का हार्न बजाकर ढाई महीने बाद मिली आज़ादी का स्वागत किया। 8 अप्रैल, 2020 की अलसुबह ली गई हवाई तस्वीर वुहान में एक राजमार्ग के टोल प्लाज़ा पर कतार में खड़ी कारों को दर्शाती है। वुहान के 75 हाइवे टोल में से एक पर निकलने की प्रतीक्षा कर रहे चेन ने बताया, हम फिर मौत के मुहाने पर ढकेल दिए जाएं, इससे पहले यहां से निकल जाना चाहते हैं, क्योंकि कोई नहीं जानता कि कब चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार अपनी पॉलिसी बदलने की घोषणा कर दे। मुझे इस बात का दुख है कि मैंने अपने बॉस का आग्रह ठुकरा दिया जिसने उससे रुकने का आग्रह किया था।


हाइवे पर अपनी बारी का इतंज़ार कर रहे हेनयांग जिले के लीयू, जिनमें माता-पिता हेनयांग में ही रहते हैं, भी इसी तरह की चिंता जताते हैं। उन्होंने कहा, यहां किसी को कुछ नहीं पता कि कल क्या होने वाला है। इसलिए लोग अपनी और अपने परिजनों की जान बचाने के लिए सब कुछ वुहान में छोड़कर पलायन कर रहे हैं। लीयू ने कहा, "आप कभी नहीं जान सकते कि इस देश की नीतियां किस दिशा में जा रही हैं," लीयू हेनान प्रांत के ज़िनयांग शहर में पहुंच कर अपनी कार मंगोलिया की मोड़ते हुए बताया, “जितना जल्दी संभव हो पा रहा है, हम वुहान छोड़ रहे हैं। यहां हर दिन किसी न किसी परिवर्तन की घोषणा की जाती है।”


आवागमन पर लगे प्रतिबंध के हटने से एक घंटे पहले हज़ारों की संख्यां में कारें हाइवे के प्रवेश द्वार पर क़तारबद्ध हो गई थी। वुहान से बुधवार को लगभग 55,000 लोगों के रेलयात्रा का टिकट बुक करवाया था। अगले दिन यह संख्या दोगुनी हो गई। हवाई अड्डे के एक अधिकारी ने बताया कि शाम तक वुहान से 10,000 यात्री बाहर निकल गए।

मंगलवार, 7 अप्रैल 2020

कोरोना को रोकने के लिए लॉकडाउन बढ़ाना ही एकमात्र विकल्प


हरिगोविंद विश्वकर्मा
हालांकि देश में सीसीपी वारयस (चीनी कम्युनिस्ट पार्टी वायरस) से संक्रमित लोगों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है, इसके बावजूद अगर अमेरिका, इटली और स्पेन जैसे बेहतरीन हेल्थकेयर वाले विकसित देशों की तुलना करें तो यही लगता है कि भारत कोरोना वायरस को विस्फोटक रूप से बढ़ने से रोकने में अभी तक तो सफल रहा है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह रही कि देश और देशवासियों ने मिलकर कोरोना वारयस को तीसरे चरण में जाने से रोक दिया है। इसका सारा श्रेय देशव्यापी लॉकडाउन को जाता है। इसलिए चीनी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा फैलाई गई कोरोना नाम की इस वैश्विक महामारी को रोकने के लिए लॉकडाउन की अवधि 30 अप्रैल तक बढ़ाने की घोषणा तत्काल होनी चाहिए।

लॉकडाउन इसलिए भी ज़रूरी है, क्योंकि देश में कोरोना संक्रमण और इस वायरस से होने वाली मौतों का ग्राफ बढ़ ही रहा है। थोड़ी ढिलाई से जिस तरह लोग सब्ज़ी और अन्य खाद्य सामग्री खरीदने के लिए टूट पड़ते हैं, उस पर अंकुश लगाने के लिए लॉकडाउन एकमात्र विकल्प है। अन्यथा भारत भी अमेरिका, इटली, स्पेन, फ्रांस, ईरान और ब्रिटेन की तरह कम्युनिटी ट्रांसफर का शिकार हो सकता है।

वजह चाहे जो हो, लेकिन इतना तो सच है कि जाहिल तबलीग़ी जमात मरकज़ के सदर मौलाना मोहम्मद साद कांधलवी के पागलपन के बावजूद भारत ने कोरोना वायरस के विस्फोटक संक्रमण को रोकने में अब तक तो कामयाब ही रहा है। अगर पूरा देश इसी तरह भविष्य में भी एकजुट रहा और लोग अपने-अपने घरों में इसी तरह बंद रहे तो, भारत निश्चित रूप से सीसीपी वारयस को इसी महीने हराने में सफल हो जाएगा।

भारत में कोरोना वायरस का आगाज़ यूरोप के दो सबसे समृद्ध देशों इटली और स्पेन से एक दिन पहले हुआ था। लेकिन इन दोनों देशों में कोरोना संक्रमण जिस गति से बढ़ा उसकी तुलना में लॉकडाउन की घोषणा करने से देर हो गई। इसका नतीजा यह हुआ कि कोरोना वायरस कुछ दिन के अंदर पहले चरण से दूसरे और दूसरे चरण से तीसरे चरण में चला गया और अंततः कम्युनिटी स्प्रेड हो गया। आज इटली और स्पेन में लाशों का अंबार लगा है। लेकिन भारत ने सोशल डिस्टेंसिंग और लॉकडाउन की घोषणा इन दोनों देशों के बाद की, इसके बावजूद यूरोप अमेरिका की तुलना में यहां संक्रमण नियंत्रण में है।

दरअसल, चीन के बाद कोरोना वायरस का प्रकोप पूरी दुनिया में लगभग एक ही साथ यानी 19 जनवरी 2020 से 31 जनवरी 2020 के बीच शुरू हुआ। अमेरिका और यूरोप में यह भयानक रूप से बढ़ा और आज विकसित देशों में बड़ी संख्या में नागरिकों की जान ले रहा है। लेकिन भारत में कोरोना संक्रमण उस विस्फोटक गति को प्राप्त करने में सफल नहीं हो सका। भारत फिलहाल प्रभावित दोशों में 30 वें नंबर पर है।

चीन के बाहर सबसे पहले संक्रमण अमेरिका में फैला। दुनिया के सबसे तातकवर देश में कोरोना का पहला मरीज 19 जनवरी 2020 को पाया गया। जहां न्यूयॉर्क में एक चीनी नागरिक कोरोना पॉजिटिव घोषित किया गया। अमेरिका में कोरोना संक्रमण बहुत तेज़ी से पहले चरण से दूसरे चरण में पहुंचा और दूसरे चरण से बड़ी तेज़ी से तीसरे चरण यानी कम्युनिटी ट्रांसफर फेज में पहुंच गया। आज अमेरिका में कोरोना से मौतें 12 हज़ार से अधिक और कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या 4 लाख से ऊपर है।

इटली में कोरोना वायरस कोरोना के ओरिजिन पॉइंट वुहान से उसके कोरोबारी रिश्ते के चलते 31 जनवरी 2020 को पहुंचा। दरअसल, जब इटली में सरकार ने चीन से आने वालों पर रोक लगाने का सिलसिला शुरू किया तो वहां के वामपंथी नेताओं ने इसका विरोध किया। इसके बाद इटली में "चीनी भाइयों को गले लगाओ" अभियान शुरू किया। सभी उम्र के सामान्य स्वस्थ इटालियंस ने यादृच्छिक चीनी लोगों को गले लगाया और फिर स्थानीय समुदाय के भीतर इस बीमारी को ले जाने और फैलाने लगे। लिहाज़ा, इटली ने बिजली की गति से पहले चरण से दूसरे चरण और दूसरे चरण से तीसरे चरण में पहुंच गया। अब तक इटली में 17,127 मौतें हो चुकी है और 1,35,586 लोग संक्रमित हैं।

विकसित देशों की बात करें तो अमेरिका के बाद फ्रांस दूसरा देश है, जहां चीनी वायरस सबसे पहले पहुंचा। फ्रांस में कोरोना वायरस की दस्तक 24 जनवरी 2020 को हुई। फ्रांस में कोरोना वायरस का संक्रमण बहुत तेज़ी से पहले चरण से दूसरे चरण में पहुंचा और दूसरे चरण से उससे भी तेज़ी से तीसरे चरण में गया और देश कोरोना के कम्युनिटी ट्रांसफर का शिकार हो गया। आज फ्रांस में चीनी वायरस से 10,328 मौतें  हो चुकी हैं, जबकि देश में कोराना पॉज़िटिव के 78,167 केस हैं।

यूरोप के सबसे धनी देशों में से एक स्पेन का दरवाज़ा चीनी वायरस ने 31 जनवरी 2020 को ही खटखटा दिया था। इस देश में भी कोरोना वायरस का संक्रमण बहुत तेज़ी से फैला और पहले चरण से दूसरे चरण में पहुंच गया। कुछ दिनों के भीतर यह वायरस दूसरे चरण से बड़ी तेज़ी से तीसरे चरण यानी कम्युनिटी ट्रांसफर फेज में पहुंच गया। इसके चलते पूरा इटली शहर लॉकडाउन है। इस ख़ूबसूरत देश में लाशों का अंबार लगता जा रहा है। अगर स्पेन में लोगों के मरने का सिलसिला इसी तरह बदस्तूर जारी रहा तो जल्द ही दुनिया में कोरोना वायरस से मरने वाले सबसे ज़्यादा लोग स्पेन में ही होंगे। अभी तक वहां 14,045 मौत हो चुकी है और संक्रमित लोगों की संख्या 1,41,942 तक पहुंच गई है।

इसी तरह ईरान में कोरोना वायरस की दस्ताक 19 फरवरी 2020 को हुई, लेकिन कुछ कट्टरपंथियों की लापरवाही के चलते यहां कोरोना जल्दी ही कोहराम मचाने लगा। ईरान अमेरिका यूरोप की तरह विकसित मेडिकल सुविधा वाला देश नहीं है। इसका नतीजा यह हुआ कि वहां गली-गली में लोगों की मौत होने लगी। फिलहास ईरान में अबतक 3,872 लोगों की जान जा चुकी है, जबकि 62,589 कोरोना पॉजिटिव के संक्रमण के शिकार है।

इन देशों की तुलना में भारत कोरोना वायरस के प्रसार की रफ़्तार में ब्रेक लगाने में बहुत हद तक सफल रहा है। भारत में कोरोना का संक्रमण दुबई के रास्ते 30 जनवरी 2020 को आया जब केरल में एक आदमी कोरोना संक्रमित पाया गया। इतना ही नहीं भारत में कोरोना से पहली मौत 12 मार्च को हुई। सबसे बड़ी बात भारत में अभी तक कोरोना दूसरे चरण में रोक दिया गया है। फ़िलहाल देश में डेढ़ सौ मौतें हुई हैं और पांच हजार से अधिक संक्रमित हैं। इन संख्याओं के साथ केवल लगाया जा सकता है, क्योंकि भारत ने अपनी सूझबूझ से इन्हें बढ़ने की गुंजाइश नहीं दी।

शनिवार, 4 अप्रैल 2020

कट्टरपंथियों को डील करने में भाजपा कांग्रेस से भी अधिक फिसड्डी

हरिगोविंद विश्वकर्मा
देश में पिछले छह साल से सत्तारूढ़ राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी अक्सर कांग्रेस पर मुसलमानों के कथित तुष्टीकरण का आरोप लगाती रही है। कांग्रेस की नीतियों को भाजपा के नेता इम्पीज़मेंट पॉलिटिक्स की संज्ञा देते रहे हैं। लेकिन दिल्ली के निज़ामुद्दीन के तबलीग़-ए-जमात आलमी मरकज़ में देश-विदेश से आए जमातियों को वहां से निकलने के बारे जो भी खुलासे हो रहे हैं, उस पर ग़ौर करें, तो यही लगता है कि कट्टरपंथी मुसलमानों को डील करने में राष्ट्रवाद की पैरोकार भाजपा मुसलमानों के लिए सॉफ्ट कॉर्नर रखने वाली कांग्रेस से भी ज़्यादा फिसड्डी साबित हुई है।

निज़ामुद्दीन में छह मंज़िली इमारत में मौजूद हज़ारों की तादाद में जमातियों को निकालने के लिए तबलीग़ी मरकज़ के सदर मौलाना मोहम्मद साद को मनाने और राजी करने हेतु राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल का रात दो बजे मरकज़ में जाना, यही दर्शाता है कि कट्टरपंथी मुसलमानों को डील करते समय भाजपा भी कांग्रेस की तरह बहुत सॉफ़्ट अप्रोच अख़्तियार करती है और कट्टरपंथियों को नाराज़ नहीं करना चाहती है। अन्यथा 22 मार्च को जनता कर्फ़्यू से पहले ही कोरोना वायरस फैलाने वाले इन जमातियों को डंडे मार कर हकालकर क़्वारंटीन सेंटर में दिया जाता।

देश भर में कोरोना मरीज़ों की संख्या में सात सौ कोरोना पॉज़िटिव मरीज़ो का योगदान देने वाला तबलीग़ी आलमी मरकज़ तो चीनी वायरस फैलने के लिए तो सबसे अधिक ज़िम्मेदार है ही, लोकल पुलिस और स्थानीय नागरिक प्रशासन से लेकर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और दिल्ली सूबे के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तक भी उतने ही ज़िम्मेदार हैं, क्योंकि ये लोग 19, 20 और 21 मार्च की अवधि के दौरान कोई सख़्त कार्रवाई करने की बजाय बस हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे। अगर देश-विदेश से आए जमातियों के जमावड़े की बात इन तक पहुंचाई ही नहीं गई तो यह तो और भी गंभीर मसला है।

तबलीग़ी आलमी मरकज़ की बंगलेवाली मस्जिद की इमारत में मौजूद 2346 लोगों को बेशक निकाल लिया गया है, लेकिन यह सवाल अभी तक अनुत्तरित है कि इतनी बड़ी तादाद में लोगों को वहां रुकने और चीनी वायरस फैलाने की इजाज़त किन परिस्थियों में दी गई। जमातियों की जांच करके पहले ही सभी को क़्वारंटीन सेंटर में क्यों नहीं भेजा गया। केंद्रीय गृहमंत्री के आदेश पर काम करने वाली दिल्ली पुलिस ने 22 मार्च से पहले सख़्त क़दम क्यों नहीं उठाया। इसका जवाब मांगा जाना ही चाहिए।

ऐसे समय, जब देश के सभी धार्मिक और शिक्षण संस्थान 18 मार्च को ही बंद कर दिए गए। 18 मार्च को ही देश में सबसे अधिक भीड़ खींचने वाले तिरुपति बालाजी मंदिर और जम्मू-कश्मीर के वैष्णोदेवी मंदिर को बंद कर दिया गया। 20 मार्च को दुनिया में सबसे अधिक भीड़ खींचने वाली मक्का मस्जिद और मदीना मस्जिद भी बंद कर दी गई। तब तबलीग़ी आलमी मरकज़ की बंगलेवाली मस्जिद की इमारत में चार हज़ार तमातियों को निकालने के लिए स्थानीय पुलिस सक्रिय क्यों नहीं हुई?

दरअसल, चीनी वाइरस का ख़तरा देश में 30 जनवरी को पहला कोरोना पॉज़िटिव केस मिलने के बाद ही महसूस किया जाने लगा था। कई कंपनियां अपने कर्मचारियों को घर से काम करने की सलाह देने लगी थी। इस दौरान कभी केरल से तो कभी महाराष्ट्र से कोरोना पॉज़िटिव की इक्का-दुक्का ख़बरें आ रही थीं। 12 मार्च को कर्नाटक के कुलबर्गी में सऊदी अरब से हज़ करके लौटे 76 वर्षीय बुज़ुर्ग की कोरोना से मौत की ख़बर आते ही देश में हलचल मचने लगी। अगले दिन एक और कोरोना डेथ के बाद संस्थानों को बंद करने का सिलसिला शुरू हो गया, क्योंकि तब तक देश में कोरोना पॉज़िटिव के 80 से ज़्यादा मरीज़ों की पुष्टि हो चुकी थी।

दिल्ली सरकार ने 13 मार्च को डॉ. राममनोहर लोहिया अस्पताल में एक महिला की कोरोना से मौत के बाद इस चीनी वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए 200 से अधिक लोगों के एक जगह एकत्रित होने पर रोक लगा दी। 17 मार्च को 50 लोगों के एक जगह जमा होने प्रतिबंध लगा दिया गया। 19 मार्च को खतरा बढ़ता देख यह संख्या 20 कर दी गई। 20 मार्च को एक जगह पांच लोगों के इकट्ठा होने पर रोक लगा दी गई। ऐसे क्रिटिकल समय में निज़ामुद्दीन में तबलीग़ी आलमी मरकज़ की इमारत में क़रीब चार हज़ार लोगों को क्यों जमा होने दिया गया? इसका जवाब लोकल पुलिस के साथ साथ लोकल प्रशासनिक अधिकारियों से भी पूछा जाना चाहिए।

वस्तुतः तबलीग़ी आलमी मरकज़ इमारत की दीवार निज़ामुद्दी पुलिस स्टेशन की दीवार से एकदम सटी हुई है। सड़क से जाने पर मरकज़ से पुलिस स्टेशन की दूरी 40 मीटर से ज़्यादा नहीं होगी। ऐसे में हज़रत निज़ामुद्दीन पुलिस या स्थानीय ख़ुफ़िया इकाई (लोकल इंटेलिजेंस यूनिट) को इतनी बड़ी तादाद में लोगों को जुटने की पक्की ख़बर रही ही होगी और ज़ाहिर है इस सूचना को निश्चित रूप से थानाध्यक्ष और एलआईयू ने अपने आला अधिकारियों के साथ ज़रूर शेयर किया होगा।

ऐसे में लग यही रहा है, केंद्रीय गृहमंत्री और मुख्यमंत्री समेत आला अफ़सरों से कोई स्पष्ट निर्देश न मिलने की अवस्था में स्थानीय पुलिस स्टेशन के प्रभारी मुकेश वालिया नीरो की तरह बंसी बजाते रहे। 23 मार्च को जब कोरोना मरीज़ों की संख्य़ा 400 पार कर गई और चीनी वायरस से मरने वालों की संख्य 4 से अचानक 7 पहुंच गई, तब थाना प्रभारी को लगा कि मामला सीरियस होता जा रहा है। लिहाज़ा, तबलीग़ी आलमी मरकज़ छह सात लोगों बुलाकर उन्होंने कैमरे के सामने मरकज़ को खाली करने का निर्देश दिया। यह कार्य थानाध्यक्ष ने चार दिन पहले क्यों नहीं किया?

दरअसल, 28 मार्च को अंडमान-निकोबार से रिपोर्ट आई कि संक्रमित 10 से से 9 लोग तबलीग़ी आलमी मरकज़ के प्रोग्राम में शामिल हुए थे। चौथी संक्रमित मरीज़ मरकज़ में शामिल एक मौलाना की बीवी थी। इस रिपोर्ट से सभी के कान खड़े हो गए और लोकल पुलिसकर्मी और एसडीएम के साथ इमारत में गए और मौलाना साद से इमारत खाली करवाने और खांस रहे लोगों को अस्पताल और बाक़ी जमातियों को क्वारंटीन सेंटर भेजने का आग्रह किया, लेकिन कोरोना वायरस को ही इस्लाम के ख़िलाफ़ साज़िश मानने वाला मौलाना साद अड़ गया और कहा कि उसके लोग मस्जिद में मर जाएंगे, लेकिन अस्पताल या क्वारंटीन सेंटर में बिल्कुल नहीं जाएंगे।

यहीं झाम फंस गया। लात और डंडे खाने के पात्र मौलना साद को पुलिस वाले मनाने मे जुटे रहे। मान जाइए। खांस-छींक रहे लोगों को अस्पताल और बाक़ी लोगों को क्वारंटीन सेंटर भेजने दीजिए कहते हुए मनुहार करते रहे।
पूरे देश में प्रवासी मजदूरों को पुलिस डंडे मारती रही और मुर्गा बनने के लिए मजबूर करती रही, लेकिन मरकज़ में मिशन मान-मनौव्वल चलता रहा। जब रात 12 बजे मिशन मान-मनौव्वल फेल हो गया तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सूचित किया गया। तब प्रधानमंत्री ने भी मौलाना और गंदी मानसिकता वाले जमातियों डंडे मारने का आदेश देने की जगह मौलाना को मनाने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को भेजा।

अजित डोभाल के मनाने के बाद मौलाना साद तैयार हो गया और रात में ही खांस-छींक रहे जमातियों को बाहर निकलने का सिलसिला शुरू हुआ। वहां इतने अधिक जमाती थे कि इमारत को खाली कराने में तीन दिन लग गए। सबको निकलने के बाद बताया गया कि 2346 लोग थे। यह कहना ग़लत नहीं होगा भारत धरती का इकलौता ऐसा मुल्क है, जहां बुद्धिजीवी मुसलमान तो डर महसूस करते हैं, लेकिन पर्यटन वीज़ा लेकर विदेश इस्लाम का प्रचार करने यानी धर्म परिवर्तन को बढ़ावा देने के लिए इस भयस्थल के दौरे पर आते हैं और अपना काम ख़त्म करके चले भी जाते हैं। अब भारत सरकार होश में आई है और लगभग एक हज़ार विदेशी जमातियों को ब्लैकलिस्ट कर दिया गया है।

अब यह भी पता चल रहा है कि तबलीग़ी मरकज़ में बड़ा कुर्ता छोटा पायजामा पहनने और दाढ़ी रखने वाले इन जमातियों को क्या प्रशिक्षण दिया जाता है। ज़ाहिर है, इन लोगों को महिलाओं को भोग की वस्तु मानने की तालीम दी जाती है। तभी तो ये लोग जहां हैं, वहीं उपद्रव कर रहे हैं। अस्पताल में महिला नर्सों के सामने नंगे होकर अंडरवियर पहन रहे हैं, अश्लील वीडियों देख रहे हैं, अश्लील इशारे कर रहे हैं और कुछ ऐसे भी काम कर रहे हैं जिसे लिखा भी नहीं जा सकता। सबसे दुखद बात यह कि मोदी-विरोध में अंधे कई तथाकथित बुद्धिजीवी दूसरी मिसालें देकर इन जाहिलों और जानवरों की पैरवी कर रहे हैं।

स्कॉटलैंड यार्ड की तरह सक्षम और तेज़-तर्रार मानी जाने वाली दिल्ली पुलिस एक हफ़्ता गुज़र जाने के बावजूद मौलाना साद को नहीं खोज पाई है। ऐसी पुलिस से किसी आतंकवादी को खोज लेने की कैसे उम्मीद की जा सकती है। ज़ाहिर है, पुलिस जानती है कि मौलाना साद कहां छिपा हुआ है, लेकिन उसे तलाशने का बहाना कर रही है। यह कांग्रेस शासन में होता तो गले उतर जाता लेकिन भाजपा शासन में यह बात बिल्कुल हज़म नहीं हो रही है।  

सोमवार, 30 मार्च 2020

क्या है तबलीग़ी आलमी मरकज़?

यह जानने के लिए ज़रूर पढ़े... 

हरिगोविंद विश्वकर्मा
अपना दिल थाम लीजिए, क्योंकि भारत में चीनी कोरोना वायरस (चीनी कम्युनिस्ट पार्टी वाइरस यानी सीसीपी वायरस यानी कोविड-19) से संक्रमित कोरोना पॉजिटिव मरीज़ों की संख्या में विस्फोट होने वाला है। यह संख्या किसी भी समय बहुत ज़्यादा बढ़ सकती है। यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि राजधानी दिल्ली ही नहीं, बल्कि पूरे देश में सीसीपी वायरस का एपीसेंटर दिल्ली के निजामुद्दीन पश्चिम में स्थित तबलीग़ी जमात का आलमी मरकज़ यानी ग्लोबल सेंटर ही होगा।

ऐसे समय में जब विश्स स्वास्थ्य संगठन और अन्य विशेषज्ञ घातक कोरोनावायरस के प्रसार पर अंकुश लगाने के लिए 'सामाजिक दूरी' रखने की अपील कर रहे हैं और चीनी वायरस को और फैलने से रोकने के लिए पूरे देश में लॉकडाउन घोषित किया गया है। 17 से 19 मार्च 2020 के दौरान 300 से ज़्यादा विदेशियों समेत तक़रीबन 3500 तबलीग़ जमात के लोग इस मकरज़ की बंगलेवाली मस्जिद में एकत्रित हुए थे।

तबलीग़ी आलमी मरकज़ में हुए तीन दिवसीय सम्मेलन के बाद तक़रीबन हज़ार देसी-विदेशी इस्लामी प्रचारक 10 या 12 के समूह में देश के अलग-अलग हिस्सों में चले गए। यह कहना ग़लत नहीं होगा कि तबलीग़ी जमात के लोगों ने कोरोना वायरस को देश के हर इलाक़े में मुसलमानों में फैला दिया है। ऐसा ही एक समूह तेलंगाना की मस्जिद में बैठक में भाग लिया, जिनमें से सोमवार को पांच लोगों को कोविड-19 से मौत हो गई है। इसके अलावा प्रोग्राम में शिरकत करने वाले तमिलनाडु के व्यक्ति की मौत हो गई। अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में सभी 10 कोरोना पॉजिटिव यहीं से गए थे। कश्मीर में जिस व्यक्ति की जान गई है, वह भी यहां से इस्लाम के प्रचार-प्रसार का हुनर सीख कर गया था।

जब पूरा देश अपने घरों में क़ैद है, तब लीग़ी मरकज़म 1500 लोग सोशल डिस्टेंसिंग की अपील को धता-बता कर एक साथ रह रहे थे। इन लोगों ने एक साथ जुमे की नमाज़ भी पढ़ी। यहां आए लोगों को मौलानाओं ने आश्वस्त करते हुए कहा था, डरो मत अल्लाह-ताला हमें कोरोना वाइरस से दूर रखेगा। अब बड़ी संख्या में इस कार्यक्रम मं शामिल हुए लोग कोरोना पॉजिटिव निकल रहे हैं। यह देखकर सरकार के हाथ-पांव फूल गए हैं।

दरअसल, सोमवार को तेलंगाना में छह लोगों की कोरोना वायरस से मौत की खबर आई तो पूरे देश में हड़कंप मच गया। ये सभी लोग तबलीग़ी आलमी मरकज़ में इस्लाम के प्रचार-प्रसार के लिए आयोजित मजहबी प्रोग्राम में हिस्सा लेकर अपने घरों को लौटे थे। कार्यक्रम में शामिल क़रीब नौ सौ लोगों में कोरोना के संक्रमण की आशंका बताई जा है। पूरे देश में लॉकडाउन के बावजूद इतनी बड़ी संख्या में राजधानी में हुए इस धार्मिक आयोजन ने सुरक्षा-व्यवस्था की पोल खोल दी है।

अब केंद्र और राज्य सरकारें तबलीग़ी आलमी मरकज़ में हुए तीन दिवसीय सम्मेलन में शामिल सभी लोगों को ढूंढकर उनकी जांच करने में जुटी हैं। ऐसे में, ज़ाहिर है, आपकी जिज्ञासा तबलीगी जमात के बारे में जानने की हो रही होगी, कि आखिर क्या है यह जमात और दिल्ली में इतनी बड़ी संख्या में क्यों हो रहा था इसका आयोजन? दरअसल, तबलीगी जमात मरकज का हिंदी में अर्थ होता है, अल्लाह की कही बातों का प्रचार करने वाले तालिबों के समूह का केंद्र। तबलीगी जमात से जुड़े लोग पारंपरिक इस्लाम को मानते हैं और इसी का प्रचार-प्रसार करते हैं। एक दावे के मुताबिक इस जमात के दुनिया भर में 15 करोड़ सदस्य हैं। बताया जाता है कि तबलीगी जमात आंदोलन को 1927 में मुहम्मद इलियास अल-कांधलवी ने हरियाणा के नूंह जिले के गांव से शुरू किया था।

तबलीगी जमात के मुख्य उद्देश्य "छह उसूल" (कलिमा, सलात, इल्म, इक्राम-ए-मुस्लिम, इख़्लास-ए-निय्यत, दावत-ओ-तबलीग़) हैं। एशिया में इनकी अच्छी खासी आबादी है। राजधानी दिल्ली का निजामुद्दीन में इस जमात का मुख्यालय है। इस जमात को अपनी पहली बड़ी मीटिंग करने में करीब 14 साल का समय लगा। अविभाजित भारत में ही इस जमात ने अपना आधार मज़बूत कर चुका था। 1941 में 25,000 तबलीग़ियों की पहली मीटिंग आयोजित हुई।

बहुमंजिला बंगलेवाली मस्जिद भीड़ वाली सड़क पर स्थित है। सूफी संत हजरत निजामुद्दीन औलिया का मकबरे इससे सटा हुआ है। इस्लाम मजहब के प्रचार प्रसार के लिए यहां हर साल तबलीग़ ढोल और नगाड़े की थापों के बीच सूफी की मजार पर चादर चढ़ते हैं। लंबी दाढ़ी रखने और लंबा कुरता और छोटा पैजामा पहनने वाले मौलवी इस्लाम का प्रचार-प्रचार करते हैं। तब्लीगी जमात के मरकज़ और निज़ामुद्दीन औलिया की मजार के बीच, कालजयी शायर मिर्ज़ा ग़ालिब की मजार है। समुदाय के कई लोग कहते हैं कि तबलीग़ी जमात के लोग धर्म प्रचारकों को पलायनवादी और दुनिया से कटे हुए होते हैं, क्योंकि ये लोग ज़मीन के नीचे और आकाश के ऊपर की बातों का ज़िक्र करते हैं।

तबलीग़ी का दावा है कि किसी के पास इस मरकज़ में आने वाले सदस्यों की सूची या रजिस्टर नहीं है, लेकिन इसके सदस्य दुनिया भर में फैले हुए हैं। धीरे-धीरे यह आंदोलन पूरी दुनिया में फैल गया और दुनिया के अलग-अलग देशों में हर साल इसका सालाना कार्यक्रम होता है। तबलीग़ी इस जमात का सबसे बड़ा जलसा हर साल बांग्लादेश में आयोजित होता है। भारत और पाकिस्तान में भी इस जमात का सालाना जलसा होता है। इन जलसों में दुनिया के क़रीब 200 देशों से बड़ी संख्या में मुसलमान शिरकत करते हैं। इस तरह तबलीगी आलमी मरकज़ के कारण भारत में आंशिक सामुदायिक विस्तार शुरू हो गया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने यह बात स्वीकार किया है कि स्थिति ख़तरनाक है।

रविवार, 29 मार्च 2020

Corona Virus - चीन के लिए दुनिया भर में बढ़ रही है नफ़रत


हरिगोविंद विश्वकर्मा
ऐसे समय जब चीन की लापरवाही से चीन के वुहान से निकलकर दुनिया भर में फैल चुके कोरोना वायरस से बहुत बड़ी तादाद में मौत और संक्रमण की ख़बरें मिल रही है। तब चीन और चीन के लोगों के ख़िलाफ़ दुनिया भर में नफ़रत बहुत तेज़ी से बढ़ रही है। वॉट्सअप, फ़ेसबुक, ट्विटर और दूसरी सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर लोग इन मौतों के लिए चीन को ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं और चीन पर  जमकर गुस्‍सा निकाल रहे रहे हैं। बड़ी संख्या में लोग चीन में निर्मित सामानों के बहिष्कार की अपील कर रहे हैं तो बहुत बड़ी तादाद में लोग चीन के ख़िलाफ़ अंतरराष्ट्रीय अदालत में मुक़दमा दर्ज करने की पैरवी कर रहे हैं।

अमेरिका, यूरोप ही नहीं एशिया और चीन के पड़ोसी देशों से लोगों में चीन के प्रति ग़ुस्सा और नफ़रत देखी जा रही है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर बहुत सारे लोग कोरोना संबंधी ट्वीट करने के लिए कुंगफू, चाइना वायरस और कम्युनिस्ट वायरस जैसे हैशटैग का इस्तेमाल कर रहे हैं। ऐसी साइटों पर डाटा टै्रफिक 1000 फीसदी तक बढ़ गया है। कुछ मीडिया आउटलेट्स भी एशियाई लोगों के खिलाफ भड़काने का काम कर रहे हैं।

भारत में 21 दिन के लॉकडाउन के कारण बहुत से लोगों का समय सोशल मीडिया, कम्युनिकेशन एप्स, चैट रूम और गेमिंग में बीत रहा है। इस दौरान बहुत बड़ी संख्या में लोग चीन और चीन लोगों के ख़िलाफ़ संदेश भेजकर कोरोना फैलाने में उनका हाथ बता रहे हैं। देश में कोरोना का क़हर बहुत तेज़ी से फैल रहा है।

इज़रायल स्थित टेक स्टार्टअप लाइट की रिपोर्ट कहती है कि कोरोना वायरस को लेकर भारी तादाद में लोग चीन को ज़िम्मेदार मान रहे हैं। इसलिए वे चीन के लोगों के लिए नफ़रत भरे संदेश भेजकर बीज़िंग के खिलाफ भड़ास निकाल रहे हैं। लोगों के संदेशों में गाली गलौज़, विषवमन, आक्रोश और ग़स्सा दिख रहा है। यह स्टार्टअप सोशल मीडिया पर समाज विरोधी कंटेंट की आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से निगरानी करता है।

टेक स्टार्टअप लाइट कंपनी के अनुसार चीन से शुरू होने वाली इस महामारी के बाद कुछ दिनों तक तो प्रेरक कंटेंट देखने को मिला लेकिन अब सिर्फ ग़ुस्‍से भरे संदेश ही देखने को मिल रहे हैं। इन संदेशों में दुनिया भर में कोरोना का प्रकोप फैलने के पीछे चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। इसीलिए बड़ी संख्या में लोग कोरोना वायरस को चीनी वायरस या सीसीपी वायरस कहा जा रहा है।

पश्चिम ही नहीं, पूरी दुनिया मानती है कि कोरोना वायरस चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के कुप्रबंधन ने चलते चीने के बाहर चला गया और आजकल वैश्विक महामारी बन चुका है। अमेरिकी अख़बार दी अपोच टाइम्स तो अपनी हर स्टोरी में कोरोना वायरस को सीसीपी वायरस यानी कम्युनिस्ट पार्टी वायरस के रूप में लिख रहा जा रहा है। अख़बार के मुताबिक, लोग मानते हैं कि कोराना चीन की जनता की लापरवाही से नहीं, बल्कि चीन में सत्तारूढ़ चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की लीपापोती का नतीजा है। इसीलिए इसे सीसीपी वायरस कहा जा रहा है। आस्ट्रेलिया में स्काई न्यूज ने एक वीडियो जिसमें कहा गया है कि चीन ने जान बूझकर दुनिया में कोरोना फैलाया। इस वीडियो पर पांच हजार से अधिक लोगों ने कमेंट किया है।

अमेरिका के कई राजनेता और दक्षिणपंथी समूहों के कार्यकर्ता चेतावनी दे चुके हैं। इसीलिए कोरोना को लेकर चीनी समुदाय के ख़िलाफ़ नस्लभेदी  नफ़रत बढ़ रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा कोविड-19 वायरस को बार-बार चाइनीज वायरस कहने से भी लोगों के मन में चीन के प्रति दुर्भावना बढ़ रही है।

सोमवार, 23 मार्च 2020

Corona Virus - दो महीने से ग़ायब हैं चीन के 2 करोड़ मोबाइल फोनधारक

हरिगोविंद विश्वकर्मा
चीन में कोरोना वायरस के क़हर के बाद 2 करोड़ 10 लाख 3 हजार मोबाइल और 8.40 लाख लैंडलाइन्स फोनों का न तो कॉल के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है और न ही उनके बिल भरे जा रहे हैं। इसलिए मजबूर होकर चीन की सर्विस प्रोवाइडर कंपनियों ने इन फोनों को बंद कर दिया है। इससे दुनिया भर में आशंका यह जताई जा रही है कि चीन में कोविड-19 से बहुत बड़ी संख्या में नागरिकों की मौत हुई, लेकिन वहां की कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार ने मृतक के आंकड़ों पर लीपापोती कर रही है।

अमेरिका के न्यूयॉर्क टाइम्स और वॉशिंगटन पोस्ट के बाद सबसे प्रतिष्ठित अख़बार समूह The Epoch Times ने अपने प्रिंट एवं डिजिटल एडिशन में इस बारे में विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की है। रिपोर्ट के मुताबिक, चीन में 21 मिलियन यानी दो करोड़ दस हजार मोबाइल फोन अकाउंट्स पिछले दो महीने के दौरान डिएक्टिवेट हो गए हैं। आशंका यह जताई जा रही है कि कोरोना वाइरस से जो लोग अपना जान गंवा बैठे, उनका फोन बंद हो गया है। हालांकि चीन कह रहा है कि कोरोना के चलते परेशान होकर लोग मोबाइल फोन अकाउंट बंद कर रहे हैं। आज के दौर में किसी का अपना फोन कोरोना के कारण बंद करने की बात हज़म नहीं हो रही है। इसलिए लग रहा है कि चीन शर्तिया कोरोना मृतकों की संख्या अब भी छुपा रहा है।

चीनी मामलों के टिप्पणीकार तांग जिंगुआन ने 21 मार्च बातचीत कै दौरान कहा, “सेल फोन चीन में लोगों के जीवन का एक बहुत ही अनिवार्य हिस्सा हैं। वहां दुनिया के दूसरे देशों के मुक़ाबले अदिक लोग मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हैं। चीन में डिजिटलीकरण का स्तर दुनिया के किसी भी देश के मुक़ाबले बहुत अधिक ऊंचा है। वहां लोग सेल फोन के बिना जीवित नहीं रह सकते हैं। पेंशन और सामाजिक सुरक्षा के लिए सरकार से व्यवहार करने, ट्रेन टिकट खरीदने, खरीदारी करने के लिए लोग सेल फोन का उपयोग करते हैं।”

तांग जिंगुआन कहते हैं “कम्युनिस्ट शासन में हर चीनी को हेल्थ कोड जनरेट करना पड़ता है, उसके लिए हर नागरिक अपने सेल फोन का उपयोग करता है। फिलहाल, केवल ग्रीन हेल्थ कोड धारक को चीन में कहीं आने-जाने की अनुमति है। ऐसे परिवेश में किसी नागरिक के लिए अपना सेल फोन खाता बंद या रद्द करना असंभव सा है। चीन ने फोन को पंजीकृत करने वाले हर व्यक्ति की पहचान की पुष्टि के लिए 1 दिसंबर, 2019 को अनिवार्य रूप से फेस स्कैनिंग की शुरू की।

तांग जिंगुआन कहते हैं “इससे पहले, 1 सितंबर, 2010 तक चीन को सभी सेल फोन उपयोगकर्ताओं को अपनी वास्तविक पहचान (आईडी) के साथ फोन को पंजीकृत करने की आवश्यकता होती थी, जिसके द्वारा सरकार अपने व्यापक निगरानी प्रणाली के माध्यम से लोगों के भाषणों की मॉनिटरिंग कर सकती थी। इसके अलावा, चीनी लोगों को अपने सेल फोन के साथ अपने बैंक खाते और सामाजिक सुरक्षा खाते को जोड़ना पड़ता है, क्योंकि इन सभी सेवा के ऐप ही फोन के सिम कार्ड का पता लगा सकते हैं और फिर सरकार के डेटाबेस के जरिए यह सुनिश्चित करने के लिए जांच सकते हैं कि अमुक नंबर उसी व्यक्ति का है या नहीं है।"

बीजिंग ने 10 मार्च, 2020 को सेल फोन आधारित हेल्थ कोड को शुरू किया। इसके लिए चीन में हर नागरिक को सेल फोन ऐप इंस्टॉल करना और उसमें अपनी व्यक्तिगत हेल्थ इनफॉर्मेंशन दर्ज जरूरी हो गया। उसके बाद ऐप लोगों के हेल्थ स्टैटस को वर्गीकृत करने के लिए, तीन रंगों में क्यूआर कोड जनरेट करता है। रेड का अर्थ है, व्यक्ति को कोई संक्रामक बीमारी, येलो का अर्थ, व्यक्ति को कोई संक्रामक बीमारी हो सकती है और ग्रीन का अर्थ है कि व्यक्ति को कोई संक्रामक बीमारी नहीं है।

चीनी उद्योग और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने पिछले 19 मार्च 2020 को फरवरी में हर राज्य में फोनधारकों की संख्या बताई। पिछली घोषणा की तुलना में, जिसे नवंबर 2019 तक के डेटा के लिए 18 दिसंबर, 2019 को जारी किया गया था, दोनों सेल फोन धारकों और लैंडलाइन उपयोगकर्ताओं की संख्या में नाटकीय रूप से भारी गिरावट दर्ज की गई है। एक साल पहले इसी अवधि में सेल फोन धारकों खातों की संख्या में वृद्धि हुई थी।

सेल फोन उपयोगकर्ताओं की संख्या 1.600957 बिलियन यानी 160.0957 करोड़ से घटकर 1.579927 बिलियन यानी 157.9927 करोड़ हो गई, जो कि 21.03 मिलियन यानी 2 करोड़ 10 लाख 3 हजार कम है। लैंडलाइन उपयोगकर्ता 190.83 मिलियन यानी 19.083 करोड़ से घटकर 189.99 मिलियन यानी 18.999 करोड़ तक गिर गए, जो कि 0.84 मिलियन यानी 8 लाख 40 हज़ार कम है।

फरवरी 2019 में, संख्या बढ़ गई थी। 26 मार्च, 2019 और 20 दिसंबर, 2018 को मंत्रालय की घोषणाओं के अनुसार, फरवरी 2019 में सेल फोन उपयोगकर्ताओं की संख्या 1.5591 बिलियन यानी 155.91 करेड़ से बढ़कर 1.5835 बिलियन यानी 158.35 करोड़ हो गई, जो कि 24.37 मिलियन यानी 2 करोड़ 43 लाख और सात हजार अधिक है। लैंडलाइन उपयोगकर्ता 183.477 मिलियन यानी 18.3477 करोड़ से बढ़कर 190.118 मिलियन यानी 19.0118 करोड़ हो गए थे, जो 6.641 मिलियन यानी 66 लाख 41 हजार अधिक था।

चीनी राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो के अनुसार, 2019 के अंत में देश की जनसंख्या 2018 की तुलना में 4.67 मिलियन यानी 46 लाख 70 हज़ार अधिक थी, और 1.40005 बिलियन यानी एक अरब 40 करोड़ 50 हज़ार तक पहुंच गई थी। लैंडलाइन उपयोगकर्ताओं में 2020 की कमी फरवरी में राष्ट्रव्यापी क्वारंटीन के कारण हो सकती है, जिसके दौरान कई छोटे व्यवसायों को बंद कर दिया गया था। लेकिन सेल फोन उपयोगकर्ताओं की कमी को इस तरह से नहीं समझाया जा सकता है। सभी तीन चीनी सेल फोन वाहक के ऑपरेशन डेटा के अनुसार, दिसंबर 2019 तक सेल फोन खातों में वृद्धि होती रही, लेकिन 2020 में अचानक तेज़ी से गिरावट हुई।

चीन को सेल फोन मार्केट में लगभग 60 प्रतिशत हिस्सेदार चाइना मोबाइल चीन में मोबाइल सर्विस देने वाली सबसे बड़ी कंपनी है। कंपनी ने बताया कि उसने फरवरी 2020 में 7.254 मिलियन यानी 72 लाख 54 हज़ार सेल फोन धारक खो दिए। इसी तरह जनवरी 2020 में 0.862 मिलियन यानी 86 हजार 2 सौ फोन काते बंद हो गए थे। जबकि कंपनी के मोबाइल खाता धारकों में दिसंबर 2019 में 3.732 मिलियन यानी 37 लाख 32 हज़ार मोबाइल फोन धारकों की बढ़ेतरी हुई थी। 2019 की शुरुआत में चाइना मोबाइल का कारोबर लाभोन्मुख था। जनवरी 2019 में कंपनी के ग्राहकों की संख्या में 2.411 मिलियन यानी 24 लाख 11 हज़ार की बढ़ोतरी हुई थी। इसी तरह फरवरी 2019 में कंपनी के 1.091 मिलियन यानी 10 लाख 91 हज़ार उपयोगकर्ता बढ़े थे।

चीन को सेल फोन मार्केट में लगभग 21 प्रतिशत हिस्सेदार चाइना टेलीकॉम चीन की दूसरी सबसे बड़ी सर्विस प्रोवाइडर कंपनी है इस कंपनी ने फरवरी 2020 में 5.6 मिलियन यानी 56 लाख उपयोगकर्ता खो दिए। इसी तरह जनवरी 2020 में 0.43 मिलियन यानी 43 लाख उपयोगकर्ता खो दिए। गौरतलब है कि चाइना टेलीकॉम ने 2019 के दिसंबर में 1.18 मिलियन यानी 11 लाख 80 हज़ार उपयोगकर्ता, फरवरी में 2.96 मिलियन यानी 29 लाख 60 हज़ार और जनवरी में 4.26 मिलियन यानी 42 लाख 60 हज़ार उपयोकर्ता हासिल कि किए।

चीन की तीसरी मोबाइल कंपनी चाइना यूनिकॉम ने अभी तक फरवरी का डेटा सार्वजनिक नहीं किया है। इस कंपनी ने जनवरी 2020 में और 2019 की शुरुआत में अपने यूजर्स की संख्या को सर्वजनिक किया है। कंपनी ने जनवरी 2020 में 1.186 मिलियन यानी 11 लाख 86 हज़ार उपयोगकर्ता खो दिए, जबकि पिछले साल फरवरी यानी फरवरी 2019 में कंपनी को 1.962 मिलियन यानी 19 लाख 62 हज़ार उपयोगकर्ता प्राप्त हुए। इसी तरह जनवरी 2019 में कंपनी को 2.763 मिलियन यानी 27 लाख 63 हज़ार उपयोगकर्ता मिले थे।

चीनी सरकार हर वयस्क चीनी नागरिक को अधिकतम पांच सेल फोन नंबर्स के लिए आवेदन करने की अनुमति देता है। 10 फरवरी के बाद से अधिकांश चीनी छात्रों ने स्कूल/कॉलेज बंद होने के चलते सेल फोन नंबर के साथ ऑनलाइन कक्षाएं अटेंड की। इन छात्रों के खाते उनके माता-पिता के नाम से हैं, जिसका अर्थ है कि कुछ माता-पिता को फरवरी में अपने बच्चों के लिए एक नया सेल फोन अकाउंट खोलने की आवश्यकता थी। इसका मतलब फरवरी में मोबाइल यूजर्स की संख्या बढ़नी अपेक्षित थी। अब सवाल यह उठता है कि क्या सेल फोन खातों में नाटकीय गिरावट कोरोना वायरस के कारण मरने वालों के खाता बंदी को दर्शाता है?

तांग जिंगुआन कहते हैं "यह भी संभव है कि कुछ प्रवासी श्रमिकों के पहले दो सेल फोन नंबर थे। एक उनके गृहनगर से है, और दूसरा वे जिस शहर में काम करते हैं। इस हिसाब से फरवरी से वे अपने कार्यस्थल वाले फोन नंबर को बंद कर सकते हैं, क्योंकि वे वहां नहीं जा सकते। आमतौर पर, प्रवासी श्रमिक जनवरी में चीनी नववर्ष के लिए अपने गृह शहर चले जाते थे, और फिर यात्रा प्रतिबंधों ने उस शहर में लौटने से रोक दिया होता जहां वे नौकरी करते थे। चीन में सेल फोन के लिए कुछ मूल मासिक शुल्क के चलते अधिकांश प्रवासी श्रमिक केवल एक सेल फोन रखते हैं। चीनी राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो ने 29 अप्रैल, 2019 को घोषणा की थी कि चीन में 288.36 मिलियन यानी 28 करोड़ 83 लाख 60 हजार प्रवासी श्रमिक थे। पिछले 17 मार्च को चीन सरकार ने कहा कि हुबेई प्रांत को छोड़कर चीन के सभी प्रांतों में 90 प्रतिशत से अधिक व्यवसाय का संचालन शुरू हो गया है। झेजियांग, शंघाई, जिआंगसु, शानडांग, गुआंग्शी और चोंगकिंग में लगभग सभी व्यवसायों ने उत्पादन फिर से शुरू कर दिया है। इस तरह यदि प्रवासी श्रमिकों की संख्या और रोज़गार का स्तर दोनों सही हैं, तो 90 फ़ीसदी से अधिक प्रवासी श्रमिक काम पर वापस आ गए हैं।

तांग जिंगुआन कहते हैं "ऐसा संभव है कि चीन में शटडाउन के कारण हुए आर्थिक उथल-पुथल के चलते कुछ दो फोन रखने वाले लोग अपना दूसरा अतिरिक्त फोन सरेंडर कर सकते हैं, क्योंकि व्यापार बंद होने के कारण, वे अतिरिक्त बिल का खर्च वहन नहीं करना चाहते हैं। बहरहाल, वर्तमान समय में डेटा का विवरण कोई नहीं जानता है। अगर केवल 10 प्रतिशत सेल फोन यूजर्स की करोना से मौत हो जाने से बंद होते तो भी चीन में कोरोना से मरने वालों की संख्या दो मिलियन यानी 20 लाख तक हो जाएगी।चीन की ओर से जारी मौत की जानकारी दूसरे स्रोतों से मिली सूचना से मेल नहीं खाती है, अन्यथा वहां की स्थिति के बारे में जाना जा सकता है।

चीन की इटली के साथ तुलना करने से पता चलता है कि चीन में मरने वालों की संख्या बहुत कम है। इटली ने भी सी तरह के साधनों को अपनाया जो चीनी शासन ने चीन में इस्तेमाल किया था। इसके बावजूद कोरोना वायरस से इटली में 4,825 मौंते हुई यानी वहां 9 प्रतिशत की मृत्यु दर है। जबकि चीन में वायरस से अधिक बड़ी आबादी के साथ था फिर भी वहां इटली में रिपोर्ट की गई आधी से भी कम 4 प्रतिशत की मृत्यु दर 3,265 लोगों की मौत बताई जा रही है।

हुबेई प्रांत के कोरोना वायरस के एपिसेंटर में गतिविधियां चीन में होने वाली मौतों के आंकड़ों के भी एकदम विपरीत हैं। चीन के वुहान में सात अंतिम संस्कार घरों में जनवरी के अंत में 24 दिन, 24 घंटों के शव जलते रहने की सूचना थी। चीन 16 फरवरी से लगातार हुबेई प्रांत में एक दिन में 5 टन मेडिकल कचरा निकल रहा है और चीन शव जलाने में सक्षम 40 मोबाइल क्रिमेटर्स का उपयोग कर रहा है।

जो भी हो डेटा में कमी के चलते चीन में कोरोना वायरस की मौत एक रहस्य बन गया है। दो करोड़ से ज़्यादा मोबाइल फोन का अचानक बंद होना यही संकेत करता है कि चीन में कोराना वायरस से मरने वालों की वास्तविक संख्या आधिकारिक संख्या से बहुत अधिक भी हो सकती है। गौरतलब है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के कवरअप और कुप्रबंधन ने कोरोना वायरस को पूरे चीन में फैलने और एक वैश्विक महामारी बनाने की अनुमति दी।


सारी सूचनाएं अमेरिकी अख़बार The Epoch Times से साभार 

शनिवार, 21 मार्च 2020

Corona Virus : बहुत बड़ी विपदा की दस्तक – कोरोना से नहीं, भूख से मरने का ख़तरा अधिक!

हरिगोविंद विश्वकर्मा

फ़ेसबुक या दूसरी सोशल नेटवर्किंग साइट पर ज़्यादातर नौकरीशुदा लोग सक्रिय हैं। जिन्हें नियमित रूप से हर महीने वेतन मिलता है। ज़िंदगी एक सही ढर्रे पर होती है। ज़ाहिर है, उनके सामने कम से कम भोजन का संकट यानी क्वैश्चन ऑफ एग्ज़िस्टेंस नहीं है। उन्हें केवल और बेहतर जीवन की उम्मीद रहती है। उनकी यही एकमात्र समस्या होती है, जिसे जेनुइन समस्या की कैटेगरी में नहीं रखा जा सकता है। कह सकते हैं कि इसलिए अमूमन ऐसे लोग बिंदास रहते हैं। किसी घटना को लेकर बहुत चिंतित नहीं होते, क्योंकि उनके सामने रोटी की संकट नहीं होता है। लॉक्ड डाउन की अवस्था में उनके सामने ‘वर्क फ्रॉम होम’ का विकल्प है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी निजी कंपनियों से अपील भी कर चुके हैं कि संकट की कर्मचारियों का वेतन न काटा जाए। ज़ाहिर है कोई भी कंपनी अपने कर्मचारियों का वेतन नहीं काटने वाली है। इसीलिए नौकरीशुदा लोग बहुत ज़्यादा चिंतित नहीं हैं। कई लोगों के फेसबुक पोस्ट से तो यही लगता है कि कोरोना संक्रमण उनके एक एडवेंचर की तरह हैं, इसीलिए ऐसे लोग इस महामारी के हमले के बाद के घटनाक्रम को उत्सव की तरह ले रहे हैं।

जिनके पास नौकरी नहीं है, या जो दैनिक आधार पर श्रम करने वाले लोग हैं, वे सोशल नेटवर्किंग साइट पर बहुत कम सक्रिय रहते हैं। ऐसे लोगों का ज़्यादातर समय दो जून की रोटी जुटाने में ही चला जाता है। उनके सोशल प्लेटफ़ॉर्म पर बहुत सक्रिय न होने से आम सोशली या नौकरीशुदा व्यक्ति को उनकी सोच, उनकी पीड़ा, उनके दुख-दर्द का एहसास नहीं हो पाता। यह महसूस करना हो तो बाहर जाने वाली ट्रेनों के प्रस्थान स्थल यानी कुर्ला टर्मिनस यानी एलटीटी चले जाइए। सब भाग रहे हैं। सब कुछ छोड़कर भाग रहे हैं। केवल बीवी बच्चों के साथ। ये लोग कोरोना के डर से नहीं भाग रहे हैं, बल्कि ये लोग कोरोना के चंगुल में फंसे देश में होने वाली रोटी के संकट से घबराकर भाग रहे हैं। उन्हें पता है कि कोरोना से लॉक्ड डॉउन का दौर लंबा खिंचा तो वे कोरोना से नहीं तो भुखमरी से अवश्य मर जाएंगे। इसलिए अपने वतन जाना चाहते हैं, गांव में कम से कम दो जून की नहीं तो, एक जून रोटी तो मिल जाएगी।

जिनके पास किसी तरह नौकरी नहीं है। यानी जो लोग जिस दिन काम करते हैं, उन्हें उसी दिन का मेहनताना मिलता है, ज़ाहिर है, उनका सब कुछ, ज़्यादातर का जीवन ही, ख़त्म होने के कग़ार पर है। वे लोग ‘काम नहीं तो दाम नहीं’ जैसे माहौल में ज़िंदा रह पाएंगे, इसे लेकर आश्वस्त नहीं हैं। इन असंगठित क्षेत्र के बदनसीब लोगों के पास ‘वर्क फ्रॉम होम’ का विकल्प ही नहीं है। ज़ाहिर है, इनमें से ज़्यादातर कोरोना संक्रमण से बच जाएंगे, लेकिन कारोबार चौपट होने से उपजे हालात में भोजन का संकट उनकी जान ले लेगा।

दैनिक आधार पर काम करने वाले जानते हैं कि इटली, स्पेन और ब्रिटेन जैसे देश, जहां बेरोज़गारों को इतनी भत्ता मिलता है कि वे साल में एक बार विदेश यात्रा करते हैं, में लोग कोरोना को नियंत्रित नहीं कर पा रहे हैं तो भारत जैसा देश, जहां स्वास्थ्य सेवाएं पूरी तरह राम भरोसे हैं, जहां हैं, वहां मुनाफ़ाखोर हेल्थ इश्योरेंस कंपनियों के क़ब्ज़े में हैं, ऐसे हालात में यह देश कोरोना जैसी महामारी से कैसे निपटेगा, यह सब लोग बख़ूबी जानते हैं। कोई भी सरकार भाषण का ज्ञान देने के अलावा कुछ नहीं कर पाती, मौजूदा सरकार भी वही कर रही है। हमारी सरकार कोरोना को चीन की बीमारी समझती रही। कह लें हाथ पे हाथ धरे बैठी रही। जनवरी से ही विदेश से आने वाले हर शख्स पर नज़र नहीं रखा जा सका। यही वजह यह हुई कि कनिका कपूर जैसे लोग कोरोना वायरस लेकर आते रहे और इसे परमाणु संलयन (चेन रिएक्शन) की तरह फैलाते रहे। हर दिन दूसरे दिन से ज़्यादा लोग कोरोना की चपेट में आ रहे हैं। इसलिए फिर कह रहा हूं, इस कोरोना वायरस को फैलने से रोका जाए और इस देश को तुरंत लॉक्ड डॉउन कर दिया जाए।

फ़िलहाल, काम के अभाव में लोग घरों में क़ैद हो रहे हैं। दिन भर से घर में बैठे हैं। चुपचाप। ख़ाली बैठा, मैं कभी फेसबुक पर चला जाता हूं, कभी टीवी चालू कर देता हूं। अभी मैंने जी सिनेमा चैनल पर ‘उजड़ा चमन’ फिल्म देखी। अच्छी फिल्म लगी। फिल्म ख़त्म होने के बाद फिर सोचने लगा। बहुत विचलित हो रहा हूं। समझ में नहीं आ रहा है, क्या किया जाए? आगे क्या होगा? इसकी भी बहुत अधिक चिंता है। दुबई से जबलपुर का चार लोगों का एक परिवार कोरोना पॉजिटिव पाया गया है। इन लोगों ने मुंबई से जबलपुर तक की यात्रा ट्रेन से की। अभी-अभी ख़बर आई है कि विदेश संपर्क के बाद ट्रेन में बिना विदेश संपर्क के आठ कोरोना केस पाए गए हैं। ये लोग दिल्ली से रामगुंडम की यात्रा कर रहे थे। यानी कम्युनिटी स्प्रेड का ख़तरा एकदम हमारी चौखट तक आ गया है।

मंगलवार, 25 फ़रवरी 2020

व्यंग्य : राष्ट्रदादी-राष्ट्रनानी आंदोलन

हरिगोविंद विश्वकर्मा
वहां ढेर सारी महिलाएं बैठी थीं। सब अलग-अलग गुट में। एक जगह दो महिलाएं थीं। दोनों मुस्करा रही थीं। मुस्करा नहीं, बल्कि हंस रही थीं। बहुत ख़ुश लग रही थीं।
-आप दोनों की इस ख़ुशी का राज़? मैंने कलाई हिलाकर इशारे से ही पूछ लिया।
-हम केवल दो नहीं, हज़ारों हैं। हम बहुत ख़ुश हैं। नागरिकता संशोधन क़ानून का अंतरराष्ट्रीयकरण हो गया, दोनों बोलीं।
-वह कैसे?
-ट्रंप की मौजूदगी में दिल्ली में ख़ूब हिंसा हुई। मज़ा आ गया। अब ट्रंप ज़रूर मोदी की ख़बर लेगा। मोदी का काला क़ानून वापस लेना पड़ेगा।
-बात में तो दम है। वाक़ई! बाई द वे आप लोगों का परिचय?
-हम दोनों दादी हैं। दादी!
-दादी?
-हां बेटा, दादी!
-किसकी दादी है आप दोनों?
-पूरे देश की दादी।
-मतलब राष्ट्रदादी!
-हां बेटा। हम राष्ट्रदादी हैं!
-बधाई हो राष्ट्रदादी। दरअसल, मैं शाहीनबाग़ की दादियों और नानियों से ही मिलने आया था।
-बोलो बेटा, हम दोनों राष्ट्रदादी हैं और राष्ट्रनानी भी!
-मतलब टू-इन-वन?
-हां बेटा।
-क्या बात है, राष्ट्रपिता, राष्ट्रपुत्र, राष्ट्रमाता के बाद देश को राष्ट्रदादी और राष्ट्रनानी भी मिल गईं।
-बिल्कुल, बेटा।
-राष्ट्रदादी, आप यहां शाहीनबाग़ में क्या कर रही हैं।
-आंदोलन बेटा। यहां की सभी दादियां-नानियां आंदोलन कर रही हैं।
-आपके आंदोलन में कौन-कौन है?
-केवल हम दादियां और नानियां हैं बेटा। इस आंदोलन में हर धर्म और समुदाय की दादियां और नानियां हैं। सेक्यूलर दादियां और सेक्यूलर नानियां। यह राष्ट्रदादी-राष्ट्रनानी आंदोलन है बेटा। समूचे मानव इतिहास का पहला राष्ट्रदादी-राष्ट्रनानी आंदोलन बेटा।
-यह आंदोलन किसलिए हो रहा है।
-भारतीय संविधान को बचाने के लिए यह आंदोलन हो रहा है। अंबेडकर के संविधान की रक्षा के लिए हम राष्ट्रदादियां-राष्ट्रनानियां घर से बाहर निकली हैं।
-बहुत बढ़िया राष्ट्रदादी!
-यह आंदोलन किसके ख़िलाफ़ हो रहा है।
-संघी सरकार के ख़िलाफ़!
-संघी सरकार के ख़िलाफ़ या नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़? मैंने पूछा।
-दोनों के ख़िलाफ़ बेटा। संघी सरकार ने ही तो बनाया है सीएए।
-आप लोग नागरिकता संशोधन क़ानून का विरोध क्यों कर रही हैं?
-यह पक्षपाती क़ानून है बेटा।
-पक्षपाती कैसे हुआ? ज़रा ख़ुलासा करिए राष्ट्रदादी।
-दोनों राष्ट्रदादियां सकपका गईं।
-हम दोनों को ज़्यादा नहीं पता बेटा। केवल इतना ही पता है, यह काला क़ानून है। यह मुसलमानों के ख़िलाफ़ है।
-किन मुसलमानों के ख़िलाफ़?
-सभी मुसलमानों के ख़िलाफ़?
-मुसलमानों के ख़िलाफ़ कैसे है?
-ऐसे ही, यह मुसलमानों के ख़िलाफ़ है।
-कारण बताइए। यह मुसलमानों के ख़िलाफ़ कैसे है? किस राष्ट्रदादी या राष्ट्रनानी को इस काले क़ानून की जानकारी है?
-एक बुद्दिजीवी राष्ट्रदादी उर्फ राष्ट्रनानी वहां आ गई।
-क्या पूछ रहे हो बेटा? उसने मुझसे सवाल किया।
-मैं यह पूछ रहा हूं राष्ट्रदादी कि आप लोग आंदोलन क्यों कर रही हैं?
-हम लोग काले क़ानून के ख़िलाफ़ आंदोलन कर रहे हैं बेटा।
-किस काले क़ानून के ख़िलाफ़। यह क़ानून काला कैसे है? यही तो पूछ रहा हूं।
-मेरी आवाज़ सुनकर वहां और राष्ट्रदादियां-राष्ट्रनानियां आ गईं।
-किसी को भी नहीं पता था, कि काला क़ानून कैसे मुसलमानों के ख़िलाफ़ है।
-मतलब आप लोगों में किसी को पता नहीं कि काला क़ानून क्या है।
-नहीं-नहीं, हमें पता है। हम दादियां और नानियां उम्रदराज़ हो गई हैं न। इसलिए भूल जाती है, इस काले क़ानून की बारीक़ियां।
-मैं तो आप लोगों का समर्थन करने आया था। सोचा, चलूं राष्ट्रदादियों-राष्ट्रनानियों के समर्थन में मैं भी बैठ जाऊं शाहीनबाग़ में। हाइवे पर सोने का मज़ा लूं।
कुछ देर वहां शांति रही।
-अरे, वो महक। इधर आ।
महक राष्ट्रदादियों-राष्ट्रनानियों से थोड़ी कम उम्र की महिला थी। जींस-टीशर्ट में। वह आ गई।
-इनको काले क़ानून के बारे में बता दो। एक दादी बोली।
-क्या जानना चाहते हैं आप??? उस महिला ने पूछा।
-आपकी तारीफ़? आप भी राष्ट्रदादी हैं? मैंने भी सवाल दाग़ दिया।
-नहीं, मैं राष्ट्रदादी या राष्ट्रनानी नहीं हूं। मैं राष्ट्रपुत्री हूं। भारत की बेटी!
-आप क्या करती हैं? मेरा मतलब, आंदोलन के अलावा और क्या करती हैं।
-रिसर्च। जेएनयू में रिसर्चर हूं।
-किस सब्जेक्ट पर रिसर्च कर रही है?
-रिलिजियस पर्सिक्यूशन यानी धार्मिक उत्पीड़न विषय पर?
-बहुत बढिया। आपके साथ बातचीत में मज़ा आएगा। तो आप भी आंदोलन में शामिल हैं?
-हां, हम सभी सीएए, एनआरसी और एनपीआर के विरोध में आंदोलन कर रहे हैं। अंबेडकर के संविधान को बचाना चाहते हैं, जिन्हें हाफपैंटी नष्ट करने पर तुले हुए हैं।
-एक-एक करके बताइए। पहले सीएए यानी नागरिकता संशोधन क़ानून।
-यह हमारे संविधान के ख़िलाफ़ है। मुसलमानों के ख़िलाफ़ है।
-संविधान के ख़िलाफ़ या मुसलमानों के ख़िलाफ़?
-दोनों के ख़िलाफ़!
-ज़्यादा किसके ख़िलाफ़?
-मुसलमानों के।
-वह कैसे?
-यह काला क़ानून हमारी नागरिकता छीन लेगा। हमें डिटेंशन कैंप में डाल देगा।
-लेकिन यह क़ानून नागरिकता छीनने के लिए नहीं, बल्कि नागरिकता देने के लिए है। जी हां, सीएए पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न के शिकार अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता देने के लिए है।
-ग़लत। आप सही नहीं बोल रहे हैं।
-ग़लत नहीं, सौ फ़ीसदी सही बोल रहा हूं। यह क़ानून धार्मिक उत्पीड़न के शिकार अल्पसंख्यकों के लिए है।
-नहीं, आप ग़लतबयानी कर रहे हैं। इस क़ानून में हिंदुओं, सिखों, बौद्धों और ईसाइयों का ज़िक्र है। लेकिन मुसलमान इस क़ानून से ग़ायब कर दिए गए।
-मतलब, आप क्या कहना चाहती हैं, विस्तार से समझाइए।
-मतलब यह कि सीएए के लाभार्थी केवल हिंदू, सिख, बौद्ध और ईसाई हैं। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान के मुसलमान नहीं। इसी बात का विरोध कर रहे हैं हम लोग।
-और बारीक़ी से समझाइए। आपने कहा कि सीएए के लाभार्थी केवल हिंदू, सिख, बौद्ध और ईसाई हैं। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान के मुसलमान इस क़ानून के लाभार्थी नहीं हैं।
-हां, अब आप सही पकड़े हैं। सभी एक स्वर में बोल पड़ी।
-मतलब इस क़ानून के लाभार्थी पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान के मुसलमान भी बनाए जाने चाहिए। ठीक है न?
-हां, अब आप एकदम सही पकड़े हैं।
-मतलब आप लोग पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान के मुसलमानों को इस क़ानून का लाभार्थी बनाने के लिए आंदोलन कर रही हैं। ठीक है न?
-हां, अब आप पूरी तरह सही पकड़े हैं।
-इसका मतलब यह भी कि आप लोग पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान के मुसलमानों के हितों की रक्षा करने के लिए आंदोलन कर रही हैं। ठीक है न?
-वही तो, आख़िरकार आप समझ गए। सही पकड़ लिया।
-मतलब यह आंदोलन पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान के मुसलमानों के लिए हो रहा है। ठीक है न?
-नहीं-नहीं, यह आंदोलन बाबासाहेब के संविधान को बचाने के लिए है। आप कन्फ़्यूज़ कर रहे हैं।
-इसमें क्या कन्फ़्यूज़न है?
-बतौर जेएनयू की रिलिजियस पर्सिक्यूशन रिसर्चर आप यह कहना चाहती हैं कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान में मुसलमानों पर भी धार्मिक अत्याचार हो रहा है? मतलब इन तीनों इस्लामी मुल्कों में मुसलमान भी धर्म-परिवर्तन के शिकार हो रहे हैं। उनका भी मजहब बदलवाया जा रहा है।
-नहीं-नहीं। आप हमें कन्फ़्यूज़ नहीं कर सकते। हम लोग अंबेडकर के संविधान को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।  
-मैं आप लोगों को क्या कन्फ़्यूज़ करूंगा। आप लोग तो पहले से ही कन्फ़्यूज़्ड हैं।

-आप लोग मुसलमानों को शिक्षित करने पर आंदोलन नहीं करेंगी। उनकी ग़रीबी हटाने के लिए आंदोलन नहीं करेंगी। आप लोग आंदोलन सीएए में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान के मुसलमानों को लाभार्थी बनाने के लिए करेंगी। आप लोग महान हैं। बहरहाल, इजाज़त दीजिए। नमस्कार। आप लोग पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान के मुसलमानों के लिए लड़ते रहिए। शुभकामनाएं।